जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण अजमेर
1. डा.(श्रीमति ) रष्मी बाला, आयु 29 वर्ष पत्नी डा0 विजय सिंह रावत,
2. डा. विजय सिंह रावत, आयु 33 वर्ष पुत्र श्री बन्ना सिंह रावत
निवासियान-रावत मौहल्ला, कल्याणीपुरा, गुलाबबाडी, जिला-अजमेर(राजस्थान)
परिवादीगण
बनाम
1. निदेषक, न्।म् म्ग्ब्भ्।छळम् - थ्प्छ।छब्म् ैम्त्टप्ब्म्ै स्ज्क्ण्ए354 कालीताला रोड, पुरबाचल,कालीकापुर, एसबीआई बैंक के सामने, कोलकत्ता-78
2. मैनेजर, न्।म् म्ग्ब्भ्।छळम् - थ्प्छ।छब्म् ैम्त्टप्ब्म्ै स्ज्क् ग्राउण्ड फलोर, सरदार पटेल मार्ग, एचडीएफसी बैंक के साथ, अजमेर-305001(फोन नं. 0145-2428102, 0145-2428095)
अप्रार्थीगण
परिवाद संख्या 485/2013
समक्ष
1. महेन्द्र कुमार अग्रवाल अध्यक्ष
2. श्रीमती ज्योति डोसी सदस्या
उपस्थिति
1.श्री कृष्ण गोपाल खत्री, अधिवक्ता, प्रार्थीगण
2.श्री सूर्यप्रकाष गांधी, अधिवक्ता अप्रार्थीगण
मंच द्वारा :ः- निर्णय:ः- दिनांकः-23.02.2016
1. परिवादीगण ने यह परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 12 के अन्तर्गत इस आषय का पेष किया है कि परिवादीगण पेषे से डाक्टर है और परिवादी संख्या 1 वर्ष 2012 में रीजनल इन्स्टीट्यूट आफ मेडिकल काॅलेज, इम्फाल से ळलदमबवसवहल में पी.जी. के साथ साथ पिछले ढाई वर्षो से ग्ग् थ्प्ळव् ॅवतसक ब्वदहतमेे व िळलदमबवसवहल ंदक व्इेजमजतपबे बवदमितमदबम जो रोम(ईटली) मे वर्ष 2012 में ही आयोजित होने वाली थी के लिए पेपर तैयारी कर रही थी । रोम(ईटली) में दिनांक 7.10.2012 से 12.12.2012 तक आयोजित होने वाले उक्त सम्मेलन के लिए परिवादी संख्या 1 को आमत्रित किया तथा दिनांक 8.12.2012 को सांय 3.30 बजे से 5.00 बजे तक परिवादी संख्या 1 का लैक्चर तय करते हुए पत्र दिनांक 05.09.2012 के सूचित किया साथ ही उक्त पत्र में यह भी अंकित किया कि ॅवतसक ब्वदहतमेे में उपस्थित होने बाबत् जरूरी वीजा प्राप्त करने लिए यह पत्र सहायक सिद्व होगा । तत्पष्चात् उक्त काफ्रेंस में सम्मिलित होने हेतु परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 1 से सम्पर्क किया जिस पर अप्रार्थी संख्या 1 ने आष्वस्त किया कि वे उक्त काफ्रेंन्स में सम्मिलित होने का पूरा इन्तजाम करवा देगे और उनके इस आष्वासन के बाद परिवादीगण ने हवाई टिकिट व रोम में ठरहरने हेतु होटल आदि बुक करवा दिए और अप्रार्थी संख्या 1 को उनके कथनानुसार टूरिस्ट वीजा के लिए उनके माध्यम से आवेदन कर दिया और परिवादीगण ने अप्रार्थीगण को विभिन्न मदों में रू. 2,14,000/- का भुगतान उनकी मांग के अनुसार कर दिया । अप्रार्थी संख्या 1 के वीजा तैयार हो जाने के आष्वासन पर दिनांक 5.12.2012 को दिल्ली पहुंचे तब अप्रार्थी संख्या 1 ने परिवादीगण को जरिए टैलीफोन के सूचित किया कि परिवादीगण का टूरिस्ट वीजा तैयार नहीं हो पाया है इसलिए परिवादीगण रोम(इटली) की यात्रा नहीं कर पाएगे । अप्रार्थी संख्या 1 की उक्त सूचना के पष्चात् परिवादी संख्या 1 ने रोम में उक्त