Uttar Pradesh

Muradabad-II

CC/310/2000

Shri Sudhir Kumar jain - Complainant(s)

Versus

U.P Power Corporation Ltd. - Opp.Party(s)

04 Oct 2016

ORDER

District Consumer Disputes Redressal Forum -II
Moradabad
 
Complaint Case No. CC/310/2000
 
1. Shri Sudhir Kumar jain
R/o 628 Gandhi Nagar, Moradabad
...........Complainant(s)
Versus
1. U.P Power Corporation Ltd.
EDD-I Moradabad
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
Dated : 04 Oct 2016
Final Order / Judgement

द्वारा- श्री पवन कुमार जैन - अध्‍यक्ष

  1.   इस परिवाद के माध्‍यम से परिवादी ने यह उपशम मांगा है कि  विपक्षीगण को आदेशित किया जाऐ कि वे दिनांक 28/12/1999 के बाद  के वि|qत बिलों को सही करें और न्‍यूनतम देय धनराशि काटकर और  परिवादी द्वारा जमा की गई धनराशि को समायोजित कर शेष धनराशि परिवादी को वापिस करें। वि|qत कनेक्‍शन को पुन: चालू  कराने  तथा मानसिक कष्‍ट की मद में क्षतिपूर्ति हेतु 50,000/-रूपया तथा परिवाद व्‍यय की मद में 2000/-रूपया विपक्षीगण से दिलाऐ जाने की भी परिवादी ने मांग की।
  2.   संक्षेप में परिवाद कथन इस प्रकार हैं कि परिवादी ने दिनांक 29/12/1998 को नये कनेक्‍शन हेतु 1413/- रूपया जमा किऐ। दिनांक 23/12/1999 को उसके यहॉं नया मीटर लगाया गया और वि|qत लाइन  डाली गई। नया मीटर लगाने पर मीटर सीलिंग सर्टिफिकेट भी जारी किया गया। परिवादी द्वारा लिया गया यह कनेक्‍शन नया कनेक्‍शन था। मीटर  लगाने के बाद परिवादी को 9900/-रूपया का बिल भेजा गया जिस पर  कोई रीडिंग नहीं लिखी थी। इसके बाद 644/-रूपया का एक और बिल  परिवादी को भेजा गया। इसमें भी बिजली की कोई रीडिंग नहीं दर्शाई गई  थी। बिना रीडिंग बिल भेजकर विपक्षीगण ने सेवाओं में कमी की है।   दिनांक 25/8/2000 को विपक्षीगण की ओर से उत्‍तर प्रदेश सरकारी  बिजली व्‍यवसाय संस्‍था अधिनियम, 1955 की धारा-3 के अधीन नोटिस  परिवादी को भेजा गया जो गलत है। दिनांक 9/9/2000 को परिवादी ने  विपक्षीगण को एक नोटिस भेजा जिसमें उसने मीटर की रीडिंग भी अंकित की। नोटिस मिलने के बाद भी विपक्षीगण ने परिवादी को संशोधित बिल   नहीं भेजा तब मजबूरन परिवादी ने दिनांक 4/10/2000 को 15060/- रूपये अपने अधिकारों को सुरक्षित रखते हुऐ विपक्षीगण के कार्यालय में  जमा करा दिऐ। परिवादी ने अग्रेत्‍तर कहा कि उसकी बिजली की लाइन दिनांक 23/12/1999 को खींची गई थी अत: 23/12/1999 से ही   विपक्षीगण बिल लेने के अधिकारी हैं। परिवादी का आरोप है कि बिल  जमा करने के बावजूद दिनांक 19/10/2000 को गलत तरीके से उसकी लाइन काट दी गई जो सरासर अनुचित है। परिवादी ने यह कहते हुऐ कि   विपक्षीगण की सेवाऐं दोषपूर्ण है, परिवाद में अनुरोधित अनुतोष दिलाऐ  जाने की प्रार्थना की।
