न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष, फोरम हमीरपुर।
उप0 परिवाद सं0 72 सन 2014
श्री कृपाल पुत्र श्री काशीराम निवासी ग्राम खण्डेह परगना व तहसील मौदहा, जिलाहमीरपुर।
.....परिवादी।
बनाम
1—अधिशाषी अभियंता उ0प्र0 पावर कारपोरेशन लिमिटेड, विद्युत वितरण खण्ड हमीरपुर, शहर व जिला हमीरपुर।
2—प्रबंध निदेशक,दक्षिणांचल विद्युत वितरण खण्ड, जिला आगरा उ0प्र0।
........विपक्षीगण।
निर्णय
परिवादी ने यह परिवाद विपक्षीगणद्वारा भेजे गये बिल दि0 29-04-2014 से दि0 18-06-2014तक के बिलों के पूर्व के बिलों के औसत पर आधार पर देने तथा नया मीटर लगने के दिनांक से सही बिल देने की तिथि तक विद्युत अधिभार न वसूले जाने एवं दि0 26-11-2014 को परिवादी द्वारा जमा राशि मु0 79613 रु0 समायोजितकिये जाने क्षतिपूर्ति के रुप में मु0 10000 रू0 दिलाये जाने हेतु विपक्षीगण के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत प्रस्तुत किया है।
परिवाद पत्र में परिवादी का कथन संक्षेप में यह है किउसने अपने परिवार के भरण पोषण हेतु आटा चक्की चलाने के लिए विपक्षीगण से संयोजन लिया। जिसकी संयोजन सं0 1837 है। परिवादी समय से विद्युत उपभोग के बिल अदा करता रहा है तथा दि0 30-03-14 से 29-04-14 तक के उपभोग की अवधि के बिल को जमा कर दिया है।माह मई 2014 में जब विपक्षीगण का कर्मचारी रीडिंग लेने आय़ा। रीडिंग स्पष्ट नहीं आ रहीं थी जिस कारण वह वापस लौट गया। इस पर परिवादी ने दिनांक 02-06-14 को एक प्रार्थना पत्र मीटर परिवर्तित करने हेतु विपक्षी सं0 1 को दिया। जिसके उपरांत दि0 18-06-14 को मीटर परिवर्तित कर दिया गया और यह आख्या दी गयी कि कटे अक्षर आने के कारण नया मीटर लगाया गया है। नया मीटर लगाने के बाद भी परिवादी को कोई बिल नहीं दिये गये। जिसकी जानकारी परिवादी ने दिनांक 25-09-14 के प्रार्थना पत्र द्वारा विभाग को दी। दि0 20-10-14 को परिवादी को जो बिल प्राप्त हुआ उसमें उपभोग की अवधि दि0 30-08-14 से दि0 30-09-14 दर्शायी गयी एवं बिल मु0 148127 रू0 का था। उक्त बिल प्राप्त होने पर परिवादी द्वारा दि0 28-10-14 को विपक्षी सं0 1 को पुनः एक प्रार्थनापत्र बिल के संशोधन करने के लिए दिया गया। जिस पर विपक्षी सं0 1 द्वारा बिल को संशोधित करते हुए मु0 79613 रू0 कर दिया गया। परिवादी द्वारा इस बिल पर भी आपत्ति दर्ज की गईतथा उक्त अवधि के बिलों को पूर्व बिलों के औसत के आधार पर जमा कराये जाने हेतु परिवाद दायर किया है।
विपक्षीगण ने जवाबदावा प्रस्तुत करके कहा है कि परिवादी संयोजन सं0 1837 का धारक है तथा विपक्षीगण ने विद्युत बिल दि0 30-03-14 से 29-04-14 तक
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के बिलों का भुगतान होना स्वीकार किया है। विपक्षीगण ने अपने जवाबदावे में परिवादी के मीटर का बदला जाना भी स्वीकार किया है तथा विद्युत बिल दि0 30-08-14 से 30-09-14 के बिल मु0 148127 रू0 को संशोधित कर मु0 79613 रू0 किया जाना स्वीकार किया है। अपने अतिरिक्त कथन में विपक्षीगण द्वारा परिवादी को व्यावसायिक विद्युत संयोजन के कारण उपभोक्ता मानने से इंकार किया है। विपक्षीगण द्वारा मीटर खराब होने के कारण परिवादी द्वारा मीटर में छेड़छाड़ करना बताया गया है। विपक्षीगण द्वारा मीटर रीडिंग न लिये जाने के कारण माह मई, जुलाई, अगस्त में परिवादी का कारखाना बंद होना बताया हैतथा परिवादी का अतिरिक्त विद्युत उपभोग करने का दोषी भी ठहराया है। इस आधार पर विपक्षीगण द्वारा उक्त परिवाद खारिज किये जाने की प्रार्थना की है।
परिवादी ने साक्ष्य में सूची कागज नं0 5 से 5 किता कागजात, सूची कागज न0 14 से 1 किता कागज, सूची कागज न0 20 से 1 किता कागज, स्वयं का शपथपत्र कागज न0 19 दाखिल किया है।
विपक्षीगण ने साक्ष्य में श्री सुनील चन्द्र श्रीवास्तव अधिशाषी अभियंता का शपथपत्र कागज न0 17 दाखिल किया है।
पक्षों के विद्वान अधिवक्ताओं के तर्कों को सुन लिया गया है तथा पत्रावली का अवलोकन कर लिया गया है।
