Uttar Pradesh

Azamgarh

CC/60/2001

BRIJ GOPAL - Complainant(s)

Versus

UBI - Opp.Party(s)

SURENDRA KUMAR SINGH

08 May 2019

ORDER

1

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम- आजमगढ़।

परिवाद संख्या 60 सन् 2001

      प्रस्तुति दिनांक 19.03.2001

                                      निर्णय दिनांक 08/05/2019

Brij Gopal Tiwari, Advocate, Aged about 65 Years, S/o Late Shri Adya Shankar Tiwari, Resident of “Achyut Ank” 14/183- Sidhari, City & District- Azamgarh (Uttar Pradesh)

  1. Complainant.

 

Versus.

  1. Union of India, through the Secretary Telecommunication, Secretariat, New Delhi, through G.M., Telecom Bharat Sanchar Nigam Limited, District- Azamgarh.
  2. General Manager, Telecom Bharat Sanchar Nigam Limited, Raidopur, Civil Lines, City and District- Azamgarh (U.P.)
  3. The Account Officer, (T.R.), Bharat Sanchar Nigam Limited, Civil Lines, City and District- Azamgarh (Uttar Pradesh)

........................................................................Opposite Parties.

उपस्थितिः- अध्यक्ष- कृष्ण कुमार सिंह, सदस्य- राम चन्द्र यादव

 

  •  

अध्यक्ष- “कृष्ण कुमार सिंह”-

परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि वह सिविल कोर्ट में वकालत करता है और उसने एक बेसिक टेलीफोन का कनेक्शन जिसका नम्बर 20817 ले रखा है और यह कनेक्शन उसने 1983 में लिया था और वह लगातार बिल देता रहा। विपक्षीगण के असन्तोषजनक कार्य के वजह से उसने स्थानीय प्राधिकारियों से सम्पर्क किया और उसने मिस्टर बी.बी. सिंह जो कि उस समय जनरल मैनेजर थे। उनसे 15 मार्च, 1991 को शिकायत किया था। इस शिकायत से स्थानीय अधिकारी व कर्मचारी परिवादी को परेशान करने लगे और ज्यादा बिल भेजने लगे उसने इस बारे में कम्प्लीनेन्ट नम्बर 179/1992 “वृजगोपाल बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया एवं अन्य” आवश्यक अनुतोष पाने के लिए                                                P.T.O.

2

फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया था, जो कि परिवादी के पक्ष में निर्णीत हुआ और फोरम के निर्देश के अनुसार मार्च 1992 में टेलीफोन विभाग ने उसके बिल जो कि 1992 से 1998 तक का था को अर्जेस्ट किया। इसके पश्चात् विपक्षीगण ने पुनः अधिक बिल भेजना प्रारंभ किया जो कि उपयोग से दूना था और 1997 से सम्बन्धित था और उन्होंने इसे 1999 से 2000 तक का बताया था। जिसको परिवादी ने अन्दर सप्ताह या जिसको परिवादी ने विरोध के साथ भुगतान किया था। विपक्षीगण लगातार उसे अधिक बिल भेजते रहे। परिवादी विपक्षीगण से मुख्य रूप से शिकायत करता रहा और उन्होंने इसके निपटारे के लिए आश्वासन दिया था, लेकिन उन्होंने आजतक कुछ नहीं किया और वे उसका टेलीफोन कनेक्शन पांच बार काट चुका था। सारी बिल देने के पश्चात् उसके टेलीफोन को जोड़ा गया। 1984 से लगातार भेजे जाने वाला विवरण निम्नलिखित है।

 वर्ष        धनराशि

 वर्ष       धनराशि

 वर्ष       धनराशि

1984         331/-

1985       925/-

1986      1322/-

1987        1603/-

1988      1504/-

1989      1884/-

1990        2000/-

1991      2000/-

1992      2000/-

1993        3515/-

1994      2545/-

1995      3518/-

1996        N.K.

1997      3491/-

1998      5993/-

1999      22048/-

2000     11245/-

 

विपक्षीगण ने प्रतिशोध में 1996 से उसकी अधिक बिल भेजना प्रारंभ किया जबकि जितनी बिल थी उतने का उपयोग परिवादी ने नहीं किया था। 16 फरवरी, 2001 को जब परिवादी अपने घर पर 4.15 पी.एम. पर पहुंचा तो उसे टेलीफोन पुनः कटने की सूचना मिली और वह टेलीफोन विभाग गया और एकाउन्ट ऑफिसर से मिला जिसने टेलीफोन को पुनः लगाने में अपनी असमर्थता व्यक्त किया। इसके पश्चात् वह जनरल मैनेजर विपक्षी संख्या 01 के पास गया। काफी बहस के पश्चात् 23 फरवरी, 2001 को उसका कनेक्शन पुनः जोड़ा गया और उसके लिए बाद में कोई पेमेन्ट नहीं किया गया। जी.एम. के सलाह पर उसके द्वारा 500/- रुपया जमा किया गया। कनेक्शन काटने से परिवादी को काफी                                                    P.T.O.

