Final Order / Judgement | (सुरक्षित) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ। अपील सं0 :- 1355/2008 (जिला उपभोक्ता आयोग, चित्रकूट द्वारा परिवाद सं0-42/2006 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 17/06/2008 के विरूद्ध) Dr. Ranvir Singh Chauhan, Son of Shri Yashwant Singh Chauhan, resident of Chtrakoot Inter College, Karvi, District Chitrakoot. - Appellant
Versus United India Insurance Company Limited situated at Pili Kothi, Banda. समक्ष - मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य
- मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य
उपस्थिति: अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- श्री पियूष मणि त्रिपाठी प्रत्यर्थी की ओर विद्वान अधिवक्ता:- श्री प्रसून कुमार राय दिनांक:- 28.10.2024 माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय - यह अपील जिला उपभोक्ता आयोग, चित्रकूट द्वारा परिवाद सं0-42/2006 डा0 रणवीर सिंह चौहान बनाम यूनाइटेड इण्डिया इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 17/06/2008 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील पर दोनों पक्षकारो के विद्धान अधिवक्ता के तर्क को सुना गया। प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
- जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद इस आधार पर खारिज किया है कि परिवादी द्वारा बीमा कम्पनी को समय पर सूचना प्रदान नहीं की गयी न ही बीमा क्लेम प्रस्तुत किया गया, इसलिए बीमा क्लेम देय नहीं है।
- परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादी ने अपनी ज्वैलरी की सुरक्षा के लिए अंकन 3,21,600/-रू0 का बीमा दिनांक 27.05.2004 से दिनांक 26.05.2005 की अवधि के लिए कराया था। बीमित सामान की चोरी दिनांक 04.12.2004 को सायंकाल 5.00 बजे से लेकर दिनांक 5.12.2004 को सायंकाल 6.00 बजे के मध्य मे किसी समय हो गयी क्योंकि परिवादी चित्रकूट गया हुआ था और वापस आने पर जानकारी मिली कि दरवाजा खुला हुआ था, तोपाया की सेफ खुली हुई थी, सेफ के अंदर गहने गायब थे, इसलिए परिवादी अंकन 3,21,600/-रू0 की क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के लिए अधिकृत है। थाने पर उसी दिन सूचना दी गयी, परंतु पुलिस द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी। इसके बाद न्यायालय के आदेश पर मुकदमा दर्ज कराया गया।
- विपक्षी का कथन है कि रिपोर्ट लिखने का कोई प्रयास नहीं किया। बीमा कम्पनी से पैसा ऐंठने की नियत से चोरी की फर्जी कहानी बतायी गयी। दिनांक 06.01.2005 को बीमा कम्पनी के विकास अधिकारी विकास सिन्हा को कोई खबर नहीं दी गयी और बीमा कम्पनी के सामने बीमा क्लेम प्रस्तुत नहीं किया गया।
- जिला उपभोक्ता आयोग ने साक्ष्य की व्याख्या करते हुए बीमा कम्पनी के पक्ष में निष्कर्ष दिया है।
- अपील के ज्ञापन तथा मौखिक तर्कों का सार यह है कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश साक्ष्य एवं विधि के विपरीत है। अपीलार्थी द्वारा चोरी की जानकारी के पश्चात प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने का प्रयास किया गया, परंतु पुलिस द्वारा रिपोर्ट नहीं लिखी गयी, इसलिए न्यायालय के समक्ष सीआरपीसी की धारा 156(3) के अंतर्गत आवेदन प्रस्तुत किया गया। इस आवेदन पर आदेश के पश्चात मुकदमा दर्ज हुआ, जिसमें विवेचना की गयी और विवेचना के पश्चात अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी। इसी प्रकार बीमा कम्पनी को भी समय पर सूचना दी गयी। अत: बीमा क्लेम देय है।
- प्रत्यर्थी/विपक्षी के विद्धान अधिवक्ता द्वारा बहस की गयी है कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय विधिसम्मत है क्योंकि चोरी की घटना की तुरंत रिपोर्ट दर्ज कराने का कोई प्रयास नहीं किया गया।
- पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत अभिवचनों के साक्ष्य तथा जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं बहस को सुनने के पश्चात इस अपील के विनिश्चत के लिए एकमात्र विनिश्चायक बिन्दु यह उत्पन्न होता है कि क्या परिवादी द्वारा चोरी होने के तुरंत पश्चात पुलिसी को सूचना दी गयी या देरी से सूचना का स्पष्टीकरण दिया गया, यदि हां तब परिवादी किस सीमा तक बीमा क्लेम प्राप्त करने के लिए अधिकृत है?
