Uttar Pradesh

StateCommission

C/2012/156

Vijay Bhushan Garg - Complainant(s)

Versus

U P Avas Vikas Parishad - Opp.Party(s)

M Tariq Iqbal And I. P. S. Chada

05 Dec 2024

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
Complaint Case No. C/2012/156
( Date of Filing : 23 Nov 2012 )
 
1. Vijay Bhushan Garg
a
...........Complainant(s)
Versus
1. U P Avas Vikas Parishad
a
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 05 Dec 2024
Final Order / Judgement

(मौखिक)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

परिवाद संख्‍या-156/2012

विजय भूषण गर्ग पुत्र स्‍व0 मंगत राम बनाम उत्‍तर प्रदेश आवास विकास परिषद

 

समक्ष:-                                                   

1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य।

2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्‍याय, सदस्‍य।

दिनांक:  05.12.2024 

माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

1.    यह परिवाद, विपक्षी आवास विकास परिषद के विरूद्ध परिवादी के पक्ष में आवंटित भवन को निरस्‍त करने तथा परिवादी के पक्ष में भवन आवंटित कर अवशेष राशि प्राप्‍त कर विक्रय पत्र निष्‍पादित करने के अनुतोष के साथ प्रस्‍तुत किया गया है तथा मानसिक प्रताड़ना की मद में अंकन 2,50,000/-रू0 तथा अन्‍य क्षतिपूर्ति की मद में अंकन 5,00,000/-रू0 तथा परिवाद व्‍यय के रूप में अंकन 10,000/-रू0 की मांग की गई है।

2.    परिवाद के तथ्‍यों के अनुसार दिनांक 12.10.2012 को परिवादी ने एक भवन सं0-177 एमआईजी रूद्रपुर योजना 1 के अंतर्गत आवंटित किया गया। आवंटन पत्र अनेक्‍जर सं0-1 है। दिनांक 5.11.2012 के अनुपालन में अंकन 1,50,000/-रू0 की राशि जमा कर दी गई। अवशेष राशि भी परिवादी जमा करने के लिए तत्‍पर एवं इच्‍छुक हैं। अवशेष राशि अंकन 20,82,510/-रू0 दिनांक 31.01.2013 तक जमा करनी थी। परिवादी द्वारा प्राइवेट व्‍यक्तियों से 18 प्रतिशत ब्‍याज पर धन की व्‍यवस्‍था की गई थी, परन्‍तु विपक्षी द्वारा अचानक दिनांक 20.11.2012 को आवंटन निरस्‍त कर दिया गया और परिवादी द्वारा जमा धन को वापस करने का आदेश दिया। निरस्‍तीकरण पत्र अनेक्‍जर सं0-4 है। अत: विपक्षी द्वारा सेवा में कमी की गई है, इसलिए उपभोक्‍ता परिवाद प्रस्‍तुत करते हुए उपरोक्‍त वर्णित अनुतोषो की मांग की गई।

-2-

3.    परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र तथा उपरोक्‍त वर्णित अनेक्‍जर प्रस्‍तुत किए गए।

4.    विपक्षी का कथन है कि दिनांक 5.11.2012 को आवंटन पत्र जारी किया गया। परिवादी द्वारा जमा राशि को भी स्‍वीकार किया गया। परिवादी द्वारा भवन का जो मूल्‍य बताया गया था, उस तथ्‍य को भी स्‍वीकार किया गया, परन्‍तु उल्‍लेख किया गया कि परिवादी के पक्ष में इस भवन को आवंटित करने के बाद स्‍थानीय लोगों तथा राजनैतिक प‍ार्टियों ने अवरोध उत्‍पन्‍न किया और सम्‍पत्ति को मात्र 20 लाख रूपये में विक्रय करने का दोषारोपण किया गया। इसी आधार पर आवं‍टन निरस्‍त किया गया है।

5.    लिखित कथन के समर्थन में शपथ पत्र तथा अनेक्‍जर 1 लगायत 5 प्रस्‍तुत किए गए।

6.    परिवादी के विद्वान अधिक्‍ता श्री आईपीएस चड्ढा तथा विपक्षी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री एन.एन. पाण्‍डेय को सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्‍ध अभिलेखों का अवलोकन किया गया।

7.    प्रस्‍तुत परिवाद के विनिश्‍चय के लिए प्रथम विनिश्‍चायक बिन्‍दु यह उत्‍पन्‍न होता है कि क्‍या आवंटन के पश्‍चात स्‍थानीय विरोध के कारण आवंटन निरस्‍त करने का ओदश विधिसम्‍मत है ?

