Uttar Pradesh

Lucknow-I

CC/201/2008

ASHOK TRIVEDI - Complainant(s)

Versus

UPPCL - Opp.Party(s)

23 Sep 2017

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. CC/201/2008
 
1. ASHOK TRIVEDI
.
...........Complainant(s)
Versus
1. U.P.P.C.L
.
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. ARVIND KUMAR PRESIDENT
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
Dated : 23 Sep 2017
Final Order / Judgement
                                                    जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-प्रथम, लखनऊ।
                                                                     परिवाद संख्याः-201/2008
 
                                                                        उपस्थितः-श्री अरविन्द कुमार, अध्यक्ष।
                                                                                       श्रीमती स्नेह त्रिपाठी, सदस्य।
   
दिनाॅंकः-23 सितम्बर, 2017 
 
अशोक त्रिवेदी आयु लगभग 54 वर्ष पुत्र स्व0 रामशंकर त्रिवेदी निवासी-8 शास्त्री नगर, लखनऊ।
                                                                                                                                       ....परिवादी।
                                                           बनाम
1-उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लि0, शक्ति भवन लखनऊ द्वारा प्रबन्ध निदेशक।
 
2-अधिशासी अभियन्ता, विद्युत नगरीय वितरण खण्ड ऐशबाग, लखनऊ।
 
3-सब डिवीजन आफिसर, ऐशबाग, खण्ड लखनऊ।
 
4-जूनियर इंजीनियर, ऐशबाग खण्ड, लखनऊ। 
                                                                .....विपक्षीगण।
 
