जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ।
परिवाद संख्या-459/2010
उपस्थित:-श्री अरविन्द कुमार, अध्यक्ष।
श्रीमती स्नेह त्रिपाठी, सदस्य।
श्री अशोक कुमार सिंह, सदस्य।
परिवाद प्रस्तुत करने की तारीख:-25/05/2010
परिवाद के निर्णय की तारीख:-25.01.2021
श्रीमती सरस्वती रस्तोगी पत्नी स्व0 लक्ष्मी चन्द्र रस्तोगी निवासी 295/243, अशर्फाबाद, लखनऊ। .........परिवादिनी।
बनाम
प्रबन्धक यूको बैंक, लखनऊ शाखा हजरतगंज, लखनऊ।
...........विपक्षी।
आदेश द्वारा-श्री अरविन्द कुमार, अध्यक्ष।
निर्णय
परिवादिनी ने प्रस्तुत परिवाद विपक्षी से वाद पत्र की धारा 11 में लिखित सामान (400 से अधिक चॉंदी के सिक्के, गले में पहनने का सोने का ताक लगभग 20 तोला, एक जड़ाऊ ऑकड़े की जंजीर लगभग 20 तोला सोने की, एक जोड़ी छन्नी हाथ में पहनने वाली लगभग 20 तोला सोने की तथा एक जोड़ी पछेली हाथ में पहनने की लगभग 20 तोला सोने की) या उसके मूल्य के बराबर रूपये एवं वाद व्यय दिलाये जाने की प्रार्थना के साथ प्रस्तुत किया है।
संक्षेप में परिवाद के कथन इस प्रकार हैं कि परिवादिनी के पति स्व0 लक्ष्मी चन्द्र रस्तोगी का एक बैंक लाकर संख्या 83, विपक्षी यूको बैंक लखनऊ शाखा-हजरतगंज, लखनऊ में था। लक्ष्मी चन्द्र रस्तोगी की मृत्यु दिनॉंक 04.02.1991 को हो गयी थी। दिनॉंक 27.11.2002 तक लाकर का किराया भी अदा किया जा चुका था क्यों कि विपक्षी यूको बैंक द्वारा पत्र दिनॉंकित 05.04.2002 के द्वारा दिनॉंक 27.11.90 से बाकी किराया 2510.00 रूपये की मॉंग की गयी थी। दिनॉंक 11.05.2002 को विपक्षी द्वारा मॉगा गया किराया लाकर जमा कर दिया गया। परिवादिनी लॉकर को संचालित करने के लिये बैंक में गयी तो बैंक के प्रबन्धक द्वारा सूचित किया गया कि सक्षम न्यायालय के आदेश के बिना लॉकर संचालित नहीं करने दिया जायेगा। परिवादिनी द्वारा एक नियमित वाद संख्या 986/2005 श्रीमती सरस्वती रस्तोगी बनाम मनोज रस्तोगी व अन्य न्यायालय श्रीमान् सिविल जज प्रवर वर्ग, लखनऊ के न्यायालय में संस्थित किया गया जिसमें विपक्षी बैंक को भी पक्षकार बनाया गया। माननीय न्यायालय द्वारा दिनॉंक 10.10.2007 को विपक्षीगण के विरूद्ध आज्ञप्ति पारित करते हुए परिवादिनी को विधिक वारिस घोषित करते हुए लॉकर संख्या 83 को संचालित करने का अधिकार भी प्रदान कर दिया। परिवादिनी जब न्यायालय के आदेश सहित बैंक में लॉकर संख्या 83 संचालित करने हेतु उपस्थित हुई तो विपक्षी द्वारा सूचित किया गया कि लॉकर बैंक द्वारा खोल लिया गया तथा कारण एवं इस विषय में कोई संतोषजनक सूचना भी नहीं दिया। परिवादिनी को लॉकर खोलने से पूर्व कोई सूचना नहीं दी गयी तथा बिना सूचना एवं सहमति के विधि विरूद्ध तरीके से लॉकर खोलकर नितान्त अवैधानिक कृत्य बैंक द्वारा किया गया। परिवादिनी द्वारा सामान के विषय में पूछताछ करने पर उसे साधारण बैंक से निकालकर रखे गये सामान को पहचानने को कहा गया, सामान को पहचानकर परिवादिनी द्वारा खाली डिब्बों के विषय में भी आपत्ति की गयी किन्तु विपक्षी बैंक द्वारा आपत्तियों