राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
परिवाद सं0- 142/2017
(सुरक्षित)
Ms. Shivani, aged about 32 years, daughter of Shri S.c. sharma, resident of B-3/195 Yamuna vihar Delhi.
……Complainant
Versus
- Uttar Pradesh Awas evam vikas parishad. (Office of Estate Management) Hall no. S-1, Sector 16-A, Vashundhra complex Ghaziabad, through its concerned officer/deputy housing commissioner.
- Uttar Pradesh Awas evam vikas parishad, head office situated at 104 Mahatma Gandhi road, Lucknow, Uttar Pradesh, through its Housing Commissioner.
……….. Opposite Parties.
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
परिवादी की ओर से उपस्थित : श्री सौम्य थापर,
विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षीगण की ओर से उपस्थित : श्री एन0एन0 पाण्डेय,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 22.03.2018
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित
निर्णय
परिवादिनी श्रीमती शिवानी ने यह परिवाद उ0प्र0 आवास विकास परिषद व एक अन्य के विरुद्ध धारा- 17 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया है और निम्न अनुतोष चाहा है:-
- Direct the opposite parties to refund the entire deposited amount of Rs. 56,81,292/- along with interest at the rate of 18% payabale with effect from the date of respective deposits till the date of refund after adjusting an amount of Rs. 55,43,792/-.
- Direct the opposite parties pay an amount of Rs. 20000/- per month towards rent with effect from August, 2015 till the date of the refund of the entire deposited amount with interest.
- Direct the opposite parties to pay an amount of Rs. 10 Lakhs towards compensation and damages.
- Direct the opposite parties to pay punitive Damages to the complainant which this Hon’ble Commission may deem it just and proper in the facts and circumstances of this case.
- Allow the complaint and direct the opposite parties to pay a sum of Rs. 1,00,000/- towards cost of the case.
- Any other order which this Hon’ble State Commission may deem fit and proper in the circumstances of the case may also be passed.
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी का कथन है कि विपक्षीगण ने गाजियाबाद सेक्टर 7 में अपने सिद्धार्थ विहार प्रोजेक्ट में यमुना अपार्टमेंट लांच किया और यह आश्वस्त किया कि पूर्ण रूप से फिनिस्ड यूनिट का कब्जा 30 महीने में दिया जायेगा। अत: विपक्षीगण के आश्वासन पर विश्वास करते हुए परिवादिनी ने विपक्षीगण की उक्त परियोजना में फ्लैट के आवंटन हेतु आवेदन पत्र प्रस्तुत किया, जिसे पत्र दि0 23.01.2013 के द्वारा विपक्षीगण ने पंजीकृत किया और परिवादिनी को सूचित किया कि यूनिट का मूल्य 55,11,000/- है। इसके साथ ही विपक्षीगण ने सूचित किया कि भुगतान निश्चित तिथि पर किश्तों में किया जाना है। इसके साथ ही विपक्षीगण ने परिवादिनी को यह भी बताया कि किश्तों के भुगतान में चूक होने पर 13.5 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज देय होगा।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी का कथन है कि उसने विपक्षीगण द्वारा वांछित धनराशि जमा किया तब विपक्षीगण ने पत्र दि0 04.04.2013 के द्वारा उसे फ्लैट नं0- Y-4/1701 आवंटित किया और वादे के अनुसार समय से कब्जा देने को कहा। तदोपरांत दि0 20.12.2014 को विपक्षीगण ने 1,70,290/-रू0 सर्विस टैक्स की मांग की और कहा कि दि0 31.01.2015 तक जमा न होने पर 13.5 प्रतिशत की दर से ब्याज देय होगा। परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी ने विपक्षीगण के निर्देश का पालन किया और यह धनराशि दि0 28.01.2015 तक जमा कर दिया।