Uttar Pradesh

Barabanki

21/14

Mohd. Mubin - Complainant(s)

Versus

U.P.P.C.L. - Opp.Party(s)

Pankaj Nigam

12 Jun 2023

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, बाराबंकी।

परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि       05.03.2014

  अंतिम सुनवाई की तिथि       29.05.2023

                                                                                  निर्णय उद्घोषित किये जाने के तिथि      12.06.2023

परिवाद संख्याः 21/2014

मो0 मोबीन बालिग पुत्र मो0 हमीद निवासी मोहल्ला लखपेड़ा बाग शहर व तह0 नवाबगंज जिला-बाराबंकी।

द्वारा- श्री पंकज निगम, अधिवक्ता

श्री हेमन्त कुमार जैन, अधिवक्ता

श्री संजय कुमार वर्मा, अधिवक्ता

बनाम

मध्यांचल विद्युत वितरण निगम लि0 स्टेशन रोड घोसियाना जनपद-बाराबंकी द्वारा अधिशाषी अभियन्ता।

द्वारा-श्री रवि शुक्ला, अधिवक्ता

 

समक्षः-

माननीय श्री संजय खरे, अध्यक्ष

माननीय श्रीमती मीना सिंह, सदस्य

माननीय डॉ0 एस0 के0 त्रिपाठी, सदस्य

उपस्थितः परिवादी की ओर से -श्री पंकज निगम, एडवोकेट

              विपक्षी की ओर से-श्री रवि शुक्ला, एडवोकेट

द्वारा-संजय खरे, अध्यक्ष

निर्णय

            परिवादी ने विपक्षी के विरूद्व धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 के तहत परिवादी को अगस्त 2011 से लेकर अब तक का शुद्व विद्युत बिल रीडिंग के आधार पर फिक्स चार्ज एवं इलेक्ट्रिीसिटी ड्यूटी सहित बिना अधिभार के उपलब्ध करावे तथा मानसिक आर्थिक क्षतिपूर्ति मु0 20,000/-एवं परिवाद व्यय व अधिवक्ता फीस रू0 5,000/- के अनुतोष की माँग किया है।

            संक्षेप में परिवाद कथानक इस प्रकार है कि परिवादी ने विपक्षी के यहां से एक घरेलू विद्युत कनेक्शन संख्या-741/1053/077016 जिसका पूर्व मीटर सं0-ई0बी0-3920 है प्राप्त किया था। परिवादी को उक्त कनेक्शन पर बिल नहीं प्राप्त हो रहा था। परिवादी बराबर विद्युत बिल प्राप्त करने के लिये प्रयासरत रहा इसी बीच वर्ष 2011 में ओ0 टी0 एस0 स्कीम आई। ओ0टी0एस0 स्कीम में यह था कि विद्युत बिल बकाया पर अधिभार की छूट दी जावेगी। परिवादी ने रू0 1,000/-जमा कराकर ओ0 टी0 एस0 स्कीम का पंजीकरण रसीद संख्या-12 पुस्तक सं0-099278 दिनांक 30.08.2011 को जमा करके कराया। जिसमे जुलाई 2011 तक का बिल बना दिया गया, जिसमे पंजीकरण शुल्क का समायोजन करते हुये परिवादी को कुल रू0 18,615/-जमा करने के निर्देश दिये गये जिसे परिवादी ने दिनांक 30.08.2011 को ही जमा कर दिया। दिनांक 03.08.2011 को विपक्षी के अधीनस्थ अधिकारी आये और परिवादी की पत्नी से कहने लगे कि इलेक्ट्रानिक्स मीटर बदलकर इलेक्ट्रानिक मीटर लगाना है मैनुअल मीटर डिफेक्टिव है। विपक्षी ने पुराना मीटर बदलकर इलेक्ट्रानिक मीटर बी0 एम0-7676 लगा दिया। 15 जुलाई 2012 के पूर्व कोई रीडिंग लेने नहीं आया। 03 अगस्त 2011 से 15 जुलाई 2012 तक मीटर रीडिंग 731 थी। परिवादी 731 यूनिट व फिक्स चार्ज रू0 1170/-व इलेक्ट्रिीसिटी ड्येटी रू0 36.27 देने हेतु तैयार था किन्तु दिनांक 15.07.2012 के विद्युत बिल में रू0 7,367.41 है जो एरियर दर्शाया गया था, वह पूर्णतः गलत है। परिवादी ग्रामीण बैंक में आफिसर के रूप में तैनात है। 15 फरवरी 2014 को विपक्षी के अधीनस्थ कर्मचारी परिवादी के यहां आये और कहने लगे कि कथित विद्युत बिल जमा करे अन्यथा विद्युत कनेक्शन विच्छेदित कर दिया जायेगा। परिवादी जुलाई 2011 तक विद्युत बिल का पूर्ण भुगतान कर चुका है। परिवादी अगस्त 2011 से अब तक की रीडिंग के आधार पर फिक्स चार्जेज व इलेक्ट्रिक सिटी ड्यूटी तक का कुल बकाया जमा करने को तैयार है। विपक्षी के उक्त कृत्य से परिवादी को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

