Uttar Pradesh

StateCommission

A/1999/293

Unit Trust Of India - Complainant(s)

Versus

U K Kapoor - Opp.Party(s)

Ram Gopal

23 Mar 2022

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/1999/293
( Date of Filing : 17 Feb 1999 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Unit Trust Of India
Ghaziabad
...........Appellant(s)
Versus
1. U K Kapoor
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Rajendra Singh PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 23 Mar 2022
Final Order / Judgement

                                                           (सुरक्षित)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

अपील संख्‍या-293/1999

(जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, द्वितीय लखनऊ द्वारा परिवाद संख्‍या-614/1996 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 14.05.1998 के विरूद्ध)

                                    

यूनिट ट्रस्‍ट आफ इण्डिया।

अपीलार्थी/विपक्षी

                                               बनाम        

मास्‍टर उदित कुमार कपूर रिप बाई श्रीमती मंजरी कपूर।

       प्रत्‍यर्थी/परिवादी

समक्ष:-                           

1. माननीय श्री राजेन्‍द्र सिंह, सदस्‍य।

2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से     : श्री मुजीब एफेण्‍डी, विद्वान अधिवक्‍ता।  

प्रत्‍यर्थी की ओर से       : कोई नहीं।

दिनांक:  20.04.2022   

माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य  द्वारा उद्घोषित                                                 

निर्णय

1.          परिवाद संख्‍या-614/1996, मंजर कपूर सिंघल बनाम यूटीआई  में विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग, द्वितीय लखनऊ द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 14.05.1998 के विरूद्ध यह अपील योजित की गई है। इस निर्णय एवं आदेश द्वारा विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने परिवाद स्‍वीकार करते हुए विपक्षी को आदेशित किया गया है कि अंकन 27,155/- रूपये का भुगतान तीन माह के अन्‍दर किया जाए, अन्‍यथा इस राशि पर 2 प्रतिशत मासिक ब्‍याज देय होगा।

2.         परिवाद के तथ्‍यों के अनुसार परिवादी ने विपक्षी के 800 यूनिट वर्ष 1990 में खरीदे थे। वर्ष 1993-94 के विवरण में शून्‍य दिखाया गया। परिवादी ने विपक्षी को इस संबंध में लिखा, परन्‍तु कोई उत्‍तर प्राप्‍त नहीं हुआ। दिनांक 01.07.1994, 01.07.1994 व दिनांक 01.07.1996 को क्रमश: 2080/-, 2392/- तथा 2280/- रूपये डिबिडेंट के रूप में 16074/- रूपये उनके मूल्‍य के रूप में 1607/- रूपये बोनस 1000/- रूपये व्‍यय 2000 रूपये क्षतिपूर्ति पाने हेतु परिवाद प्रस्‍तुत किया गया।

3.         विपक्षी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ, इसलिए एकतरफा सुनवाई करते हुए उपरोक्‍त वर्णित निर्णय/आदेश पारित किया गया।