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी का कथन है कि विपक्षीगण द्वारा वांछित धनराशि जमा करने के बाद भी विपक्षीगण ने निर्माण निश्चित समय के अन्दर पूरा नहीं किया और परिवादिनी द्वारा कब्जे की मांग किये जाने पर उसे कोई जवाब नहीं दिया। परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी का कथन है कि वह जब मौके पर गई तो पाया कि वहां निर्माण कार्य पूरा नहीं है और बंद है तब उसने विपक्षीगण को पत्र दि0 01.09.2016 प्रेषित कर जमा धनराशि ब्याज सहित वापस मांगा। इस पर विपक्षीगण ने मनमाने ढंग से 1,37,500/-रू0 की कटौती कर उसकी अवशेष जमा धनराशि 55,43,792/-रू0 दो चेको के द्वारा उसे वापस किया है।
परिवाद पत्र के अनुसार विपक्षीगण ने दो चेक दिनांकित 07.12.2016 के द्वारा 5,43,792/-रू0 और 50,00,000/-रू0 का उक्त भुगतान हेतु दिया, परन्तु जमा धनराशि में उपरोक्त कटौती की है तथा जमा धनराशि पर कोई ब्याज नहीं दिया है। इसके साथ ही विपक्षीगण द्वारा जो 50,00,000/-रू0 का चेक उसे दिया गया था वह चेक भी दि0 26.12.2016 को डिसऑनर हो गया। अत: उसने नोटिस विपक्षीगण को भेजा, परन्तु उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया। तब विवश होकर उसने परिवाद आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया है।
विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया गया है जिसमें कहा गया है कि उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद गाजियाबाद की आवासीय योजना के अंतर्गत सिद्धार्थ विहार योजना 7 गाजियाबाद में स्ववित्त पोषित बहुमंजिले आवासीय परियोजना 2012 का पंजीकरण खोला गया और पंजीकरण पुस्तिका जारी की गई तब पंजीकरण पुस्तिका के नियम एवं शर्तों को स्वीकार करते हुए परिवादिनी द्वारा यमुना अपार्टमेंट में 2 बी0एच0के0 प्लस स्टडी फ्लैट हेतु निर्धारित पंजीकरण धनराशि 2,75,000/-रू0 जमा कर आवेदन किया गया, जिसे स्वीकार कर परिवादिनी को पंजीकृत किया गया। तत् पश्चात फ्लैट के अनुमानित मूल्य 55,11,000/-रू0 में पंजीकरण धनराशि 2,75,000/-रू0 समायोजित करने के पश्चात अवशेष धनराशि जमा करने हेतु मांग पत्र दि0 23.01.2013 को जारी किया गया। मांग पत्र के अनुसार दि0 28.02.2013 तक एक मुश्त धनराशि 8,26,000/-रू0 परिवादिनी द्वारा जमा किये जाने पर लाटरी ड्रा दि0 25.03.2013 में फ्लैट सं0- Y-4/1701 परिवादिनी को आवंटित किया गया और पत्र दि0 04.04.2013 के द्वारा आवंटन की सूचना दी गई। तदोपरांत परिवादिनी द्वारा मांग पत्र के अनुसार देय धनराशि का भुगतान किया गया और उसके बाद उ0प्र0 शासन द्वारा जारी शासनादेश के अनुक्रम में पत्र दि0 20.12.2014 द्वारा सेवा कर के मद में दि0 31.01.2015 तक 1,70,290/-रू0 परिवादिनी को जमा करने हेतु निर्देशित किया गया, जिसे परिवादिनी ने दि0 28.01.2015 को जमा किया है, परन्तु उसके बाद परिवादिनी ने पत्र दिनांकित 07.03.2016 विपक्षीगण को इस आशय का भेजा कि वह अपनी जमा धनराशि वापस लेने पर विचार कर रही है। परिवादिनी के पत्र का उत्तर उप आवास आयुक्त ने पत्र दि0 31.03.2016 के द्वारा दिया और परिवादिनी को अवगत कराया गया कि धनराशि वापसी हेतु क्या औपचारिकतायें पूरी किया जाना है। इस पत्र दि0 31.03.2016 में परिवादिनी को यह भी अवगत कराया गया कि धनराशि वापसी के आवेदन पर परिषद द्वारा नियमानुसार पंजीकरण धनराशि की 50 प्रतिशत कटौती करके शेष धनराशि वापस की जायेगी तब परिवादिनी ने पत्र