AKHILESH RAI filed a consumer case on 28 Jan 2021 against UBI in the Azamgarh Consumer Court. The case no is CC/57/2015 and the judgment uploaded on 29 Jan 2021.
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जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग- आजमगढ़।
परिवाद संख्या 57 सन् 2015
प्रस्तुति दिनांक 21.03.2015
निर्णय दिनांक 28.01.2021
अखिलेश राय पुत्र लल्लन राय ग्राम व पोस्ट- मधसिया, तहसील- निजामाबाद, जनपद- आजमगढ़।
.........................................................................................परिवादी।
बनाम
यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया शाखा- लाहीडीह, जनपद- आजमगढ़, द्वारा- शाखा प्रबन्धक, यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया शाखा- लाहीडीह, जनपद- आजमगढ़।
उपस्थितिः- कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष” तथा गगन कुमार गुप्ता “सदस्य”
कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष”
परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि उसने दिनांक 16.09.2004 को विपक्षी बैंक से कृषि कार्य हेतु किसान क्रेडिट कार्ड मुo 1,00,000/- रुपए की लिया। जिसका खाता संख्या 421805030001140 है। परिवादी उक्त खाते का परिचालन सुचारू रूप से करता आ रहा है। बीच में प्राकृतिक आपदाओं के कारण परिवादी की फसलों का काफी नुकसान हुआ, जिसके कारण परिवादी उक्त के.सी.सी. खाते का संचालन ठीक ढंग से नहीं हुआ और उसके जिम्मे 2,15,555/- रुपया बकाया हो गया जिसका भुगतान परिवादी नहीं कर सका। बाद में प्रयास करके दिनांक 01.01.2008 को 35,000/- रुपया, दिनांक 04.02.2008 को 10,000/- रुपया, दिनांक 12.02.2008 को 52,000/- रुपया, दिनांक 26.02.2008 को 10,000/- रुपया व दिनांक 28.02.2008 को 30,000/- रुपया कुल 1,20,000/- रुपया जमा कर दिया। फिर भी परिवादी के जिम्मे दिनांक 29.02.2008 तक उक्त के.सी.सी. खाते में कुल मुo 96,558/- रुपया बकाया रह गया। यह कि ऋण राहत योजना 2008 के अनुसार सीमान्त/लघु कृषक के के.सी.सी. खाते में दिनांक 29.02.2008 तक बकाया धनराशि को माफ कर दिया। चूंकि परिवादी उक्त ऋण राहत योजना की परिसीमा के अन्तर्गत आता है। इसलिए विपक्षी बैंक ने परिवादी को ऋण राहत का लाभ देते हुए परिवादी के के.सी.सी. खाते को निल करके परिवादी को नो ड्यूज सर्टिफिकेट दे दिया। विपक्षी ने अपने पत्र दिनांक 30.05.2013 द्वारा परिवादी को सूचना दिया कि आपके कृषि ऋण काते में ऋण की माफी राहत निल होनी चाहिए, परन्तु आपके उक्त ऋण खाते में
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राहत/माफी मुo 1,05,338/- रुपया की प्राप्त हुई, जो कि धनराशि 1,02,338/- रुपया अंकित है। परिवादी को आदेश किया गया कि उक्त धनराशि को 15 दिन के अन्दर खाते में जमा किया जाए, अन्यथा बैंकिंग नियमों के तहत उसके खिलाफ कार्यवाही की जाएगी। परिवादी ने विपक्षी को दिनांक 23.07.2013 को नोटिस भेजा, जिसका उत्तर विपक्षी ने नहीं दिया। अतः विपक्षी को मना किया जाए कि वह परिवादी के के.सी.सी. खाता की मुo 1,05,338/- रुपए की वसूली न करें। मानसिक, शारीरिक व आर्थिक क्षति हेतु 50,000/- रुपए विपक्षी परिवादी को अदा करें।
परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
प्रलेखीय साक्ष्य में परिवादी ने कागज संख्या 7/1 व 7/2 खाते के विवरण की छायाप्रति, कागज संख्या 7/3 परिवादी से बकाया धनराशि मागने के पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 7/4 अखिलेश राय द्वारा शाखा प्रबन्धक को लिखे गए पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 7/5 यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया द्वारा अखिलेश राय को लिखे गए पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 7/6 खाते की छायाप्रति प्रस्तुत किया गया है।
