UMAKANT MISHRA filed a consumer case on 05 Sep 2019 against UBI in the Azamgarh Consumer Court. The case no is CC/105/2007 and the judgment uploaded on 19 Sep 2019.
1
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम- आजमगढ़।
परिवाद संख्या 105 सन् 2007
प्रस्तुति दिनांक 03.07.2007
निर्णय दिनांक 05.09.2019
उमाकान्त मिश्रा पुत्र शिवप्रसाद मिश्रा साo- मीरपुर, पोस्ट- अतरौलिया, तहसील- बूढ़नपुर, जिला- आजमगढ़।
.........................................................................................परिवादी।
बनाम
उपस्थितिः- कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष” तथा राम चन्द्र यादव “सदस्य”
कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष”
परिवादी ने परिवाद पत्र प्रस्तुत कर यह कहा है कि जग प्रसाद मिश्रा उसके चाचा थे। उन्होंने दस हजार रुपये प्रतिमाह की दर से सात वर्ष के लिए आवर्ती खाता दिनांक 22.09.2005 को विपक्षी संख्या 01 के यहाँ खोला और किस्त नियमित रूप से जमा करते रहे। जिसमें परिवादी नामिनी है। उक्त खाते में यह शर्त निर्धारित थी कि खाते के ऑपरेशन के दौरान खाताधारक की मृत्यु होने पर किस्त नहीं देना था तथा बैंक परिपक्वता पर 9,60,000/- रुपये अदा करना पड़ेगा। जिसके सम्बन्ध में विपक्षी संख्या 01 व विपक्षी संख्या 02 के मध्य संविदा थी और बीमा की किस्त विपक्षी संख्या 01 परिवादी के खाते से जमा करता रहा। दिनांक 31.01.2006 को खाता खोलने से सात वर्ष के भीतर जग प्रसाद की मृत्यु हो गयी। जिसकी सूचना विपक्षी संख्या 01 को अविलम्ब दी गयी। परिवादी द्वारा दी गयी सूचना के आधार पर विपक्षीगण ने परिवादी के खाते में विवादित आवर्ती खाता बीमा की किश्त की रकम 25,000/- रुपया काटकर ट्रान्सफर कर दिया, लेकिन शर्तों के अनुसार उसे 9,60,000/- रुपये देना था। अतः विपक्षीगण को आदेशित किया जाए कि वह परिवादी को 9,60,000/- रुपये अदा करे।
परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
परिवादी द्वारा प्रलेखीय साक्ष्य में कागज संख्या 5/1 दस हजार की रसीद, कागज संख्या 5/2 मृत्यु प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया गया है।
P.T.O.
2
विपक्षी संख्या 01 द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत कर यह कहा है कि उसका बैंक में कोई खाता नहीं खोला गया है और अनावश्यक रूप से धन उगाही एवं खर्च की नीयत से प्रस्तुत की गयी है। दावा पोषणीय नहीं है। अतः खारिज किया जाए।
विपक्षी संख्या 01 द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
कागज संख्या 13/1 यू.बी.आई. बांसगांव द्वारा प्रस्तुत जवाबदावा में परिवाद पत्र के कथनों से इन्कार किया गया है और अतिरिक्त कथन में यह कहा गया है कि दावा प्रपत्र के साथ परिवार रजिस्टर की नकल बैंक में दिया, जिसमें जन्म तिथि 01.02.1950 लिखी गयी है। इस प्रकार खाता खोलते समय 55 वर्ष से 8 माह अधिक अंकित है। जबकि बीमित होने की अधिकतम आयु से ज्यादा है। एल.आई.सी. के पत्र दिनांक 11.08.2006 के अनुसार खाता संख्या 366 से स्कीम के अनुसार 45 दिन के अन्दर मृत्यु होने के पश्चात् योजना का लाभ नहीं मिल सकता है। याचिका में बीमारी का उल्लेख किया गया है, लेकिन कोई प्रपत्र प्रस्तुत नहीं किया गया है। परिवादी ने पहचान पत्र आधार कार्ड अधूरा प्रस्तुत किया है। परिवादी अन्तिम प्रीमियम दिनांक 30.01.2006 को मुo 20,000/- रुपया किया जाना और दिनांक 31.01.2006 को मृत्यु होने में संदेह है। घटनाक्रम से स्पष्ट होता है कि मृत्यु दिनांक 30.01.2006 से पूर्व ही हो गयी है। मात्र बहाना बनाने हेतु प्रार्थना पत्र दिनांक 27.03.2006 द्वारा उमाकान्त मिश्र द्वारा बीमारी दिखाया गया है। बीमारी का कोई प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं किया गया है। दिनांक 27.03.2006 को बैंक में याची द्वारा जो प्रार्थना पत्र भिन्न आशय का दिया गया है। पॉलिसी होल्डर की शर्तों का उल्लंघन किया है। याची का मृत्यु दावा इन्श्योरेन्स द्वारा प्राप्त होने पर ही देय है। याची का याचना पत्र समय सीमा से बाधित है।
जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
विपक्षी संख्या 02 द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत कर परिवाद पत्र के कथनों से इन्कार किया गया है। अतिरिक्त कथन में यह कहा गया है कि याची को विपक्षी संख्या 02 के ऊपर वाद प्रस्तुत करने का कोई हक नहीं है। वह स्वीकार नहीं है। उसने अपने याचना पत्र में कोई भी कॉज ऑफ एक्शन प्रदर्शित नहीं किया है। याचना संधार्य नहीं है। अतः खारिज किया जाए।
विपक्षी संख्या 02 द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
विपक्षी की ओर से प्रलेखीय साक्ष्य में कागज संख्या 20/1 उमाकान्त मिश्रा को लिखे गए पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 20/2 शाखा बांसगांव को लिखे गए पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 20/3 बैंक को लिखे गए पत्र की छायाप्रति, ब्रांच मैनेजर द्वारा कागज संख्या 20/4 ता 20/7 लिखे गए पत्र की P.T.O.
3
छायाप्रति, कागज संख्या 20/8 क्लेमेन्ट्स द्वारा दिये गए प्रार्थना पत्र की छायाप्रति, मृत्यु प्रमाण पत्र, परिवार रजिस्टर की नकल, राशन कार्ड की नकल, मृतक द्वारा डिपॉजिट के लिए मेम्बरशिप हेतु दिए प्रार्थना पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 20/17 यूनियन बैंक का कागज, कागज संख्या 20/17 इन्श्योरेन्स की शर्तों की छायाप्रति, कागज संख्या 20/22 इन्श्योरेन्स का प्रोडक्शन की छायाप्रति प्रस्तुत किया गया है।
परिवादी ने यूनियन बैंक बांसगांव के समक्ष जो डिक्लियरेशन फॉर्म भरा है उसमें अपनी जन्मतिथि 08.01.1953 दिखाया गया है। परिवादी की ओर से कागज संख्या 05 मुo 10,000/- रुपये की रसीद तथा कागज संख्या 5/2 मृत्यु प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया गया है। आर.डी. खोलते वक्त डिक्लियरेशन फॉर्म के साथ जो उसने अपने जन्मतिथि के सम्बन्ध में रिकार्ड प्रस्तुत किया था उसे पत्रावली में न तो परिवादी ने दाखिल किया है और न ही विपक्षीगण ने दाखिल किया है। केवल बैंक ने परिवादी द्वारा प्रस्तुत डिक्लियरेशन फॉर्म में जो जन्मतिथि 08.01.1953 लिखा है। उसी को मानकर उसका आवर्ती खाता खोल दिया गया। इस सन्दर्भ में यदि हम विपक्षीगण द्वारा प्रस्तुत कागज संख्या 20/18 यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया द्वारा इन्स्ट्रक्शन का अवलोकन करें तो इसमें इस बात का उल्लेख किया गया है कि जो प्रलेख प्रस्तुत किया है उसके अनुसार बीमा तभी हो सकता है जबतक कि जमा कर्ता की उम्र 18 साल से 55 साल के बीच न हो। विपक्षी की ओर से जो परिवार रजिस्टर की प्रतिलिपि दी गयी है। उसमें जग प्रसाद मिश्रा की जन्मतिथि 01.02.1950 दर्शित की गयी है। परिवादी द्वारा न्याय निर्णय “एमटेक डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम बी.एम.गांधी (IV) 2018 सी.पी.जे. 24बी. (सी.एन.) (हरियाणा)” जो प्रस्तुत किया है उसमें इस बात का उल्लेख किया गया है कि यदि किसी व्यक्ति ने इन्श्योरेन्स करते वक्त वोटर कार्ड प्रस्तुत करता है और इसकी पॉलिसी स्वीकार कर ली जाती है तो बाद में इन्श्योरेन्स कम्पनी उसकी उम्र के विषय में जाँच-पड़ताल नहीं कर सकती है।
परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में इस बाद का कहीं उल्लेख नहीं किया है कि उसके चाचा ने आर.डी. खोलते समय बैंक को वोटर आई.डी. प्रदान किया था। यहां इस बात का भी उल्लेख कर देना आवश्यक है कि प्रारंभ में जो वाद प्रस्तुत किया गया था वह यू.बी.आई. अतरौलिया के विरूद्ध दाखिल किया गया था और बाद में परिवादी भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा आजगमढ़ को भी जरिए संशोधन पक्षकार मुकदमा बना दिया। कागज संख्या 10 जो संशोधन प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया है उसने शाखा अतरौलिया के स्थान पर शाखा बांसगांव दर्ज करने का प्रार्थना किया है और जहाँ-जहाँ जगत अंकित है उसमें ‘त’ अक्षर कलमजद किया जाए और यह प्रार्थना पत्र दिनांक 24.10.2007 को स्वीकार कर लिया गया और उसके पश्चात् परिवाद पत्र में संशोधन कर दिया P.T.O.