                                                                                   निर्णय
परिवादी ने यह परिवाद विपक्षीगण द्वारा निर्गत नोटिस दिनाॅंकित 27.03.2008 को निरस्त कर, 50,000/-रूपये क्षतिपूर्ति दिलाये जाने की प्रार्थना के साथ प्रस्तुत किया है।
                      संक्षेप में परिवाद के कथन इस प्रकार है कि परिवादी घरेलू विद्युत संयोजन संख्या-5358, कनेक्शन संख्या 66462, मीटर संख्या डब्ल्यू0ओ07913 का नियमित उपभोक्ता है और वह अपना विद्युत प्रभार नियमानुसार अदा करता रहा है। जो आवेदक पिता स्व0 रामशंकर त्रिवेदी के नाम से था। जिनकी मृत्यु दिनाॅंक 27.06.2000 को हुई। परिवादी के आवास में पूर्व मीटर संख्या-पी 61018 बुक संख्या-5358 एवं कनेक्शन संख्या-66462 था जिसका भुगतान परिवादी के पिता अपने जीवनकाल तक करते रहे। परिवादी के उक्त मीटर संख्या 61018 बुक संख्या 5358, कनेक्शन संख्या 66462 को विद्युत विभाग के अधिकारियों द्वारा सहायक अभियन्ता (मीटर) के आदेश से दिनाॅंक 10.01.2008 को इलेक्ट्रानिक्स मीटर संख्या डब्लू0ओ0 7913 से बदल दिया गया और उक्त नया संयोजित मीटर सीलिंग परिवादी को मौके पर प्रदान कर दिया गया। परिवादी के घरेलू मीटर संख्या डब्लू0ओ0 7913 से संबंधित विद्युत बिल दिनाॅंक 10.01.2008 से 04.02.2008 तक की राशि 898/-रूपये का भुगतान दिनाॅंक 06.02.2008 को किया गया, जिसकी रसीद संख्या-31692941 है (संलग्नक-1)। उक्त बिल में कोई भी बकाया राशि अंकित नहीं थी। दिनाॅंक 24.03.2008 को परिवादी को विद्युत संयोजन बिल प्राप्त हुआ जो दिनाॅंक 04.02.2008 से   04.03.2008 तक का था, पर उपभोग राशि 1027/-रूपये अतिरिक्त अवशेष बकाया मूल्य 70277/-रूपये एवं सरचार्ज 527/-रूपये दर्शाया गया था, जबकि उसके पहले के बिल में कोई भी बकाया राशि शेष नहीं थी (संलग्नक-2) है। परिवादी ने जेई तिवारी से संपर्क कर बिल संशोधन हेतु प्रार्थना की। परिवादी ने अधिशासी अभियन्ता से भी मिलने का प्रयास किया,  उनकी अनुपस्थिति में परिवादी ने लिखित आवेदन कर्मचारी को देकर चला आया। दिनाॅंक 28.03.2008 को अवर अभियन्ता ने एक नोटिस पत्रांक 728 दिनाॅंक 27.03.2008 और हस्तलिपि में बना हुआ विद्युत बिल जो दिनाॅंक 19.02.2008 से 20.03.2008 तक का था, जिसमें राशि 1,72407/-रूपये दिखायी गयी थी, को परिवादी की पत्नी को दिया ओर कहा गया कि 72 घन्टे में यदि सम्पूर्ण धनराशि जमा नहीं की गयी तो विद्युत संयोजन काट देंगे (संलग्नक-3) है। परिवादी ने उक्त नोटिस पाने के बाद दिनाॅंक 29.03.2008 को प्रत्यावेदन विपक्षी संख्या-2 को प्रेषित किया, परन्तु उन्होंने मदद करने से इनकार किया और विद्युत संयोजन काट देने की धमकी दी (संलग्नक-4)। विपक्षीगण के अभद्र व्यवहार से परिवादी क्षुब्ध एवं मायूस है जिससे उनको गहरा आत्मीय व मानसिक आघात पहुॅंचा है।
                                                                                 विपक्षीगण ने अपने प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत करते हुए अभिकथन किया कि परिवादी का दावा असत्य एवं गलत तथ्यों पर आधारित है। परिवादी की ओर से फरवरी, 2003 से पहली बार 48 माह बाद मार्च, 2007 में बिजली बिल का बकाया 1,16,930/-रूपये के विरूद्ध मात्र 10000/-रूपये का आंशिक भुगतान किया गया। शिकायतकर्ता के पिता की मृत्यु के सम्बन्ध में विपक्षीगण को कोई सूचना नहीं दी गयी एवं नाम परिवर्तन हेतु भी कोई आवेदन नहीं दिया गया। अभी तक संयोजन रामशंकर त्रिवेदी के नाम से ही चल रहा है। परिवादी ने पहली बार बिल 48 माह बाद जमा किया जिससे स्पष्ट है कि उन्होंने नियमित बिल नहीं जमा किया है। अभिलेखों से पता चलता है कि परिवादी ने मीटर संख्या पी 61018 के स्थान पर लगा नया इलेक्ट्रानिक्स मीटर संख्या डब्लू0एच0 4642 मीटर रीडिंग शून्य की सीलिंग सर्टिफिकेट संख्या 11492 दिनाॅंकित 08.09.2003 को बदला गया। साथ ही साथ परिवादी को यह बताया गया कि दिनाॅंक 22.08.2007 में चेकिंग के दौरान भी मीटर संख्या डब्लू0एच0 4692 पर 42,580 रीडिंग पायी गयी, जिसे उपभोक्ता ने गायब कर अपने परिसर में मैनुअल मीटर लगा दिया, और पेन्टस से पी 61018 लिख दिया, जिसका स्पष्ट उल्लेख सहायक मीटर जाॅंच आख्या में है। इस इलेक्ट्रानिक मीटर को रीडिंग सहित गायब करने की प्राथमिकी सम्बन्धित थाने में दर्ज करा दी गयी। परिवादी विद्युत बकाया राशि 70,000/-रूपये गायब कराने के बाद गलत रीडिंग भुगतान करना शुरू किया और दिनाॅंक 19.02.2008 को