कागज संख्या 8क विपक्षी द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत किया है, जिसमें उसने परिवाद पत्र के कथनों से इन्कार किया है तथा अतिरिक्त कथन में उसने यह कहा है कि परिवादी को यह परिवाद प्रस्तुत करने का कोई अधिकार हासिल नहीं था। विपक्षी बैंक की स्थापना दि बैंकिंग कम्पनीज (एक्वीजीशन एण्ड ट्रान्सफर ऑफ अण्डरटेडिंग्स) ऐक्ट 1970 के अधीन हुई है जिसका पंजीकृत प्रधान कार्यालय विधान भवन मार्ग, मुम्बई 400 039 में स्थित है तथा अन्य के साथ ही साथ एक शाखा कार्यालय लाहीडीह जिला आजमगढ़ में भी स्थित है। श्री बिपिन सोरेंग यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया शाखा लाहीडीह जिला आजमगढ़ के शाखा प्रबन्धक एवं मुख्य अधिकारी हैं जिन्होंने जवाबदावा पर हस्ताक्षर किया है। इस मामले के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी एक किसान है तथा परिवादी ने बैंक के निर्धारित प्रारूप पर अपने पास 04.91 एकड़ कृषि योग्य भूमि होने सम्बन्धित कथन करते हुए रुपए 1,00,000/- सीमा तक की किसान क्रेडिट कार्ड ऋण सुविधा प्रदान किए जाने हेतु अपना फोटोग्राफ लगाकर माह सितम्बर, 2004 को ऋण प्रार्थनापत्र प्रस्तुत किया जिस पर परिवादी को घोषणा एवं सूचनाओं के आधार पर विपक्षी बैंक द्वारा दिनांक 16.09.2004 को परिवादी के नाम रुपए 1,00,000/- सीमा तक की किसान क्रेडिट कार्ड ऋण सुविधा स्वीकृत कर वितरित की गयी, जिसकी सुरक्षा हेतु परिवादी ने विपक्षी बैंक के पक्ष में विभिन्न सुरक्षा अभिलेख हस्ताक्षरित व निष्पादित किए एवं अपनी अचल सम्पत्तियों का साधारण बन्धकनामा भी
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हस्ताक्षरित व निष्पादित किया। बैंक के नियमानुसार परिवादी को प्रदान की गयी उपरोक्त ऋण सुविधा एक वर्ष की अवधि के लिए प्रदान की जाती है। परिवादी ने दिनांक 14.07.2005 को एक आवेदन पत्र दिया जिसके अनुक्रम में किसान क्रेडिट कार्ड ऋण सुविधा की सीमा को एक लाख से बढ़ाकर दो लाख रुपए कर दी गयी। परिवादी ने अपने किसान क्रेडिट कार्ड ऋण खाता का सन्तोषजनक संचालन एवं वर्ष 2006 में नवीनीकरण नहीं कराया परन्तु तलब तकाजा किए जाने पर उसने दिनांक 16.03.2007 को बैंक के पक्ष में डेबिट बैलेंस कन्फर्मेशन निष्पादित किया। दिनांक 22.03.2007 को परिवादी के ऋण खाता में बकाया राशि रुपए 2,12,852/- हो गयी जो स्वीकृत ऋण सीमा से ज्यादा थी तथा परिवादी ने रुपए 1,00,000/- की धनराशि अपने ऋण खाता में जमा किया एवं दिनांक 26.03.2007 को अपने ऋण खाता का नवीनीकरण कराते हुए रुपए 80,000/- मात्र की रकम प्राप्त किया। नवीनीकरण होने के उपरान्त इस ऋण खाता की रकम दिनांक 26.03.2008 को ओवरड्यू होनी थी। उसके उपरान्त परिवादी ने दिनांक 01.01.2008 को रुपए 34,000/- दिनांक 04.02.2008 को रुपए 15,000/-, दिनांक 06.02.2008 को रुपए 10,000/- दिनांक 12.02.2008 को रुपए 20,000/- दिनांक 26.02.2008 को रुपए 10,000/- एवं दिनांक 28.02.2008 को रुपए 30,000/- अपने ऋण खाते में जमा किया उस समय उसके ऋण खाते में कुल अवशेष 96,558/- रुपए था। परिवादी को प्रदान की गयी ऋण सुविधा की अवधि 25.03.2008 तक थी तथा परिवादी ने अपने ऋण खाता के नवीनीकरण हेतु दिनांक 01.03.2008 को प्रार्थना पत्र दिया जो बैंक द्वारा स्वीकार की गयी और जिसकी सुरक्षा हेतु परिवादी ने बैंक के पक्ष में दिनांक 01.03.2008 को मांग वचन पत्र व अन्य विभिन्न सुरक्षा अभिलेख हस्ताक्षरित व निष्पादित किए तथा दिनांक 04.03.2008 को रुपए 1,00,000/- निकासी किया एवं दिनांक 07.03.2008 को रुपए 30,000/- अपने ऋण खाता में जमा किया। उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि परिवादी का ऋण खाता माह दिसम्बर, 2007 में अतिदेय न होकर नियमित खाता था। कालान्तर में माननीय वित्त मंत्री, भारत सरकार के बजट 2008-09 के द्वारा ऋण माफी/ऋण राहत योजना, 2008 लागू की गयी जिसके अनुसार विभिन्न पात्र खातों में ऋण माफी/राहत प्रदान की गयी। भारत सरकार द्वारा कृषकों के लिए जारी ऋण माफी/ऋण राहत योजना की विशेषताएं निम्नलिखित हैं।
