Uttar Pradesh

Azamgarh

CC/72/2014

JAGANNATH GUPTA - Complainant(s)

Versus

UBI - Opp.Party(s)

SANJAY KUMAR SINGH

20 Apr 2022

ORDER

 

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग- आजमगढ़।

परिवाद संख्या 72 सन् 2014

प्रस्तुति दिनांक 02.04.2014

                                                                                                निर्णय दिनांक 20.04.2022

जगरनाथ गुप्ता उम्र तखo 30 वर्ष पुत्र स्वo रामनरायन गुप्ता साकिन- आजमगढ़, पोस्ट- अजमतगढ़, तहसील- सगड़ी,जिला- आजमगढ़।      

     .........................................................................................परिवादी।

बनाम

    यूo बैंक ऑफ इण्डिया शाखा सगड़ी आजमगढ़ द्वारा शाखा प्रबन्धक।    

  1. विपक्षी।

उपस्थितिः- कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष” तथा गगन कुमार गुप्ता “सदस्य”

  •  

गगन कुमार गुप्ता “सदस्य”

परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि वह एक व्यवसायी है और उसने विपक्षी से गृह ऋण के रूप में 7,00,000/- रुपया ऋण लिया था। परिवादी अपने ऋण का भुगतान नियमित रूप से करता था। इसके बावजूद विपक्षी द्वारा परिवादी को ऋण भुगतान हेतु नोटिस भेजी गयी, जिससे क्षुब्ध होकर परिवादी ने सिo जज आजमगढ़ के न्यायालय में विपक्षी के विरुद्ध एक मुकदमा दाखिल किया, जिसमें विपक्षी उपस्थित रहे। परिवादी अपनी ऋण अदायगी के प्रति नेक नियति के फलस्वरूप अपना मुकदमा वापस ले लिया तथा विपक्षी के द्वारा बताया गया कि परिवादी अपना समस्त बकाया अदा कर दिया है। विपक्षी द्वारा जारी परिवादी के खाते के स्टेटमेन्ट दिनांक 15.10.2013 से स्पष्ट है कि परिवादी ने समस्त बकाया मय ब्याज जमा कर दिया है तथा उसके खाते में मुo 16.34 अधिक जमा शेष है। आगे कोई बकाया नहीं है। खाते के स्टेटमेन्ट से परिवादी को पता चला कि उससे दिनांक 14.05.2011 को वैलुएशन चार्ज मुo 4,376/-, दिनांक 11.08.2012 को रिवैलुएशन फॉर ऑक्शन के नाम से मुo 4,652/-, दिनांक 08.09.2012 को ऑक्शन व सरफेसिया पब्लिकेशन के नाम से मुo 4,790/-, दिनांक 17.12.2012 को लीगल एक्सपेन्स के नाम से मुo 3,105/-, दिनांक 26.12.2012 को वैलुएशन सर्टिफिकेट के नाम से मुo 3,500/- तथा दिनांक 22.07.2013 को भारत फाइनेन्सियल रिकवरी चार्ज के मद में मुo 22,050/- कुल मुo 42,473/- रुपया गलत तरीके से काल्पनिक आधार पर वसूल लिया गया है। इसके अलावा परिवादी ने जो चेक दिनांक 17.06.2011 मुo 3,478/- जारी एच.डी.एफ.सी. बैंक, दिया था उसे विपक्षी द्वारा परिवादी के उक्त खाते में क्रेडिट नहीं किया गया। बावजूद उपरोक्त अनुचित भुगतान के पश्चात् भी परिवादी ने अपना समस्त बकाया चुकता कर दिया तथा बैंक विपक्षी से जब उक्त खाता बन्द कर अदेयता प्रमाण पत्र व गिरवी के रूप मे रखे गए एक अदद बयनामा दस्तावेज तथा दो अदद जीवन बीमा का पॉलिसी बॉण्ड की मांगा तो विपक्षी ने परिवादी से अनर्गल रूप से 25,000/- रुपए की मांग करते हुए परिवादी को धमकाया। तब परिवादी ने दिनांक 29.10.2013 को विपक्षी को एक नोटिस अपने अधिवक्ता के माध्यम से भेजा, जिस पर विपक्षी द्वारा कोई संज्ञान न लेते हुए परिवादी को धमकाया जाता रहा। परिवादी दिनांक 12.12.2013 को पुनः बैंक जाकर विपक्षी से अपने खाते का अदेयता प्रमाण पत्र तथा उपरोक्त कागजात की मांग किया तो विपक्षी ने अदेयता प्रमाण पत्र तथा उपरोक्त कागजात देने से इन्कार करते हुए बैंक से बाहर भगा दिया। इसके बाद पुनः परिवादी ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से विपक्षी को एक नोटिस दिनांक 27.02.2014 को भेजा, परन्तु विपक्षी द्वारा उस पर भी कोई संज्ञान नहीं लिया गया। जिसके लिए परिवादी विपक्षी से अनुचित रूप में जमा कराए गए मुo 42,473/- रुपए तथा आर्थिक, सामाजिक व मानसिक क्षतिपूर्ति हेतु 1,50,000/- रुपए तथा वाद व्यय हेतु मुo 7,500/- रुपया कुल मुo 1,99,973/- रुपया व उपरोक्त कागजातों को दिलाया जाना आवश्यक है। अतः उपरोक्त तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए विपक्षी से परिवादी को मुo 1,99,973/- रुपया दिलाया जाए।    

परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।

प्रलेखीय साक्ष्य में परिवादी ने कागज संख्या 6/1ता6/5 बैंक द्वारा जारी अकाउन्ट स्टेटमेन्ट की छायाप्रति, कागज संख्या 6/6व6/7, 6/9व6/10 लीगल नोटिस की छायाप्रति तथा कागज संख्या 6/8 रजिस्ट्री रसीद की छायाप्रति प्रस्तुत किया है।   

कागज संख्या 16क² विपक्षी द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उसने परिवाद पत्र की धारा-01 को स्वीकार किया है तथा धारा-05 के कथन दिनांक 14.05.2008 को वैलुएशन चार्ज मुo 4,376/-, दिनांक 21.08.2012 को रिवैलुएशन फॉर ऑक्शन के नाम से मुo 4,652/-, दिनांक 08.09.2012 को सरफेसिया नोटिस पब्लिकेशन के मद में मुo 4,790/-, दिनांक 17.12.2012 को लीगल एक्सपेन्सेस के मद में मुo 3,105/-, दिनांक 26.12.2012 को वैलुएशन सर्टिफिकेट के नाम से मुo 3,500/- तथा दिनांक 22.07.2013 को भारत फाइनेन्सियल रिकवरी चार्ज के मद में मुo 22,050/- रुपया परिवादी के ऋण खाता में बैंक के नियमानुसार एवं परिवादी के साथ हुए कौल करारों के अधीन ही डेविट किया जाना ही स्वीकार किया है। इसके अलावा शेष सभी कथनों से इन्कार किया है। अतिरिक्त कथन में उसने यह कहा है कि परिवाद मनगढ़ंत एवं बेबुनियाद है। यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया एक निगम निकाय है जिसकी स्थापना बैंकिंग कम्पनीज (एक्वीजीशन एण्ड ट्रान्सफर ऑप अण्डरटेकिंग ऐक्ट) 1970 के अधीन हुई है तथा इसका पंजीकृत प्रधान कार्यालय 239, विधान भवन मार्ग, नरीमन प्वाइन्ट, मुम्बई 400021 में स्थित है एवं भारतवर्ष में अनेक शाखाओं के साथ ही साथ एक शाखा सगड़ी (जीयनपुर) जिला आजमगढ़ में भी स्थित है। परिवादी एवं उसकी पत्नी श्रीमती सावित्री देवी ने यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया शाखा सगड़ी जिला आजमगढ़ से सम्पर्क करके अवगत कराया कि उन्हें परिवादी के नाम की पंजीकृत विक्रय विलेख के जरिए खरीदे गए ग्राम अजमतगढ़ परगना व तहसील सगड़ी जिला आजमगढ़ स्थित भूखण्ड गृह निर्माण कराने हेतु मुo 7,00,000/- रुपए के मियादी ऋण की आवश्यकता है जिस पर यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया शाखा सगड़ी जिला आजमगढ़ द्वारा परिवादी एवं उसकी पत्नी को वांछित ऋण-सुविधा की समस्त औपचारिकताओं से अवगत कराया गया जिस परिवादी एवं उसकी पत्नी श्रीमती सावित्री देवी ने स्वीकार किया जिसके उपरनात् विपक्षी द्वारा परिवादी एवं उसकी पत्नी श्रीमती सावित्री देवी के संयुक्त नाम से रु. 7,00,000/- रुपए का मियादी ऋण प्रदान किया जाना सिद्धान्त रूप से स्वीकार किया गया। कालान्तर में परिवादी एवं उसकी पत्नी श्रीमती सावित्री देवी के संयुक्त अनुरोध एवं लिखित ऋण प्रार्थना पत्र दिनांक 17.03.2008 पर विपक्षी द्वारा परिवादी एवं उसकी पत्नी श्रीमती सावित्री देवी के संयुक्त नाम से भवन निर्माण हेतु दिनांक 24.03.2008 को रु. 7,00,000/- मात्र की ऋण सुविधा स्वीकृत कर ऋण सुविधा की शरायतों, अदायगी व ब्याज दर आदि से परिवादी एवं उसकी पत्नी श्रीमती सावित्री देवी एवं उसके जमानतदार को भलीभांति अवगत करा दिया गया और परिवादी, उसकी सहकर्जदार एवं जमानतदार द्वारा आवश्यक औपचारिकताएं पूरी किए जाने पर समय समय पर परिवादी की आवश्यकतानुसार उपरोक्त ऋम की रकम को वितरित किया गया। परिवादी द्वारा ऋण की नियमित अदायगी करने में चूक की गयी जिसके कारण उसके नाम विपक्षी द्वारा मांग नोटिस दिनांक 04.08.2011 व 17.09.2011 आदि प्रेषित की गयी। लेकिन परिवादी द्वारा अतिदेय रकम की अदायगी न करने तथा स्वीकृत शरायतों का अनुपालन न करने के कारण उसके जिम्मे विपक्षी बैंक की काफी लम्बी रकम बकाया हो गयी तथा उसका ऋण खाता दिनांक 30.09.2011 को एन.पी.ए. घोषित हो गया। इसी बीच परिवादी ने अतिदेय रकम की अदायगी से बचने के लिए विपक्षी के विरुद्ध सिविल जज, सीनियर डिवीजन, आजमगढ़ के समक्ष दिनांक 13.09.2011 को मूल वाद संख्या 340/2011 जगरनाथ गुप्ता बनाम शाखा प्रबन्धक यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया आदि दायर कर दिया। इससे सम्बन्धित माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद के समक्ष इस वाद पत्र में वर्णित आधारों पर ही दिनांक 07.02.2012 को सिविल मिस. रिट पेटीशन संख्या सी.7627/2012 जगरनाथ गुप्ता बनाम उत्तर प्रदेश सरकार व यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया आदि दायर किया गया परन्तु सुनवायी के दौरान परिवादी ने अपनी सभी आपत्तियों को स्वयं ही निरस्त करते हुए विपक्षी बैंक की कुल बकाया रकम को किश्तों में जमा करने की अनुमति चाहा अतएव बाद सुनवाई माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने अपने आदेश व निर्णय दिनांक 13.02.2012 के जरिए रिट को अन्तिम रूप से निस्तारित करते हुए परिवादी को बैंक की कुल बकाया रकम ब्याज दण्ड ब्याज व खर्जों आदि को निर्णय की तिथि से चार माह के अन्दर अदा करने हेतु आदेशित किया जिसकी पहली किश्त निर्णय की तिथि से एक माह के अन्दर देय थी। माननीय उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि परिवादी द्वारा एक भी किश्त की अदायगी की स्थिति में बैंक अपनी कुल बकाया रकम आदि वसूल करने के लिए स्वतन्त्र होगा। परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद दुर्भावनात्मक है। अतः खारिज किया जाए।    