काफ्रेन्स के आयोजकों से अपनी व्यथा के बारे में अवगत कराया जिस पर आयोजकों ने उसका आग्रह स्वीकार करते हुए 8.10.2012 के स्थान पर उसका लेक्चर दिनांक 11.10.2012 को रख दिया । अप्रार्थी संख्या 1 को उक्त तथ्य के बारे में अवगत कराते हुए उक्त दिनांक हेतु वीजा उपलब्ध करवाने का आष्वासन दिया जिस पर अप्रार्थी संख्या 1 ने भरोसा दिलाया कि उक्त दिनांक का वीजा वे अवष्य तैयार करवा देगें किन्तु इस बार भी जब समय आया तो अप्रार्थी संख्या 1 ने अंतिम समय पर वीजा तैयार नहीं होने के संबंध में सूचित किया । इस प्रकार अप्रार्थीगण ने परिवादीगण से राषि प्राप्त करने के उपरान्त भी वीजा तैयार नहीं कर सेवा दोष किया है । परिवादीगण ने परिवाद में वर्णित अनुतोष दिलाए जाने की प्रार्थना की है ।
2 अप्रार्थीगण ने जवाब प्रस्तुत करते हुए अपने जवाब परिवाद में कथन किया है कि परिवादीगण ने अप्रार्थी संख्या 1 से दिनांक 31.7.2012 को इटली(रोम) जाने के लिए एयर टिकिट, होटल में ठहरने की व्यवस्था एवं अन्य जानकारी प्राप्त की थी तथा परिवादी संख्या 1 ने अप्रार्थी संख्या 1 से टेलीफोन पर वीजा बनवाने के बारे में जानकारी प्राप्त करने पर उन्हें बतलाया गया कि समस्त खानापूर्ति व दस्तावेज उपलब्ध करा दिए जाने पर उनका वीजा आवेदन एम्बेसी में प्रस्तुत करना होगा । वीजा देने या नहीं देने का काम एम्बेसी का है । अप्रार्थी संख्या 1 का काम परिवादीगण के वीजा आवेदन को एम्बेसी में प्रस्तुत करना मात्र था । चूंकि परिवादी संख्या एक, एक विषेष काफ्रेंस अटेण्ड करने के लिए अपने पति के साथ जा रही थी इसलिए बिजनीस वीजा के स्थान पर ट्यूरिस्ट वीजा ही बन सकता था । अप्रार्थी संख्या 1 ने परिवादी संख्या 1 को यह कभी भी नहीं कहा कि दोनों का ट्यूरिट वीजा तैयार करवा देगा इसमें कोई बाधा नहीं आएगी । परिवादी संख्या 1 ने अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा बार बार मांग किए जाने के बावजूद दिनांक 5.9.2012 को अपूर्ण दस्तावेज उपलब्ध कराए जिस पर अप्रार्थी संख्या 1 ने पुनः परिवादी संख्या 1 को स्पष्ट चेतावनी दी कि यदि सम्पूर्ण दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए गए तो वीजा बनना सम्भव नहीं है । परिवादी संख्या 1 ने दिनांक 15.9.2012 को वांछित दस्तावेज का जो सेट अप्रार्थी संख्या 1 को उपलब्ध कराया वह अपूर्ण था । तत्पष्चात् अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा कई बार रिमाण्ड किए जाने पर परिवादी संख्या 1 ने दिनांक 25.09.2012 को परिवादीगण के वांछित पूर्ण दस्तावेज उपलब्ध कराए जिन्हें एम्बेसी में प्रस्तुत कर दिया और एम्बेसी ने अप्रार्थी संख्या 1 को स्पष्ट कर दिया कि आवेदन देरी से पेष करने के कारण वीजा समय पर मिलना सम्भव नहीं है और एम्बेसी के उक्त तथ्य से परिवादी संख्या 1को अवगत करा दिया गया था । परिवादीगण दिनांक 5.10.2012 को नई दिल्ली इसलिए पहंुचे थे कि संयोग से आखरी क्षण में वीजा मिल जाए किन्तु दस्तावेजात विलम्ब से उपलब्ध कराए जाने के कारण वीजा नहीं मिल पाया इसमें अप्रार्थीगण की कोई सेवा में कमी नहीं रही । अन्त में परिवाद खारिज किए जाने की प्रार्थना की है ।