  3.   परिवाद के साथ परिवादी द्वारा दिनांक 29/12/1998 को कनेक्‍शन   लेने हेतु जमा किऐ गऐ 1413/- रूपये की रसीद, मीटर सीलिंग सर्टिफिकेट  दिनांकित 23/12/1999, दिनांक 29/12/1998 से 28/2/2000 तक की  अवधि का 9009/-रूपये का बिजली का बिल, दिनांक 31/5/2000 से 30/6/2000 तक की अवधि का 644/- रूपये का बिल, धारा-3 के अधीन  जारी डिमांड नोटिस दिनाक 24/7/2000 मुवलिग 12018/- रूपये, 31/7/2000 से 30/8/2000 की अवधि का बिजली का बिल  अंकन 2007/-  रूपये, विपक्षी सं0-1 को भेजे गऐ कानूनी नोटिस दिनांकित 9/9/2000  तथा  इस  नोटिस को भेजने की डाकखाने की रसीद की फोटो प्रतियों  को  दाखिल   किया गया, यह प्रपत्र पत्रावली के कागज सं0-4/2 लगायत 4/7 हैं।  
  4.   दिनांक 16/11/2002 को यह परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध इस  फोरम द्वारा एकपक्षीय निर्णीत हुआ था। उक्‍त एकक्षीय निर्णय एवं आदेश  के विरूद्ध विपक्षीगण ने मा0 राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, लखनऊ के समक्ष अपील योजित की। उक्‍त अपील में पारित निर्णयादेश  दिनांक 12/8/2014 द्वारा फोरम द्वारा पारित एकपक्षीय निर्णय दिनांक 16/11/2002 को निरस्‍त करते हुऐ मामला पक्षकारों को सुनवाई एवं साक्ष्‍य   का अवसर प्रदान करके गुण-दोष के आधार पर निस्‍तारण हेतु प्रति  प्रेषित किया गया।
  5.   मा0 राज्‍य आयोग द्वारा अपील निर्णीत कर दिऐ जाने के उपरान्‍त विपक्षीगण ने संलग्‍नकों सहित प्रतिवाद पत्र कागज सं0-25/1 लगायत 25/7 दाखिल किया जिसमें परिवादी द्वारा दिनांक 29/12/1998 को 1413/- रूपया किया जाना और दिनांक 23/12/1999 को मीटर सीलिंग प्रमाण पत्र जारी किया जाना तो स्‍वीकार किया गया है, किन्‍तु शेष परिवाद कथनों से  इन्‍कार किया गया। विशेष कथनों में कहा गया कि  परिवादी का कनेक्‍शन  2 किलोवाट क्षमता का है जो वाणिज्यिक श्रेणी का है। दिनांक 29/12/1998 को केबिल डालकर परिवादी की दुकान और संस्‍थान की बिजली लाइन चालू  कर दी गई थी। तत्‍काल मीटर उपलब्‍ध न होने के कारण मीटर दिनांक  23/12/1999 को स्‍थापित किया गया। परिवादी की लाइन चूँकि दिनांक 28/12/1998 को चालू कर दी गई थी और परिवादी के परिसर पर स्‍थापित  मीटर की रीडिंग लेने के लिए जब मीटर रीडर जाता था तो परिसर बन्‍द  रहता था इस कारण परिवादी को  ‘’ N.A. ‘’ के बिल जारी किऐ गऐ जो   मीटर रीडिंग उपलब्‍ध होने पर संशोधित किऐ जा चुके हैं। विपक्षीगण ने  परिवादी को सेवा प्रदान करने में कोई कमी नहीं की। उसे सही बिल भेजे गऐ। बिजली का बिल जमा होने के उपरान्‍त परिवादी की बिजली की लाइन  चालू कर दी गई थी। परिवाद कालबाधित है। कनेक्‍शन चूँकि वाणिज्यिक है  अत: फोरम को परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है। उक्‍त कथनों   के आधार पर परिवाद को खारिज किऐ जाने की प्रार्थना की गई।
  6.   प्रतिवाद पत्र के साथ बतौर संलग्‍नक दिनांक 29/12/1998 से  20/12/2001 तक की अवधि के वि|qत बिलों का विवरण तथा बिल   दिनांकित 13/1/2006 मुवलिग 11,006/- रूपया का दाखिल किया गया है।
  7.   परिवादी ने अपना साक्ष्‍य शपथ पत्र कागज सं0-29/1 लगायत 29/7 दाखिल किया जिसके साथ बतौर संलग्‍नक वे सभी प्रपत्र दाखिल किऐ जो  उसने परिवाद के साथ बतौर कागज सं0-4 लगायत 4/7 पूर्व में दाखिल  किऐ थे।
  8. विपक्षीगण की ओर से श्री अभय कुमार जैन, अधिशासी अभियन्‍ता   का साक्ष्‍य शपथ पत्र कागज सं0-30/1 लगायत 30/2 दाखिल हुआ।
  9.   किसी भी पक्ष ने लिखित बहस दाखिल नहीं की।
