जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ।
परिवाद संख्या:- 59/2010 उपस्थित:-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
श्रीमती सोनिया सिंह, सदस्य।
श्री कुमार राघवेन्द्र सिंह, सदस्य।
परिवाद प्रस्तुत करने की तारीख:-21.01.2010
परिवाद के निर्णय की तारीख:-31.01.2023
1. Vijay Bahadur Pandey S/o Late R.S. Panday R/o 333, Manas Enclave, Picnic Spot Road, Post CIMAP, Lucknow-226015.
2. Smt. Shobha Pandey W/o Vijay Bahadur Pandey R/o 333, Manas Enclave, Picnic Spot Road, Post CIMAP, Lucknow-226015.
.................COMPLAINANT.
VERSUS
1. The Branch Manager, United India Insurance Co. Ltd, Branch Office 4, 16-M, Gole Market, Mahanagar, Lucknow.
2. The Officer Incharge, United India Insurance Co. Ltd, 24 Whites Road, Chennai-600014.
3. Sri Ajay Tandon, Insurance Consultant, R/o MDH 5/2, Sector-H, Near Sahara Estate Gate, Jankipuram, Lucknow.
.............OPPOSITE PARTIES.
परिवादीगण के अधिवक्ता का नाम:-परिवादी स्वयं।
विपक्षी संख्या 1 व 2 के अधिवक्ता का नाम:-श्री दीपक पाण्डेय।
आदेश द्वारा-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
निर्णय
1. परिवादीगण द्वारा प्रस्तुत परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत विपक्षीगण से जमा धनराशि 10037.00 रूपये जमा किश्तो पर 12 प्रतिशत ब्याज वापसी की तिथि तक, मानसिक शारीरिक क्षति के लिये 50,000.00 रूपये, विधिक व स्टेशनरी खर्च 1500.00 रूपये, एवं वाद व्यय 3500.00 रूपये तथा 5400.00 रूपये पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दिलाये जाने की प्रार्थना के साथ प्रस्तुत किया गया है।
2. संक्षेप में परिवाद के कथन इस प्रकार हैं कि परिवादी रिजर्व बैंक आफ इण्डिया का एक सेवानिव़त्त ग्रेड-1 अधिकारी है। परिवादी संख्या 02 पत्नी के नाम से 1997 में मेडिकेयर फैमिली पालिसी विपक्षी संख्या 01 से 03 द्वारा क्रय किया था जिसमें रक्षा टी0पी0ए0 नामक कार्ड परिवादी संख्या 1 व 2 के नाम जारी हुआ था, तथा दोनों का अलग-अलग 1,80,000.00 रूपये की सीमा तक चिकित्सीय इलाज अनुमन्य किया गया। इसमें से एक पालिसी को 1,80,000.00 से बढ़ाकर 5,00,000.00 रूपये तक कर दिया गया।
3. परिवादी संख्या 03 द्वारा विपक्षी संख्या 01 की ओर से पालिसी के बारे में परिवादी से उसके घर पर मार्च 2009 में संपर्क किया गया तथा सलाह दी गयी कि गंभीर बीमारी व रोगों से निपटने के लिये पूर्व में ली गयी पालिसी को टॉपअप कराना जरूरी है। उसे 1,80,000.00 से 5,00,000.00 रूपये करा लें। इस संदर्भ में परिवादीगण ने विपक्षी को भारतीय रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया, केन्द्रीय कार्यालय मानव संसाधन विकास विभाग के निर्देश संख्या C.O.HRDD/No G55/1604/19.01.00/2007-08 दिनॉंक 07.09.2007 सभी संलग्नकों सहित दिया गया तथा रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया के सेवा निवृत्त कर्मचारीगणों के संबंध में मेडिकेयर पालिसी की लागू शर्तों के संबंध में आर0बी0आई0 लखनऊ कार्यालय ने एक पत्र परिवादी को प्रेषित किया जिसका नम्बर एल0के0मेडिक्लेम/04/10.003/2007-08 दिनॉंक 07.09.2007 जिसमें मेडिक्लेम सं सबंधित सभी सेवा शर्तें अंकित थी जो कि विपक्षी संख्या 03 को दी गयी थी। मेडिक्लेम पालिसी को 2,00,000.00 से 5,00,000.00 तक टॉप अप करने का प्रावधान था। इस शर्त को परिवादी ने विपक्षी संख्या 03 से स्वीकार किया था।