3. हमने दोनो पक्षों के विद्वान अधिवक्तगण को सुना एवं पत्रावली का अवलोकन किया ।
4. इस संबंध में कोई विवाद नहीं है कि परिवादीगण ने अप्रार्थीगण से ग्ग् थ्प्ळव् ॅवतसक ब्वदहतमेे व िळलदमबवसवहल ंदक व्इेजमजतपबे बवदमितमदबम रोम(इटली) में भाग लेने के लिए जाने हेतु सम्पर्क किया एवं अप्रार्थीगण ने परिवादीगण को आवष्यक सुविधाए एवं वीजा उपलब्ध कराने का आष्वासन दिया जिस पर परिवादीगण ने अप्रार्थीगण को रू. 2,41,000/- की राषि अदा की ।
5. अप्रार्थीगण की ओर से सर्वप्रथम यह आपत्ति उठाई गई कि अजमेर स्थित मंच को यह प्रकरण सुननने की क्षेत्राधिकारिता प्राप्त नहीं है क्योंकि अजमेर में किसी प्रकार का वादकारण उत्पन्न नहीं हुआ है और ना ही अजमेर में उनके ब्रान्च आफिस से कोई लेन देन किया गया है इसलिए इस मंच को यह परिवाद सुनने की क्षेत्राधिकारिता नहीं है । अप्रार्थीगण की ओर से हमारा ध्यान निम्न न्यायिक दृष्टान्तों की ओर दिलाया गया:-
1. प्ट;2009द्धब्च्श्रण्40;ैब्द्ध ैवदपब ैनतहपबंस टे छंजपवदंस प्देनतंदबम ब्वउचंदल स्जक
2ण् प्;2014द्धब्च्श्र 210 च्नदरंइ ैजंजम बवदेनउमत क्पेचनजमे त्मकतमेेंस ब्वउउपेेपवद
भ्मउंदज ळवलंस डवजवते च्अज स्जक टे टंतनद ठींतजप
3. प्;2014द्धब्च्श्र 302;छब्द्ध डमसंदपम क्ंे टे त्वलंस ैनदकतंउ ।ससपंदबम प्देनतंदबम ब्वण्स्जक
4ण् प्प्;2015द्धब्च्श्रण्82;छब्द्ध ैनतमदकमत ज्ञनउंत श्रींउइ टे न्दपजमक प्दकपं प्देनतंदबम ब्व स्जक
5ण् प्प्;2015द्धब्च्श्रण् 369;छब्द्ध न्च् क्ंाचंस - व्ते टे ळंदहं ैनहंत ब्वतचण् स्जक
6. परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता की ओर से यह बहस की गई कि परिवादीगण अजमेर के निवासी है तथा अप्रार्थीगण का अजमेर में ब्रान्च आफिस है तथा नेट के माध्यम से सुविधाए ली गई है इसलिए इस मंच को यह परिवाद सुनने की ़़क्षेत्राधिकारिता प्राप्त है । इस संबंध में उन्होन हमारा ध्यान माननीय राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, मेघालय द्वारा अपील संख्या 07/2007 में दिए गए निर्णय दिनंाक 07.12.2013 डण्क्ण् ।पत क्मबबंद टे ैीतप त्ंउ ळवचंस ।हंतूंस की ओर ध्यान दिलाया ।
7. हमने उभय पक्षों के इन तर्को पर गम्भीरतापूर्वक विचार किया एवं उनके द्वारा पेष न्यायिक दृष्टान्तों का भी सावधानीपूवर्पक अवलोकन किया ।
8. परिवादीगण अजमेर के रहनेवाले है और अप्रार्थीगण का ब्रान्च आफिस अजमेर में स्थित है । परिवादीगण द्वारा अप्रार्थीगण के आफिस से जरिए नेट सेवाएं ली गई है । अप्रार्थीगण ने अपने जवाब में इस तथ्य का उल्लेख नहीं किया है कि परिवादीगण ने अप्रार्थीगण से किस स्थान से सेवाएं ली थी और भुगतान किस माध्यम से किया गया था । यह सही है कि अप्रार्थीगण की ओर से यह अवष्य कहा गया है कि अजमेर स्थित उनके ब्रान्च आफिस से कोई लेन देन नहीं हुआ और ना ही कोई सेवाए ली गई । हम अप्रार्थीगण द्वारा उठाई गई इस आपत्ति से सहमति प्रकट नहीं करते है क्योंकि टिकिट इण्टरनेट के माध्यम से भुगतान करने के उपरान्त खरीदे गए है । माननीय उच्चतम न्यायालय ने ।