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आर्थिक और मानसिक क्षति का सामना करना पड़ा और उसकी ख्याति भी प्रभावित हुई। उपरोक्त प्रस्तुत विवरण के आधार पर परिवादी के नुकसान का आंकलन नहीं किया जा सकता है। फिर भी, परिवादी को 50,000/- रुपये मानसिक आर्थिक क्षति के रूप में प्राप्त करने का अधिकारी है। अतः 1996, 97, 98, 99 तथा 2000 पर विचार करके उसका विश्लेषण किया जाए और उसे 1984 से 1997 तक का जो बिल प्रस्तुत किया है उसके साथ आंकलन किया जाए और परिवादी द्वारा भुगतान किए गए अधिक धनराशि को परिवादी को दिलवाया जाए। परिवादी को 50,000/- रुपये आर्थिक व मानसिक क्षति कष्ट के लिए दिलवाया जाए। विपक्षी को आदेशित किया जाए कि वह परिवादी का कनेक्शन न काटे।

परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।

प्रलेखीय साक्ष्य में परिवादी की ओर से कागज संख्या 24/1, 24/2 टेलीफोन बिल, 24/3 रसीद रजिस्ट्री, 24/4 ता 24/10 टेलीफोन बिल, 24/11 रसीद, 24/12 ता 24/14 रसीद टेलीफोन, 24/15 रिसीविंग, 24/16 टेलीफोन बिल, 24/17 रसीद, 24/18 ता 24/20 ई.डी.एम. को लिखे गए पत्र, 24/21 विरोध के साथ जमा किए गए बिल के सम्बन्ध में प्रार्थना पत्र, 24/22 197/1992 में फोरम द्वारा पारित निर्णय प्रस्तुत किया गया है।

विपक्षीगण ने अपना जवाबादावा प्रस्तुत किया है, जिसमें उन्होंने परिवाद पत्र में किए गए कथनों से इन्कार किया है। आगे उन्होंने यह कहा है कि 1992 से पूर्व कम्प्यूटराइज इलेक्ट्रॉनिक मशीन कार्यरत नहीं थी। इस कारण कभी-कभी यांत्रिक गड़बड़ी की वजह से त्रुटि हो जाती थी। इस कारण उस समय औसत के आधार पर बिलें कम करके डिबेट भेज दिया जाता था। उस समय माननीय न्यायालय के आदेश दिनांक 07.07.1994 के अनुसार दिनांक 01.04.1990 से 31.01.1993 की जमा किए गए बिलों का रुपया 2,000/- रुपये प्रतिवर्ष के हिसाब से समायोजित किया गया। 1993 के बाद बिलें त्रुटिपूर्ण नहीं थीं, बल्कि उपभोक्ता द्वारा 31.03.1993 तक जमा किए गए अधिक भुगतान की                                                       P.T.O.

4

धनराशि 01.09.1998 तक की बिलों का समायोजित किया जाता रहा है। कम्प्यूटराइज इलेक्ट्रॉनिक मशीनों के कार्यरत हो जाने पर सही बिल भेजी जाती है और बिलों का भुगतान नहीं करने पर डिस्कनेक्शन की कार्यवाही की जाती है। उपभोक्ता फोरम के आदेश दिनांक 07.07.1994 के आदेश का अनुपालन विभाग द्वारा कर दिया गया है और वर्तमान समय में भी वह उपरोक्त बिलों का दुरूपयोग करते हुए अनुचित लाभ प्राप्त करना चाहता है। उपभोक्ता के हित को देखते हुए उसकी समस्याओं का सम्मानपूर्वक निस्तारण करता है साथ ही राष्ट्रहित में एवं सरकारी धन के भुगतान के लिए विच्छेदन की कार्यवाही की जाती है। बकाया बिलों के भुगतान की जिम्मेदारी उपभोक्ता की स्वयं होती है और बकाया भुगतान न होने पर विच्छेदन के कार्यवाही की जाती है। परिवाद पोषणीय नहीं है। अतः परिवाद खारिज किया जाए।

विपक्षीगण द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।

परिवादी की ओर से कागज संख्या 24/1 जो प्रस्तुत किया गया है, उसमें बिल 1077/- रुपये की नत्थी की गयी है, लेकिन कागज संख्या 24/2 में बिल 2030/- रुपये भेज दी गयी है और कागज संख्या 24/4 में बिल 2551/- रुपये भेज दी गयी है तथा कागज संख्या 24/6 में बिल 2913/- रुपये भेज दी गयी थी और कागज संख्या 24/8 में बिल 3575/- रुपये भेज दिया गया था। इस प्रकार चारो प्रपत्रों के अवलोकन से यह स्पष्ट हो रहा है कि यह जो बिल भेजी गयी हैं वह नियमानुसार सही नहीं है भेजी गयी हैं। यदि हम कागज संख्या 24/1 में भेजे गए बिल को आधार मानकर तीनों बिलों से घटा दें तो परिवादी से कुल 7085/- रुपया अधिक वसूल किया गया है। इस प्रकार हमारे विचार से परिवाद स्वीकार होने योग्य है।

P.T.O.

 

 

 

 

 

5

आदेश

परिवाद स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को अन्दर 30 दिन मुo 7085/- रुपया (सात हजार पचासी रुपया) अदा करें। जिस पर वाद दाखिला के दिन से 09% वार्षिक ब्याज देय होगा।    

 

 

 

राम चन्द्र यादव                  कृष्ण  कुमार सिंह

                                                                      (सदस्य)                          (अध्यक्ष)

 

                         दिनांक 08/05/2019

यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।

 

 

 

राम चन्द्र यादव                  कृष्ण  कुमार सिंह

                                                                    (सदस्य)                          (अध्यक्ष)

 

 

 

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