जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ।
परिवाद संख्या-109/2015
उपस्थित:-श्री अरविन्द कुमार, अध्यक्ष।
श्री अशोक कुमार सिंह, सदस्य।
परिवाद प्रस्तुत करने की तारीख:-02.05.2015
परिवाद के निर्णय की तारीख:-16.01.2021
1.पी0एल0दीक्षित पुत्र स्व0 आर0पी0 दीक्षित निवासी एस.एस. 361, सेक्टर-जी, एल0डी0ए0 कालोनी, लखनऊ।
2-श्रीमती श्यामा दीक्षित पत्नी श्री पी0एल0दीक्षित निवासी एस.एस. 361, सेक्टर-जी, एल0डी0ए0 कालोनी, लखनऊ। ...............परिवादीगण।
बनाम
मध्यांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, विद्युत नगरीय वितरण खण्ड, कानपुर रोड, टाईप-4/97, इन्द्रलोक हाइडिल कालोनी, लखनऊ द्वारा-अधिशासी अभियन्ता।
.............विपक्षी।
आदेश द्वारा-श्री अशोक कुमार सिंह, सदस्य।
निर्णय
परिवादीगण ने प्रस्तुत परिवाद विपक्षी से 3100.00 रूपये मय ब्याज, गलत बिल दिनॉंकित 21.03.2013 को निरस्त कर संशोधित बिल देने एवं अधिक जमा धनराशि वापस दिलाने एवं दोषपूर्ण सेवाओं एवं अनुचित व्यापार के कारण परिवादीगण को हुए मानसिक, शारीरिक कष्ट एवं आर्थिक क्षतिपूर्ति 50,000.00 रूपये तथा वाद व्यय 11,000.00 रूपये दिलाये जाने की प्रार्थना के साथ प्रस्तुत किया है।
संक्षेप में परिवाद के कथन इस प्रकार हैं कि परिवादी संख्या 01 विद्युत विभाग का सेवानिवृत्त लाइनमैन है तथा विपक्षी की अवैधानिक कारगुजारियों से भलि-भॉति अवगत है। परिवादी संख्या 01 ने विपक्षी के यहॉं से एक अस्थायी विद्युत कनेक्शन अपनी पत्नी परिवादी संख्या 0 के नाम से भवन निर्माण हेतु वांछित धनराशि जमा करके दिनॉंक 22.02.2013 को लिया था। दिनॉंक 22.02.2013 को ही विपक्षी द्वारा परिवादीगण के परिसर भूखण्ड एस.एस. 361 सेक्टर-जी, एल0डी0ए0 कालोनी लखनऊ पर अस्थायी विद्युत कनेक्शन दो किलोवाट का मीटर स्थापित कर विद्युत संयोजित किया गया। विद्युत द्वारा अस्थायी संयोजन हेतु 6220.00 रूपये जमा करवाये गये थे जिसमें सिक्योरिटी धनराशि 2500.00 रूपये भी जमा करवाया था जो अस्थायी कनेक्शन की समाप्ति के बाद रिफन्डेबल था। माह जुलाई 2013 में परिसर में लगे अस्थायी विद्युत संयोजन को समाप्त कर मीटर केबिल विपक्षी द्वारा उतार लिया गया था। परिवादी संख्या 01 जब अपना अस्थायी विद्युत संयोजन का बिल बनवाने गया तो विपक्षी द्वारा 1697.00 रूपये का विद्युत बिल बनाया गया जिस पर परिवादी ने आपत्ति की और कहा कि उसने उक्त अस्थायी विद्युत संयोजन माह फरवरी 2013 में लिया है तो परिवादी को यह कह कर वापस कर दिया गया कि उसी दिन सहायक अभियन्ता व अधिशासी अभियन्ता का स्थानान्तरण हो गया अत: बिल संबंधी कार्यवाही संभव नहीं है। अत: परिवादी तीन दिन बाद आये। परिवादी जब तीन दिन बाद विद्युत बिल जमा करने पहुँचा तो उसका बिल संशोधित किये जाने एवं सिक्योरिटी धनराशि वापस किये जाने हेतु सिक्योरिटी की रसीद यह कहते हुए जमा करा ली गयी कि अभी 1697.00 रूपये जमा कर दें बाद में बिल सही कर उसकी सिक्योरिटी धनराशि वापस कर दी जायेगी। परिवादी ने दिनॉंक 17.07.2013 को 1697.00 रूपये विपक्षी के यहॉं जमा कर दिये। परिवादी ने नव निर्मित भवन पर स्थायी संयोजन दिये जाने हेतु याचना की जिस पर विपक्षी ने परिवादी संख्या 01 से 600.00 रूपये जमा करने हेतु कहा जिस पर परिवादी द्वारा आपत्ति की गयी कि विभागीय कर्मचारियों द्वारा विद्युत संयोजन लिये जाने पर कोई भी धनराशि जमा नहीं करायी जाती है, परन्तु विपक्षी नहीं माने। मजबूरन परिवादी ने 600.00 रूपये दिनॉंक 25.07.2013 को जमा कर विद्युत संयोजन प्राप्त कर लिया। विपक्षी को अवैध धनराशि अदा नहीं किया जिसके कारण