राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील संख्या-2010/2000
(जिला उपभोक्ता फोरम, रामपुर द्वारा परिवाद संख्या-129/1999 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 21.07.2000 के विरूद्ध)
अब्दुल रहमान पुत्र सैफुद्दीन, निवासी मोहल्ला कुरैशी मार्केट, सी.आर.पी. रोड, ज्वालानगर, सिटी व जिला रामपुर।
अपीलार्थी/परिवादी
बनाम्~
1. उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद द्वारा एग्जीक्यूटिव इंजीनियर, उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद, विद्युत वितरण खण्ड प्रथम, निकट नाहिद सिनेमा, रामपुर।
2. उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लि0, लखनऊ द्वारा चेयरमैन।
प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण
समक्ष:-
1. माननीय श्री जितेन्द्र नाथ सिन्हा, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्री संजय कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री दीपक मेहरोत्रा, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक 20.10.2016
मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रकरण पुकारा गया। वर्तमान अपील, परिवाद संख्या-129/1999, अब्दुल रहमान बनाम उ0प्र0 राज्य विद्युत परिषद में जिला फोरम, रामपुर द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 21.07.2000 से क्षुब्ध होकर परिवादी/अपीलार्थी की ओर से योजित की गयी है, जिसके अन्तर्गत जिला फोरम द्वारा प्रश्नगत परिवाद खण्डित कर दिया गया है।
अपीलार्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। प्रत्यथीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री दीपक मेहरोत्रा उपस्थित हैं। पत्रावली के परिशीलन से प्रकट होता है कि दिनांक 03.03.2014 को अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता उपस्थित हुए थे, उसके
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पश्चात से उनकी ओर से कोई उपस्थित नहीं आया। वर्तमान अपील, वर्ष 2000 से विचाराधीन है, अत: न्यायसंगत पाया जाता है कि वर्तमान अपील को गुणदोष के आधार पर निर्णीत कर दिया जाये। तदनुसार प्रत्यर्थीगण के विद्वान अधिवक्ता को विस्तार से सुना गया एवं उपलब्ध अभिलेखों तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश का परिशीलन किया गया।
परिवाद पत्र का अभिवचन संक्षेप में इस प्रकार है कि 18.402 किलोवाट का विद्युत कनेक्शन परिवादी/अपीलार्थी द्वारा विपक्षी से प्राप्त किया गया था और विद्युत कनेक्शन के जरिये परिवादी चक्की चलाकर लोगों का आटा पीस कर पिसाई के पैसों से अपना व अपने परिवार का भरण पोषण करता रहा है। फरवरी 1997 में बिजली के बिल बेबुनियाद व गलत आधार पर आने शुरू हो गये, जिसकी शिकायत करने पर उक्त बिल दुरूस्त नहीं किये गये तथा माह फरवरी 1998 से बिल आना बन्द हो गये एवं दिनांक 22.12.1998 को रू0 73,135/- की धनराशि दिखाते हुए अक्टूबर 1998 तक का बिल विद्युत विभाग द्वारा भेजा गया, जो गलत है। अक्टूबर 1997 को विद्युत कनेक्शन भुगतान न होने के कारण अवैध रूप से विद्युत विभाग द्वारा काट दिया गया था। प्रश्नगत विद्युत कनेक्शन काटे जाने के पश्चात भी विद्युत विभाग परिवादी के प्रश्नगत विद्युत कनेक्शन के खाते में बिल जोड़ता गया, जबकि परिवादी के अनुसार उसने अक्टूबर 1997 को विद्युत कनेक्शन अवैध रूप से काटे जाने के पश्चात से विद्युत उपभोग नहीं किया है। दिनांक 04.04.1999 को विपक्षी विद्युत विभाग के कर्मचारी आये और आटा चक्की का कनेक्शन जो कटा हुआ था, को जबरन बिना अधिकार के सील कर दिया। अप्रैल 1999 को परिवादी को जेल में बन्द कर दिया गया, जिस पर परिवादी को रू0 5500/- आपत्ति के तहत जमा करने पर छोड़ा गया। उक्त अभिवचन करते हुए परिवादी द्वारा परिवाद के माध्यम से निम्नलिखित अनुतोष की याचना की गयी है :-