प्रस्तुत परिवाद में परिवादी एवं विपक्षीगण ने बिल दि0 30-03-14 से दि0 29-04-14 तक के उपभोग की अवधि के बिलों को जमा होना स्वीकार किया है। दिनांक 29-04-14 के आगे के बिल की रीडिंग लेने के लिए जब विपक्षी का कर्मचारी परिवादी के कारखाने परिसर में गया तब उसे मीटर में कटे अक्षर होने की जानकारी हुई। जिसके कारण रीडिंग नहीं ली जा सकी। परिवादी द्वारा इसकी जानकारी दि0 02-06-14 के प्रार्थना पत्र द्वारा विभाग को दे दी गई और दि0 18-06-14 को परिवादी के परिसर में नया मीटर लगा दिया गया। आख्या में मीटर लगाने के कारण कटे अक्षर का होना बताया गया है। विपक्षी भी इससे सहमत है। परंतु विपक्षी ने मीटर खराब होने का कारण परिवादी द्वारा छेड़छाड़ करना बताया है। नया मीटर लगाने के बाद विपक्षी द्वारा परिवादी को कोई बिल प्राप्त नहीं कराया गया और दि0 30-08-14 से 30-09-14 का मु0 148127 रू0 का बिल परिवादी को दिया गया। जिस पर परिवादी को आपत्ति थी और दि0 28-10-14 को प्रार्थना पत्र के द्वारा परिवादी ने विपक्षी से उक्त बिल का विरोध किया तथा संशोधन किये जाने को कहा। तत्पश्चात विपक्षी द्वारा संशोधन करते हुए उक्त बिल को मु0 79613 रू0 कर दिया गया। फिर भी यह बिल बहुत ज्यादा था। परिवादी ने उक्त बिल को पूर्णतः गलत व बिना हिसाब का होना बताया है। विपक्षीगण द्वारा अपने शपथपत्र में उक्त बिल को सही करार दिया है। लेकिन विपक्षी ने जो बिल पहले दिया था वह किस आधार पर था और जो संशोधन किया गया इसका क्या आधार था। कहीं भी स्पष्ट नहीं है। परिवादी द्वारा मीटर के आधार पर बिल दिये जाने के जवाब में विपक्षी का यह तर्क है कि जब रीडिंग लेने जाया गया तब उसके परिसर बंद पाया गया जिस कारण रीडिंग नहीं ली जा सकी। यहां पर यह स्पष्ट करना होगा कि जब परिवादी के परिवार का भरण पोषण का साधन उक्त चक्की ही है तो हमेशा बंद पाया जाना सही प्रतीत नहीं होता है। विपक्षी द्वारा यह भी कहा गया है कि परिवादी
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उपभोक्ता नहीं है। इसके जवाब में यही कहा जा सकता है कि उसने परिवार के जीवन यापन हेतु यह कार्य किया है। अतः परिवादी को उपभोक्ता मानने से इंकार नहीं किया जा सकता है। परिवादी को जो 5 महीने का बिल दिया गया वह बहुत ज्यादा प्रतीत होता है और विपक्षी द्वारा उसका कोई आधार नहीं किया गया। अतः बिल मु0 79613 रू0 गलत प्रतीत होता है और परिवादी से दि0 30-03-14 से 29-04-14 के बिल सहित पूर्व के जमा 4 और बिलों के औसत के आधार पर दि0 29-04-14 से 18-06-14 तक का बिल तथा दि0 18-06-14 नया मीटर लगने की दिनांक से आगे के बिलों को मीटर रीडिंग के अनुसार जमा कराया जाना उचित प्रतीत होता है। परिवादी द्वारा मीटर में छेड़छाड़ की बात को खारिज किया जाता है। क्योंकि मीटर सीलिंग प्रमाणपत्र कागज सं0 8 में मीटर सील सुरक्षित पाने की रिपोर्ट लगी है। क्योंकि उक्त प्रकरण में परिवादी द्वारा अपनी तरफ से कोई लापरवाही नहीं की गई। उसने समय- समय पर प्रार्थना पत्रों द्वारा विपक्षी को हर बात की जानकारी दी। इसलिए मीटर लगने की दिनांक से निर्णय तक के बकाया किसी भी बिल में अधिभार से परिवादी को मुक्त किया जाना उचित होगा। परिवादी द्वारा मु0 79613 रू0 की धनराशि को अग्रिम बिलों में समायोजित किया जाना उचित होगा। विपक्षी के कारण विवाद उत्पन्न हुआ। उसका विद्युत संयोजन भी काट दिया गया। जिससे उसे आर्थिक और मानसिक क्षति भी हुई। अतः परिवादी को मु0 5000 रू0 क्षतिपूर्ति एवं वाद व्यय के मद में मु0 2000 रू0 दिलाया जाना उचित होगा। तद्नुसार परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवाद स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वह दि0 29-04-14 से 18-06-14 तक का बिल दि0 30-03-14 से 29-04-14 के बिल सहित पूर्व के जमा 4 और बिलों के औसत के आधार पर तथा दि0 18-06-14 से अग्रिम बिलों को मीटर रीडिंग के आधार पर जारी करें एवं उन पर कोई अधिभार न लगाया जाये। वह परिवादीद्वारा मु0 79613 रू0 की धनराशि को उपरोक्त बिलों में समायोजितकरें। वह परिवादी को मु0 5000 रू0 क्षतिपूर्ति के मद में एवं वाद व्यय के मद में मु0 2000 रू0 अदा करेगा। अनुपालन अंदर 30 दिवस हो।
दिनांक- 23/06/2015
(हुमैराफात्मा) (सुनील कुमार सिंह)
सदस्या वरिष्ठ सदस्य