जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद।
उपस्थित - (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
(2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य
परिवाद सं0-269/2014
लक्ष्मीकान्त सिंह पुत्र स्व0 श्री जगन्नाथ सिंह निवासी 3/4/3, तिलाई राज कोठी टेलीफोन एक्सचेन्ज के पीछे अयोध्या, फैजाबाद। .............. परिवादी
बनाम
1. उ0प्र0 राज्य सड़क परिवहन निगम द्वारा प्रबन्ध निदेषक, उ0प्र0 राज्य सड़क परिवहन निगम, लखनऊ।
2. क्षेत्रीय प्रबन्धक, उ0प्र0 राज्य सड़क परिवहन निगम उ0प्र0, लाजपत नगर षहर व जिला फैजाबाद।
3. क्षेत्रीय प्रबन्धक, उ0प्र0 राज्य सड़क परिवहन निगम दैनिक जागरण कार्यालय के पास जनपद, गोरखपुर। .......... विपक्षीगण
निर्णय दिनाॅंक 19.10.2015
उद्घोशित द्वारा: श्री विश्णु उपाध्याय, सदस्य।
निर्णय
परिवादी के परिवाद का संक्षेप इस प्रकार है कि परिवादी वरिश्ठ नागरिक है तथा उसकी आयु लगभग 78 वर्श है। परिवादी वर्श 1967 में राजकीय सेवा में स्थापित हुआ और सेवा निवृत्ति के बाद भी परिवादी का संबन्ध अयोध्या नगरी से बना हुआ है। परिवादी का पैतिृक निवास देवरिया है, इसलिये प्रत्येक माह एक या दो बार परिवादी देवरिया से अयोध्या निष्चित रुप से रोडवेज बस द्वारा आता है। विपक्षीगण की सेवा में खोट है क्यों कि अयोध्या आने जाने वाले बस यात्रियांे के लिये नेषनल हाई वे पर अयोध्या में सरजू पुल बनने के बाद से समस्या षुरु हुई। विपक्षीगण का स्पश्ट आदेष है कि अयोध्या हो कर आने जाने वाली सभी बसें अयोध्या नया घाट बस स्टेषन हो कर ही आया जाया करेंगी, परन्तु सभी बसों के चालक परिचालक यात्रियों की सुविधा को दर किनार कर, अपनी सुविधा तथा अपने लिये डीजल की बचत को दृश्टिगत रखते हुए नेषनल हाई वे पर ही पुल के नीचे यात्रियों को बस से उतरने के लिये मजबूर करते हैं। जहां से सामान आदि लाद कर लगभग डेढ़ किलो मीटर की दूरी यात्री पैदल या रुपये 30/- से 40/- रिक्षा भाड़ा दे कर अयोध्या नयाघाट बस स्टेषन पहुंचते हैं, जब कि बस स्टेषन तक का किराया बस टिकट के माध्यम से भुगतान किया जा चुका होता है। केवल फैजाबाद डिपो की बसें इस त्रासदी का अपवाद हैं। वे बसें जिनके पास नाम मात्र की सवारियां होती हैं सवारियां भरने के उद्देष्य से नयाघाट बस स्टेषन जाते हैं। प्रत्येक यात्रा में परिवादी का इस विशय पर चालक व परिचालक से वाद विवाद होता है और परिवादी को अकारण ही मानसिक रुप से प्रताडि़त होना पड़ता है। कई बार तो यात्राओं में क्षेत्रीय प्रबन्धक या सहायक प्रबन्धक से टेलीफोन पर संपर्क करके परिचालक को नयाघाट अयोध्या बस स्टेषन जाने के लिये आदेष दिलवाना पड़ता है। घोर निराषा की बात है कि इस त्रासदी का ज्ञान संज्ञान परिवहन निगम के सभी अधिकारियों को है, फिर भी निगम इसका विकल्प नहीं दे पा रहा है। इसी क्रम में क्षेत्रीय प्रबन्धक गोरखपुर को परिवादी ने एक लिखित षिकायत कर के गोरखपुर डिपो चालक परिचालक को पंाच पंाच सौ रुपये से दंडित करवा चुका है। राप्तीनगर डिपो की बस के चालक परिचालक को भी रुपये दो दो सौ से दंडित करवा चुका है। परन्तु विपक्षीगण की खोट दूर दूर तक खतम होने का नाम नहीं ले रही है। गोरखपुर डिपो के चालक व परिचालक के विरुद्ध दण्डादेष अधिक पुराना होने के कारण साक्ष्य उपलब्ध नहीं है, किन्तु राप्तीनगर डिपो के चालक परिचालक के विरुद्ध हुई कार्यवाही के साक्ष्य दाखिल किये जा रहे हैं। विपक्षीगण की बस सेवा अयोध्या आने वाले यात्रियों के लिये अभिषाप हो गयी है। सबसे पहले अयोध्या जाने वाले यात्रियों से कहा जाता है कि यह बस अयोध्या नहीं जायेगी, जो यात्री अनभिज्ञ हैं वह बिना विरोध के बाईपास पर उतर जाते हैं और डेढ़ किलोमीटर अपना सामान लाद कर अयोध्या नयाघाट बस स्टेषन पहुंचते हैं। परन्तु जो जागरुक नागरिक हैं उनसे वाद विवाद षुरु हो जाता है और नौबत मारपीट तक आ जाती है। चालकों परिचालकों के इस कृत्य से प्रति दिन सैकड़ों यात्री प्रताडि़त होते हैं और चालक परिचालक अपनी कुटिलता के कारण 3-4 किलो मीटर के डीजल की बचत अपनी जेब में डाल लेते हैं। बस