राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
निष्पादन वाद संख्या-25/2010
मै0 सहारा इण्डिया, सहारा इण्डिया भवन, 1 कपूरथला काम्प्लेक्स, अलीगंज, लख्नऊ द्वारा अधिकृत सिग्नेचरी बी0एम0 त्रिपाठी, चीफ जनरल मैनेजर (ला) पुत्र स्व0 श्री एम0एम0 त्रिपाठी।
निष्पादनकर्ता/परिवादी
बनाम्
1. हाउसिंग कमिश्नर, यू0पी0 आवास एवम विकास परिषद, 104 महात्मा गांधी मार्ग, लखनऊ।
2. श्री वी0के0 मेहरोत्रा पुत्र श्री ओ0एन0 मेहरोत्रा, इस्टेट मैनेजमेंट आफिसर (सम्पत्ति प्रबन्धक अधिकारी) यू0पी0 आवास एवम विकास परिषद, बी-60 सूरज कुण्ड कालोनी, गोरखपुर, (यू0पी0)।
3. एग्जीक्यूटिव इंजीनियर, यू0पी0 आवास एवम विकास परिषद, गोरखपुर महादेव जारखण्डी योजना, बी-60, सूरज कुण्ड कालोनी, गोरखपुर (यू0पी0)।
प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण
समक्ष:-
1. माननीय श्री जितेन्द्र नाथ सिन्हा, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्री संजय कुमार, सदस्य।
निष्पादनकर्ता की ओर से उपस्थित : श्री ए0के0 श्रीवास्तव, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री मनोज मोहन, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक 29.07.2016
मा0 श्री जितेन्द्र नाथ सिन्हा, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय/आदेश
वर्तमान निष्पादन वाद, परिवाद सं0-37/1993, मै0 सहारा इण्डिया बनाम यू0पी0 आवास एवम विकास परिषद व अन्य में राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 04.01.2010 का अनुपालन कराये जाने हेतु प्रस्तुत किया गया है।
डिक्रीदार की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री ए0के0 श्रीवास्तव तथा निर्णीत ऋणी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री मनोज मोहन उपस्थित है। उभय पक्ष को सुना गया एवं उपलब्ध अभिलेखों का परिशीलन किया गया।
अविवादित रूप से प्रश्नगत भवन का कब्जा डिक्रीदार को दिनांक 29.12.2012 को उपलब्ध करा दिया गया था। डिक्रीदार द्वारा वर्तमान निष्पादन कार्यवाही में इस आशय का प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया है कि उन्हें कब्जा दिनांक 29.12.2012 को उपलब्ध करा दिया गया एवं प्रश्नगत निर्णय, जिसका
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निष्पादन विचाराधीन है, उसमें कब्जे की तिथि तक ब्याज दिलाये जाने का आदेश पारित है, अत: उन्हें इस सन्दर्भ में रू0 24,412.50 ब्याज दिलाया जाये। उपरोक्त प्रार्थना पत्र के सन्दर्भ में निर्णीत ऋणी की ओर से आपत्ति प्रस्तुत की गयी और यह कहा गया कि निर्णीत ऋणी द्वारा डिक्रीदार को प्रश्नगत भवन का कब्जा दिलाये जाने हेतु पत्र दिनांक 20.05.2012 को भेजा था और कब्जा लेने में विलम्ब डिक्रीदार की ओर से किया गया है। ऐसी स्थिति में कब्जा की तिथि तक ब्याज दिलाये जाने का कोई औचित्य नहीं है। इस सन्दर्भ में इतना ही कहना पर्याप्त है कि डिक्रीदार का विलम्ब से कब्जा लेने और निर्णीत ऋणी का विलम्ब से कब्जा देने का बिन्दु, प्रश्नगत निष्पादन में विचार किये जाने का कोई औचित्य नहीं है। प्रश्नगत निर्णय/आदेश में डेट आफ डिलीवरी आफ पजेशन का स्पष्ट आदेश है, अत: उक्त आदेश के दृष्टिगत डिक्रीदार उपरोक्त वर्णित धनराशि निर्णीत ऋणी से पाने का अधिकारी है, अत: निर्णीत ऋणी को आदेशित किया जाता है कि वह रू0 24,412.50 का भुगतान डिक्रीदार को करना सुनिश्चित करें।
निर्णीत ऋणी द्वारा यह बताया गया कि निर्णीत ऋणी की आयोग के खाते में जो धनराशि जमा है, उसमें से उपरोक्त वर्णित धनराशि डिक्रीदार को उपलब्ध करा दी जाये एवं शेष धनराशि निर्णीत ऋणी को वापस कर दी जाये, अत: यदि निर्णीत ऋणी की धनराशि राज्य आयोग में जमा है, तो उसमें से उपरोक्त वर्णित धनराशि डिक्रीदार को उपलब्ध कराकर शेष धनराशि निर्णीत ऋणी को वापस कर दी जाये।
तदनुसार निष्पादन वाद निस्तारित किया जाता है।
(जितेन्द्र नाथ सिन्हा) (संजय कुमार)
पीठासीन सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2