जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 174/2015
चन्द्रप्रकाष रांकावत पुत्र श्री सीताराम रांकावत, निवासी-नया दरवाजा के बाहर, नागौर, (राज.)। -परिवादी
बनाम
यूको बैंक जरिये षाखा प्रबन्धक, षाखा कार्यालय, यूको बैंक, किले की ढाल, नागौर
-अप्रार्थी
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री कुन्दनसिंह आचीणा एवं षिवचन्द पारीक, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री राधेष्याम चौहान, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थी।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
निर्णय दिनांक 24.05.2016
1. यह परिवाद अन्तर्गत धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने अप्रार्थी यूको बैंक षाखा से एक सावधि जमा (एफ.डी.आर.) संख्या 153746-219/02 राषि 5,000/- रूपये दिनांक 07.11.2002 को 5,000/- जमा करवाकर प्राप्त की। परिवादी की यह सावधि जमा दिनांक 19.12.2014 को परिपक्व हो गई। सावधि जमा की परिपक्व राषि ब्याज सहित 13,001/- बने, जिसका भुगतान दिनांक 20.12.2014 को दो किष्तों में अप्रार्थी द्वारा कर दिया गया लेकिन दिनांक 31.03.2015 को बिना कारण बताये परिवादी के खाते से 2,022/- रूपये वापिस कम कर दिये, जो कि सेवा दोश होकर उपभोक्ता विवाद की तारीफ में आता है। परिवादी ने बताया है कि बार-बार सम्पर्क करने एवं आष्वासन देने पर भी आज तक यह राषि परिवादी के खाते में जमा नहीं हुई है। ऐसी स्थिति में परिवाद स्वीकार किया जाकर परिवादी के खाते से अनुचित रूप से काटी गई राषि 2,022/- मय ब्याज दिलाये जाने के साथ ही मानसिक पीडा हेतु 20,000/- रूपये व परिवाद व्यय 50,000/- रूपये दिलाये जावें।
2. अप्रार्थी की ओर से परिवादी द्वारा 5,000/- रूपये सावधि जमा करवाना, इस राषि का 20.12.2014 को परिपक्व होना तथा दो किष्तों में कुल राषि 13,001/- रूपये परिवादी के खाते में जमा करवाना स्वीकार करते हुए बताया गया है कि बाद में कम्प्यूटर तकनीकी से टी.डी.एस. के रूप में दिनांक 31.03.2015 को परिवादी के खाते से 2,022/- रूपये डेबिट हो गये थे, जिसका भुगतान दिनांक 31.08.2015 को परिवादी के खाते में जमा करवाकर कर दिया गया है। लेकिन परिवादी ने बढा-चढाकर अप्रार्थी को तंग व परेषान करने के लिए यह परिवाद पेष किया है, जो खारिज किया जावे।
3. पक्षकारान द्वारा प्रस्तुत षपथ-पत्र एवं दस्तावेजात का अवलोकन करते हुए बहस सुनी गई। बहस के दौरान परिवादी के अधिवक्ता इस तथ्य से सहमत है कि परिवादी के खाते से काटी गई राषि 2,022/- रूपये वापिस परिवादी के खाते में जमा करवा दी गई है, लेकिन उनका तर्क रहा है कि यह राषि गलत रूप से काटी गई थी, जो परिवाद प्रस्तुत करने के पष्चात् अप्रार्थी बैंक द्वारा जमा करवाई गई है, ऐसी स्थिति में परिवादी को हुई मानसिक परेषानी का हर्जा दिलाये जाने के साथ ही परिवाद व्यय दिलाया जावे। यद्यपि अप्रार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने इसका विरोध करते हुए तर्क दिया है कि परिवादी को किसी प्रकार की परेषानी नहीं हुई है। लेकिन इस सम्बन्ध में पत्रावली का अवलोकन करें तो स्पश्ट है कि परिवादी द्वारा यह परिवाद दिनांक 04.08.2015 को पेष किया गया है जबकि अप्रार्थी की ओर से प्रस्तुत जवाब अनुसार परिवादी के खाते में 2,022/-रूपये दिनांक 31.08.2015 को जमा करवाये गये हैं, जिससे स्पश्ट है कि परिवादी द्वारा परिवाद प्रस्तुत करने के पष्चात् ही अप्रार्थी बैंक की ओर से परिवादी के खाता में यह राषि जमा करवाई गई है। परिवादी द्वारा प्रस्तुत प्रलेख प्रदर्ष 3, प्रदर्ष 4 व प्रदर्ष 5 के अवलोकन पर स्पश्ट है कि परिवाद प्रस्तुत करने से पूर्व भी परिवादी द्वारा अप्रार्थी बैंक को इस बाबत् पत्र भेजने के साथ ही जरिये वकील नोटिस भी भिजवाया था। उपर्युक्त तथ्यों से स्पश्ट है कि अप्रार्थी बैंक द्वारा किये गये सेवा दोश के कारण परिवादी को मानसिक रूप से परेषान होना पडा तथा अंततः यह परिवाद भी पेष करना पडा। ऐसी स्थिति में इस मामले में परिवादी को मानसिक व आर्थिक परेषानी स्वरूप 2,000/- दिलाये जाने के साथ ही परिवाद व्यय 1,000/- रूपये दिलाया जाना भी न्यायोचित होगा।
आदेश
4. परिवादी चन्द्रप्रकाष रांकावत द्वारा प्रस्तुत परिवाद अन्तर्गत धारा-12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 खिलाफ अप्रार्थी यूको बैंक के आंषिक रूप से स्वीकार कर आदेष दिया जाता है कि अप्रार्थी, परिवादी को मानसिक व आर्थिक परेषानी स्वरूप 2,000/- रूपये व परिवाद व्यय के भी 1,000/-रूपये अदा करें। आदेष की पालना एक माह में की जावे।
5. आदेष आज दिनांक 24.05.2016 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
नोटः- आदेष की पालना नहीं किया जाना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 27 के तहत तीन वर्श तक के कारावास या 10,000/- रूपये तक के जुर्माने अथवा दोनों से दण्डनीय अपराध है।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या