Uttar Pradesh

StateCommission

A/1406/2015

Chandrabhshan Gupta - Complainant(s)

Versus

UCO Bank - Opp.Party(s)

Tara Gupta

04 Aug 2017

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/1406/2015
(Arisen out of Order Dated 18/06/2015 in Case No. C/431/1998 of District Faizabad)
 
1. Chandrabhshan Gupta
Faizabad
...........Appellant(s)
Versus
1. UCO Bank
Faizabad
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 04 Aug 2017
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

अपील सं0- 1406/2015

                                   (मौखिक)

(जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, फैजाबाद द्वारा परिवाद सं0- 431/1998 में पारित आदेश दि0 18.06.2015 के विरूद्ध)

Chandra Bhushan gupta, aged about 73 years old, S/o Late Shri Lalta Prasad gupta, R/o House No-301/1, Mohalla- Amaniganj, Pargana- Haveli awadh, Tehsil &District- Faizabad.

                                           ………………. Appellant                                                    

Versus  

1. Branch Manager, UCO Bank, Rikabganj, Faizabad.

2. Zonal Manager, UCO Bank, Lucknow, U.P.

3. Main Office, UCO Bank, 10 Biplavi trilokya maharaj sarsi, Post Box no.   

  2455, Calcutta-700001.  

                                              ………….Respondents    

समक्ष:-                       

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष। 

 

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : सुश्री तारा गुप्‍ता, विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।    

दिनांक:-  04.08.2017

 

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष  द्वारा उद्घोषित

                                                     

निर्णय  

 

  परिवाद सं0- 431/1998 चन्‍द्र भूषण गुप्‍ता बनाम शाखा प्रबंधक, यूको बैंक आदि में जिला फोरम, फैजाबाद द्वारा पारित निर्णय और आदेश दि0 18.06.2015 के विरूद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गई है।

  आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद खारिज कर दिया है, जिससे क्षुब्‍ध होकर परिवाद के परिवादी की ओर से यह अपील प्रस्‍तुत की गई है।

  अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता सुश्री तारा गुप्‍ता उपस्थित आयी हैं। प्रत्‍यर्थीगण की ओर से नोटिस के तामीला के बाद भी कोई उपस्थित नहीं आया है।    

  मैंने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।

  अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्‍त सुसंगत तथ्‍य इस प्रकार हैं कि अपीलार्थी चन्‍द्र भूषण गुप्‍ता ने उपरोक्‍त परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्‍तुत किया है कि उसने वर्ष 1993 में विपक्षी सं0- 1 शाखा प्रबंधक यूको बैंक रिकबगंज, फैजाबाद के यहां अपना बचत खाता सं0- 5982 खोला और खाते का संचालन करता रहा। दि0 17.04.97 को उसके खाते में 81,430/-रू0 था। उस दिन उसने 20,000/-रू0 और उसके बाद दि0 17.06.97 को 20,000/-रू0 निकाला। उसके खाते में 41,430/-रू0 शेष बचा। उसके बाद दि0 22.09.98 को उसने 10,000/-रू0 का विथड्राल फार्म भरकर 10,000/-रू0 निकालने हेतु विपक्षी सं0- 1 के बैंक में प्रस्‍तुत किया तब उसे टोकन इशू किया गया, परन्‍तु थोड़ी देरी बाद बैंक का क्‍लर्क विथड्राल का फार्म और बैंक का लेजर लेकर बैंक मैनेजर के कमरे में गया और फिर वहां से वापस आया तथा अपीलार्थी/परिवादी से टोकन वापस ले लिया।

       परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि उसने दि0 17 जून 1997 के बाद अपने उपरोक्‍त खाते से कोई रूपया नहीं निकाला है और विपक्षी सं0- 1 ब्रांच मैनेजर से कहता रहा कि उसने कोई रूपया नहीं निकाला है, परन्‍तु उन्‍होंने कहा कि आपने सारा पैसा निकाल लिया है तब उसने ब्रांच मैनेजर से विथड्राल फार्म निकालने को कहा तो उन्‍होंने दि0 25.09.98 को बुलाया और जब दि0 25.08.98 को वह उनके पास गया तो बैंक क्‍लर्क उसे ब्रांच मैनेजर के कमरे में ले गया और उन्‍होंने 40,000/-रू0 विथड्राल किये जाने का विथड्राल फार्म अपीलार्थी/परिवादी से मिलते-जुलते हस्‍ताक्षर का दिखाया। अपीलार्थी/परिवादी ने कहा कि यह विथड्राल फार्म उसका भरा नहीं है और न उसका इस पर हस्‍ताक्षर है। यह रूपया विपक्षीगण की साजिश से निकाला गया है। अत: उसकी भरपाई की जिम्‍मेदारी ब्रांच मैनेजर की है। उसके बाद अपीलार्थी/परिवादी ने काफी दौड़-धूप की और दि0 30.09.98 को बैंक मैनेजर व जोनल मैनेजर को तथा मुख्‍यालय कलकत्‍ता को रजिस्‍ट्री डाक से पत्र भेजा तब दि0 30.09.98 को विपक्षी यूको बैंक ने उसे जवाब भेजा और बताया कि 40,000/-रू0 का विथड्राल उसकी दस्‍तख्‍त से किया गया है। परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि उसने दि0 09.10.98 को शाखा प्रबंधक से अपने विथड्राल फार्म और Specimin Signature कार्ड की इलेक्‍ट्रो कॉपी की डिमाण्‍ड किया, लेकिन उसे कॉपी नहीं दिया। अत: विवश होकर उसने दि0 03.10.98 को प्रथम सूचना रिपोर्ट थाने में दर्ज करायी, जिसके आधार पर अपराध सं0- 3085/98 अंतर्गत धारा 419/420 दर्ज किया गया है।