दि0 02.04.2016 इस आशय का भेजा कि उसकी जमा धनराशि 13.5 प्रतिशत ब्याज सहित उसे वापस कर दी जाए, जिस पर उप आवास आयुक्त ने परिषद मुख्यालय से दिशा-निर्देश मांगा जिसके अनुक्रम में उप आवास आयुक्त ने पत्र दि0 27.05.2016 द्वारा अधिशासी अभियंता को मूल्यांकन एवं कब्जे की तिथि से अवगत कराने हेतु निर्देशित किया। तत्पश्चात अधिशासी अभियंता ने अपने पत्र दि0 25.07.2016 द्वारा परिवादिनी को अवगत कराया कि मूल्यांकन अनुभाग द्वारा सम्पत्ति का मूल्यांकन उपलब्ध करा दिया गया है। सम्पत्ति के विक्रय विलेख के निष्पादन के पश्चात कब्जा पत्र जारी कर दिया जायेगा। इसके साथ ही परिवादिनी को यह भी अवगत कराया गया कि विक्रय विलेख निष्पादन एवं कब्जे के सम्बन्ध में वह सम्पत्ति प्रबंध कार्यालय से सम्पर्क कर अग्रिम कार्यवाही करे।
लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि अन्तिम मूल्यांकन के आधार पर परिवादिनी के पक्ष में जारी अन्तिम प्रदेशन पत्र दि0 30.07.2016 के अनुक्रम में देय धनराशि का भुगतान कर विक्रय विलेख की औपचारिकतायें पूर्ण कर विक्रय विलेख निष्पादित कराकर फ्लैट का भौतिक कब्जा परिवादिनी द्वारा प्राप्त नहीं किया गया। इसके विपरीत परिवादिनी द्वारा पत्र दि0 01.09.2016 इस आशय का प्रेषित किया गया कि उसकी जमा धनराशि वापस कर दी जाए। अत: परिवादिनी के अनुरोध पर पत्र दि0 04.10.2016 के द्वारा परिवादिनी का पंजीकरण एवं आवंटन निरस्त करते हुए नियमानुसार पंजीकरण धनराशि से आवश्यक कटौती करते हुए शेष धनराशि परिवादिनी को वापस करने का आदेश पारित किया गया और नियमानुसार परिवादिनी को 55,45,792/-रू0 वापस किया गया। लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि विपक्षीगण ने सेवा में कोई कमी नहीं की है। पंजीकरण पुस्तिका में अंकित नियम और शर्तों के अनुसार पंजीकरण धनराशि से 50 प्रतिशत कटौती करके शेष धनराशि परिवादिनी को वापस की गई है। लिखित कथन में विपक्षी की ओर से यह भी कहा गया है कि परिवादिनी का आवंटन निरस्त किया जा चुका है तथा परिवादिनी ने जमा धनराशि प्राप्त कर ली है। अब वह उपभोक्ता नहीं है अत: परिवाद पोषणीय नहीं है।
परिवादिनी की ओर से परिवाद पत्र के कथन के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
विपक्षीगण की ओर से अपने लिखित कथन के साथ साक्ष्य में संलग्नक प्रस्तुत किये गये हैं, परन्तु कोई शपथ पत्र नहीं प्रस्तुत किया गया है।
परिवाद में अन्तिम सुनवाई के समय परिवादिनी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री सौम्य थापर उपस्थित हुए हैं जब कि विपक्षीगण की ओर से विद्वान अधिवक्त श्री एन0एन0 पाण्डेय उपस्थित हुए है।
मैंने उभयपक्ष के तर्क को सुना है और पत्रावली का अवलोकन किया है।
विपक्षीगण की प्रश्नगत परियोजना में प्रश्नगत फ्लैट का आवंटन और उसके सम्बन्ध में 55,11,000/-रू0 और 1,70,290/-रू0 का परिवाद पत्र में कथित भुगतान परिवादिनी द्वारा विपक्षीगण को किया जाना निर्विवाद है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी का कथन है कि आवंटित फ्लैट का निर्माण पूर्ण रूप से तैयार कर 30 महीने में कब्जा दिये जाने का आश्वासन विपक्षीगण द्वारा दिया गया था, परन्तु निश्चित समय के अन्दर विपक्षीगण ने निर्माण पूरा नहीं किया और उसे कब्जा अंतरित नहीं किया। परिवादिनी जब मौके पर गई तो देखा कि वहां निर्माण कार्य पूरा नहीं है और निर्माण कार्य बंद है तब उसने विपक्षीगण को पत्र दि0 01.09.2016 प्रेषित कर जमा धनराशि ब्याज सहित वापस मांगा।