4. परिवादी द्वारा अवगत कराया गया कि रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया द्वारा जारी दिशा निर्देश के क्र में मेडिक्लेम का टॉप अप 2,00,000.00 से 5,00,000.00 करने हेतु विपक्षीगण को सहमति दी गयी थी। विपक्षीगण द्वारा परिवादी का मेडिक्लेम टॉप अप फार्म भरा गया और किश्त के लिए ब्लैंक चेक संख्या-1567533 जो ING Vysys Bank Ltd. शाहनजफ रोड, लखनऊ में देय था दिया गया। परिवादी का कथन है कि टॉप अप फार्म और ब्लैंक चेक विपक्षी को दिए गए थे, जिस पर विपक्षी द्वारा अपनी ओर से मनमानी करते हुए पालिसी संख्या-080102/48/09/26/00000004 दिनॉंकित 02.04.2009 धनराशि 5,00,000.00 रूपये की जगह 15,00,000.00 रूपये का टॉप अप कर दिया गया और 10037.00 रूपये की प्रथम किश्त जमा कर दी। परिवादी को इस संबंध में अंधेरे में रखा गया।
5. परिवादी द्वारा विपक्षी संख्या 01 व 02 को इस संबंध में स्थिति मालूम करने के लिए दिनॉंक 30.06.2009 को लिखित प्रार्थना पत्र दिया गया तथा स्पीड पोस्ट रसीद संख्या EU49256200 5 IN दिनॉंक 02.07.2009 द्वारा पुन: पत्र भेजा गया परन्तु विपक्षी संख्या 01 व 02 द्वारा कोई संज्ञान नहीं लिया गया तथा न ही उत्तर दिया गया।
6. परिवादी द्वारा कथन किया गया है कि विपक्षी संख्या 01 व 03 द्वारा अपने व्यवसाय को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मुझे विश्वास में लिए बिना, बिना मेरी सहमति के मेडिक्लेम का टॉप अप किया गया जो धोखाधड़ी है और आपराधिक कृत्य की श्रेणी में आता है। परिवादी ने विपक्षी संख्या 01 व 03 द्वारा निर्गत टॉप अप मेडिक्लेम पालिसी को वापस लेने की अपील पत्र दिनॉंक 25.09.2009 द्वारा की गयी परन्तु विपक्षीगणों द्वारा पत्र का कोई संज्ञान नहीं लिया गया। दिनॉंक 20.11.2009 को सभी विपक्षीगणों को परिवादी द्वारा नोटिस भेजी गयी। बाद में स्पीडपोस्ट से परिवादी को दिनॉंक 15.01.2010 को दो TPA कार्ड कोरियर से प्राप्त हुए जो विपक्षीगण द्वारा दी गयी मेडिक्लेम पालिसी Raksha TPA न होकर केवल TPA था। इस प्रकार परिवादी को गलत पॉलिसी स्वीकृत की गयी, उसकी सेवा शर्तें अलग थी। परिवादी को धोखा दिया गया। परिवादी द्वारा विपक्षीगणों से अनुतोष दिलाये जाने का अनुरोध किया गया है। परिवादी द्वारा अवगत कराया गया कि रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया द्वारा जारी दिशा निर्देश के क्र में मेडिक्लेम का टॉप अप 2,00,000.00 से 5,00,000.00 करने हेतु विपक्षीगण को सहमति दी गयी थी। विपक्षीगण द्वारा परिवादी का मेडिक्लेम टॉप अप फार्म भरा गया और किश्त के लिए ब्लैंक चेक संख्या-1567533 जो ING Vysys Bank Ltd. शाहनजफ रोड, लखनऊ में देय था दिया गया। परिवादी का कथन है कि टॉप अप फार्म और ब्लैंक चेक विपक्षी को दिए गए थे, जिस पर विपक्षी द्वारा अपनी ओर से मनमानी करते हुए पालिसी संख्या-080102/48/09/26/00000004 दिनॉंकित 02.04.2009 धनराशि 5,00,000.00 रूपये की जगह 15,00,000.00 रूपये का टॉप अप कर दिया गया और 10037.00 रूपये की प्रथम किश्त जमा कर दी। परिवादी को इस संबंध में अंधेरे में रखा गया।
7. विपक्षी संख्या 01 एवं 02 द्वारा अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत करते हुए परिवाद पत्र के कथनों से इनकार किया तथा यह कहा गया कि परिवादी को अपने कथनों को साबित करना है। परिवादी द्वरा स्वयं ही चेक दिया गया और सोच समझकर चेक दिया गया था। उसी के सापेक्ष में प्रीमियम 10,037.00 रूपये था। परिवादी द्वारा झूठे तथ्यों के आधार पर यह परिवाद दाखिल किया गया है। इस न्यायालय को क्षेत्राधिकार नहीं है, क्योंकि प्रस्तुत प्रकरण में फ्राड इन्वाल्वमेंट है अत: इस न्यायालय का क्षेत्राधिकार नहीं है, सिविल कोर्ट को है।
8. विपक्षी संख्या 03 के विरूद्ध दिनॉंक 20.08.2014 को एकपक्षीय कार्यवाही अग्रसारित की गयी थी।