- परिवादी ने परिवाद पत्र में कथन किया है कि पुलिस को घर पर आने के बाद तथा चोरी की घटना देखने के बाद सूचना दी गयी, परंतु पुलिस द्वारा सूचना प्राप्त नहीं की गयी। पत्रावली पर न्यायालय के आदेश से मुकदमा दर्ज करने की प्रति मौजूद है, परंतु थाने पर सूचना देने की कोई प्रति मौजूद नहीं है। इसी प्रकार पुलिस अधीक्षक को भी इस आशय की शिकायत करने का कोई दस्तावेज मौजूद नहीं है कि पुलिस द्वारा रिपोर्ट दर्ज नहीं की गयी है। चोरी की घटना दिनांक 04.12.2004 के सायंकाल 5.00 बजे से 5.12.2004 के सायंकाल 6.00 बजे के बीच होना कही गया है यानि 05.12.2004 को परिवादी को चोरी की जानकारी हो चुकी थी, परंतु पत्रावली पर उपलब्ध दस्तावेज सं0 28 के अनुसार बीमा कम्पनी को सूचना दिनांक 05.05.2005 को दी गयी, जिसकी रसीद पत्रावली पर मौजूद है। दिनांक 05.05.2005 से पूर्व 27.01.2005 को पंजीकृत सूचना भेजे जाने का उल्लेख है, परंतु इस तिथि को सूचना भेजने की कोई प्रति तथा उसकी डाक रसीद पत्रावली पर मौजूद नहीं है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि 27.01.2005 को कोई सूचना प्रेषित की गयी, जबकि चोरी की जानकारी दिनांक 05.12.2004 को हो चुकी थी।
- बीमा कम्पनी द्वारा सर्वेयर नियुक्त किया गया है, जिसकी रिपोर्ट एनेक्जर सं0 5 है। सर्वेयर द्वारा मौके पर जाकर निरीक्षण किया गया और यह पाया गया कि जिस अलमारी में चोरी होना कहा गया है, उसके मुख्य लॉक, हैण्डल लॉकर, हैंडल सिस्टम बिल्कुल ठीक एवं सही पाया गया, यद्यपि ताले को दबाकर तोड़े जाने के निशान पाये गये हैं, परंतु अलमारी पर तोड़े जाने का कोई निशान मौजूद नहीं है। इस प्रकार घर पर चोरी होने का कोई निशान नहीं पाया गया और चोरी को संदिग्ध पाया गया।
- उपरोक्त विवेचना का निष्कर्ष यह है कि समय पर पुलिस को रिपोर्ट नहीं की गयी। पुलिस द्वारा इंकार करने पर पुलिस अधीक्षक को कोई सूचना नहीं दी गयी। चोरी होने के तुरंत पश्चात बीमा कम्पनी को सूचना नहीं दी गयी। सर्वेयर द्वारा मौके पर जाकर चोरी को संदिग्ध माना गया। अत: इन परिस्थितियों में जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं बनता। तदनुसार अपील खारिज होने योग्य है।
आदेश अपील खारिज की जाती है। जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश पुष्ट किया जाता है। उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे। प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए। आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे। (सुधा उपाध्याय)(सुशील कुमार) सदस्य सदस्य संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 2 | |