परिवाद पत्र के प्रस्तर 17 के कथन और परिवादिनी के पत्र दि0 01.09.2016 जो परिवाद पत्र की पत्रावली का कागज सं0- 33 है से स्पष्ट है कि पत्र दि0 01.09.2016 के द्वारा परिवादिनी ने विपक्षी से अपनी जमा धनराशि ब्याज सहित इस आधार पर वापस मांगी है कि फ्लैट का कब्जा निर्धारित समय में विपक्षीगण देने में असफल रहे हैं। विपक्षीगण के लिखित कथन से स्पष्ट है कि परिवादिनी के इसी पत्र दि0 01.09.2016 के आधार पर विपक्षीगण ने उसका आवंटन निरस्त करते हुए नियमानुसार पंजीकृत धनराशि से उपरोक्त कटौती करते हुए शेष धनराशि की वापसी का आदेश विपक्षीगण के पत्र दि0 04.10.2016 के द्वारा पारित किया गया है। विपक्षीगण के पत्र दि0 04.10.2016 में यह उल्लेख है कि परिवादिनी के पत्र दि0 01.09.2016 के द्वारा आवंटन निरस्त किये जाने का निवेदन किया गया है। अत: उसके द्वारा जमा धनराशि 56,81,292/-रू0 से पंजीकरण राशि 2,75,000/-रू0 की 50 प्रतिशत धनराशि 1,37,500/-रू0 की कटौती कर 55,43,792/-रू0 का भुगतान परिवादिनी को किया जा रहा है। परिवाद पत्र के प्रस्तर 8 के कथन से स्पष्ट है कि विपक्षीगण ने 55,43,792/-रू0 के रिफण्ड हेतु परिवादिनी को दो चेक दि0 07.12.2016 को दिये हैं जिसमें 50,00,000/-रू0 का चेक डिसऑनर हो गया है।
विपक्षीगण ने अपने लिखित कथन में स्पष्ट रूप से कहा है कि तकनीकी कारणों से बैंक के स्तर से 50,00,000/-रू0 के चेक के भुगतान में विलम्ब हुआ है यह चेक भी परिवादिनी के पक्ष में क्रेडिट हो गया है। परिवादिनी ने विपक्षी के इस कथन का खण्डन नहीं किया है। अत: यह मानने हेतु उचित आधार है कि परिवादिनी को विपक्षीगण ने उसकी जमा धनराशि से 1,37,500/-रू0 की कटौती कर शेष धनराशि 55,43,792/-रू0 वापस कर दिया है। अब देखना यह है कि क्या विपक्षीगण ने जो 1,37,500/-रू0 की कटौती की है वह उचित और विधि सम्मत है तथा परिवादिनी सम्पूर्ण जमा धनराशि पर विपक्षीगण से ब्याज पाने की अधिकारी है? विपक्षीगण की प्रश्नगत योजना की पंजीकरण पुस्तिका में फ्लैटस का कब्जा शीर्षक में अंकित है कि फ्लैट्स का निर्माण मांग पत्र निर्गमन की तिथि से 30 माह की अवधि में पूरा किया जाना प्रस्तावित है।
उभयपक्ष के अभिकथन से स्पष्ट है कि यह तथ्य निर्विवाद है कि विपक्षीगण द्वारा परिवादिनी के प्रश्नगत फ्लैट हेतु मांग पत्र दि0 23.01.2013 को जारी किया गया है और पंजीयन पुस्तिका में अंकित शर्त के अनुसार 30 महीने के अन्दर फ्लैट्स का निर्माण पूरा किया जाना है। इस प्रकार दि0 22.07.2015 तक निर्माण कार्य पूरा किया जाना था, परन्तु परिवादिनी के अनुसार निर्माण कार्य निश्चित समय के अन्दर पूरा नहीं किया गया और जब अगस्त 2016 में वह मौके पर गई तो देखा कि निर्माण अधूरा है और बन्द है।
विपक्षीगण ने लिखित कथन की धारा 4 में परिवादिनी के पत्र दि0 02.04.2016 का उल्लेख किया है जो लिखित कथन का संलग्नक 6 है। इस पत्र में परिवादिनी ने कहा है कि परिषद उसे फ्लैट का कब्जा निर्धारित समय में देने में असफल रहा है। अत: अनुरोध है कि उसकी जमा धनराशि 13.5 प्रतिशत ब्याज के साथ वापस की जाए। विपक्षीगण के लिखित कथन की धारा 4 में उल्लिखित परिवादिनी के पत्र दि0 02.04.2016 के संदर्भ में उप आवास आयुक्त ने अधिशासी अभियंता को पत्र दि0 27.05.2016 लिखित कथन का संलग्नक 7 लिखा है और यह अपेक्षा की है कि सम्भावित तिथि ज्ञात कर यदि कब्जा एक या दो माह में दिया जा सकता है तो आवंटी को अवगत करा दिया जाए। यदि फिर भी आवंटी द्वारा जमा धनराशि की मांग की जाती है तो वर्तमान नियमों के अनुसार अन्तिम निर्धारित किश्त के 15 माह पश्चात नियमानुसार धनराशि वापस की जा सकती है। उप आवास आयुक्त के पत्र दि0 27.05.2016 के अनुक्रम में अधिशासी अभियंता ने पत्र दि0 25.07.2016 लिखित कथन का संलग्नक 8 लिखा है। इसमें अधिशासी अभियंता ने यह उल्लेख किया है कि योजना के प्रश्नगत फ्लैट का सक्षम अधिकारी से अनुमोदित