चेकिंग के दौरान उपभोक्ता की रीडिंग 2476 पायी गयी। परिवादी ने 1,11,938/-रूपये के विरूद्ध 20,000/-रूपये जून, 2007 एवं अगस्त में संयोजन कटने से बचाने के लिए 96,545/-रूपये के विरूद्ध मात्र 30,000/-रूपये जमा किये। परिवादी का स्वीकृत भार 1.01 किलोवाट है, जबकि उनका वास्तविक भार 6.62 है। पत्रांक संख्या 728 दिनाॅंक 27.03.2008 द्वारा परिवादी का बिल संशोधित कर 1,72,406/-रूपये भेजा गया। इसमें पुराने मीटर की रीडिंग एवं गायब की हुई विद्युत धनराशि सम्मिलित है। परिवादी ने बहुत कम रीडिंग देकर बिल बनवाया है। परिवादी को पत्र संख्या-728 दिनाॅंक 27.03.2008 में समस्त जानकारी उपलबध करा दी गयी थी। परन्तु उस पत्र में टाइपिंग त्रुटि से मीटर संख्या डब्लू0एच0 4692 के स्थान पर डब्लू0एच0 4655 हो गया है, जिसकी पुष्टि सीलिंग प्रमाण पत्र संख्या-66492 दिनाॅंक 08.09.2003 से होती है। परिवादी के यहाॅं दिनाॅंक 29.05.2009 को उनके आवेदन के अनुसार चेक मीटर लगाया गया था और चेक मीटर को दिनाॅंक 20.06.2009 को उतारा गया, तब उनके यहाॅं चेक मीटर के अनुसार रीडिंग 1801 थी। दिनाॅंक 18.11.2009 को परिवादी के यहाॅं विद्युत चेकिंग के दौरान पाया गया कि उनका मीटर नम्बर डब्लू0ओ07913 का डिस्प्ले नहीं चल रहा है और उसकी शिकायत पर विपक्षी द्वारा उस मीटर को बदलकर नया मीटर डब्लू0क्यू0 4360 लगा दिया गया। वर्तमान समय में परिवादी के ऊपर 3,97,649/-रूपये दिनाॅंक 18.11.2009 तक विद्युत बिल बकाया धनराशि थी और विपक्षी द्वारा उस तिथि तक उनके समस्त बिलों का संशोधन किया जा चुका था। 
                                                                                                          उभयपक्ष ने शपथ पर साक्ष्य दाखिल किया है और उसमें उन्होंने परिवाद पत्र/प्रतिवाद पत्र में अंकित कथनों को ही दोहराया है। अन्य कुछ बातें भी परिवादी ने अपने शपथ में अंकित किया है जो उनके परिवाद पत्र में अंकित तथ्यों से भिन्न हैं।
            पत्रावली का अवलोकन किया। उभयपक्ष की बहस एवं पत्रावली के अवलोकन से यह फोरम यह पाता है कि परिवादी का मीटर संख्या पी0 61018 था, जो बदलकर डब्लू0ओ0 7913 हो गया। परन्तु विपक्षी द्वारा दाखिल विद्युत नगरीय परीक्षण खण्ड, तृतीय साक्ष्य (संलग्नक-35) से यह प्रतीत होता है कि पुराने मीटर पी0 61018 को बदलकर डब्लू0एच0 4692 किया गया है जो दिनाॅंक 08.09.2003 को बदला गया है। पुनः विद्युत नगरीय परीक्षण खण्ड तृतीय द्वारा दिनाॅंक 10.01.2008 को जाॅंच करायी गयी, जिसमें यह पाया गया कि पुराना मीटर पी0 61018 जिसे दिनाॅंक 08.09.2003 को हटा दिया गया था लगा है। पुनः उसे बदलकर नया मीटर डब्लू0ओ0 7913 लगाया गया। विपक्षी साक्ष्य (संलग्नक-37) 
                                                                        परिवादी की ओर से यह कहा गया था कि परिवादी उपभोक्ता है और विद्युत विभाग के कर्मचारियों की गलती से उसे दण्ड नहीं मिलना चाहिए और आदेश दिनाॅंक 27.03.2008 को निरस्त किया जाए। विपक्षी की ओर से कहा गया है कि इस फोरम को किसी भी आदेश को निरस्त करने का पावर प्राप्त नहीं है। वह पावर व्यवहार न्यायालय को प्राप्त है, एवं व्यवहार न्यायालय ही किसी आदेश को निरस्त कर सकता है। परिवादी ने विद्युत संयोजन अपने नाम से नहीं कराया है, अतः वह उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है। विपक्षी ने कहा कि परिवादी के पिता की मृत्यु मुकदमा दायर करने के पूर्व हो चुकी थी, जिसकी सूचना विपक्षी को नहीं दी गयी है और परिवादी ने अपना नाम भी विपक्षी के यहाॅं दर्ज नहीं कराया है। अतः उनको कोई अनुतोष पाने का अधिकार नहीं है। जहाॅं तक फोरम को किसी आदेश को निरस्त करने का प्रश्न है वह अधिकार इस फोरम को प्राप्त नहीं है, बल्कि वह अधिकार व्यवहार न्यायालय को ही प्राप्त है। अतः परिवादी का यह वाद पोषणीय न होने के कारण खारिज करने योग्य है।
                                      आदेश
परिवादी का परिवाद बिना खर्चा खारिज किया जाता है।
 
       (स्नेह त्रिपाठी)                              (अरविन्द कुमार)
          सदस्य                                     अध्यक्ष,
                                      जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम,
                                                प्रथम, लखनऊ। 
 
 
 
 
 
[HON'BLE MR. ARVIND KUMAR]
PRESIDENT

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