विपक्षी द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।

बहस के दौरान पुकार कराए जाने पर उभय पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ता उपस्थित आए तथा उभय पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ताओं ने अपना-अपना बहस सुनाया। बहस सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। जवाबदावा के पैरा 15 में यह लिखा हुआ है कि परिवादी एवं उसकी पत्नी श्रीमती सावित्री देवी के संयुक्त नाम से 7,00,000/- रुपए का ऋण प्रदान किया गया था। यहाँ इस बात पर ध्यान देना होगा कि यह मुकदमा केवल जगरनाथ गुप्ता द्वारा दाखिल किया गया है। उनकी पत्नी श्रीमती सावित्री देवी इस मुकदमे में पक्षकार नहीं हैं। ऐसी स्थिति में परिवाद में नॉन ज्वाइंडर ऑफ पार्टीज का दोष है। अतः हमारे विचार से परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं है। 

 

आदेश

                                                           परिवाद पत्र खारिज किया जाता है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।

     

 

 

                                                                          गगन कुमार गुप्ता                कृष्ण कुमार सिंह

                                                        (सदस्य)                            (अध्यक्ष)

 

          दिनांक 20.04.2022

                                             यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।

 

 

                                              गगन कुमार गुप्ता                कृष्ण कुमार सिंह

                                                                (सदस्य)                             (अध्यक्ष)

 

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