4
गया। परिवादी ने जो संशोधन प्रार्थना पत्र 31क दिया था वह दिनांक 01.06.2013 को स्वीकार किया गया। उसके बाद संशोधन किया गया। उसके पश्चात् ही विपक्षी संख्या 01 व 02 को नोटिस गयी होगी और नोटिस के पश्चात् विपक्षी संख्या 02 ने 2013 में अपना जवाबदावा प्रस्तुत किया। यहां इस बात का उल्लेख कर देना आवश्यक है कि यह परिवाद 2007 में प्रस्तुत किया गया था और विपक्षी संख्या 02 द्वारा अपना जवाबदावा 2013 अर्थात् छः साल बाद प्रस्तुत किया गया है। इस सन्दर्भ में यदि हम सी.पी.सी. का “आदेश का नियम 10 सबरूल 5” का अवलोकन करें तो इसमें यह प्रावधान है कि दिया गया है कि इण्डियन लिमिटेशन एक्ट 1877 के सेक्शन 22 के अनुसार कोई भी व्यक्ति जो संशोधन के माध्यम से किया है दावे अथवा परिवाद में जुड़ता है तो उनपर वाद का दाखिला सम्मन मिलने की तिथि से ही माना जाएगा। इस प्रकार उपरोक्त नियम के अनुसार विपक्षी संख्या 02 के विरूद्ध यह माना जाएगा कि यह परिवाद 2013 में प्रस्तुत किया गया था। जो कि समय सीमा से बाधित है और परिवादी द्वारा विलम्ब क्षमा करने हेतु कोई प्रार्थना पत्र भी प्रस्तुत नहीं किया गया है। बैंक की एवं विपक्षी संख्या 02 के मध्य इन्श्योरेन्स कोई संविदा हुई अथवा नहीं इस सम्बन्ध में भी कोई प्रलेख पत्रावली में नहीं है। चूंकि एक पक्षकार के विरूद्ध परिवाद पत्र समय सीमा के पश्चात् प्रस्तुत किया जाना माना जाएगा। ऐसी स्थिति में हमारे विचार से परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं है। यहां इस बात का भी उल्लेख कर देना आवश्यक है कि परिवादी परिवाद पत्र में कहीं भी इस बात का उल्लेख नहीं किया है कि मृतक का कोई वैधानिक वारिश था अथवा नहीं। लेकिन उसके द्वारा एक वारिशान का जिक्र किया गया है, जो कि पत्रावली में संलग्न नहीं है। अतः ऐसी स्थिति में न्यायालय इस बिन्दु पर पहुंचने में असमर्थ है कि परिवादी का मृतक ने कोई वारिशान किया था अथवा नहीं। इस सन्दर्भ में यदि हम न्याय निर्णय “चेलम्मा बनाम तिलागू एवं अन्य 2010 ए.सी.जे. 1487 सुप्रीम कोर्ट” का अवलोकन करें तो इसमें यह अभिधारित किया गया है कि इन्श्योरेन्स एक्ट की धारा-39 के अनुसार कोई भी नामिनी मृतक द्वारा जमा धन बीमाकृत धनराशि को प्राप्त करने का हकदार नहीं है। उपरोक्त विवेचन से P.T.O.
5
हमारे विचार से परिवाद पत्र खारिज किए जाने योग्य है।
आदेश
परिवाद पत्र खारिज किया जाता है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।
राम चन्द्र यादव कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
दिनांक 05.09.2019
यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।
राम चन्द्र यादव कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes
Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.