4.         इस निर्णय/आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने तथ्‍य, विधि एवं साक्ष्‍य के विपरीत जाकर निर्णय/आदेश पारित किया है। परिवादी द्वारा यूनिट सर्टिफिकेट संख्‍या-49012301931 के द्वारा 800 यूनिट क्रय किए थे तथा प्रत्‍येक वर्ष देय लाभांश को उसे पुन: इन्‍वेस्‍ट करने का विकल्‍प प्राप्‍त किया था। वर्ष 1991, 1992, 1993 तथा 1994 में देय लाभांश परिवादी के खाता संख्‍या- 400B06851 में ट्रांसफर कर दिया गया था, इसलिए परिवादी को कोई भी राशि देय नहीं है, परन्‍तु कम्‍प्‍यूटर त्रुटि से 800 मूल यूनिट RIP विवरण में वर्ष 1994, 1995 व 1996 में जाहिर नहीं हो सकी, इसलिए परिवादी ने परिवाद प्रस्‍तुत कर दिया, जबकि यथार्थ में सेवा में कोई कमी नहीं की गई है। यह भी उल्‍लेख किया गया है कि वर्ष 1991 लगाय‍त 1994 तथा पुन: निवेश करने पर वर्ष 1996 तक की यूनिट परिवादी द्वारा क्रय कर ली गई। अत: चेक संख्‍या-R497D022458 दिनांक 08.02.1997 के द्वारा रू0 17,495.25 पैसे का भुगतान तथा चेक संख्‍या-R497D014859 दिनांक 11.12.1996 के द्वारा रू0 1,504.27 पैसे की भुगतान राशि परिवादी द्वारा प्राप्‍त कर ली गई। वर्ष 1995, 1996, 1997 व 1998 में 800 यूनिट का लाभांश का भुगतान नहीं किया गया, परन्‍तु इस राशि का भुगतान चेक संख्‍या-UD111795 दिनांक 04.06.1998 के द्वारा रू0 3,908.80 पैसे तथा चेक संख्‍या-UD113507 दिनांक 04.11.1998 के द्वारा अंकन 1760- रूपये तथा चेक संख्‍या-949191 दिनांक 08.07.1998 के द्वारा अंकन 1760/- रूपये के लिए कर दिया गया एवं ब्‍याज का भुगतान भी कर दिया गया। परिवादी के नाम 800 यूनिट आज भी शेष हैं, जिसका पुन: क्रय मूल्‍य रू0 14.60 पैसे है। पुन: क्रय होने वाली 800 यूनिट प्रत्‍यर्थी द्वारा औपचारिकताएं पूरी करने के बाद प्राप्‍त की जा सकती हैं। विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने अंकन 27,155/- रूपये अदा करने का आदेश दिया है, जिसमें लाभांश राशि भी शामिल है, जबकि लाभांश राशि अंकन 7,428/- रूपये तथा क्षतिपूर्ति अंकन 2,000/- रूपये का भुगतान परिवादी को किया जा चुका है। परिवादी को अधिकार है कि वह या तो लाभांश प्राप्‍त कर ले या यूनिट को पुन: क्रय कर ले। वह दोनों लाभ प्राप्‍त नहीं कर सकता। विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग के समक्ष परिवादी द्वारा इन सब तथ्‍यों को छिपाया गया, इसलिए इन सब त‍थ्‍यों को छिपाने के कारण मंच द्वारा उपरोक्‍त वर्णित निर्णय/आदेश पारित किया गया, जो विधि विरूद्ध है और अपास्‍त होने योग्‍य है।

5.         अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता उपस्थित आए। प्रत्‍यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ। केवल अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता को सुना गया तथा प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।

6.         अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का यह तर्क है कि विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा अंकन 27,155/- रूपये की राशि को अदा करने का आदेश दिया है, जिसमें लाभांश राशि भी शामिल है, जो वर्ष 1994, 1995 व 1996 में दी गई राशि अंकन 7,428/- रूपये का भुगतान प्रत्‍यर्थी को शुरू में ही किया जा चुका है, इसलिए यह राशि समायोजित होने योग्‍य है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता के इस तर्क में वैधानिक बल प्रतीत होता है कि परिवादी दो स्‍तर पर लाभ प्राप्‍त नहीं कर सकता। वह या तो लाभांश राशि प्राप्‍त कर सकता है या पुन: क्रय मूल की राशि प्राप्‍त कर सकता है। अत: विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश परिवर्तित होने योग्‍य है कि अंकन 27,155/- रूपये में से वह राशि घटा दी जाए, जो लाभांश के रूप में प्राप्‍त कर ली गई है, जिसका मूल्‍य अंकन 7,428/- रूपये होता है। अपील तदनुसार आंशिक रूप से स्‍वीकार होने योग्‍य है।

आदेश

 

7.         प्रस्‍तुत अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 14.05.1998 इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि परिवादी को देय राशि 27,155/- रूपये में से 7,428/- रूपये की राशि समायोजित कर ली जाए तथा शेष राशि का भुगतान परिवादी को किया जाए। यद्यपि यहां स्‍पष्‍ट किया जाता है कि 02 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्‍याज अदा करने का आदेश भी अनुचित है, इसलिए परिवादी को देय ब्‍याज राशि 07 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से देय होगी।

           उभय पक्ष इस अपील का व्‍यय स्‍वंय अपना-अपना वहन करेंगे।

आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।

 

  (राजेन्‍द्र सिंह)                           (सुशील कुमार)

   सदस्‍य                                 सदस्‍य

 

 

 

निर्णय/आदेश आज खुले न्‍यायालय में हस्‍ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।

                   

 

(राजेन्‍द्र सिंह)                           (सुशील कुमार)

 सदस्‍य                                  सदस्‍य

 

 

लक्ष्‍मन, आशु0,

    कोर्ट-2 

 
 
[HON'BLE MR. Rajendra Singh]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
JUDICIAL MEMBER
 

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