MAYA SRIVASTAVA filed a consumer case on 27 Nov 2020 against UBI in the Azamgarh Consumer Court. The case no is CC/172/2016 and the judgment uploaded on 01 Dec 2020.
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जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग- आजमगढ़।
परिवाद संख्या 172 सन् 2016
प्रस्तुति दिनांक 07.10.2016
निर्णय दिनांक 27.11.2020
माया श्रीवास्तव पत्नी स्वo राजनरायन लाल, निवासी मुहल्ला- करतालपुर ब्रह्मस्थान, पोस्ट- ब्रह्मस्थान, थाना- कोतवाली, तहसील- सदर, जिला- आजमगढ़ (उoप्रo)।
.........................................................................................परिवादी।
बनाम
यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया द्वारा शाखा प्रबन्धक यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया शाखा- हीरापट्टी, पोस्ट- हीरापट्टी, जिला- आजमगढ़ (उoप्रo)।
उपस्थितिः- कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष” तथा गगन कुमार गुप्ता “सदस्य”
कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष”
परिवादी ने यह परिवाद पत्र प्रस्तुत कर यह कहा है कि उसका खाता विपक्षी के यहां है। परिवादी का प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के तहत आवश्यक प्रीमियम रुपया 12 दिनांक 30.05.2015 को विपक्षी द्वारा काटा गया था। जिसका रिस्क दिनांक 31.05.2016 तक प्रभावी था। परिवादिनी के पति की मृत्यु दिनांक 12.05.2016 को पूर्व में हुई दुर्घटना दिनांक 08.04.2016 के परिणामस्वरूप वेदान्ता हास्पिटल बिलरियागंज मार्ग लछिरामपुर आजमगढ़ में हो गयी। परिवादी ने प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के तहत मिलने वाली सहायता 30 दिन के अन्दर रुपए दो लाख लेने के लिए आवेदन पत्र दिया। विपक्षी ने परिवादिनी को आश्वासन दिया, लेकिन उसके द्वारा कुछ किया नहीं गया। परिवादिनी बार-बार दौड़ती रही। उन्होंने कहा कि शीघ्र ही आपका भुगतान आपके एकाउन्ट के माध्यम से करवा दिया जाएगा। अतः विपक्षी को आदेशित किया जाए कि वह परिवादिनी को मुo 2,00,000/- रुपया मय 18% वार्षिक चक्रवृद्धि ब्याज अदा करे तथा मानसिक व शारीरिक क्षति के लिए 1,00,000/- रुपए भी अदा करे।
परिवादिनी द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
प्रलेखीय साक्ष्य में परिवादिनी द्वारा कागज संख्या 6/1 प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना दावा प्रक्रिया की छायाप्रति, कागज संख्या 6/2 परिवादिनी के पति की मृत्यु रिपोर्ट, कागज संख्या 6/3 प्रथम सूचना रिपोर्ट, कागज संख्या 6/7 मृत्यु प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया गया है।
P.T.O.
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विपक्षी की ओर से जवाबदावा प्रस्तुत कर यह कहा गया है कि परिवादिनी को परिवाद प्रस्तुत करने का अधिकार नहीं था। वास्तविकता यह है कि परिवादिनी के पति श्री राज नरायन लाल ने विपक्षी के यहाँ अपना खाता खोला था, जिसका वे अपनी आवश्यकतानुसार संचालन करते थे। भारत सरकार वित्त मंत्रालय द्वारा वर्ष 2015 -16 में प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना नाम से दुर्घटना बीमा योजना का लोकार्पण किया गया, जिसकी पात्रता में 18 वर्ष से लेकर 70 वर्ष की उम्र के बैंक के खाताधारकों को सम्मिलित किया गया तथा वार्षिक प्रीमियम रू 12 मात्र का भुगतान करके खाताधारक दुर्घटना मृत्यु या दुर्घटना के फलस्वरूप कारित स्थायी विकलांगता की स्थिति में रूo 2,00,000/- की रकम बीमित होता है। बीमा का आच्छादन दिनांक 01.06.2015 से दिनांक 31.05.2016 तक प्रभावी था। प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना की दावा प्रक्रिया के अनुसार दुर्घटना मृत्यु की स्थिति में नामिनी द्वारा दावा उत्पन्न होने की तिथि से तीस दिन के अन्दर दावा फार्म के साथ मूल प्रथम सूचना रिपोर्ट या पंचनामा, पोस्टमार्टम रिपोर्ट व मृत्यु प्रमाण पत्र संलग्न कर सम्बन्धित बैंक की शाखा में बीमा दावा प्रस्तुत करना होता है। दिनांक 22.06.2016 को परिवादिनी विपक्षी के यहाँ उपस्थित हुई और उसने श्री राज नरायन लाल की सड़क दुर्घटना दिनांक 08.04.2016 से सम्बन्धित प्रथम सूचना रिपोर्ट, श्री राज नरायन लाल की इलाज के दौरान दिनांक 12.05.2016 को हुई मृत्यु से सम्बन्धित मृत्यु प्रमाण पत्र, उप जिला मजिस्ट्रेट सदर, आजमगढ़ द्वारा निर्गत उत्तराधिकारी प्रमाण पत्र दिनांक 08.06.2016 व अपने आधार कार्ड तथा बैंक पासबुक की छायाप्रति व लिखित प्रार्थना पत्र दिनांक 22.06.2016 प्रस्तुत कर एवं बिलम्ब से सूचना देने का स्पष्टीकरण देते हुए बीमा दावा फार्म व अदायगी रसीद हस्ताक्षरित व निष्पादित कर प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के अन्तर्गत बीमा दावा प्रस्तुत करने हेतु अनुरोध किया। परिवादिनी का परिवाद संधार्य नहीं है। अतः परिवाद निरस्त किया जाए।
विपक्षी द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
विपक्षी द्वारा भी कुछ प्रलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत किए गए हैं।
परिवादी की अनुपस्थिति में विपक्षी को सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। इस सन्दर्भ में यदि हम न्याय निर्णय ‘डिप्यूटी डायरेक्टर ऑफ एग्रीकल्चर बनाम मुराती साहू 11 (2019) सी.पी.जे. 104 (उड़ीसा)’ का अवलोकन करें तो इस न्याय निर्णय में यह अवधारित किया गया है कि यदि परिवादी विपक्षी का उपभोक्ता नहीं है तो उसका परिवाद निरस्त कर दिया जाएगा। इस परिवाद के तथ्य एवं परिस्थितियों में ऋण माफी की योजना उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लागू की गयी है। परिवादी उत्तर प्रदेश सरकार का
P.T.O
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कन्ज्यूमर नहीं है न ही वह विपक्षी का कन्ज्यूमर है। ऐसी स्थिति में हमारे विचार से परिवादी कोई भी अनुतोष पाने के लिए हकदार नहीं है। अतः परिवाद निरस्त होने योग्य है।
आदेश
परिवाद पत्र निरस्त किया जाता है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।
गगन कुमार गुप्ता कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
दिनांक 27.11.2020
यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।
गगन कुमार गुप्ता कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
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