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योजना लागू होगी।
यद्यपि परिवादी का ऋण खाता माह दिसम्बर 2007 में अतिदेय नहीं था परन्तु विपक्षी द्वारा ऋण माफी/ऋण राहत योजना, 2008 के प्रावधानों की गलत व्याख्या व मिसअन्डरस्टैण्डिंग के कारण पात्र न होते हुए भी परिवादी के ऋण खाता में दिनांक 28.06.2008 को रुपए 1,05,338/- मात्र की ऋण माफी प्रदान कर दी गयी जिसके बाद परिवादी ने दिनांक 26.07.2008 को रुपए 25,000/- की निकासी किया एवं लगातार लेन-देन करता रहा। परिवादी का परिवाद पत्र की धारा 09 में उल्लिखित कथन बिल्कुल ही असत्य है कि दिनांक 29.02.2008 को उसका खाता निल कर दिया गया अथवा उसे अदेयता प्रमाण पत्र दे दिया गया था। कालान्तर में भारत सरकार के सी.ए.जी. ने द एग्रीकल्चरल डेब्ट वेवर और डेब्ट रिलीफ स्कीम 2008 के बैंकों द्वारा लागू करने में अनियमितताओं का उल्लेख करते हुए भारत सरकार को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत किया जिसे दिनांक 05.03.2013 को सदन के पटल पर रखा गया एवं भारत सरकार द्वारा समस्त बैंकों को एग्रीकल्चरल डेब्ट वेवर और डेब्ट रिलीफ स्कीम 2008 के सम्बन्ध में पुनः अंकेक्षण कराकर अनियमितताओं को दूर करने हेतु निर्देशित किया गया जिसके अधीन विपक्षी बैंक के उच्च कार्यालय के निर्देशानुसार ऐसे खातों का अंकेक्षण कराए जाने पर वर्तमान मामले में यह पाया गया कि परिवादी का ऋण खाता माह दिसम्बर, 2007 में अतिदेय नहीं था तदनुसार पात्र न होते हुए भी परिवादी के ऋण खाता में दिनांक
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28.06.2008 को रुपए 1,05,338/- मात्र की ऋण माफी प्रदान कर दी गयी। अतएव व्यक्तिगत सम्पर्क कर उससे कहा कि उसे ऋण माफी त्रुटिवश दी गयी है। वर्तमान समय में परिवादी के विरुद्ध 1,05,338/- रुपया बकाया है। अतः उसकी अदायगी हेतु वैधानिक कार्यवाही करते हुए यह रकम मय संग्रह व्यय आदि वसूली की जाएगी। ऋण राहत योजना 2008 में प्रावधान किया गया है कि यदि कोई कृषक ऋण प्रदान करने वाले बैंक द्वारा दी गयी ऋण माफी से संतुष्ट नहीं है तो वह उक्त योजना के अधीन नियुक्त व्यथा निवारण अधिकारी के समक्ष प्रत्यावेदन प्रस्तुत कर सकता है तथा इस सम्बन्ध में व्यथा निवारण अधिकारी का आदेश अन्तिम माना जाएगा परन्तु परिवादी ने ऐसा कोई प्रत्यावेदन प्रस्तुत ही नहीं किया है। ऋण माफी ऋण राहत योजना 2008 के प्रावधानों के अनुसार किसी भी व्याख्या आदि के लिए केन्द्रीय सरकार को अधिकृत किया गया है। ऋण माफी के वाद कारण से सम्बन्धित परिवाद उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आता है अतएव वर्तमान परिवाद जिला फोरम में पोषणीय नहीं है। परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में असत्य बातों का कथन किया है। अतः परिवाद निरस्त किया जाए।
विपक्षी द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