अतः परिवादी ने उपरोक्त अनुतोष हेतु यह परिवाद प्रस्तुत किया है। परिवादी ने परिवाद के कथन के समर्थन में शपथपत्र दाखिल किया है। 

            परिवादी ने सूची से नोटिस रसीद संख्या-12, रसीद संख्या-7, विद्युत बिल रू0 18,615/-,सिलिंग प्रमाण पत्र दिनांक 03.08.2011 तथा विद्युत बिल 12 वर्क की छायाप्रति दाखिल किया है। 

            विपक्षी की ओर से जवाबदावा में कहा गया है कि ओ0 टी0 एस0 स्कीम के अन्तर्गत परिवादी द्वारा स्कीम का लाभ लेते हुये जुलाई 2011 तक का बिल जमा कर दिया गया था एवं विभाग द्वारा अगले माह के बिल में संशोधन भी कर दिया गया था। संशोधन के फलस्वरूप अगस्त 2011 का बिल मा. 967/-आया। विभाग द्वारा दिनांक 02.08.2011 को परिवादी के परिसर पर चेकिंग की गई थी जिसमे परिवादी अपने परिसर पर लगे मीटर से पहले केबिल काटकर मीटर को बाईपास कर 2 किलोवाट भार की विद्युत चोरी करते हुये पाया गया जो विद्युत अधिनियम की धारा-135 के अंतर्गत संज्ञेय अपराध है। परिवादी द्वारा अनुरोध कर विद्युत अधिनियम 2003 की धारा-152 के अंतर्गत अपराध का शमन करने हेतु शमन शुल्क रू0 8,000/-रसीद सं0-01/099272 दिनांक 02.08.2011 द्वारा जमा किया गया। इसी अनुक्रम में विभाग द्वारा दिनांक 03.08.2011 को कटी हुई केबिल को बदलते हुये मीटर बदला गया। दिनांक 03 अगस्त 2011 को मीटर लगने के उपरान्त माह सितम्बर 2011 के बिल में नये मीटर की प्रविष्टि कर दी गई थी एवं नये मीटर की रीडिंग पर रू0 1,590/-का बिल प्रेषित किया गया था। दिनांक 02.08.2011 को विभाग द्वारा उपभोक्ता के परिसर पर की गई चेकिंग में विद्युत चोरी पाये जाने एवं उपभोक्ता द्वारा शमन शुल्क जमा कर दिये जाने के उपरान्त निर्धारण अधिकारी द्वारा दिनांक 15.10.2011 को रू0 46,996/-अंतिम राजस्व निर्धारण करते हुये नोटिस संख्या-5124 दिनांक 15.10.2011 प्रेषित की गई। इस पर परिवादी द्वारा कोई आपत्ति नहीं दाखिल की गई तो निर्धारण अधिकारी द्वारा दिनांक 19.12.2012 के द्वारा अंतिम राजस्व निर्धारण रू0 46,996/-करते हुये परिवादी को दिनांक 18.01.2013 तक भुगतान करने हेतु कहा गया। परिवादी द्वारा राजस्व निर्धारण की धनराशि जमा न करने की स्थिति में विभाग द्वारा यह राशि उसके अप्रैल 2013 के बिल में प्रभारित की गई जिसके परिवादी द्वारा बिल की त्रुटि बताया जा रहा है। परिवादी की परेशानी का कारण विभाग नहीं अपितु वह स्वयं है क्योंकि वह विद्युत चोरी में संलिप्त था। विभाग द्वारा परिवादी से जो विद्युत बिल की मांग की जा रही है, पूर्णतया सही है। विद्युत बकाया जमा न करने की स्थिति में विभाग को विद्युत विच्छेदन करने और वसूली करने का पूर्ण अधिकार है। परिवादी अपनी मर्जी के हिसाब से बिल बनवाना व जमा करना चाहता है। परिवादी विद्युत अधिनियम 2003 की धारा-135 के अंतर्गत विद्युत चोरी के विरूद्व किये गये राजस्व निर्धारण को विद्युत बिल की त्रुटि बताकर फोरम को गुमराह करने का प्रयास कर रहा है। सिविल अपील संख्या-5466/2012 यू0 पी0 पावर कारपोरेशन लि0 व अन्य बनाम अनीस अहमद में 01 जुालई 2013 को दिये गये निर्णय में पूर्णरूप से यह स्पष्ट कर दिया गया है कि विद्युत अधिनियम 2003 की धारा-126 तथा 135 से 140 तक के मामलों में निर्धारण अधिकारी द्वारा किये गये राजस्व निर्धारण अथवा अन्य कार्यवाही के विरूद्व की गई शिकायत उपभोक्ता फोरम के समक्ष पोषणीय नहीं है। परिवाद किसी भी दशा में पोषणीय नहीं है। विपक्षी ने जवाबदावा के तथ्यों के समर्थन में शपथपत्र दाखिल किया है।

