Uttar Pradesh

Azamgarh

CC/65/2011

RAM ACHAL - Complainant(s)

Versus

UBI - Opp.Party(s)

KRIPASHANKAR PANDEY

14 Sep 2021

ORDER

 

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग- आजमगढ़।

परिवाद संख्या 65 सन् 2011

प्रस्तुति दिनांक 12.07.2011

                                                                                                 निर्णय दिनांक 14.09.2021

रामअचल पुत्र रामपलट साकिन खैरूद्दीनपुर अलीबक्स तहसील फूलपुर, पोस्ट- शाहगंज, जिला- आजमगढ़।

     .........................................................................................परिवादी।

बनाम

    शाखा प्रबन्धक, यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया, शाखा राजागंज जनपद- आजमगढ़।      

  •  

उपस्थितिः- कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष” तथा गगन कुमार गुप्ता “सदस्य”

  •  

गगन कुमार गुप्ता “सदस्य”

परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि वह ग्राम सभा खैरूद्दीनपुर अलीबक्स विकास खण्ड फूलपुर तहसील फूलपुर जिला आजमगढ़ में डॉo भीमराव अम्बेडकर स्वयं सहायता समूह खैरूद्दीनपुर का अध्यक्ष है। ग्राम खैरूद्दीनपुर में डॉo भीमराव अम्बेडकर स्वयं सहायता समूह की योजना के अन्तर्गत ग्रामवासियों की सहायता करने हेतु सरकार द्वारा धन आवंटित किया गया। विपक्षी द्वारा मुo 2,00,000/-रुपए का ऋण दिनांक 18.03.2005 को डॉo भीमराव अम्बेडकर स्वयं सहायता समूह को आवंटित किया गया जो परिवादी के उक्त स्वयं सहायता समूह का अध्यक्ष होने के नाते परिवादी के खाता सेविंग बैंक एकाउन्ट नं. 4700 में मुo 2,00,000/- रुपया विपक्षी द्वारा भुगतान कर दिया गया। सरकार द्वारा मुo 2,00,000/- ऋण में एक लाख रुपए ब्लाक का अनुदान था। एक लाख रुपए पर साधारण ब्याज देय था एवं एक लाख रुपए ब्याज से मुक्त था एवं सरकार द्वारा अनुदान था। परिवादी ने सम्पूर्ण ऋण धनराशि विपक्षी को अदा कर दिया, परन्तु विपक्षी ने दिनांक 06.11.2009 को नोटिस प्रेषित किया कि किस्तों की अदायगी समय से नहीं की गयी। आप 75,000/- रुपए का भुगतान 15 दिन के अन्दर करा दें। जबकि ब्याज एक लाख रुपए पर अदा करना था परन्तु विपक्षी 2,50,000/- रुपए पर ब्याज 75,000/- रुपए की नोटिस निर्गत किया। परिवादी दिसम्बर 2009 में विपक्षी के यहाँ गया और निर्गत नोटिस निरस्त करने हेतु कहा तो विपक्षी ने कहा कि ऑफिस की गलती के कारण नोटिस निर्गत हो गयी है। आपका लोन/ऋण समायोजित कर दिया जाएगा। परिवादी का लोन विपक्षी के द्वारा समायोजित नहीं किया गया। परिवादी कई बार विपक्षी के यहाँ गया और जमा धनराशि समायोजित करने को कहा परन्तु विपक्षी हीलाहवाली करता रहा। जबकि परिवादी के ऊपर बकाया शेष नहीं था। विपक्षी द्वारा जानबूझकर फर्जी अंकन किया गया है। परिवादी पुनः दिनांक 31.01.2011 को विपक्षी के यहाँ गया और ऋण समायोजित करने को कहा तो विपक्षी ने 28864.35 पैसे की मांग किया और कहा कि पैसा जमा कर दो वरना आपको गिरफ्तार कर आपकी सम्पूर्ण सम्पत्ति कुर्क व नीलाम कर दी जाएगी। विपक्षी असावधानीपूर्वक व डिफिसेएन्सी इन सर्विस के कारण परिवादी का ऋण समायोजित करने से इन्कार कर दिया। जिससे परिवादी को अनेकानेक शारीरिक व मानसिक कष्ट उठाना पड़ा एवं कारबार में भी काफी नुकशान हुआ। अतः परिवादी ने अपने अनुतोष में याचना किया है कि डिक्री बहक परिवादी खिलाफ विपक्षी इस आशय की पारित किया जाए कि परिवादी का ऋण समायोजित कर बकाया अवशेष 28864.35 रुपया निरस्त कर नो ड्यूज सर्टिफिकेट जारी किया जाए तथा परिवादी को मुo 25,000/- रुपए की क्षतिपूर्ति विपक्षी से दिलाई जाए एवं न्यायालय की राय में यदि परिवादी किसी अन्य अनुतोष को पाने का अधिकारी समझा जाए तो वह भी परिवादी के पक्ष में विपक्षी के विरुद्ध जारी जाए तथा कुल खर्चा मुकदमा जिम्मा विपक्षी आयद किया जाए।     

परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।

प्रलेखीय साक्ष्य में परिवादी द्वारा कागज संख्या 6/1 बैंक द्वारा भेजी गयी नोटिस की छायाप्रति, कागज संख्या 6/2व3 बचत बैंक खाता की छायाप्रति तथा कागज संख्या 6/4 यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया द्वारा जारी एकाउन्ट स्टेटमेन्ट की छायाप्रति प्रस्तुत किया गया है।   

कागज संख्या 16क विपक्षी द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उसने परिवाद पत्र के कथनों से इन्कार किया है। अतिरिक्त कथन में उसने यह कहा है कि परिवादी को परिवाद दाखिल करने का कोई अधिकार हासिल नहीं है। परिवाद जाली, फर्जी, मनगढ़ंत व बेबुनियाद है तथा परिवादी क्लीन हैण्ड से माo अदालत के समक्ष नहीं आया है एवं महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाते हुए दादरसी प्राप्त करने का प्रयास कर रहा है अतएव वादपत्र मैलाफाइडी होने के कारण हरगिज पोषणीय नहीं है। यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया एक निगम निकाय है जिसकी स्थापना बैंकिंग कम्पनीज (एक्वीजीशन एण्ड ट्रान्सफर ऑफ अण्डरटेकिंग्स ऐक्ट) 1970 के अधीन हुई है तथा इसका पंजीकृक प्रधान कार्यालय 239, विधान भवन मार्ग, नरीमन प्वाइन्ट मुम्बई 400021 में स्थित है एवं भारतवर्ष में अनेक शाखाओं के साथ ही साथ एक शाखा राजागंज जिला आजमगढ़ में भी स्थित है। परिवादी एवं अन्य लोगों को डॉo भीमराव अम्बेडकर स्वयं सहायता समूह ग्राम खैरूद्दीनपुर विकास खण्ड फूलपुर, तहसील- फूलपुर, जिला आजमगढ़ नाम से दिनांक 22.08.2001 को स्वयं सहायता समूह का गठन किया गया जिसमें परिवादी राम अचल को अध्यक्ष के रूप में अधिकृत किया गया। लिखित आवेदन पत्र एवं विकास खण्ड फूलपुर जिला आजमगढ़ की संस्तुति पर पशुपालन के व्यवसाय के लिए विपक्षी द्वारा दिनांक 27.05.2005 को समूह के नाम से 2,50,000/- रुपए मात्र की सावधि ऋण सुविधा स्वीकृत की गयी जिसकी अदायगी साठ समान मासिक किस्तों में ब्याज दर 10.75% सलाना मय मासिक अन्तराल एवं अन्य खर्चों के साथ किया जाना था। उक्त शर्तों के अनुसार बैंक द्वारा समूह व उसके सदस्यों को प्रदत्त ऋण की मय ब्याज व दीगर खर्चों के अदायगी के लिए समूह व इसके समस्त सदस्यगण संयुक्ततः व पृथक-पृथक आधार पर जिम्मेदार हैं। इस ऋण खाता पर सरकार से प्राप्त अनुदान की धनराशि रुपए 1,00,000/- को बैंक के सण्ड्री रिजर्व फण्ड में रखा गया था एवं जिसे ऋण अदायगी की अन्तिम किश्त में समायोजित किया जाना था। तथा न्यूनतम तीन वर्ष के पूर्व इसे किसी भी स्थिति में समूह के खाता में जमा नहीं किया जाना था। दिनांक 25.09.2009 को उक्त अनुदान की राशि समूह के ऋण खाता में जमा/अन्तरित कर दिया गया। इसके अलावा भी समय-समय पर अनुदान की राशि पर अर्जित ब्याज भी ऋण खाता में जमा किया जाता रहा है। विपक्षी बैंक द्वारा बकाया रकम व ब्याज आदि की वसूली हेतु समय-समय पर व्यक्तिगत सम्पर्क, तलब तकाजा व शाखा स्तरीय सूचनाएं तथा अनुस्मारक आदि भेजे गए जो परिवादी व अन्य सदस्यों पर तामील भी हुए। परिवादी बार-बार बैंक में आकर अपने विरुद्ध बकाया रकम की अभिपुष्टि करने व शीघ्र अदायगी का आश्वासन देने के बावजूद अदायगी से मुनकिर रहे। परिवादी व अन्य सदस्यगण द्वारा बैंक की बकाया रकम अदा न करने की स्थिति में मजबूरन उनके विरुद्ध वैधानिक कार्यवाही करते हुए वसूली किए जाने का निर्णय लिया गया तथा सावधि ऋण खाता की बकाया रकम की वसूली हेतु दिनांक 06.06.2013 को वसूली प्रमाण पत्र भी जारी किया गया। वसूली की कार्यवाही में बाधा डालने के लिए यह परिवाद दाखिल किया गया है, जो पूरी तरह असत्य व मनगढ़न्त है। अतः खारिज किया जाए तथा परिवादी के विरुद्ध 10,000/- रुपए का हर्जाना लगाया जाए।

विपक्षी द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।

प्रलेखीय साक्ष्य में विपक्षी द्वारा कागज संख्या 20/1ता20/4 व्यक्तिगत स्वरोजगार का ऋण आवेदन पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 20/5व6 प्रस्ताव प्रतिलिपि की छायाप्रति, कागज संख्या 20/7 मंजूरी सूचना की छायाप्रति, कागज संख्या 20/8 कम्पनी ग्राहक/संयुक्त व्यक्ति रसीद की छायाप्रति, कागज संख्या 20/9ता20/14 एग्रीमेन्ट की छायाप्रति, कागज संख्या 20/15व16 स्वयं सहायता समूह के सदस्यों द्वारा निष्पादित परस्पर करारनामा की छायाप्रति, कागज संख्या 20/17 यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया द्वारा जारी की गयी नोटिस की छायाप्रति, कागज संख्या 20/18 जिला विधिक सेवा प्राधिकरण जनपद आजमगढ़ द्वारा लोक अदालत सम्बन्धी प्रपत्र की छायाप्रति तथा कागज संख्या 20/19 सर्टिफिकेट ऑफ रिकवरी की छायाप्रति प्रस्तुत किया गया है। इसके अलावा विपक्षी द्वारा कागज संख्या 39ग प्रस्तुत कर यह कहा है कि परिवादी ने अदालत से बाहर सुलह व समझौता के आधार पर अपने प्रश्नगत ऋण खाता संख्या 465506030030244 को दिनांक 20.12.2018 को अन्तिम रूप से समायोजित व बन्द करा दिया है एवं उसके बाद से परिवादी हाजिर अदालत भी नहीं आ रहा है तद्नुसार वर्तमान परिवाद व्यर्थ हो चुका है एवं परिवादी का वाद कारण समाप्त हो चुका है। अतः यह परिवाद अदम तजवीज सव्यय निरस्त किए जाने योग्य है।

पुकार कराए जाने पर परिवादी अनुपस्थित रहे। विपक्षी की तरफ से विद्वान अधिवक्ता उपस्थित रहे तथा अपनी बहस सुनाए। बहस सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। हमारे विचार से विपक्षी द्वारा साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत कागज संख्या 39ग के अवलोकन से यह स्पष्ट हो जाता है कि वाद कारण समाप्त हो चुका है। अतः परिवाद निरस्त किया जाना ही उचित एवं न्याय संगत है।       

आदेश

                                                          परिवाद पत्र खारिज किया जाता है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।

 

 

 

 

                                                                         गगन कुमार गुप्ता                कृष्ण कुमार सिंह 

                                                       (सदस्य)                            (अध्यक्ष)

 

   दिनांक 14.09.2021

                                            यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।

 

 

                                             गगन कुमार गुप्ता                  कृष्ण कुमार सिंह

                                                               (सदस्य)                              (अध्यक्ष)

 

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