9. परिवादी ने परिवाद के समर्थन में शपथ पत्र एवं भारतीय रिजर्व बैंक का विवरण, रिजर्व बैंक का पत्र, रक्षा टी0पी0ए0, पालिसी शेड्यूल, स्पीड पोस्ट की रसीद आदि दाखिल किया है। विपक्षी संख्या 01 व 02 की ओर से साक्ष्य शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया।
10. मैंने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों को सुना, तथा पत्रावली का परिशीलन किया।
11. यह तथ्य विवाद का विषय नहीं है कि परिवादी द्वारा टापअप में क्या बढ़ाये जाने के संबंध में विपक्षी से संपर्क किया गया तथा 2,00,000.00 रूपये से 5,00,000.00 रूपये तक की सहमति दी गयी थी कि टापअप फार्म और ब्लैंक चेक विपक्षी को दिया गया। इस पर विपक्षी ने अपनी ओर से मनमानी करते हुए 5,00,000.00 रूपये की जगह 15,00,000.00 रूपये का टापअप कर दिया और 1037.00 रूपये की प्रथम किश्त जमा कर दी। परिवादी निश्चित ही विपक्षी का उपभोक्ता है, क्योंकि दो परिवादी ने पालिसी ली थी।
12. परिवाद पत्र के परिशीलन से विदित है कि परिवादी रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया का ग्रेड-1 अधिकारी है और टापअप रिनीवल करने के लिये फार्म और ब्लैंक चेक विपक्षी को दिया होना कहा गया जिस पर विपक्षी द्वारा मनमानी की गयी और धोखा करते हुए 5,00,000.00 की जगह 15,00,000.00 रूपये का टापअप करते हुए 1037.00 रूपये का प्रीमियम अदा कर दिया। जबकि विपक्षी द्वारा उपरोक्त कथनों को इनकार किया गया है। इस तथ्य को साबित करने का भार परिवादी पर है।
13. कोई भी व्यक्ति किसी भी व्यक्ति को कोई चेक से भुगतान करने के लिये देता है तो उस पर वह धनराशि अवश्य लिखता है और जो व्यक्ति रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया का ग्रेड-1 श्रेणी का अधिकारी हो उससे तो अपेक्षा ही नहीं की जा सकती है कि वह ब्लैंक चेक दे दे। अगर मान भी लिया जाए कि ब्लैंक चेक दे दिया है तो ब्लैंक चेक पर किसने धनराशि अंकित की, किस कलम से लिखा गया, किस रंग की इंक से लिखा गया यह सब जॉंच का विषय है।
14. परिवादी द्वारा यह कहना कि धोखा-धड़ी की गयी है। धोखा-धड़ी ऐसे मामले में जबतक की विशेषज्ञ की राय नहीं आये और विशेषज्ञ की राय आने के बाद प्रति परीक्षा, उस व्यक्ति की मुख्य परीक्षा और प्रति परीक्षा जिसने चेक भरा है वह कराया जाना आवश्यक है। किसने धोखा किया यह काम्पलेक्स प्रश्न है।
15. विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि इस न्यायालय का क्षेत्राधिकार नहीं है और सिविल न्यायालय को क्षेत्राधिकार है। इस परिप्रेक्ष्य में उन्होंने राज्य उपभोक्ता आयोग कर्नाटक बंगलौर द्वारा IV 1993 (1) C.P.R. 694 जिसमें कहा गया है कि जहॉं जटिल विषय हो जैसा कि कपट तो उपभोक्ता फोरम का, क्षेत्राधिकार नहीं है। ठीक इसी प्रकार राज्य उपभोक्ता आयोग राजस्थान, जयपुर द्वारा II 1993 (1) C.P.R. 260 में कहा गया है कि कपट डिसेप्शन यह जैसा इस तथ्य में जटिल प्रश्न है, इन प्रश्नों में समरी तौर पर नहीं दिया जा सकता। राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम नई दिल्ली द्वारा I 1992 (1) C.P.R. 34 में जहॉं पर जटिल प्रश्न हो या मिश्रित प्रश्न का उदाहरण हो वहॉं व्यवहार न्यायालय को क्षेत्राधिकार है। प्रस्तुत प्रकरण में भी जटिल विषय वस्तु होना पाया जाता है। उपरोक्त विधि व्यवस्था के आलोक में परिवादी के परिवाद में क्षेत्राधिकार होना नहीं पाया जाता है। अत: खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद क्षेत्राधिकार के अभाव में खारिज किया जाता है। परिवादी यदि चाहे तो वह स्वतंत्र होगा दीवानी न्यायालय अथवा संक्षम न्यायालय में प्रकरण को दाखिल कर सकता है।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
आज यह आदेश/निर्णय हस्ताक्षरित कर खुले आयोग में उदघोषित किया गया।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
दिनॉंक:-31.01.2023