‘’ (क) फरवरी 1997 से 10297 तक के विद्युत बिल एवरेज के आधार पर बनवाये जाये।
(ख) 10/97 से विद्युत कनेक्शन जोड़े जाने तक उक्त विद्युत कनेक्शन के बिल समाप्त किये जाये।
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(ग) अवैध रूप से सील की गई आटा चक्की को खुलवाया जाये।
(घ) प्रार्थी का विद्युत कनेक्शन जोड़ा जाये।
(ड) मानसिक आघात की क्षतिपूर्ति के 50000/- दिलाया जाये।
(च) खर्चा आना जाना 1000/- दिलाया जाये।
(छ) खर्चा मुकदमा फीस वकील 2200/- दिलायी जाये।
(ज) अन्य कोई अनुतोष जिसका प्रार्थी हकदार हो। हो। ‘’
जिला फोरम के समक्ष विपक्षी, विद्युत विभाग की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ, अत: जिला फोरम द्वारा परिवादी के अभिवचन और उपलब्ध अभिलेखों के आधार पर विचार करते हुए यह निष्कर्ष दिया गया कि परिवादी के विरूद्ध बिल जमा न करने पर वसूली प्रमाण पत्र निर्गत किया गया था। जिला फोरम को विद्युत बिल को समाप्त करने का कोई अधिकार प्राप्त नहीं है तथा विद्युत कनेक्शन जोड़े जाने के सन्दर्भ में भी आदेश दिये जाने का कोई औचित्य नहीं है। परिवादी की ओर से प्रस्तुत शपथपत्र से भी यह स्पष्ट नहीं कहा जा सका है कि उसने बिलों का भुगतान कर दिया है। ऐसी स्थिति में विद्युत कनेक्शन जोड़े जाने एवं आटा चक्की को खुलवाये जाने का कोई प्रश्न उत्पन्न नहीं होता है। उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर प्रश्नगत परिवाद खण्डित कर दिया गया, जिससे क्षुब्ध होकर वर्तमान अपील, परिवादी/अपीलार्थी की ओर से योजित की गयी है।
पत्रावली के परिशीलन से प्रकट होता है कि दिनांक 19.05.2014 के पश्चात से वर्तमान प्रकरण में अपीलार्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं आया है। आधार अपील में वसूली प्रमाण पत्र की वैधता को चुनौती दी गयी है और कहा गया है कि विद्युत विभाग सरकारी विभाग नहीं है। ऐसी स्थिति में प्रश्नगत वसूली प्रमाण पत्र बिना अधिकार के निर्गत किया गया है एवं वसूली प्रमाण पत्र निर्गत करने के पूर्व परिवादी को कोई नोटिस नहीं दिया गया। इस आधार पर भी वसूली प्रमाण पत्र निर्गत किया जाना गलत है। आधार अपील में यह भी आधार लिया गया है कि परिवादी/अपीलार्थी का विद्युत कनेक्शन स्थायी रूप से काट दिया गया था, जबकि विद्युत कनेक्शन स्थायी रूप से काटे जाने के सन्दर्भ में कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया गया है। आधार अपील में यह भी
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अभिवचित किया गया कि रू0 5500/- जमा करने पर परिवादी/अपीलार्थी को छोड़ा गया, जिससे यह प्रकट होता है कि उसके जिम्मे कोई बिल बकाया नहीं है, जबकि अपील में ही तथ्यों को अभिवचित करते हुए यह कहा गया है कि रू0 17,495/- का रिकवरी सर्टिफिकेट निर्गत किया गया था और रू0 5500/- जमा करने पर उसे छोड़ा गया था, इससे यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि परिवादी/अपीलार्थी के जिम्मे कोई बिल बकाया नहीं है। परिवादी/अपीलार्थी के जिम्मे विद्युत बिल का बकाया होना पाया जाता है। इस सन्दर्भ में जिला फोरम द्वारा स्पष्ट निष्कर्ष दिया गया है, जिसमें किसी प्रकार की कोई त्रुटि होना नहीं पायी जाती है। तदनुसार वर्तमान अपील खण्डित होने योग्य है।
आदेश
वर्तमान अपील खण्डित की जाती है।
(जितेन्द्र नाथ सिन्हा) (संजय कुमार)
पीठासीन सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-2