का कोई संज्ञान नहीं लिया गया। परिवादिनी द्वारा लॉकर में रखे गये सामानों की सूची तथा पुराने कागजात जॉंचने प पता चला कि लॉंकर में 400 से अधिक चॉंदी के सिक्के, गले में पहनने का सोने का ताक लगभग 20 तोला वजन का, एक जड़ाऊ ऑकड़े की जंजीर लगभग 20 तोला सोने की, एक जोड़ी छन्नी हाथ में पहनने वाली लगभग 20 तोला सोने की तथा एक जोड़ी पछेली हाथ में पहनने की लगभग 20 तोला सोने की रखी थी। परिवादिनी द्वारा इस विषय में एक पंजीकृत नोटिस अपने अधिवक्ता द्वारा दिनॉंक 06.05.2008 को भेजी गयी जिसे प्राप्त होने के बाद भी नोटिस का पालन नहीं किया गया, तथा दिनॉंक 29.05.2008 के पत्र द्वारा अर्नगल जवाब दिया गया।
विपक्षी यूको बैंक ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत करते हुए परिवाद पत्र के अधिकांश कथनों को इनकार किया तथा अतिरिक्त कथन किया कि बैंक लाकर के किराये की सूचना बैंक द्वारा जब उक्त पते पर भेजी गयी तो ज्ञात हुआ कि दिनॉंक 04.02.1991 को लाकर के मालिक श्री लक्ष्मीचन्द्र रस्तोगी की मृत्यु हो गयी थी और उनके परिवार के लोगों को उक्त लाकर के संबंध में जानकारी हुई इसके बाद लाकर का किराया जमा करके परिवाद के सदस्य चले गये। इस संबंध में कोई भी सूचना उन लोगों ने बैंक को नहीं दी और न ही मालिकाना हक के संबंध में कोई विधिक कागजात प्रस्तुत किया। तदोपरान्त बैंक द्वारा काफी प्रतीक्षा एवं लाकर तोड़ने की कानूनी प्रक्रिया को अपनाते हुए लाकर स्वामी के पते पर उसे लाकर तोड़ने की सूचना की नोटिस भेजी गयी जो कि इस टिप्पणी के साथ वापस आयी कि उपरोक्त पते पर इस नाम का व्यक्ति निवास नहीं करता है, जिससे स्पष्ट है कि परिवादिनी ने विपक्षी बैंक द्वारा प्रेषित रजिस्टर्ड पत्र को जानबूझकर नहीं लिया और वाहक को गुमराह करके बहाने से रजिस्टर्ड पत्र वापस कर दिया गया। फलस्वरूप बैंक ने नियमों के अनुसार लाकर तोड़ने की औपचारिकताऍं पूर्ण करते हुए पॉंच लोगों की मौजूदगी में लाकर तुड़वाकर लाकर का कब्जा प्राप्त कर लिया। यहॉं पर यह उल्लेखनीय है कि परिवादिनी के सामने विपक्षी बैंक द्वारा एक सीलबन्द पैकेट खोला गया और उसमें रखे हुए सामान को परिवादिनी द्वारा स्वयं पहचाना गया था किन्तु परिवादिनी द्वारा उसे नहीं लेने के कारण परिवादिनी के सामने ही दुबारा सील करके बैंक में सुरक्षित रख दिया गया जो आज भी बैंक में सुरक्षित रखा हुआ है, जिसे परिवादिनी किसी भी कार्य दिवस में कार्यावधि में बैंक से प्राप्त कर सकती है। परिवादिनी द्वारा जानबूझकर अपकृत्य करने के उद्देश्य से बिना किसी उचित कारण के सामान को बैंक से अब तक प्राप्त नहीं किया गया है। अनावश्यक मुकदमेंबाजी में उलझा कर ब्लैकमेल करने की नियत से यह परिवाद प्रस्तुत किया गया है। बैंक में लाकर तोड़ने के बाद प्राप्त हुए सामान की इन्वेन्ट्री मौजूद है। विपक्षी बैंक द्वारा विधिक प्रक्रिया अपनाने के उपरान्त ही नियमानुसार लाकर तोड़ा गया है। प्रश्नगत लाकर के संबंध में परिवादिनी द्वारा माननीय सिविल न्यायालय में वाद दाखिल किया गया जो डिक्री होकर