प्त् 1994 ैब्1428 स्नबादवू क्मअमसवचउमदज ।नजीवतपजल टे डण्ज्ञण्ळनचजं में यह सिद्वान्त प्रतिपादित किया है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम,1986 के प्रावधान उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए ही लागू किए गए है । परिवादीगण की ओर से जो न्यायिक दृष्टान्त पेष हुए है उसमें यह बात स्पष्ट रूप से कही गई है कि कोई भी उपभोक्ता परिवाद उस स्थान पर पेष कर सकता है जहां पर कान्ट्रेक्ट किया गया हो अथवा अप्रार्थीगण रहने वाले हो अथवा उनका वहां पर ब्रान्च आफिस हो । माननीय मेघालय राज्य आयोग ने अपने निर्णय (उपरोक्त) के पैरा संख्या 21 में कहा है कि -’’प्ज बंद इम ेममद ंज ं हसंदबम जीम ब्ण्च्ए ।बज ेचमबपपिमे जीम दवतउे व िकमबपकपदह जीम रनतपेकपबजपवद ;ंद्ध ूीमतम जीम ेमससमतध् ेमतअपबम चतवअपकमत तमेपकमे वत बंततपमे वद इनेपदमेे वत ींे ं इतंदबी वििपबम वत ;इद्ध ूीमतम जीम बंनेम व िंबजपवद ंतपेमेण् ठनज पज पे दवज ेचमबपपिब पद तमेचमबज व िजतंदेंबजपवदे वअमत जीम पदजमतदमक ंदक पज ंिससे नचवद ने जव ेमजजसम जीम पेेनम’’ इस न्यायिक दृष्टान्त में माननीय राज्य आयोग, मेघालय ने यह कहा है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत किसी भी उपभोक्ता को सेवा प्रदाता के निवास स्थान जहां पर वह निवास करता है अथवा जहां पर उसका ब्रान्च आफिस है और जहां पर वादकारण उत्पन्न होता है उनमें से किसी एक स्थान पर परिवाद लाया जा सकता है । अप्रार्थीगण की ओर से जो न्यायिक दृष्टान्त पेष हुए है उनका भी हमने गम्भीरतापूर्वक अवलोकन किया । हम उनमें प्रतिपादित सिद्वान्त से सहमति प्रकट करते है किन्तु तथ्यों की भिन्नता के कारण पेष किए गए न्यायिक दृष्टान्त उन्हें कोई लाभ नहीं पहुंचाते है । चूंकि परिवादीगण अजमेर के रहनेवाले है और अप्रार्थी का ब्रान्च आफिस भी अजमेर में स्थित है तथा सेवाएं इन्टरनेट के माध्यम से प्राप्त की गई है ।
9. इस प्रकार उपरोक्त विवेचन के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे है कि अजमेर स्थित इस मंच को इस परिवाद को सुनने की ़क्षेत्राधिकारिता प्राप्त है । इस प्रकार अप्रार्थीगण की ओर से उठाई गई यह आपत्ति सारहीन है ।
10. अप्रार्थीगण की ओर से यह भी बहस की गई कि अप्रार्थीगण ने परिवादीगण केा कभी भी इस बात के लिए आष्वास्त नहीं किया कि दोनों का टूरिस्ट वीजा बनवा देगें और कोई बाधा नही आएगी । अप्रार्थीगण का कार्य तो केवल वीजा आवेदन एम्बेसी में प्रस्तुत करना होता है । परिवादीगण ने बार बार मांग किए जाने के उपरान्त भी अपूर्ण दस्तावेज उपलब्ध कराए । इस प्रकार परिवादीगण को सम्पूर्ण दस्तावेज उपलब्ध कराने के लिए कहा गया और यह भी कहा गया कि यदि पूर्ण दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए गए तो वीजा बनना सम्भव नहीं है । अप्रार्थीगण ने मंच के समक्ष पेष किए गए अपने जवाब में इस बात को स्वीकार किया है कि परिवादी संख्या 1 ने दिनांक 25.9.2012 को वांछित पूर्ण दस्तावेज उपलब्ध कराए जिस पर अप्रार्थी संख्या 1 ने परिवादीगण का वीजा आवेदन प्रस्तुत किया । अप्रार्थीगण ने यह स्पष्ट कर दिया था कि आवेदन देरी से पेष किए जाने पर वीजा मिलना सम्भव नहीं है वीजा देना या नहीं देना ऐम्बेसी का काम है । इस संबंध में अप्रार्थीगण की कोई भूमिका नहीं है ।
11. हम अप्रार्थीगण की ओर से उठाई गई इस आपत्ति से भी सहमति प्रकट नहीं करते है क्योंकि परिवादीगण द्वारा अप्रार्थीगण को दिनांक 25.9.2012 को समस्त दस्तावेज उपलब्ध करा दिए गए थे उसके प्ष्चात् भी यदि एम्बेसी के द्वारा वीजा दिया जाना सम्भव नहीं था तो वे इस बात की सूचना परिवादीगण को करते परन्तु अप्रार्थीगण की ओर से ऐसी कोई सूचना परिवादीगण को दी गई हो यह पत्रावली से स्पष्ट नहीं है । चूंकि अप्रार्थीगण सेवाप्रदाता की परिभाषा में आते है तो उनका दायित्व था कि वे परिवादीगण को समय पर वीजा उपलब्ध कराते और वीजा उपलब्ध नहीं होने की अवस्था में वे उन्हें जरिए नेट/ रजिस्टर्ड पत्र या अन्य किसी माध्यम से सूचना करते परन्तु अप्रार्थीगण द्वारा अपने इस दायित्व का सहीं प्रकार से निर्वहन नहीं किया गया है जिस कारण परिवादीगण ग्ग् थ्प्ळव् ॅवतसक ब्वदहतमेे व िळलदमबवसवहल ंदक व्इेजमजतपबे बवदमितमदबम रोम(इटली) में समय पर वीजा नहीं मिलने से सम्मिलित नहीं हो सके । अप्रार्थीगण का यह कृत्य सेवा में कमी की परिभाषा के अन्तर्गत आता है ।
12. परिवादीगण अपने परिवाद में कह कर आए है कि उन्होने अप्रार्थीगण से सेवाए प्राप्त करने के लिए उन्हें रू. 2,41,000/- का भुगतान किया था । जिनमें से परिवादीगण ने मात्र रू. 47,000/- माह-फरवरी, 2013 में लौटाए है षेष रू. 1,94,000/- की राषि बकाया है । चूंकि अप्रार्थीगण की ओर से सेवा में कमी किया जाना प्रमाणित है । अतः वे परिवादीगण को उनसे ली गई सम्पूर्ण राषि रू. 1,94,000/- मंे से प्रोसेस चार्जेज के रू. 1000/- काटकर रू. 1,93,000/- लौटाने के लिए बाध्य है । परिणामस्वरूप परिवादीगण का परिवाद स्वीकार किए जाने योग्य है ।
:ः- आदेष:ः-
13. अतः परिवादीगण का परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्व स्वीकार किया जा कर अप्रार्थीगण को यह आदेष दिया जाता है कि वे परिवादीगण को उनके द्वारा जमा कराई गई षेंष राषि रू. 1,93,000/- आदेष से एक माह में लौटावे अन्यथा इस राषि पर परिवाद पेष करने की तिथी से 9 प्रतिषत की दर से ब्याज अदा करें । साथ ही अप्रार्थीगण परिवादीगण को परिवाद व्यय व मानसिक संताप के लिए रू. 10,000/- भी उक्त अवधि में अदा करें अथवा आदेषित राषि डिमाण्ड ड््राफट से परिवादीगण के पते पर रजिस्टर्ड डाक से भिजवावें ।
आदेष दिनांक 23.02.2016 को लिखाया जाकर सुनाया गया ।
(श्रीमती ज्योति डोसी) ( महेन्द्र कुमार अग्रवाल )
सदस्या अध्यक्ष