8.    विपक्षी के विद्वान अधिवक्‍ता ने इस पीठ का ध्‍यान अमर ऊजाला में प्रकाशित इस खबर की ओर आकृष्‍ट किया कि परिवादी को भूमि कम मूल्‍य में आवंटित की गई है। यह सही है कि उपभोक्‍ता विवादों के निस्‍तारण में भारतीय साक्ष्‍य अधिनियम के प्रावधान दृढ़ता के साथ लागू नहीं होते, परन्‍तु इस स्थिति के बावजूद केवल इस आधार पर आवंटन निरस्‍त करना उचित नहीं माना जा सकता कि किसी दैनिक समाचार पत्र में यह प्रकाशित हुआ कि स्‍थानीय लोगों द्वारा आंवटन पर आपत्ति की गई है।

-3-

9.    अनेक्‍जर सं0-4 में आवंटन निरस्‍त करने का कोई आधार नहीं दर्शाया गया है, बगैर आधार के आवंटन पत्र निरस्‍त करना किसी भी दृष्टि से विधिसम्‍मत नहीं कहा जा कहा जा सकता, इसलिए आवंटन निरस्‍त करने का आदेश विधि विरूद्ध है।

10.   अब इस बिन्‍दु पर विचार करना है कि आवंटन निरस्‍त करने का आदेश विधि विरूद्ध घोषित होने के पश्‍चात परिवादी किस अनुतोष को प्राप्‍त करने के लिए अधिकृत है।

11.   चूंकि परिवादी द्वारा आवंटन मूल्‍य की समस्‍त राशि अदा करने के लिए तत्‍पर एवं इच्‍छुक है, परन्‍तु चूंकि एक लम्‍बी अवधि व्‍यतीत हो चुकी है। अत: केवल मूल आवंटित राशि ही नहीं अपितु इस राशि पर ब्‍याज वसूल करने के लिए भी विपक्षी प्राधिकरण को अधिकृत किया जाना चाहिए, इस अवसर पर यह सुनिश्चित किया जाना भी समीचीन होगा कि ब्‍याज राशि किस दर से विपक्षी वसूल कर सकते हैं। चूंकि आवंटन विपक्षी द्वारा मनमाने तौर पर निरस्‍त किया गया है, इस आवंटन के निरस्‍तीकरण में परिवादी का कोई दोष नहीं है। अत: परिवादी से दण्‍ड ब्‍याज नहीं वसूल किया जा सकता है। परिवादी से केवल सामान्‍य बैंक दर, जिस दर पर बैंक द्वारा ऋण उपलब्‍ध कराया जाता है, वह ब्‍याज दर बैंक से प्रमाण पत्र प्राप्‍त करते हुए वसूल किया जा सकता है।

12.   परिवादी की ओर से मानसिक प्रताड़ना की मद में भी राशि की मांग की गई है। चूंकि विपक्षी द्वारा मनमाने तौर पर परिवादी का आंवटन निरस्‍त किया गया है, इसलिए परिवादी को मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक प्रताड़ना कारित हुई है। अत: इस मद में परिवादी अंकन 1,00,000/-रू0 प्राप्‍त करने के लिए अधिकृत है तथा परिवाद व्‍यय के रूप में अंकन 25,000/-रू0  की  राशि  भी  प्राप्‍त  करने के लिए अधिकृत है। तदनुसार

 

 

-4-

प्रस्‍तुत परिवाद स्‍वीकार होने योग्‍य है।

आदेश

13.   प्रस्‍तुत परिवाद स्‍वीकार किया जाता है। विपक्षी द्वारा परिवादी के पक्ष में किए गए आवंटन को निरस्‍त करने का आदेश अपास्‍त किया जाता है तथा विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी से बकाया राशि बैंक दर पर देय ब्‍याज की दर से वसूल कर विक्रय पत्र निष्‍पादित करे तथा आवंटन पुन: पुनर्स्‍थापित करे। इस मद में परिवादी को एक माह के अंदर मांग पत्र जारी किया जाए और मांग पत्र प्राप्‍त होने के पश्‍चात परिवादी द्वारा एकमुश्‍त राशि अगले 15 दिन के अन्‍दर विपक्षी के कार्यालय में जमा की जाए। मानसिक प्रताड़ना की मद में अंकन 1,00,000/-रू0 तथा परिवाद व्‍यय के रूप में अंकन 25,000/-रू0 की राशि देय होगी। मानसिक प्रताड़ना तथा परिवाद व्‍यय की मद में देय राशि पर कोई ब्‍याज देय नहीं होगा।

     आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।

 

 

(सुधा उपाध्‍याय)                        (सुशील कुमार)

  सदस्‍य                                 सदस्‍य

लक्ष्‍मन, आशु0, कोर्ट-2

 

 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY]
MEMBER
 

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