परिवादिनी को विधिक वारिस घोषित करते हुए विपक्षी बैंक में मौजूद प्रश्नगत लाकर संख्या 83 को परिवादिनी को संचालित करने का अधिकार भी प्रदान किया गया। परिवादिनी किसी भी प्रकार से विपक्षी बैंक की उपभोक्ता नहीं है, तथा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में विहित प्राविधानों के अनुसार विपक्षी बैंक के विरूद्ध दाखिल किया गया परिवादिनी का परिवाद पत्र न्यायालय श्रीमान जी के प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार से बाहर होने के कारण प्रारम्भिक सुनवाई स्तर पर ही सव्यय निरस्त किये जाने योग्य है। परिवादिनी को कभी भी कोई भी वाद का कारण उत्पन्न नहीं हुआ है।
पत्रावली के अवलोकन से प्रतीत होता है कि परिवादिनी के स्व0 पति द्वारा यूको बैंक में लाकर संख्या 83 लिया गया था जिसका किराया वर्ष 2002 तक जमा था। बैंक द्वारा परिवादिनी के पति के स्वर्गवास के कारण लॉकर संचालन सक्षम न्यायालय द्वारा वारिस घोषित करने हेतु निर्देश दिया गया जिस पर परिवादिनी द्वारा सिविल जज लखनऊ से वारिस घोषित कराकर जब बैंक में उपस्थित हुई तो बैंक द्वारा पूर्व में ही लॉकर खोल (तोड़) दिया जाना पाया गया और बैंक द्वारा सामान पहचानने को कहा गया जिस पर परिवादिनी द्वारा आपत्ति व्यक्त की गयी। बैंक द्वारा परिवादिनी के विधिक नोटिस के उत्तर में अवगत कराया गया था कि “ बैंक द्वारा लॉकर नियमानुसार तोड़ने की कार्यवाही की गयी है क्योंकि लॉकर का मालिक और बैंक दोनों के बीच पट्टादाता और पट्टाग्राह्यता का संबंध होता है। चॅूंकि उसकी मृत्यु की सूचना बैंक को प्राप्त हुई थी जिसके बाद बैंक में लॉकर बन्द रखने का कोई उदृदेश्य नहीं रह जाता है। बैंक द्वारा लॉंकर तोड़ा जाना एक प्रक्रिया के तहत होता है ” इस संबंध में भारतीय रिजर्व बैंक की अधिसूचना दिनॉंकित 17.04.2007 के पैरा 3.4 में निम्न निर्देश दिया गया है- There is an Imperative need to avoid inconvenience and undue hardship to legal heir (s) of the Locker hirer (s) . in case where the deceased locker hirer had not made any nomination or where the joint hirers had not given any mandate that the access may be given to one or more of the survivors by a clear survivorship clause, banks are advised to adopt a customer-friendly procedure drawn up in consultation with their legal advisers for giving access to legal heir (s) / legal representative of the deceased locker hirer. Similar procedure should be followed for the articles under safe custody of the bank. विपक्षी बैंक द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक की अधिसूचना के विपरीत असंगत पक्ष लिया जाना प्रतीत होता है क्योंकि एक तरफ बैंक द्वारा लॉकर धारक की पत्नी को अनाधिकृत माना है और दूसरी तरफ उनके लॉकर का किराया भी जमा कराया गया है। यदि परिवादिनी अनाधिकृत व्यक्ति थी तो बैंक द्वारा लॉकर का किराया भी उनसे जमा नहीं कराया जाना चाहिए था। भारतीय रिजर्व