यात्रियों की इस त्रासदी का संज्ञान डिपो से लेकर षासन तक है और प्रकरण कई बार मीडिया में भी आ चुका है, परन्तु विपक्षीगण अपने आदेष का अनुपालन किन कारणों से नहीं करा पाते यह एक अनबूझ पहेली है। परिवादी कई बार चालकों व परिचालकों को दण्डित करवा चुका है। इसके बावजूद परिवादी दिनांक 28-08-2014 को गोरखपुर डिपो की बस संख्या यू पी 53 सी टी 5871 पर लगभग 12 बजे अयोध्या जाने के लिये गोरखपुर से बैठा। अयोध्या पुल पार करने के बाद परिचालक ने अयोध्या जाने वाले यात्रियों को उतरने का आदेष दिया। परिवादी ने परिचालक से कहा कि में तो अयोध्या बस स्टेषन पर ही उतरता हूं और प्रत्येक माह एक या दो बार अयोध्या आता हंू, जो चालक परिचालक अयोध्या नयाघाट नहीं जाते हैं उन्हें दण्डित भी करवा चुका हूं, वाद विवाद बढ़ाने से अच्छा है कि अयोध्या नयाघाट बस स्टेषन चलिये, इस पर परिचालक ने कहा, जो कुछ करना है कर लीजिये पहले बस से उतरिए, तो परिवादी ने कहा बाईपास पर उतरने का प्रष्न ही नहीं है फैजाबाद का टिकट बनाइये, फैजाबाद चलंूगा और वहां आपकी षिकायत करने के बाद अयोध्या जाऊंगा। परिचालक ने परिवादी का फैजाबाद का टिकट बनाया। फैजाबाद पहुंच कर परिवादी काफी मषक्कत के बाद षिकायत पुस्तिका प्राप्त कर सका और फैजाबाद डिपो में षिकायत पंजिका में दिनांक 28.08.2014 को लगभग 3.30 बजे अपनी षिकायत अंकित की, फिर फैजाबाद से रुपये 15/- आटो का किराया दे कर वापस अयोध्या आया। साल में औसतन 20 यात्रा परिवादी को अयोध्या की करनी पड़ती हैं और हर बार यही प्रताड़ना सहन करनी पड़ती हैं। इसलिये परिवादी को अपना परिवाद दाखिल करना पड़ा। विपक्षीगण को आदेषित किया जाये कि वह या तो बाईपास पर बस स्टेषन बनायें या बसों को अयोध्या नयाघाट बस स्टेषन पर जाने के लिये अपने आदेष का कड़ाई से पालन करवायें। परिवादी को विपक्षीगण से क्षतिपूर्ति रुपये 1,00,000/- दिलायी जाय।
फोरम से विपक्षीगण को पंजीकृत नोटिस भेजे गये। विपक्षीगण को भेजे गये रजिस्ट्री लिफाफे वापस नहीं आये, इस प्रकार विपक्षीगण पर तामील पर्याप्त मानते हुए विपक्षीगण के विरुद्ध परिवाद की सुनवाई एक पक्षीय रुप से सुने जाने का आदेष दिनांक 31.01.2015 को किया गया। निर्णय के पूर्व तक विपक्षीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ और न ही कोई रिकाल प्रार्थना पत्र दिया।
पत्रावली का भली भंाति परिषीलन किया। परिवादी द्वारा दाखिल साक्ष्यों व प्रपत्रों का अवलोकन किया। परिवादी ने अपने कथन के समर्थन में विपक्षीगण के कार्यालय आदेष दिनांक 19.11.2013 की छाया प्रति दाखिल की है जिसमें विपक्षीगण विभाग द्वारा चालक व परिचालक पर रुपये 200 - 200 का जुर्माना लगाया है, लेकिन जुर्माने की धनराषि परिवादी को नहीं दी गयी। परिवादी ने गोरखपुर से अयोध्या व अयोध्या से फैजाबाद के टिकट की छाया प्रति दाखिल की है जो परिवादी के कथन को प्रमाणित करती है। परिवादी ने विपक्षीगणों को अपनी चार लिखित षिकायतों की छाया प्रति व कार्बन प्रतियां दाखिल की हैं। बस कन्डक्टर ने परिवादी को अयोध्या नयाघाट बस स्टेषन पर नहीं उतारा और बाईपास पुल के पास उतरने का निर्देष दिया। इस प्रकार विपक्षीगण की सेवा में घोर कमी प्रमाणित होती है। परिवादी अपना परिवाद प्रमाणित करने में सफल रहा है। विपक्षीगण परिवादी को क्षतिपूर्ति देने के लिये उत्तरदायी हैं। परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरुद्ध अंाषिक रुप से स्वीकार एवं अंाषिक रुप से खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरुद्ध आंषिक रुप से स्वीकार एवं आंषिक रुप से खारिज किया जाता है। विपक्षीगण परिवादी को क्षतिपूर्ति के मद में रुपये 3,000/- का भुगतान आदेष की दिनांक से 30 दिन के अन्दर करें। निर्धारित अवधि 30 दिन में भुगतान न करने पर विपक्षीगण परिवादी को रुपये 3,000/- पर आदेष की दिनांक से तारोज वसूली की दिनांक तक 9 प्रतिषत साधारण वार्शिक ब्याज का भी भुगतान करेंगे।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 19.10.2015 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष