Uttar Pradesh

Faizabad

CC/296/2007

ABDUL KARIM - Complainant(s)

Versus

U.P.GOVT - Opp.Party(s)

05 Jun 2015

ORDER

DISTRICT CONSUMER DISPUTES REDRESSAL FORUM
Judgement of Faizabad
 
Complaint Case No. CC/296/2007
 
1. ABDUL KARIM
RES- MUKIMPUR PO. SHAHGANJ PAR. PASHIMRATH DIS FZD
...........Complainant(s)
Versus
1. U.P.GOVT
FAIZABAD
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL PRESIDENT
 HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA MEMBER
 HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद ।

 


उपस्थित -     (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
(2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य

 

              परिवाद सं0-296/2007

 

अब्दुल करीम पुत्र अहमद उल्ला निवासी मुकीमपुर पहाड़पुर पो0 शाहगंज परगना पश्चिम राठ तहसील बीकापुर जिला फैजाबाद                  ............परिवादी          
                 
                    बनाम


1-    उ0प्र0 राज्य द्वारा कलेक्टर फैजाबाद।
2-    पंजाब नेशनल बैंक द्वारा शाखा प्रबंधक शाखा आस्तीकन तहसील बीकापुर जिला फैजाबाद।
3-    तहसीलदार बीकापुर जिला फैजाबाद।
4-    ब्रहनदेव पुत्र रामहरख निवासी मुकीमपुर पहाड़पुर पो0 शाहगंज फैजाबाद।
5-    शिवनायक पुत्र सन्त प्रसाद निवासी ग्राम जैनपुर परगना पश्चिम राठ तहसील बीकापुर जिला फैजाबाद                            ........... विपक्षीगण

निर्णय दिनाॅंक 05.06.2015    


                    
                        निर्णय 

    उद्घोषित द्वारा: श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष

परिवादी ने यह परिवाद विपक्षी सं0-1 ता 3 के विरूद्ध योजित किया है, कि परिवादी के विरूद्ध जारी वसूली प्रमाण-पत्र वापस लिया जाय तथा राष्ट््रीय बचत पत्रों की धनराशि का समायोजन करके शेष धनराशि जमा कराके क्रेडिट लिमिट खाता पुनर्संचालित करें।
                (  2  )
संक्षेप मं परिवादी का केस इस प्रकार ह,ै कि परिवादी फर्नीचर वक्र्स का कुशल कारीगर है। परिवादी की कुशलता व निपुणता के आधार पर कारीगरी के कार्य हेतु मु0 3,00,000=00 की व्यक्तिगत कैश क्रेडिट लिमिट फरवरी 2005 में विपक्षी सं0-2 द्वारा जमा की गयी थी जो खाते के नियमित एवं सुचारू संचालन के आधार पर बैंक विपक्षी ने लिमिट बढ़ाकर मु0 5,00,000=00 कर दिया था। उक्त कैश क्रेडिट लिमिट का खाता सं0-68 है। परिवादी ने विपक्षी बैंक को गारन्टी के तौर पर अपना मु0 75,000=00 का राष्ट््रीय बचत पत्र जमा किया था तथा विपक्षी सं0-4 व 5 बतौर गारन्टर प्रस्तुत किये थे। परिवादी उक्त खाते का संचालन निरन्तर सुचारू रूप से करता रहा तथा अंत में उसने मु0 50,000=00 अतिरिक्त जमा भी किये थे। सम्माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार तमाम आरा मशीनें बंद हो गयी और लकड़ी का अभाव हो गया, जिससे उसकी कारीगरी का काम लगभग ठप हो गया और खाते का संचालन इसी कारण से अनियमित हो गया तो बैंक विपक्षी सं0-2 ने परिवादी व उसके गारन्टर विपक्षी सं0-4 व 5 के विरूद्ध मु0 95,000=00 की धनराशि की वसूली हेतु वसूली प्रमाण-पत्र विपक्षी सं0-1 को जारी कर दिया। 
विपक्षी सं0-1 की ओर से जवाबदावा प्रेषित किया गया और अपने जवाबदावे में कहा गया, कि परिवादी के नाम कोई सम्पत्ति ग्राम पहाड़पुर मुकीमपुर में नहीं पायी गयी इस कारण उसके विरूद्ध आर.सी. का निष्पादन नहीं हो पा रहा है। परिवाद धारा-287-अ व 330-स ज0उ0एक्ट से बाधित है। परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है। 
विपक्षी सं0-2 ने अपने जवाबदावे में कहा है, कि मेसर्स फैन्सी उडेन स्टील फर्नीचर द्वारा प्रोपराइटर अब्दुल करीम जो एक लघु उद्योग है और जिला उद्योग केन्द्र फैजाबाद में पंजीकृत ह,ै द्वारा उद्योग के लिए ऋण हेतु आवेदन करने पर विपक्षी बैंक द्वारा मु0 5,00,000=00 की वित्तीय सहायता दि0 14.02.2005 को स्वीकृत की गई, जिसका उपयोग ऋणी द्वारा किया गया। उपरोक्त ऋण के सम्बन्ध में ऋणी ने आवश्यक ऋण प्रपत्रों का निष्पादन बैंक के पक्ष में कर रखा है। उक्त ऋण की सुरक्षा एवं अदायगी के लिए गारन्टी शिावनायक मिश्रा, पुत्र श्री सन्त प्रसाद, श्री ब्रहमदेव पुत्र श्री राम हरख ने ले रखी ह,ै जिसके सम्बन्ध में उपरोक्त गारन्टर ने गारन्टी सम्बन्धी अभिलेखों को बैंक के पक्ष में नियमानुसार निष्पादित कर रखा है। परिवादी द्वारा बैंक के पक्ष में निष्पादित किये गये प्रपत्रों में दी गई शर्तो व बैंक के नियमों का उल्लंघन करते  हुए  ऋण  खाते  का  संचालन  नियमानुसार  नहीं किये जाने से ऋण खाता 