            परिवादी ने शपथपत्र साक्ष्य दाखिल किया है।

            परिवादी तथा विपक्षीगण ने अपनी लिखित बहस दाखिल की है।

            उभय पक्षों के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना तथा पत्रावली पर प्रस्तुत किये गये साक्ष्यों/अभिलेखों का गहन परिशीलन किया।

            वर्तमान परिवाद में परिवादी पक्ष का कथन है कि विपक्षी संख्या-01 से घरेलू विद्युत कनेक्शन संख्या-741/1053/077016 लिया था, कोई विद्युत बिल नहीं दिया जा रहा था। वर्ष 2011 में ओ0 टी0 एस0 स्कीम के अंतर्गत पचास प्रतिशत का लाभ लेते हुये रू0 1,000/-जमा करके ओ0 टी0 एस0 स्कीम का पंजीकरण दिनांक 30.08.2011 को कराया। जुलाई 2011 तक बिल बनाकर दिया गया। जुलाई 2011 तक के दिये गये बिलों के आधार पर विपक्षी संख्या-01 के कार्यालय में रू0 18,615/-दिनांक 30.08.2011 को जमा कराये गये। दिनांक 03.08.2011 को विपक्षी के अधिकारियों ने आकर परिवादी की पत्नी की अनुमति से पुराना मैनुअल मीटर उतारकर इलेक्ट्रानिक मीटर लगा दिया और सीलिंग प्रमाण पत्र दिया। मीटर बदले जाने के समय जुलाई 2011 तक का बिल जमा है। मीटर बदले जाने के बाद एक वर्ष तक कोई रीडिंग लेने नहीं आया। दिनांक 03.08.2011 से 15.07.2012 तक मीटर रीडिंग 731 थी। परिवादी पर 731 यूनिट व फिक्स चार्ज रू0 1,170/-तथा सिटी ड्यूटी  36.27 देय है जिसे परिवादी देने को तैयार था किन्तु दिनांक 15.07.2012 के बिल में रू0 7,367.41 दर्शित करते हुये बिल परिवादी को प्रेषित किया गया। परिवादी के शिकायत पर कहा गया कि बिल कम्प्यूटर से सही होकर आ जायेगा। कई महीने तक कोई बिल नहीं आया। विपक्षी के कर्मचारी अब मीटर की रीडिंग लेने बराबर आते है और मेनुअल विद्युत बिल देकर चले जाते है जिसमे उपरोक्त एरियर बराबर दर्शा रहे है जो गलत है। दिनांक 15.02.2014 को विद्युत विभाग के कर्मचारियों ने आकर कहा कि विद्युत बिल जमा करों नही तो विद्युत कनेक्शन काट दिया जायेगा। परिवादी ने शुद्व बिल देने की याचना की । परिवादी अगस्त 2011 से अब तक की रीडिंग के आधार पर फिक्स चार्जेज व इलेक्ट्रिीसिटी ड्यूटी बकाया जमा करने को तैयार है। परिवादी का कथन है कि वर्तमान परिवाद दायर होने पर दिनांक 02.04.2014 के आदेश का अनुपालन कर रहे है। परिवादी ने किसी प्रकार का शमन शुल्क विपक्षी को नहीं दिया है। दिनांक 02.08.2011 को परिवादी अपनी बैंक ड्यूटी पर था, कोई चेकिंग नहीं हुई है।

             परिवादी ने अपने कथन के समर्थन में अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड बनाम सुरेन्दर ।।(2018) सी पी जे 539 (एन सी) एन. सी. डी. आर. सी. नई दिल्ली में प्रतिपादित विधि सिद्वान्त का सन्दर्भ लिया है कि जिला आयोग बिजली चोरी पर भी अपना निष्कर्ष दे सकता है।