बैंक की उपरोक्त अधिसूचना में यह भी निर्देश दिया गया है कि यदि नामिनी/सरवाईवर/विधिक वारिस द्वारा लॉकर बनाये रखने की इच्छा व्यक्त की जाती है तो बैंक द्वारा नियमानुसार KYC के नियम का पालन करते हुए लॉकर उन्हें प्रदान कर सकते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा दिये गये निर्देश निम्नवत हैं-Further, in case the nominee (s) /survivor (s) /Legal heir (s) wishes to continue with the locker, banks may enter into a fresh contract with nominee (s) /survivor and also adhere to KYC norms in respect of the nominee (s) legal heirs (s). Banks are not required to open sealed/closed packets left with them for safe custody or found in locker while releasing them to the nominee (s) and surviving locker hirers/depositor of safe custody article. परन्तु बैंक द्वारा इस निर्देश का अनुपालन नहीं किया गया और लॉकर बलपूर्वक (Forcibly) तोड़ने की कार्यवाही की गयी। बैंक द्वारा इस संबंध में अवगत कराया गया है कि लॉकर तोड़ने की कार्यवाही कानूनी प्रक्रिया को अपनाते हुए लॉकर स्वामी के पते पर उसे लॉकर तोड़ने की सूचना की नोटिस भेजी गयी जो “ उक्त पते पर नहीं रहने ” की टिप्पणी के साथ वापस आने पर बलपूर्वक लॉकर तोड़ दिया गया। बैंक के लॉकर को बलपूर्वक तोड़ने के संबंध में भारतीय रिजर्व बैंक का निम्न निर्देश है-A locker hirer has to operate the locker at least once every six months. If the locker is not operated for more than one year, bank can forcibly open the locker after giving proper notice with survivor/nominee clause Copy of death certificate, claim form and discharged safe custody receipt. उक्त नियम से स्पष्ट है कि लॉकर को बलपूर्वक खोलने से पहले सर्वप्रथम “ उचित सूचना ” दिया जाना आवश्यक है। सूचना के नियमों के अनुसार यदि बैंक द्वारा भेजा गया प्रथम नोटिस वापस आ जाता है तो अनुस्मारक नोटिस भेजा जाना चाहिए और यदि अनुस्मारक नोटिस भी वापस आ जाता है तो विशेष पत्रवाहक के माध्यम से नोटिस भेजना चाहिए या नियमानुसार चस्पा कराया जाना चाहिए था। चॅूंकि बैंक लॉकर में, लॉकर धारक अपनी बहुमूल्य वस्तुओं की अभिरक्षा करता है तो इसे बलपूर्वक/Forcibly तोड़े जाने से पूर्व अत्यधिक ऐहतियात बरतना चाहिए था। परन्तु बैंक द्वारा उपरोक्त नियमों का अनुपालन किया जाना परिलक्षित नहीं है और बैंक द्वारा प्रकियात्मक त्रुटि की गयी है। बैंक द्वारा प्रस्तुत उत्तर पत्र में लॉकर तोड़ने की नोटिस दिनॉंकित 26.02.2002 जो दिनॉंक 01.07.2002 को भेजा गया, के साथ नोटिस की प्रति संलग्न नहीं की गयी है और मात्र लिफाफे की फोटोकापी प्रस्तुत की गयी है जिस पर पोस्टमैन का अंकन स्पष्ट नहीं है। बैंक का कथन कि रजिस्ट्री यह कहकर वापस आ गयी कि “इस पते पर इस नाम का कोई व्यक्ति निवास नहीं करता 蓲” की पुष्टि नहीं होती है। इसके अतिरिक्त लिफाफे की छायाप्रति के साथ नोटिस की छायाप्रति संलग्न न करना बैंक के कथन की लॉकर तोड़ने के पूर्व नोटिस भेजा गया था की बात को संदेहास्पद बनाता है।