                    (  3  )
अनियमित हो गया। विपक्षी बैंक द्वारा बार-बार माॅंग किये जाने के बावजूद जब परिवादी ने अपने ऋण खाते का संचालन नियमित नहीं किया, तब विपक्षी बैंक ने परिवादी द्वारा प्रश्नगत ऋण की सुरक्षा हेतु जमा प्रतिभूति मु0 75,000=00 को मय ब्याज परिवादी की सहमति/निर्देश पर उसके ऋण खाते में नियमानुसार दि0 06.05.2006 को जमा कर समायोजित कर दिया। विपक्षी बैंक के प्रबन्धक ने कई बार परिवादी से कहा कि आप ऋण खाते का संचालन नियमानुसार करते हुए प्रश्नगत ़ऋण खाते में लेन-देन करें, डेली सेल प्रोसीड बैंक में जमा करें स्टाक स्टेटमेन्ट जमा करें, लेकिन बार-बार स्मरण दिलाये जाने के बावजूद भी परिवादी ने अपने ऋण खाते का संचालन नियमित नहीं किया। विपक्षी बैंक के अधिकारियों द्वारा परिवादी के यहाॅं जाने पर पाया गया, कि विपक्षी बैंक से प्राप्त ऋण से क्रय किये गये समुचित स्टाक भी मौके पर उपलब्ध नहीं है। तब विपक्षी बैंक ने प्रश्नगत ऋण खाते में दि0 10.02.2007 को बकाया धनराशि मु0 5,37,417=00 की वसूली हेतु रिकाल नोटिस दि0 17.02.2007 को अपने अधिवक्ता के माध्यम से मे0 फैन्सी उडेन स्टील फर्नीचर द्वारा प्रोपराइटर अब्दुल करीम एवं गारन्टर शिवनायक मिश्रा एवं ब्रह्मदेव को इस आशय की दिलवाया कि वे नोटिस प्राप्ति के 15 दिन के अन्दर समस्त बकाया धनराशि बैंक में जमा कर देवें। रिकाल नोटिस के बावजूद भी परिवादी एवं गारन्टर ने प्रश्नगत ऋण खाते में बकाया धनराशि नहीं जमा किया। दि0 01.03.2007 तक धनराशि मु0 5,35,625=00 है, जिसमें दि0 01.3.2007 तक का ब्याज शामिल है व  विविध खर्चे के बाबत डिमान्ड नोटिस अन्तर्गत धारा-13 (2) सरफेसी एक्ट 2002 परिवादी तथा गारन्टर को भेजी गयी। 
        मैं पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्य का अवलोकन किया। जब कोई राष्ट््रीयकृत बैंक किसी व्यक्ति को किसी व्यवसाय करने के लिए ऋण देता है, तो दिये गये ऋण के सम्बन्ध में ऋण की वापसी बैंक को आसानी तरीके से हो जाय। ऋणी अनुबन्ध पत्र भरता है और ऋणी के अनुबन्ध पत्र व ऋण के समर्थक अदायगी न होने पर गारन्टरों की गारन्टी लेता है और उनसे गारन्टी के रूप में उतने ही धनराशि की सम्पत्ति भी गारन्टियों से बन्धक की जाती है। जितनी जिम्मेदारी मूल ऋणी की धन वापसी की होती है। यदि मूल दिये गये ऋण की वापसी किसी कारण से नहीं कर पाता तो उतनी ही जिम्मेदारी गारन्टर जो ऋण मूल ऋणी ने लिया है वापस करने की होती है। बैंक के अनुबन्ध के अनुसार मूल ऋणी यह वचन देता है कि मैं लिये गये ऋण जो अनुबन्ध पत्र  मैंने भरा है उसके अनुसार बैंक को वापस कर दॅंूगा। परिवादी ने अपने परिवाद में 

