राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील सं0-323/2017
(जिला उपभोक्ता आयोग (प्रथम), आगरा द्वारा परिवाद सं0-63/2004 में पारित प्रश्नगत आदेश दिनांक 26-08-2015 के विरूद्ध)
राजेश्वरी देवी पत्नी श्री रामदीन तिवारी पूर्व सैनिक निवासी 11/41/1/9 सीता नगर फिरोजाबाद रोड आगरा। .........अपीलार्थी/परिवादिनी।
बनाम
1. अध्यक्ष श्री उमेश कुमार उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम प्रथम आगरा।
2. सहायक उ०प्र० आवास विकास परिषद, काम्पलैक्स आफिस, कमला नगर, आगरा।
3. मुख्य आवास आयुक्त, उ० प्र० आवास विकास परिषद, 104 महात्मा गांधी मार्ग, लखनऊ। .........प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण।
समक्ष:-
1. मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
2. मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: कोई नहीं।
प्रत्यर्थी उ0प्र0 आवास विकास परिषद की ओर से उपस्थित: श्री एन0एन0 पाण्डेय
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक :- 04-07-2024.
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा-15 के अन्तर्गत, जिला उपभोक्ता आयोग (प्रथम), आगरा द्वारा परिवाद सं0-63/2004 में पारित प्रश्नगत आदेश दिनांक 26-08-2015 के विरूद्ध योजित की गयी है।
परिवाद पत्र के अनुसार समाचार पत्र में प्रकाशित विज्ञापन के अनुसार दुकान के पंजीकरण हेतु परिवादिनी ने 2,000/- रू0 उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद के खाते में इलाहाबाद बैंक, छिली ईंट रोड, घटिया आगरा में चालान सं0-698 के माध्यम से दिनांक 11-06-1985 को जमा किए। इसके उपरान्त न तो दुकान का पंजीकरण कार्ड परिवादिनी को मिला और न ही दुकान का पंजीकरण होने की उसे कोई सूचना प्राप्त हुई। इसलिए परिवादिनी ने बार-बार उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद के कार्यालय में सम्पर्क किया। परिवादिनी ने मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक
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कष्ट के लिए 01.00 लाख रू0 दिलाए जाने की प्रार्थना के साथ परिवाद प्रस्तुत किया।
विपक्षी की ओर से जबाव दावा विद्वान जिला आयोग के समक्ष दाखिल किया गया, जिसमें समाचार पत्र में विज्ञप्ति प्रकाशित होना स्वीकार किया एवं कथन किया कि परिवादिनी ने 500/- रू0 जमा करके उक्त सम्पत्ति हेतु पंजीकरण कराया था, किन्तु यह स्पष्ट नहीं किया था कि वह दुकान के लिए धनराशि जमा कर रही है अथवा क्योस्क के लिए। परिवादिनी को योजना एवं सम्पत्ति का पूर्ण विवरण देना था, जिसके आधार पर परिवादिनी का पंजीकरण अथवा आवंटन किया जाता सकता था। परिवादिनी को कोई अधिकार परिवाद प्रस्तुत करने का नहीं मिलता और न ही कोई वाद कारण उत्पन्न होता है। स्वयं परिवादिनी की गलती से उसे कोई लाभ प्राप्त नहीं हो पाया, जिसके लिए उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद का न तो कोई उत्तरदायित्व है और न ही उसके द्वारा सेवा में कोई कमी की गई है। विधिक रूप से परिवादिनी का परिवाद पोषणीय नहीं है। वादोत्तर में परिवाद को निरस्त किए जाने की प्रार्थना की गई।
विद्वान जिला आयोग ने दिनांक 26-08-2015 को निम्नांकित आदेश पारित किया :-
''Case called out repeatedly. Complainant is absent. O.P. is present through counsel. The ld. Counsel for the OP has submitted that the OP. ready to pay amount of registration alongwith interest as per directions of the court. It appears from perusal of the record that no allotment was ever made in the name of the complainant. In the circumstances above, the present complaint is disposed off with direction to the O.P. to refund the amount of registration i.e. a sum of Rs.2,000.00 alongwith interest @7% p.a. within one and half months of the date of this order. Let record be consigned.''
इसी आदेश से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गई है।
अपीलार्थी के अनुसार विपक्षी ने दिनांक 10-06-85 से 29-06-85 तक दुकान के पंजीकरण खोला था। पंरिवादिनी ने दुकान के पंजीकरण के लिए धनराशि जमा
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कर दी, किन्तु उसके नाम कोई पंजीकरण नहीं किया गया। विद्वान जिला आयोग ने उपरोक्त वर्णित आदेश दिनांक 26-08-2015 पारित किया।
हमारे द्वारा केवल उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद के विद्वान अधिवक्ता को सुना गया तथा पत्रावली का सम्यक् रूप से परिशीलन किया गया। अपीलार्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ।
परिवादिनी के नाम कोई आवंटन नहीं हुआ है। परिवादिनी ने मात्र पंजीकरण हेतु आवेदन दिया था, किन्तु पंजीकरण नहीं हुआ। इन परिस्थितियों में उसके नाम दुकान का आवंटन कराने का कोई अधिकार परिवादिनी को नहीं है। परिवादिनी द्वारा ऐसा कोई दस्तावेज या विधि नहीं दर्शायी गयी है, जिसके आधार पर यह माना जा सके कि परिवादिनी को उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद द्वारा बिना पंजीकरण के सम्पत्ति आवंटित कराने का कोई अधिकार प्राप्त है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत आदेश विधिपूर्ण है और इसमें किसी हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है। तदनुसार अपील निरस्त होने योग्य है।
आदेश
वर्तमान अपील निरस्त की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग (प्रथम), आगरा द्वारा परिवाद सं0-63/2004 में पारित प्रश्नगत आदेश दिनांक 26-08-2015 की पुष्टि की जाती है।
अपील व्यय उभय पक्ष अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुधा उपाध्याय) (विकास सक्सेना)
सदस्य सदस्य
दिनांक :- 04-07-2024.
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-1,
कोर्ट नं.-3.