             विपक्षी का कथन है कि ओ0 टी0 एस0 स्कीम के अंतर्गत परिवादी को स्कीम का लाभ देते हुये जुलाई 2011 का बिल जमा कर दिया गया। विभाग द्वारा अगले माह में संशोधन भी कर दिया। अगस्त 2011 का बिल रू0 967/-आया था। विपक्षी का कथन है कि विभाग द्वारा दिनांक 02.08.2011 को परिवादी के परिसर पर चेकिंग की गई जिसमे परिवादी अपने परिसर पर लगे मीटर से पहले केबिल काटकर मीटर को बाइपास करके 2 किलोवाट के भार की चोरी करते हुये पाया जो कि विद्युत अधिनियम की धारा-135 में संज्ञेय अपराध है। परिवादी के अनुरोध पर विद्युत अधिनियम 2003 की धारा-152 के अंतर्गत अपराध का शमन करने हेतु शमन शुल्क रू0 8,000/-दिनांक 02.08.2011 को जमा किया। इसी अनुक्रम में विभाग द्वारा दिनांक 03.08.2011 को कटी केबिल बदलने हेतु मीटर बदला गया। दिनांक 03.08.2011 को मीटर लगाने के उपरान्त सितम्बर 2011 में नये मीटर की प्रविष्ट कर दी गई एवं नये मीटर की रीडिंग पर रू0 1590/-का बिल प्रेषित कर दिया गया। दिनांक 02.08.2011 को विभाग द्वारा उपभोक्ता के परिसर पर की गई चेकिंग में विद्युत चोरी पाये जाने एवं उपभोक्ता द्वारा शमन शुल्क जमा कर दिये जाने के उपरान्त निर्धारण अधिकारी द्वारा दिनांक 15.10.2011 को रू0 46,996/-अंतिम राजस्व निर्धारण करते हुये नोटिस संख्या-5124 दिनांक 15.10.2011 प्रेषित की गई। परिवादी द्वारा न तो नोटिस का कोई जवाब दिया गया और न ही कोई आपत्ति दाखिल की गई। जब परिवादी द्वारा कोई आपत्ति दाखिल नहीं की गई तो निर्धारण अधिकारी द्वारा अपने कार्यालय पत्र संख्या-180/2011 दिनांकित 19.12.2012 के द्वारा अंतिम राजस्व निर्धारण रू0 46,996/-करते हुये परिवादी को दिनांक 18.01.2013 तक का समय भुगतान करने हेतु दिया गया। जब परिवादी द्वारा नियत तिथि तक राजस्व निर्धारण की धनराशि जमा नहीं की गई तब विभाग द्वारा अप्रैल 2013 के बिल में इस धनराशि को भी अंकित करते हुये परिवादी पर बकाया विद्युत बिल जारी किया गया जिसे परिवादी बिल की त्रुटि बता रहा है। विभाग द्वारा परिवादी से जो विद्युत कर की माँग की जा रही है पूर्णतया सही है। किसी भी उपभोक्ता द्वारा बिल न जमा करने की स्थिति में विद्युत विच्छेदन करने का विभाग को अधिकार है। परिवादी ने कभी भी कोई त्रुटिपूर्ण बिल ठीक कराने की बात विपक्षी के किसी कर्मचारी से नहीं की। विद्युत बकाया जमा न करने की स्थिति में विद्युत विभाग को परिवादी से बकाया कर वसूल करने का भी अधिकार होना कहा है। परिवादी अपनी अच्छानुसार बिल दुरूस्त कराकर जमा कराना चाहता है जो गलत है। परिवादी विद्युत अधिनियम की धारा-135 के अंतर्गत विद्युत चोरी के विरूद्व किये गये राजस्व निधारण को विद्युत बिल की त्रुटि बताकर आयोग को गुमराह करने का प्रयास कर रहा है।