उपरोक्त यूको बैंक द्वारा परिवादिनी के पति के लॉकर को बलपूर्वक तोड़ने के बाद एक इन्वेन्ट्री (फेहरिस्त) सामानों की बनायी गयी जिस पर चार व्यक्तियों के हस्ताक्षर पाये गये है। इन्वेन्ट्री (फेहरिस्त) बनाने के संबंध में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अपनी अधिसूचना दिनॉंकित 29.03.1985 में सेक्शन 45 ZC (3) के अन्तर्गत इन्वेन्ट्री (फेहरिस्त) बनाये जाने का प्रारूप तय किया गया जिसमें गवाहन का नाम पता तथा हस्ताक्षर अंकित किये जाने का निर्देश है। सामान्यत: बैंक द्वारा इन्वेन्ट्री (फेहरिस्त) बनाने के लिये गवाह के रूप में दो-तीन प्रतिष्ठित व्यक्तियों, जो ख्यातिप्राप्त हो तथा जिनका खाता बैंक में हो और बड़े खाता धारक हो उन्हे ही गवाह बनाकर उक्त इन्वेन्ट्री (फेहरिस्त) बनाये जाने की कार्यवाही की जाती है। इस प्रकरण में जो इन्वेन्ट्री (फेहरिस्त) विपक्षी बैंक द्वारा संलग्न की गयी है एवं जिन व्यक्तियों के हस्ताक्षर लॉकर खोलते समय बनवाये गये हैं उनके हस्ताक्षर के समक्ष न तो पता है और न ही उनके नाम दर्शाए गये हैं और न ही उनके विषय में कोई जानकारी बतायी गयी है। गवाह के खाता धारक तथा उनकी प्रतिष्ठा के विषय में उल्लेख नहीं किया गया है जिससे स्पष्ट हो सके कि वे एक जिम्मेदार व ख्यातिप्राप्त व्यक्ति हैं, तथा बड़े खाताधारक है और उनके समक्ष लॉकर को मैकेनिक के द्वारा तोड़ा गया। अत: यह इन्वेन्ट्री (फेहरिस्त) भी त्रुटिपूर्ण प्रतीत होती है। खाता धारक/लॉकर धारक अपनी बहुमूल्य वस्तुओं जिसका चोरी होने या नुकसान होने का डर रहता है उसे ही बैंक की अभिरक्षा में लॉकर में रखता है, जिससे कि वह अपनी बहुमूल्य व बेशकीमती चीजों की रक्षा कर सके और उसे नुकसान होने से बचा सके। यदि इतनी महत्वपूर्ण वस्तुओं की सुरक्षा के लिये लॉकर उपलब्ध कराया जाता है तो लॉकर को बलपूर्वक तोड़ने से पूर्व अत्यधिक सावधानी और नियमों का अनुपालन होना चाहिए। लॉकर प्राप्त करने के लिये तथा उसे बनाये रखने के लिये लॉकर धारक/खाता धारक बैंक को किराया भी इसी कारण अदा करता है। इसी कारण भारतीय रिजर्व बैंक के भी निर्देश हैं कि बैंकों द्वारा लॉकर की सुरक्षा के लिये अत्यधिक सावधानी तथा उसके लिये पर्याप्त सुरक्षा बल भी उपलब्ध रखना चाहिए, क्योंकि यह माना जाता है कि लॉकरों में लॉकर धारक द्वारा महत्वपूर्ण दस्तावेज तथा कीमती चीजों को ही रखा जाता है। यदि बैंक द्वारा लॉकर के किराये के भुगतान के लिये भेजे गये नोटिस पर उन्हें ज्ञात हो गया था कि लॉकर धारक की मृत्यु हो गयी है तो ऐसी स्थिति में जब परिवादिनी लॉकर का किराया जमा करने के लिये उपस्थित हुई थी तो उन्हें मृत्यु के उपरान्त लॉकर नहीं रखने के संबंध में बैंक के नियमों से अवगत करा देना चाहिए था। परन्तु बैंक द्वारा यह कार्यवाही नहीं की गयी। लॉकर किराये संबंधी नोटिस प्राप्त होने पर परिवादिनी तथा परिजन द्वारा लॉकर का किराया बैंक में उपस्थित होकर जमा कराया गया। इसलिए