प्रलेखीय साक्ष्य में विपक्षी की ओर से कागज संख्या 12ग कृषि उधार हेतु आवेदन पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 12/2 ऋण स्वीकृति पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 12/4 मार्टगेज डीड की छायाप्रति, कागज संख्या 12/9 ऋण स्वीकृत पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 12/10 प्रोपराइटरशिप/एकल की छायाप्रति, कागज संख्या 12/11 मार्टगेज डीड की छायाप्रति, कागज संख्या 12/15 उपर्युक्त सन्दर्भित अनुसूची II की छायाप्रति, कागज संख्या 12/18 एक लाख रुपए के क्रेडिट कार्ड को दो लाख रुपए तक बढ़ाए जाने के सम्बन्ध में प्रलेख साक्ष्य की छायाप्रति, कागज संख्या 12/19 हाइपोथिकेशन एग्रीमेन्ट की छायाप्रति, कागज संख्या 12/23 डीड ऑफ गारण्टी की छायाप्रति, कागज संख्या 12/25 एग्रीकल्चरल डेब्ट वेवर एण्ड डेब्ट रिलीफ स्कीम 2008 की छायाप्रति, कागज संख्या 12/36 बैंक द्वारा परिवादी को लिखे गए पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 12/37 ता 12/40 खाते का विवरण तथा कागज संख्या 12/41 परिवादी पर 1,05,338/- बकाया होने के सम्बन्ध में प्रपत्र की छायाप्रति प्रस्तुत किया गया है।
बहस के समय उभय पक्ष उपस्थित। उभय पक्षों की बहस को सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया गया। बैंक द्वारा यह स्वीकार किया गया है कि जवाबदावा के पैरा 18 में यह कहा गया है कि परिवादी को ऋण प्रदान किया था ऋण सुविधा की अवधि 25.03.2008 तक थी तथा परिवादी ने अपने ऋण
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खाता के नवीनीकरण हेतु दिनांक 01.03.2008 को प्रार्थना पत्र दिया जो बैंक द्वारा स्वीकार कि गया। उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि परिवादी का ऋण खाता माह दिसम्बर, 2007 में अतिदेय न होकर नियमित खाता था। जवाबादावा के पैरा 21 में यह कहा गया है कि भूलवश परिवादो को दिनांक 28.06.2008 को 1,05,338/- रुपए की माफी दी गयी। जिसके बाद परिवादी दिनांक 26.07.2008 को रुपए 25,000/- की निकासी किया और लगातार लेन-देन करता रहा। परिवादी ने अपने परिवाद पत्र के पैरा 9 में गलत उल्लेख किया है कि दिनांक 29.02.2008 को उसका खाता निल कर दिया गया अथवा उसे अदेयता प्रमाण पत्र दे दिया गया। बाद में भारत सरकार ने कतिपय अनियमितताओं का उल्लेख करते हुए अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत किया, जिसे दिनांक 15.03.2013 को सदन के पटल पर रखा गया एवं समस्त बैंकों को एग्रीकल्चरल डेब्ट वेवर और डेब्ट रिलीफ स्कीम 2008 के सम्बन्ध में पुनः अंकेक्षण कराकर अनियमितताओं को दूर करने का अनुरोध किया किया। कागज संख्या 12/25 एग्रीकल्चरल डेब्ट वेवर और डेब्ट रिलीफ स्कीम 2008 प्रस्तुत की गयी है। कागज संख्या 15/5 पब्लिक एकाउन्ट्स कमेटी 2013-14 को प्रस्तुत किया गया है जिसके पैरा 4 में बैंकों को यह निर्देश दिया गया है कि वह पुनः ऑडिट करे। इस कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार बैंक ने जो परिवादी का ऋण माफ किया गया था उसकी ऑडिट किया तो यह पाया कि वह गलत था और उसकी 1,05,338/- रुपए जो ऋण माफ कर दिया गया था उसके परिवादी हकदान नहीं था। अतः ऋण माफी योजना को निरस्त कर दिया गया। परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि परिवादी को अदेयता प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया, लेकिन परिवादी इस सन्दर्भ में कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है। इस सन्दर्भ में बैंक द्वारा प्रस्तुत अभिलेखों से स्पष्ट है कि ऋण माफी जो परिवादी को दी गयी थी वह गलत दी गयी थी। ऐसी स्थिति में परिवादी पर अब भी 1,05,338/- रुपया बकाया है जिसके भुगतान करने हेतु परिवादी बाध्य है। ऐसी स्थिति में हमारे विचार से परिवाद अस्वीकार होने योग्य है।
आदेश
परिवाद- पत्र खारिज किया जाता है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।
गगन कुमार गुप्ता कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
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दिनांक 28.01.2021
यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।
गगन कुमार गुप्ता कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
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