राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-146/2018
(मौखिक)
(जिला उपभोक्ता फोरम, बस्ती द्वारा परिवाद संख्या 118/2017 में पारित आदेश दिनांक 18.11.2017 के विरूद्ध)
दिलीप कुमार पुत्र बंश बहादुर लाल निवासी रौतापार विवेकानन्द कालोनी पोस्ट गॉंधी नगर जिला बस्ती।
...................अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
1. अधिशासी अभियन्ता विद्युत वितरण खण्ड प्रथम बस्ती
2. उपखण्ड अधिकारी प्रथम पूर्वांचल वितरण खण्ड बस्ती
................प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री राज कुमार गोस्वामी,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 26.09.2018
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-118/2017 दिलीप कुमार बनाम अधिशासी अभियन्ता विद्युत वितरण खण्ड प्रथम बस्ती व एक अन्य जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, बस्ती ने आदेश दिनांक 18.11.2017 के द्वारा परिवाद कालबाधा के आधार पर पोषणीय न मानकर निरस्त कर दिया है, जिससे क्षुब्ध होकर परिवाद के परिवादी दिलीप कुमार की ओर से यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत इस आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
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अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री राज कुमार गोस्वामी उपस्थित आए हैं। प्रत्यर्थीगण की ओर से नोटिस तामीला के बाद भी कोई उपस्थित नहीं हुआ है।
मैंने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय व आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपीलार्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय धारा-24ए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के प्राविधान के विरूद्ध है। जिला फोरम ने परिवाद ग्रहण करने के बाद अन्तिम निर्णय में परिवाद को कालबाधित मानकर खारिज कर दिया है, जिससे अपीलार्थी/परिवादी को धारा-24ए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत परिवाद प्रस्तुत करने में हुए विलम्ब का स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने का अवसर नहीं मिला है। अत: जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित आदेश अपास्त कर अपीलार्थी/परिवादी को जिला फोरम के समक्ष परिवाद प्रस्तुत करने में हुए विलम्ब को क्षमा करने हेतु प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करने का अवसर दिया जाना आवश्यक है।
मैंने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क पर विचार किया है।
अपील के निर्णय हेतु धारा-24ए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 महत्वपूर्ण है, जिसे नीचे अंकित किया जा रहा है:-
24-A.Limitation period. - (1) The District Forum, the State Commission or the National Commission shall not admit a
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complaint unless it is filed within two years from the date on which the cause of action has arisen.
(2) Notwithstanding anything contained in sub-section (1), a complaint may be entertained after the period specified in sub-section (1), if the complainant satisfies the District Forum, the State Commission or the National Commission, as the case may be, that he had sufficient cause for not filing the complaint within such period:
Provided that no such complaint shall be entertained unless the National Commission, the State Commission or the District Forum, as the case may be, records its reasons for condoning such delay.
धारा-24ए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की उपधारा-1 में प्राविधान है कि परिवाद वाद हेतुक उत्पन्न होने की तिथि से दो साल के अन्दर प्रस्तुत किया जाएगा। इसके साथ ही धारा-24ए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की उपधारा-2 में प्राविधान है कि उपधारा-1 में उल्लिखित समय-सीमा के बाद भी परिवाद ग्रहण किया जा सकता है यदि परिवादी फोरम को सन्तुष्ट कर देता है कि परिवाद प्रस्तुत करने में हुए विलम्ब का समुचित कारण है। धारा-24ए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की उपधारा-2 के परन्तुक में यह प्राविधान है कि कोई परिवाद तब तक ग्रहण नहीं किया जाएगा जब तक जिला फोरम, राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग जैसी भी स्थिति हो, विलम्ब क्षमा किए जाने के कारणों को अभिलिखित न करे।
धारा-24ए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के प्राविधान से यह स्पष्ट है कि उपधारा-1 में निर्धारित समय-सीमा के बाद प्रस्तुत
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परिवाद तभी ग्रहण किया जाएगा जब जिला फोरम अभिलिखित कारणों से सन्तुष्ट हो कि विलम्ब हेतु पर्याप्त कारण है, परन्तु वर्तमान परिवाद में जिला फोरम ने धारा-24ए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के प्राविधान का पालन नहीं किया है और परिवाद कालबाधित होने के बाद भी विलम्ब क्षमा किए बिना उसे ग्रहण किया है और उसके बाद अन्तिम निर्णय के समय कालबाधा के आधार पर उसे निरस्त कर दिया है, जिससे अपीलार्थी/परिवादी परिवाद प्रस्तुत करने में हुए विलम्ब को क्षमा करने हेतु प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करने व विलम्ब का कारण दर्शित करने के अवसर से वंचित हुआ है। ऐसी स्थिति में मैं इस मत का हूँ कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित आदेश धारा-24ए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के प्राविधान के विरूद्ध है। अत: उसे निरस्त कर यह प्रकरण जिला फोरम को इस निर्देश के साथ प्रत्यावर्तित किया जाना उचित है कि जिला फोरम अपीलार्थी/परिवादी को धारा-24ए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की उपधारा-2 के अनुसार परिवाद प्रस्तुत करने में हुए विलम्ब को क्षमा करने हेतु प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करने व विलम्ब का कारण दर्शित करने का अवसर देकर उभय पक्ष को सुनवाई का अवसर प्रदान करे और पुन: विधि के अनुसार आदेश पारित करे।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित आदेश अपास्त किया जाता है तथा यह प्रकरण जिला फोरम को इस निर्देश के साथ प्रत्यावर्तित
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किया जाता है कि जिला फोरम अपीलार्थी/परिवादी को परिवाद प्रस्तुत करने में हुए विलम्ब को क्षमा करने हेतु धारा-24ए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की उपधारा-2 के अन्तर्गत प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करने व विलम्ब का कारण दर्शित करने का अवसर देकर उभय पक्ष को सुनवाई का अवसर प्रदान करे और पुन: विधि के अनुसार आदेश पारित करे।
अपीलार्थी जिला फोरम के समक्ष दिनांक 05.11.2018 को उपस्थित हों।
उभय पक्ष अपील में अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1