  10.  हमने दोनों पक्षों के विद्वान अधिवक्‍तागण के तर्कों को सुना और  पत्रावली का अवलोकन किया।
  11.   विपक्षी  के  विद्वान  अधिवक्‍ता   ने  बिल  कागज  सं0-25/7  की ओर हमारा  ध्‍यान  आकर्षित  करते   हुऐ  तर्क  दिया  कि  परिवादी  का प्रश्‍नगत   कनेक्‍शन   एल0एम0वी0-2  श्रेणी का  वाणिज्यिक  कनेक्‍शन  है  ऐसी  दशा   में   परिवादी   विपक्षी   का  उपभोक्‍ता  नहीं   है  और  परिवाद  उपभोक्‍ता  संरक्षण  अधिनियम  की  धारा-2 (1) (डी) की  व्‍यवस्‍थानुसार  फोरम  के  समक्ष   पोषणीय   नहीं  है।  परिवादी  के  विद्वान  अधिवक्‍ता   ने  प्रतिवाद   किया  और   कहा  कि वर्षग्‍  2000   में  जब   यह  परिवाद  योजित  हुआ  था  उस  समय  वाणिज्यिक प्रयोजन   हेतु   लिऐ   गऐ  कनेक्‍शन   का  उपभोगकर्ता   उपभोक्‍ता   की  श्रेणी   में  था ऐसी  दशा    में  परिवाद   फोरम   के  समक्ष  पोषणीय  नहीं   है  और  परिवादी   विपक्षीगण   का  उपभोक्‍ता  है।
  12.   हमने  परिवादी  के  विद्वान   अधिवक्‍ता  के  उक्‍त  तर्कों  से  सहमत  नहीं  हैं।  मामले   में  जो  कानून पवर्तन  में  होता  है   वही  उस पर  लागू  होता  है।  उपभोक्‍ता  संरक्षण  संशोधन  अधिनियम संख्‍या-82 वर्ष 2002  जो  दिनांक  15/3/2003  से लागू   हुआ  है,  द्वारा  उपभोक्‍ता  संरक्षण   अधिनियम   की  धरा 2 (1) (डी) में संशोधनोपरान्‍त ऐसे व्‍यक्ति  जिसने  वाणिज्यिक  प्रयोजन   हेतु वि|qत कनेक्‍शन लिया  है  वह   '' उपभोक्‍ता ''  की  श्रेणी में  नहीं  आता।   परिवादी  का  प्रश्‍नगत   कनेक्‍शन  वाणिज्यिक  है  अत: परिवादी   विपक्षीगण   का  उपभोक्‍ता   नहीं  है। इमारे  इस  मत  की  पुष्टि वेस्‍ट बंगाल इल्‍ेै0 डिस्टिव्‍यूशन कम्‍पनी बनाम में फलावर  बिल्‍डकोन लि0 II (2016) आयोग नई दिल्‍ली द्वारा दी गई विधि से होती है ा
  13.  चूकि परिवादी उपभोक्‍ता नहीं है अंत: यह परिवाद फोरम के समक्ष पोषण्‍ीय नहीं है परिवाद खारिज होने योग्‍य है 

                                                

  परिवाद खारिज किया जाता  है ।

 

 

   (श्रीमती मंजू श्रीवास्‍तव)    (सुश्री अजरा खान)    (पवन कुमार जैन)

          सदस्‍य               सदस्‍य              अध्‍यक्ष

  •     0उ0फो0-।। मुरादाबाद    जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद  जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद

     04.10.2016           04.10.2016        03.10.2016

     हमारे द्वारा यह निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 04.10.2016 को खुले फोरम में हस्‍ताक्षरित, दिनांकित एवं उद्घोषित किया गया।

 

 

     (श्रीमती मंजू श्रीवास्‍तव)   (सुश्री अजरा खान)    (पवन कुमार जैन)

          सदस्‍य               सदस्‍य              अध्‍यक्ष

  •     0उ0फो0-।। मुरादाबाद    जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद  जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद

       04.10.2016           04.10.2016        04.10.2016

 

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