(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
परिवाद संख्या-103/2011
श्री अरविन्द ग्रामोद्योग संस्थान, निकट टपरी रेलवे स्टेशन, सहारनपुर द्वारा सेक्रेटरी श्रीमती अर्चना जिंदल, निवासिनी मकान नं0-W2-187, प्रथम तल, प्लाट नं0-387, चांद नगर, नई दिल्ली 110018 ।
परिवादिनी
बनाम
1. यू.पी. पावर कारपोरेशन लिमिटेड, द्वारा चेयरमैन, शक्ति भवन, अशोक मार्ग, लखनऊ।
2. सुप्रीटेंडिंग इंजीनियर, यू.पी. पावर कारपोरेशन लिमिटेड, सहारनपुर।
3. एक्जीक्यूटिव इंजीनियर, इलेक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूशन डिवीजन III, यू.पी. पावर कारपोरेशन लिमिटेड, सहारनपुर।
विपक्षीगण
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
परिवादिनी की ओर से उपस्थित : श्री विकास अग्रवाल की कनिष्ठ
सहायक सुश्री पलक शाही।
विपक्षीगण की ओर से उपस्थित : श्री इसार हुसैन।
दिनांक: 04.06.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. यह परिवाद, विपक्षीगण के विरूद्ध अंकन 45,32,076/-रू0 24 प्रतिशत ब्याज के साथ प्राप्त करने के लिए तथा अंकन 25,000/-रू0 प्रताड़ना की मद में एवं अंकन 50,000/-रू0 परिवाद व्यय के रूप में प्राप्त करने के लिए प्रस्तुत किया गया है।
2. परिवाद के तथ्य का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है कि परिवादी सोसायटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट के अंतर्गत एवं खादी एण्ड विलेज इण्डस्ट्री कमीशन के अंतर्गत पंजीकृत एक संस्था है। परिवादिनी ने 75 एच.पी. का विद्युत कनेक्शन स्वीकृत कराने के लिए आवेदन दिया। परिवादिनी को Cylinder Mould Vat Handmade Paper Industry स्थापित करनी थी, जिसके लिए खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग से अंकन 10.74 लाख का ऋण प्राप्त किया गया। विपक्षी संख्या-1 ने 75 एच.पी. विद्युत कनेक्शन दिनांक 8.1.1992 को स्वीकृत किया तथा जून 1992 में ट्रांसफार्मर स्थापित किया। अप्रैल 1993 में विद्युत मीटर स्थापित किया गया तथा विद्युत आपूर्ति प्रारम्भ की गई। एनर्जी मीटर तथा केबिल अत्यधिक निम्न स्तर के थे और उनकी क्षमता 3 एच.पी. मशीन का लोड ग्रहण करने की नहीं थी। दिनांक 16.8.1993 को विपक्षी द्वारा विद्युत मीटर हटा लिया गया और दिनांक 29.8.1993 को विद्युत आपूर्ति बंद कर दी गई, इसके बाद दिनांक 4.9.1993 को अपेक्षित विद्युत मीटर स्थापित किया गया, परन्तु केबिल नहीं लगाया गया। दिनांक 6.9.1993 को स्वंय परिवादिनी ने मार्केट से अपेक्षित क्षमता का केबिल क्रय किया। अप्रैल 1993 से अगस्त 1993 तक नया विद्युत मीटर एवं केबिल लगने के कारण विद्युत का प्रयोग नहीं किया गया, परन्तु कुल रू0 53,740.80 पैसे का विद्युत बिल प्राप्त हुआ। शिकायत करने पर भी विद्युत बिल दुरूस्त नहीं किया गया। बाध्यतावश परिवादिनी ने आंशिक भुगतान अंकन 10,000/-रू0 का दिनांक 1.10.1993 को किया और विद्युत आपूर्ति प्रारम्भ की गई, इसके बाद यह पाया गया कि विद्युत मीटर विपरीत दिशा में चल रहा है, जिसकी सूचना विपक्षीगण को दी गई। दिनांक 5.11.1993 को ही विद्युत आपूर्ति प्रारम्भ की गई। दिनांक 25.9.1993 से दिनांक 25.11.1993 तक कुल रू0 71,582.90 पैसे का बिल बनाया गया, जिसकी शिकायत करने के बावजूद कि कोई विद्युत का प्रयोग नहीं हुआ है एक संशोधित बिल अंकन 39,880/-रू0 का दिया गया, इसके बाद पुन: दिनांक 24.12.1993 को आंशिक भुगतान के रूप में अंकन 10,000/-रू0 जमा कराए गए, इसके बाद दिनांक 12.3.1994 को विद्युत कनेक्शन काट दिया गया और परिवादिनी को रू0 55,873.40 पैसे जमा करने के लिए बाध्य किया गया, इसके बाद दिनांक 30.3.1994 को अंकन 20,000/-रू0 परिवादिनी द्वारा जमा किए गए तब दिनांक 31.3.1994 को विद्युत आपूर्ति प्रारम्भ की गई। अधीक्षण अभियन्ता ने विद्युत बिल के संबंध में विवाद का निपटारा न होने तक विद्युत आपूर्ति भंग न होने की हिदायत दी, परन्तु विपक्षी