               विपक्षी ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यू0 पी0 पावर कारपोरेशन लि0 एवं अन्य अनम अनीस अहमद सिविल अपील सं0-5266/2012 निर्णय दिनांकित 01.07.2013 में विद्युत अधिनियम की धारा-126 तथा 135 से 140 तक के मामलों में उपभोक्ता आयोग का क्षेत्राधिकार न होने के प्रतिपादित विधी सिद्वान्त का संदर्भ लिया है। 

            परिवादी ने सूची से जिन विद्युत बिलों की प्रतियां प्रस्तुत की है उनमे माह अप्रैल 2013 का बिल भी है जिसमे क्रेडिट एमाउन्ट के समक्ष रू0 46,996/-दर्ज है। इसके अतिरिक्त अन्य बकाया कर को जोड़कर कुल रू0 60,126/-बकाया होना इस बिल में दर्शित किया गया है जो इसके बाद के प्रत्येक बिल में वर्तमान बिल का बकाया जोड़ते हुये बढ़ता गया है। परिवादी की ओर से दाखिल जुलाई 2012 के बिल में पूर्व बिल का एरियर रू0 7,367/-अंकित है। इसी के साथ विपक्षी द्वारा प्रस्तुत दिनांक 02.08.2011 की चेकिंग रिपोर्ट व परिवादी के दिनांक 15.10.2011 तथा 19.12.2012 को दी गई नोटिस की प्रति के अवलोकन से विदित है कि परिवादी के आवासीय परिसर की विद्युत विभाग दल द्वारा चेकिंग करने पर मीटर से पहले केबिल काटकर 2 किलोवाट भार की डायरेक्ट विद्युत चोरी करना पाया गया। परिवादी द्वारा दिनांक 02.08.2011 को ही शमन शुल्क रू0 8,000/-जमा करने और विद्युत विभाग द्वारा उसकी रसीद जारी किया जाना, चेकिंग रिपोर्ट की दोनो नोटिस में अंकित है साथ ही विद्युत विभाग द्वारा की जाने वाली चेकिंग से संबंधित विवरण के रजिस्टर में भी दिनांक 02.08.2011 को परिवादी मो0 मोबीन के आवासीय परिसर में केबिल काटकर दो किलोवाट का विद्युत चोरी करता हुआ पाया जाना अंकित है और शमन शुल्क रू0 8,000/-दिनांक 02.08.2011 को जमा करना अंकित है और उसी के आगे कर निर्धारण की गणना करते हुये रू0 46,996/-निर्धारण के अनुसार बकाया होना दर्शित है। परिवादी के परिसर की दिनांक 02.08.2011 को विद्युत विभाग के दल द्वारा चेकिंग