                      (  4  )
मु0 75,000=00 प्रतिभूति राष्ट््रीय बचत पत्रों को दिया था, जिसको बैंक ने ऋणी द्वारा ऋण के वापसी न होने पर समायोजित कर लिया। परिवादी ने अपने परिवाद में कहा है कि लकड़ी का काम बन्द हो गया है, जिसके कारण वह संचालन नहीं कर पा रहा है इसी कारण बैंक को लिये गये ऋण की वापसी का भुगतान नहीं कर पा रहा है। परिवादी ने यह अनुतोष चाहा ह,ै कि राष्ट््रीय बचत पत्रों का समायोजन करके शेष धनराशि जमा कराके क्रेडिट लिमिट खाता पुनर्संचालित करे। विपक्षी बैंक ने अपने जवाबदावे में कहा है कि ऋण की वापसी न होने पर राष्ट््रीय बचत पत्र के 75,000=00 ऋण में समायोजित कर लिया है। इसके बावजूद भी परिवादी द्वारा लिये गये ऋण की अदायगी नहीं हो पायी है, इसलिए विपक्षी सं0-2 ने परिवादी तथा विपक्षी सं0-4 व 5 के विरूद्ध धन वापसी के सम्बन्ध में वसूली प्रमाण-पत्र विपक्षी सं0-1 के माध्यम से विपक्षी सं0-3 को भेजा है। परिवादी ने बैंक से लिये गये ऋण के सम्बन्ध में जो अनुबन्ध पत्र विपक्षी सं0-2 के पक्ष में भरा है उन शर्तो का पालन परिवादी व गारन्टर ने नहीं किया है और न ही ऋण की अदायगी किया है। परिवादी लकड़ी के कार्य के लिए यह ऋण लिया था, वह कार्य भी बन्द हो गया है। इस प्रकार परिवादी जिस उद्देश्य के लिए विपक्षी सं0-2 से ऋण लिया था, वह उद्देश्य भी विफल हो गया है। बैंक के शर्तो का पालन परिवादी तथा गारन्टर न कर पाने के कारण बैंक की धन की वापसी नहीं हो पा रही है। यह लोक धन होता है। बैंक इस धन की वापसी के लिए जिम्मेदार होता है। इस प्रकार परिवादी के परिवाद में मैं बल नहीं पाता हूॅं। परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है। 

                        आदेश

परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है।

         (विष्णु उपाध्याय)           (माया देवी शाक्य)            ( चन्द्र पाल )            
               सदस्य                   सदस्या                    अध्यक्ष    
                    
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 05.06.2015 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।

           (विष्णु उपाध्याय)         (माया देवी शाक्य)              ( चन्द्र पाल )
               सदस्य                 सदस्या                      अध्यक्ष

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA]
MEMBER
 
[HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY]
MEMBER

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