संख्या-3 द्वारा पुन: रू0 95,450.60 पैसे का बिल जारी कर दिया गया और दिनांक 27.10.1997 को स्थायी रूप से कनेक्शन विच्छेदन का अनुरोध किया गया, परन्तु इस अनुरोध के बावजूद दिनांक 25.3.1998 से दिनांक 25.4.1998 का विद्युत बिल अंकन 538506/-रू0 का जारी कर दिया गया। दिनांक 21.6.2000 को कुल 94,948/-रू0 की वसूली का मांग पत्र जारी किया गया। विपक्षीगण द्वारा विद्युत आपूर्ति न करने के कारण परिवादिनी को आर्थिक नुकसान हुआ, जिसके लिए दिनांक 27.6.2000 को MRTP कमीशन के अंतर्गत शिकायत की गई। दिनांक 2.5.2011 को संधारणीय न मानते हुए शिकायत खारिज कर दी गई, इसके बाद यह उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत किया गया।
3. परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र तथा दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत की गई।
4. विपक्षीगण की ओर से प्रस्तुत लिखित कथन में इस तथ्य को स्वीकार किया गया है कि दिनांक 16.8.1993 को विद्युत मीटर बदला गया और सीलिंग सर्टिफिकेट तैयार किया गया। परिवादिनी द्वारा विद्युत बिल का भुगतान नहीं किया गया और केवल आंशिक भुगतान किया गया है। शिकायतकर्ता ने एनर्जी मीटर ट्रांसफार्मर से जोड़ा था, जो 3 एच.पी. लोड नहीं उठा पा रहा था, जबकि स्वीकृत भार 75 एच.पी. का था। शिकायतकर्ता को न्यूनतम डिमांड चार्जेज के बिल भेजे गए थे, परन्तु इन बिलों का भुगतान नहीं किया गया। अप्रैल 1993 से अक्टूबर 1993 तक के न्यूनतम बिल की अदायगी का दायित्व परिवादिनी पर है, जो एनर्जी मीटर मांगा गया, वह प्रस्तुत नहीं कराया गया, इस विवाद का निपटारा इलेक्ट्रिक इंस्पेक्टर द्वारा किया जाना था। चूंकि विद्युत भुगतान नहीं किया गया, इसलिए विद्युत कनेक्शन विच्छेदित किए जाने योग्य था। परिवादिनी को विद्युत बिल भेजे गए, उनके द्वारा स्थायी रूप से विद्युत विच्छेदन करने का अनुरोध किया, परन्तु चूंकि बिल जमा नहीं किए गए थे, इसलिए विद्युत कनेक्शन स्थायी रूप से विच्छेदित नहीं किया गया। MRTP कमीशन में परिवाद दाखिल करने के पश्चात इस आयोग के समक्ष परिवाद संधारणीय नहीं है।
5. दोनों पक्षों के विद्वान अधिवक्तागण को सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का अवलोकन किया गया।
6. स्वंय परिवाद के अवलोकन से स्पष्ट हो जाता है कि परिवादिनी द्वारा 75 एच.पी. का विद्युत कनेक्शन लिया गया। यह विद्युत कनेक्शन उद्योग को स्थापित करने के लिए लिया गया। इस प्रकार यह कनेक्शन विशुद्ध रूप से व्यापारिक प्रकृति का कनेक्शन है। अत: व्यापारिक प्रकृति का विद्युत कनेक्शन होने के कारण उपभोक्ता परिवाद संधारणीय नहीं है। परिवाद के अवलोकन से यह भी जाहिर होता है कि स्वंय परिवादिनी द्वारा विद्युत बिल का भुगतान समयावधि के अंतर्गत नहीं किया गया। परिवादिनी द्वारा जो राशि जमा की गई, वह आंशिक रूप से जमा की गई। परिवाद प्रस्तुत करने से पूर्व परिवादिनी पर विद्युत शुल्क बकाया था, जिस अवधि के दौरान परिवादिनी द्वारा विद्युत का उपभोग नहीं किया जा सका, उस अवधि के दौरान भी स्थायी विच्छेदन न होने के कारण न्यूनतम शुल्क दिए जाने की बाध्यता परिवादिनी पर है। यद्यपि परिवादिनी द्वारा स्थायी विद्युत विच्छेदन का अनुरोध किया गया था, परन्तु स्थायी विद्युत विच्छेदन केवल उस स्थिति में हो सकता है जब सम्पूर्ण बिलों का भुगतान कर दिया गया हो। प्रस्तुत केस में परिवादिनी द्वारा सम्पूर्ण बिलों का भुगतान नहीं किया गया, इसलिए स्थायी विद्युत विच्छेदन नहीं हो सकता था। विपक्षीगण के किसी आचरण के कारण परिवादिनी द्वारा अपने उद्योग का संचालन नहीं किया गया, यह तथ्य स्थापित नहीं है। अत: परिवाद पत्र में क्षतिपूत्रि की जिस राशि की मांग की गई है, उसकी अदायगी के लिए विद्युत विभाग उत्तरदायी नहीं है। तदनुसार प्रस्तुत परिवाद खारिज होने योग्य है।
आदेश
7. प्रस्तुत परिवाद खारिज किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2