किये जाने पर दो किलोवाट विद्युत भार की चोरी पाये जाने पर रू0 8,000/-का शमन शुल्क परिवादी द्वारा जमा किया जाना यह पुष्ट करता है कि परिवादी ने अपने परिसर में दो किलोवाट भार के चोरी को स्वीकार किया है। धारा-152 विद्युत अधिनियम के अपराधों का शमन (शमन शुल्क Compounding fee) जमा करने का प्राविधान है। विद्युत चोरी के मामले में शमन शुल्क जमा कर देने पर विद्युत चोरी करने वाला व्यक्ति अपराध के विचारण आदि की कार्यवाही से बच जाता है और उसे शमन शुल्क जमा हो जाने पर दोषमुक्त माना जाता है। दांडिक प्राविधान धारा-135 से 142 तक तथा 147 से 150 विद्युत अधिनियम से सम्बन्धित अपराध के प्राविधान है जिसमे धारा-135 विद्युत चोरी से संबंधित है। धारा-152 में उपभोक्ता या किसी अन्य व्यक्ति से जिसने विद्युत चोरी का अपराध किया है, से शमन शुल्क लिये जाने का प्राविधान है। धारा-152 (3) के प्रभाव से यदि शमन शुल्क स्वीकार कर लिया जाता है तो सम्बन्धित व्यक्ति की विद्युत चोरी के अपराध से दोष मुक्ति मानी जायेगी।

             असेसमेन्ट से संबंधित प्राविधान धारा-126 विद्युत अधिनियम में दिये गये है और असेसमेन्ट के विरूद्व अपीलीय प्राधिकरण के समक्ष प्राविधान धारा-127 में दिया गया है अतः विद्युत चोरी के अपराध के सम्बन्ध में शमन शुल्क लेकर शमन करना और विद्युत चोरी के आधार पर पूर्व के समयावधि के आधार पर विद्युत उपभोग का असेसमेन्ट करना दो अलग-अलग कार्यवाहियाँ है। विद्युत चोरी के अपराध से शमन शुलक देकर बचा जा सकता है परन्तु असेसमेन्ट के आधार पर बकाया विद्युत कर के आदेश के विरूद्व यदि निर्धारित समयावधि में कोई अपील धारा-127 के अनुसार नहीं की गई है तो असेसमेन्ट आदेश अंतिम हो जायेगा और उक्त धनराशि को जमा करना अनिवार्य होगा। असेसमेन्ट धनराशि जमा न करने पर उसकी वसूली करने का अधिकार विद्युत विभाग का है साथ ही विद्युत बिल बकाया होने पर विद्युत कनेक्शन विच्छेदित करने का अधिकार विद्युत विभाग का है।