विपक्षी द्वारा दी जाने वाली सेवा में कमी तथा अनुचित व्यापार व्यवहार अपनाते हुए गलत एवं मनमाना अस्थायी संयोजन का विद्युत बिल उसे दिया गया एवं संशोधित नहीं किया गया तथा उसकी सिक्योरिटी धनराशि 2500.00 रूपये भी नहीं लौटाये ये तथा उससे 600.00 रूपये गलत जमा करा लिये गये। परिवादी संख्या 01 ने विपक्षी की दोषपूर्ण कार्यवाहियों से क्षुब्ध होकर कई प्रार्थना पत्र दिनॉंक 21.10.2013, 26.03.2014 एवं सूचना का अधिकार के अन्तर्गत दिनॉंक 09.09.2013, 17.01.2014 को सूचनाऍं आदि मॉंगी जिसका उत्तर विपक्षी द्वारा दिया गया है, परन्तु परिवादीगण का बिल संशोधित नहीं किया गया। विपक्षी के अधिशासी अभियन्ता द्वारा स्वयं ही लिख कर दिया गया है कि विभागीय कर्मचारियों द्वारा कनेक्शन लेने पर कोई धनराशि जमा नहीं होती है।
विपक्षी के विरूद्ध एकपक्षीय कार्यवाही चल रही है।
पत्रावली पर उपलब्ध तथ्यों एवं साक्ष्यों के अवलोकन से प्रतीत होता है कि परिवादी द्वारा अपने एल0डी0ए0 कालोनी के आवास निर्माण हेतु 02 किलोवाट का मीटर स्थापित कर विद्युत संयोजन लिया गया जिसके लिये परिवादी से 6220.00 रूपये विपक्षी द्वारा जमा कराये गये जिसमें 2500.00 रूपये सिक्योरिटी का था जो रिफन्डेबल था। उक्त संयोजन माह जुलाई 2013 में समाप्त कर मीटर केबल विपक्षी द्वारा उतार लिया गया और 1697.00 रूपये का बिल दिया गया जो परिवादी ने जमा कर दिया। परन्तु विपक्षी द्वारा सिक्योरिटी की धनराशि परिवादी को वापस नहीं की गयी। पुन: विपक्षी द्वारा परिवादी के भवन में स्थायी संयोजन हेतु 600.00 रूपये मॉंगे गये तो परिवादी द्वारा वह भी जमा कराकर स्थायी संयोजन प्राप्त किया गया। परिवादी द्वारा संलग्न अधिशासी अभियन्ता के पत्र दिनॉंकित 06 जनवरी, 2014 से स्पष्ट होता है कि विभागीय अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा विद्युत कनेक्शन लेने पर कोई धनराशि जमा नहीं होती है। इसके अतिरिक्त गूगल सर्च करने पर यह ज्ञात हुआ कि उत्तर प्रदेश में विद्युत विभाग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को अत्यधिम छूट प्रदान करते हुए असीमित तथा बेहिसाब विद्युत, नाममात्र मासिक भुगतान पर दी जाती है। ऐसी परिस्थिति में परिवादी से स्थायी संयोजन की सिक्योरिटी धनराशि 2500.00 रूपये जो विपक्षी द्वारा ली गयी है वापस न करना तथा स्थायी कनेक्शन लेते समय धनराशि जमा करना अधिशासी अभियन्ता के पत्र में उल्लिखित व्यवस्था एवं गूगल सर्च में पायी गयी व्यवस्था के विपरीत है एवं उत्पीड़नात्मक कार्य है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि विद्युत विभागु द्वारा मनमाने ढंग से उपभोक्ताओं से धनराशि प्राप्त की जाती है, जिससे उपभोक्ता परेशान होता है। ऐसी परिस्थिति में परिवादी के परिवाद में बल प्रतीत होता है और परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षी को निर्देश दिया जाता है कि वह परिवादी को मुबलिग 3100.00 (तीन हजार एक सौ रूपया मात्र) जो बिल में अधिक जमा करायी गयी धनरशि, 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ वाद दायर करने की तिथि से, 45 दिन के अन्दर अदा करें। मानसिक, शारीरिक कष्ट की क्षतिपूर्ति के लिये मुबलिग 10,000.00 (दस हजार रूपया मात्र) तथा वाद व्यय के लिये मुबलिग 5,000.00 (पॉंच हजार रूपया मात्र) भी अदा करेंगे। यदि उपरोक्त आदेश का अनुपालन निर्धारित अवधि में नहीं किया जाता है तो उपरोक्त सम्पूर्ण राशि पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भुगतेय होगा।
(अशोक कुमार सिंह) (अरविन्द कुमार)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।