       जिला फोरम के समक्ष विपक्षीगण ने अपना लिखित उत्‍तर प्रस्‍तुत किया और यह स्‍वीकार किया कि दि0 17.04.97 को परिवादी के उपरोक्‍त खाते में 81,430/-रू0 था और उसके उक्‍त खाते से दि0 17.06.97 को 20,000/-रू0 निकाले जाने के पश्‍चात उसके खाते में 41,430/-रू0 अवशेष था। उन्‍होंने लिखित कथन में यह भी स्‍वीकार किया कि दि0 22.09.1998 को अपीलार्थी/परिवादी ने 10,000/-रू0  का विथड्राल फार्म भरा था और काउंटर पर दिया था, परन्‍तु खाते में धन न होने के कारण विथड्राल फार्म वापस करके टोकन ले लिया गया था। लिखित कथन में प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण की ओर से यह भी कहा गया है कि अपीलार्थी/परिवादी ने 40,000/-रू0 पहले ही बिना पासबुक के निकाला था। उसे लेजर रखकर दिखाया गया था कि उसने रूपया निकाल लिया है।

जिला फोरम ने उभयपक्ष के अभिकथन एवं उपलब्‍ध साक्ष्‍यों के आधार पर यह निष्‍कर्ष निकाला है कि परिवादी एवं विपक्षीगण द्वारा दाखिल पत्रों से प्रमाणित है कि विथड्राल पर‍ परिवादी के हस्‍ताक्षर हैं और परिवादी ने दि0 22.08.98 को बिना पासबुक के अपने खाते से 40,000/-रू0 निकाला है। जिला फोरम ने अपने निर्णय में यह भी उल्‍लेख किया है कि इस सम्‍बन्‍ध में विधि विज्ञान प्रयोगशाला ने अपनी रिपोर्ट परिवादी के खिलाफ दिया है। बिना पासबुक के परिवादी द्वारा रूपया निकाला जाना सही प्रमाणित होता है। अत: जिला फोरम ने परिवाद निरस्‍त कर दिया है।

  अपीलार्थी की विद्वान अधिवक्‍ता ने संयुक्‍त विधि विज्ञान प्रयोगशाला उ0प्र0 महानगर की आख्‍या की प्रमाणित प्रतिलि‍पि की फोटो प्रतिलिपि जो अपील की पत्रावली में संलग्‍न है को दिखाते हुए तर्क किया है कि हस्‍तलेख विशेषज्ञ ने पुलिस द्वारा अपीलार्थी/परिवादी के विथड्राल फार्म के विवादित हस्‍ताक्षर का मिलान उसके स्‍वीकृत हस्‍ताक्षर से कराये जाने पर यह स्‍पष्‍ट मत व्‍यक्‍त किया है कि नमूना का हस्‍ताक्षर एस-1 से एस-6 व ए-1 को जिस व्‍यक्ति ने लिखा है उसने विवादित हस्‍ताक्षर चिन्हित क्‍यू-1 से क्‍यू-3 को नहीं लिखा है। अत: हस्‍तलेख विशेषज्ञ की आख्‍या से स्‍पष्‍ट है कि विवादित 40,000/-रू0 के विदड्राल फार्म पर अपीलार्थी/परिवादी का हस्‍ताक्षर नहीं है और जिला फोरम ने अपने आक्षेपित निर्णय में यह गलत उल्‍लेख किया है कि विधि विज्ञान प्रयोगशाला ने अपनी रिपोर्ट परिवादी के विरूद्ध दी है।

  अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का यह भी तर्क है कि अपीलार्थी/परिवादी द्वारा प्रश्‍नगत विथड्राल के सम्‍बन्‍ध में दर्ज करायी गई प्रथम सूचना के आधार पर पंजीकृत अपराध सं0- 385/98 अंतर्गत धारा 419/420 में थाना कोतवाली फैजाबाद की पुलिस ने वाद विवेचना आरोप पत्र बैंक कर्मियों के विरूद्ध धारा 419/420 भा0द0स0 के अपराध हेतु न्‍यायालय प्रेषित किया है। अत: यह मानने हेतु उचित और युक्ति संगत आधार है कि अपीलार्थी/परिवादी का फर्जी हस्‍ताक्षर कर विपक्षीगण के बैंक से 40,000/-रू0 निकाला गया है। अत: जिला फोरम ने अपीलार्थी/परिवादी का परिवाद खारिज कर गलती की है।

  मैंने अपीलार्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता के तर्क पर विचार किया है।

  उभयपक्ष के अभिकथन से यह स्‍पष्‍ट है कि अपीलार्थी/परिवादी के खाते से विवादित 40,000/-रू0 की निकासी अपीलार्थी/परिवादी की पासबुक प्रस्‍तुत किये बिना की गई है और कथित रूपये की निकासी की प्रविष्टि अपीलार्थी/परिवादी के पासबुक में नहीं है। परिवाद पत्र के कथन से स्‍पष्‍ट है कि अपीलार्थी/परिवादी द्वारा विपक्षी बैंक से विथड्राल फार्म और अपने Specimin Signature की कॉपी की मांग की गयी, परन्‍तु उन्‍होंने उपलब्‍ध नहीं करायी और न ही बैंक ने विथड्राल फार्म और अपीलार्थी/परिवादी के Specimin Signature अथवा स्‍वीकृत हस्‍ताक्षर की हस्‍तलेख विशेषज्ञ से जांच करा कर यह दर्शित किया कि विदड्राल फार्म पर अपीलार्थी/परिवादी का ही हस्‍ताक्षर है। इसके विपरीत अपीलार्थी/परिवादी द्वारा पुलिस में दर्ज करायी गई रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने विवेचना के दौरान जो हस्‍तलेख विशेषज्ञ की रिपोर्ट प्राप्‍त की है उससे यह तथ्‍य सामने आया है कि विथड्राल फार्म पर अपीलार्थी/परिवादी का विवादित हस्‍ताक्षर नहीं है।

  अत: उपरोक्‍त सम्‍पूर्ण तथ्‍यों पर विचार करने के उपरांत यह स्‍पष्‍ट होता है कि अपीला‍र्थी/परिवादी द्वारा प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण के बैंक में जमा 40,000/-रू0 की धनराशि उसके खाते से जाली व फर्जी हस्‍ताक्षर के माध्‍यम से निकाली गई है और इस सम्‍बन्‍ध में अपीलार्थी/परिवादी द्वारा शिकायत किये जाने पर प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण के बैंक ने उचित एवं प्रभावी जांच और कार्यवाही नहीं की है।

  अत: सम्‍पूर्ण तथ्‍यों और परिस्थितियों पर विचार करने के उपरांत मैं इस मत का हूँ कि प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण के बैंक ने अपीलार्थी/परिवादी के प्रश्‍नगत खाते के सम्‍बन्‍ध में अपने विधिक दायित्‍व का निर्वहन सही ढंग से नहीं किया है जो सेवा में त्रुटि है। अत: सम्‍पूर्ण तथ्‍यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए मैं इस मत का हूँ कि जिला फोरम ने अपीलार्थी/परिवादी का परिवाद खारिज कर गलती की है।

  उपरोक्‍त विवेचना के आधार पर मैं इस मत का हूँ कि अपीलार्थी/परिवादी का परिवाद स्‍वीकार करते हुए विपक्षीगण के बैंक को प्रश्‍नगत धनराशि 40,000/-रू0 ब्‍याज सहित अपीलार्थी/परिवादी को अदा करने हेतु आदेशित किया जाना उचित है। मेरी राय में इस धनराशि पर निकासी की तिथि से अदायगी की तिथि तक 6 प्रतिशत वार्षिक की दर से अपीलार्थी/परिवादी को ब्‍याज दिया जाना उचित है। मेरी राय में अपीलार्थी/परिवादी को वाद व्‍यय 10,000/-रू0 प्रदान किया जाना भी उचित है।

  उपरोक्‍त निष्‍कर्ष के आधार पर अपील स्‍वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश को अपास्‍त करते हुए अपीलार्थी/परिवादी द्वारा प्रस्‍तुत परिवाद स्‍वीकार किया जाता है तथा प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वे अपीलार्थी/परिवादी के प्रश्‍नगत खाते की 40,000/-रू0 की धनराशि निकासी की तिथि से अपीलार्थी/परिवादी को अदायगी की तिथि तक 6 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज सहित 2 माह के अन्‍दर अदा करें।

  प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण, अपीलार्थी/परिवादी को वाद व्‍यय के रूप में 10,000/-रू0 और उपरोक्‍त अवधि में ही अदा करेंगे।

 

(न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)

                             अध्‍यक्ष                            

 

 

शेर सिंह आशु.,

कोर्ट नं0-1

       

  

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
PRESIDENT

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