            उपरोक्त विवेचन से यह भी स्पष्ट है कि विद्युत चोरी के मामले की सुनवाई का क्षेत्राधिकार धारा-153 में गठित विशेष न्यायालयों को है और असेसमेन्ट के विरूद्व सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्रथमतः नोटिस देने वाले अधिकार के समक्ष जवाब देकर यदि नोटिस दिये जाने वाले अधिकारी द्वारा किये गये आदेश से कोई व्यक्ति क्षुब्ध है तो उक्त आदेश के विरूद्व धारा-127 में अपीलीय अधिकारण के समक्ष अपील से चुनौती देने का प्राविधान है। परिवादी का कथन है कि उसके द्वारा कोई भी शमन शुल्क जमा नहीं किया गया है जबकि विद्युत विभाग के अभिलेखों में स्पष्ट रूप से चेकिंग की दिनांक 02.08.2011 को ही परिवादी पक्ष द्वारा शमन शुल्क जमा करने पर रसीद जारी की गई है। यह तथ्य परिवादी को सिद्व करना है कि उसने शमन शुल्क जमा नहीं किया। परिवादी ने रू0 8,000/-किसी अन्य के द्वारा जमा करने का तथ्य अपने साक्ष्य से सिद्व नहीं किया है। कोई अन्य व्यक्ति परिवादी के नाम से विद्युत चोरी के आधार पर शमन शुल्क रू0 8,000/-क्यों जमा करेगा। अतः इस बिन्दु पर परिवादी का तर्क बलहीन है।

             उपरोक्त समस्त विवेचन से स्पष्ट है कि विद्युत बिल के जिस अंश/धनराशि का विवाद परिवादी की ओर से किया जा रहा है उक्त धनराशि दिनांक 02.08.2011 को विपक्षी विद्युत विभाग के दल द्वारा परिवादी के आवासीय परिसर में विद्युत कनेक्शन की चेकिंग किये जाने पर मीटर से पहले विद्युत तार में से सीधे कनेक्शन लेकर विद्युत चोरी करना पाये जाने के आधार पर जो इस तिथि के पूर्व का असेसमेन्ट विपक्षी द्वारा किया गया है वहीं धनराशि अगस्त 2013 के परिवादी के बिल में अतिरिक्त रूप से अंकित की गई है। विपक्षी के समक्ष साक्ष्य से स्पष्ट है कि परिवादी को अपने परिसर में विद्युत विभाग के दल द्वारा चेकिंग करने पर चोरी से विद्युत उपभोग करने की स्थिति में पकड़ा जाना तथा दांडिक कार्यवाही से बचने के लिये परिवादी द्वारा शमन शुल्क रू0 8,000/-जमा करने की पूर्ण जानकारी थी। साथ ही असेसमेन्ट की नोटिस प्राप्त होने के पश्चात भी परिवादी ने विद्युत विभाग में न तो कोई संतोषजनक जवाब प्रस्तुत किया और न ही उस असेसमेन्ट के विरूद्व विहित प्राधिकरण में कोई अपील ही प्रस्तुत की। विद्युत विभाग का असेसमेन्ट अंतिम हो चुका है।

               परिवादी की ओर से अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड बनाम सुरेन्दर ।।(2018) सी पी जे 539 (एन सी) एन. सी. डी. आर. सी. नई दिल्ली में पारित निर्णय के आधार पर कथन है कि जिला आयोग विद्युत चोरी न होने के सम्बन्ध में निष्कर्ष दे सकता है। जबकि विपक्षी ने संदर्भित नजीर यू0 पी0 पावर कारपोरेशन बनाम अनीस अहमद सिविल अपील सं0-5266/2012 के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय दिनांकित 01.07.2013 में यह स्पष्ट रूप से विधि सिद्वान्त प्रतिपादित किया गया है कि विद्युत चोरी तथा असेसमेन्ट के विद्युत अधिनियम से संबंधित मामले की सुनवाई का क्षेत्राधिकार उपभोक्ता आयोग को नहीं है। प्रकरण पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय के विधि सिद्वान्त लागू होते है।