मूल्यांकन सम्पत्ति प्रबंध कार्यालय को उपलब्ध करा दिया गया है। सम्पत्ति के विक्रय विलेख निष्पादन जिसके सम्बन्ध में वांछित कार्यवाही आवंटी एवं सम्पत्ति प्रबंध कार्यालय द्वारा की जानी है। उसके उपरांत सम्पत्ति प्रबंध कार्यालय का पत्र प्राप्त कर भौतिक कब्जा जारी किया जायेगा और भौतिक कब्जा जारी होने पर फ्लैट का भौतिक कब्जा स्थानांतरित किया जायेगा। अधिशासी अभियंता के इस पत्र के बाद दि0 30.07.2016 को अन्तिम प्रदेशन पत्र लिखित कथन का संलग्नक 9 परिवादिनी को जारी किया गया है और परिवादिनी द्वारा जमा धनराशि का समर्थन करने के उपरांत 6,211/-रू0 की धनराशि की और मांग की गई है। अधिशासी अभियंता के उपरोक्त पत्र दि0 25.07.2016 जो विपक्षीगण के लिखित कथन का संलग्नक 8 है में परिवादिनी के प्रश्नगत फ्लैट का निर्माण कार्य पूरा होने का उल्लेख नहीं है और अन्तिम प्रदेशन पत्र दि0 30.07.2016 में भी फ्लैट निर्माण पूर्ण होने का उल्लेख नहीं है जब कि परिवाद पत्र एवं परिवादिनी के शपथ पत्र से स्पष्ट है कि उसे आवंटित भवन का निर्माण पूर्ण नहीं हुआ है और निर्माण कार्य बन्द है।
अत: उभयपक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत यह मानने हेतु उचित और युक्तसंगत आधार है कि विपक्षीगण ने परिवादिनी को आवंटित फ्लैट का निर्माण कार्य पूरा कर निश्चित समय के अन्दर कब्जा परिवादिनी को अंतरित नहीं किया है जिससे दु:खी होकर उसे अपना आवंटन निरस्त कराना पड़ा है और उसने अपनी जमा धनराशि ब्याज सहित वापस किये जाने का निवेदन किया है। ऐसी स्थिति में विपक्षीगण ने जो परिवादिनी द्वारा जमा धनराशि में 1,37,500/-रू0 की कटौती की है वह उचित नहीं है, क्योंकि परिवादिनी ने अपना आवंटन विपक्षीगण द्वारा समय से फ्लैट का निर्माण पूरा कर कब्जा न दिये जाने के कारण निरस्त कराया है जिसके लिए विपक्षीगण उत्तरदायी हैं। अत: विपक्षीगण द्वारा परिवादिनी की जमा धनराशि से जो 1,37,500/-रू0 की कटौती की गई है उसे परिवादिनी को वापस दिलाया जाना उचित है।
उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट है कि परिवादिनी द्वारा फ्लैट का सम्पूर्ण मूल्य अदा करने के बाद भी निश्चित समय के अन्दर फ्लैट का निर्माण पूरा कर कब्जा परिवादिनी को विपक्षीगण ने अंतरित नहीं किया है जिससे दु:खी होकर परिवादिनी को अपना आवंटन निरस्त कराना पड़ा है। ऐसी स्थिति में परिवादिनी को विपक्षीगण से उसकी जमा धनराशि पर 18 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज दिया जाना आवश्यक है, क्योंकि सम्पूर्ण धनराशि जमा करने के बाद परिवादिनी को तय शुदा समय पर कब्जा नहीं दिया गया है और परिवादिनी के धन का उपभोग विपक्षीगण द्वारा किया गया है जब कि परिवादिनी को फ्लैट का कब्जा तय शुदा समय में नहीं मिला है और उसे इतने अधिक लम्बे समय तक अपनी उपरोक्त धनराशि के लाभ से वंचित होना पड़ा है।
उपरोक्त विवेचना और सम्पूर्ण तथ्यों एवं साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत यह स्पष्ट है कि विपक्षीगण ने सेवा में त्रुटि की है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर परिवाद स्वीकार किया जाता है और विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि परिवादिनी की जमा धनराशि से जो 1,37,500/-रू0 की धनराशि की उन्होंने कटौती की है वह धनराशि वे परिवादिनी को वापस करें। इसके साथ ही वे परिवादिनी द्वारा जमा सम्पूर्ण धनराशि पर जमा की तिथि से अदायगी की तिथि तक 18 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी अदा करें।
विपक्षीगण परिवादिनी को 10,000/-रू0 वाद व्यय भी अदा करेंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
शेर सिंह आशु0,
कोर्ट नं0-1