बैंक का यह कथन कि परिवादिनी किसी भी प्रकार से विपक्षी बैंक की उपभोक्ता नहीं है, सही नहीं प्रतीत होता है और यदि परिवादिनी द्वारा बैंक के लॉकर के किराये का भुगतान किया गया है तो माननीय सिविल जज न्यायालय से विधिक वारिस घोषित कराया गया है तो परिवादिनी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्राविधानों के अन्तर्गत विपक्षी बैंक के विरूद्ध कार्यवाही किये जाने के लिए सक्षम है। परिवादिनी मृतक की विधिक उत्तराधिकारी के अलावा लाभार्थी भी है। परिवादिनी द्वारा जब एक वाद सिविल जज लखनऊ के न्यायालय में किया गया है तो उसमें विपक्षी बैंक को भी पक्षकार बनाया गया था। इसलिए विपक्षी बैंक को भली-भॉंति अवगत रहा होगा कि परिवादिनी बैंक के लॉकर के संचालन हेतु विधिक वारिस घोषित कराये जाने के लिए प्रयासरत है और ऐसी स्थिति में जानकारी होने पर भी बैंक द्वारा प्रकियात्मक त्रुटि करते हुए बैंक के लॉकर को बलपूर्वक खोलने/तोड़ा जाना औचित्यपूर्ण नहीं है।
इस प्रकरण में ऐसा प्रतीत होता है कि परिवादिनी के पति के लॉंकर को बलपूर्वक (Forcibly) तोड़े जाने पर बैंक द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक के निर्देशों का अनुपालन सही प्रकार से नहीं किया गया। बलपूर्वक लॉकर तोड़ने के पूर्व लॉकर धारक के परिवारीजनों को सही प्रकार से सूचना का प्रेषण नहीं हुआ है, न ही उसका तामीला किया गया जो एक प्रक्रियात्मक त्रुटि है। बैंक द्वारा लॉकर तोड़े जाने के बाद इन्वेन्ट्री (फेहरिस्त) जो बनायी गयी है उसमें भी त्रुटि की गयी है और स्वतंत्र एवं ख्यातिप्राप्त व्यक्तियों को ध्यान में रखते हुए गवाह नहीं बनाया गया है और जिन व्यक्तियों के नाम गवाह में दिये गये हैं उनका नाम पता आदि का उल्लेख नहीं है, जिससे इन्वेन्ट्री (फेहरिस्त) भी त्रुटिपूर्ण पायी जाती है। सिविल जज के न्यायालय में वारिस घोषित करने की वाद की जानकारी होने पर भी लॉकर को बलपूर्वक (Forcibly) तोड़ा जाना मृतक की विधिक उत्तरधिकारी और लाभार्थी को सुविधा न देकर भारतीय रिजर्व बैंक के निर्देशों के विपरीत पाया जाता है। ऐसी परिस्थिति में परिवादिनी का परिवाद औचित्यपूर्ण पाया जाता है। अत: परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को निर्देश दिया जाता है कि वह परिवादिनी के पति द्वारा लॉकर में रखे गये सामान जो परिवाद पत्र के पैरा-11 में दर्शाए गये हैं या उसके समतुल्य धनराशि जो भुगतान की तिथि पर उसके हिसाब से देय होगा परिवादिनी को 45 दिन के अन्दर उपलब्ध करायें। परिवादिनी को क्षतिपूर्ति के रूप में मुबलिग 50,000.00 (पचास हजार रूपया मात्र) एवं वाद व्यय के लिये मुबलिग 20,000.00 (बीस हजार रूपया मात्र) भी अदा करेंगे। यदि उपरोक्त आदेश का अनुपालन निर्धारित अवधि में नहीं किया जाता है तो उपरोक्त सम्पूर्ण धनराशि पर लॉकर तोड़ने की तिथि से 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भुगतेय होगा।
(अशोक कुमार सिंह) (स्नेह त्रिपाठी) (अरविन्द कुमार)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।