            वर्तमान प्रकरण में यह तथ्य ध्यान देने योग्य है कि परिवादी के आवासीय परिसर की विद्युत विभाग के दल द्वारा चेकिंग करने पर दिनांक 02.08.2011 को दो किलोवाट की विद्युत चोरी से उपभोग करते हुये पाये जाने पर परिवादी ने रू0 8,000/-शमन शुल्क दिनांक 02.08.2013 को ही दिया है जिससे स्पष्ट है कि परिवादी को विद्युत विभाग के दल द्वारा चोरी के विद्युत का उपभोग करते हुये दिनांक 02.08.2011 को पाये जाने की पूर्ण जानकारी थी फिर भी परिवादी ने परिवाद पत्र में इस तथ्य का कोई भी उल्लेख नहीं किया जो कि वर्तमान परिवाद दायर होने से पूर्व की घटना है। चोरी से विद्युत उपभोग करना पाये जाने के पश्चात निर्धारण अधिकारी द्वारा दिनांक 15.10.2011 को रू0 46,996/-राजस्व निर्धारण करते हुये नोटिस जारी करने पर परिवादी द्वारा निर्धारित समयावधि में जब कोई आपत्ति नहीं दाखिल की गई तब दिनांक 19.12.2012 को राजस्व का अंतिम निर्धारण रू0 46,996/-करते हुये परिवादी को दिनांक 18.01.2013 तक का भुगतान करने हेतु पत्र दिया गया। जब परिवादी ने राजस्व निर्धारण की धनराशि जमा नहीं की तब अप्रैल 2013 के बिल में इस धनराशि का बकाया दर्शित करते हुये विद्युत बिल जारी किया गया ऐसी स्थिति में परिवादी द्वारा परिवाद पत्र में विद्युत चोरी करते हुये पाये जाने, परिवादी द्वारा शमन शुल्क जमा करने और राजस्व निर्धारण रू0 46,996/-की नोटिस प्राप्त होने, कोई आपत्ति दाखिल न होने के कारण निर्धारण अधिकारी द्वारा पत्र द्वारा अंतिम राजस्व निर्धारण रू0 46,996/-से परिवादी को सूचित करना तथा अप्रैल 2013 के बिल में अन्य विद्युत बकाया के साथ राजस्व निर्धारण के रूप में रू0 46,996/-बकाया होने की जानकारी होते हुये भी परिवाद पत्र में इन तथ्यों का अंकन परिवादी ने नहीं किया। इन महत्वपूर्ण तथ्यों की जानकारी होते हुये भी इनका अंकन न करना महत्वपूर्ण तात्विक तथ्यों को छिपाने की श्रेणी में आता है जिससे स्पष्ट है कि परिवादी ने वर्तमान परिवाद स्वच्छ हाथों से प्रस्तुत नहीं किया है। परिवाद पत्र दायर होने के पूर्व जारी सभी बिलों में जो कमियां परिवादी ने अपने परिवाद पत्र व साक्ष्य में बतायी है उक्त कमियां परिवादी साक्ष्य से सिद्व नहीं होती है।

             परिवादी द्वारा यदि वाद लम्बन के दौरान कोई धनराशि अपने बकाया विद्युत बिलों के सम्बन्ध में विपक्षी को अदा की है तो उसे समायोजित करने की जिम्मेदारी विपक्षी विद्युत विभाग की है।

           उपरोक्त समस्त विवेचन के आधार पर निष्कर्ष निकलता है कि विपक्षी द्वारा परिवादी को जारी किये गये विद्युत बिल में अंकित बकाया में असेसमेन्ट के आधार पर बकाया विद्युत कर को शेष बकाया के साथ अंकित करते हुये विद्युत बिल जारी कर सेवा में कोई त्रुटि/कमी नहीं की गई है।

             उपरोक्त विवेचन के आलोक में परिवादी परिवाद पत्र में अंकित किसी अनुतोष को प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। अतः परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।

आदेश

परिवाद संख्या-21/2014 निरस्त किया जाता है।

(डॉ0 एस0 के0 त्रिपाठी)       (मीना सिंह)         (संजय खरे)

         सदस्य                      सदस्य                अध्यक्ष

यह निर्णय आज दिनांक को  आयोग  के  अध्यक्ष  एंव  सदस्य द्वारा  खुले न्यायालय में उद्घोषित किया गया।

(डॉ0 एस0 के0 त्रिपाठी)       (मीना सिंह)         (संजय खरे)

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दिनांक 12.06.2023

 

 

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