( मौखिक )
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या :1228/2022
1-भारत संघ द्वारा जनरल मैनेजर नार्थ ईस्ट रेलवे गोरखपुर, उ0प्र0।
2-टिकट विण्डो क्लर्क द्वारा स्टेशन मास्टर, मथुरा छावनी रेलवे स्टेशन मथुरा।
बनाम्
श्री तुंगनाथ चतुर्वेदी एडवोकेट पुत्र श्री रामेश्वर चतुर्वेदी आयु करीब 46 वर्ष निवासी गली परिपंच मथुरा।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष :-
1-मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
2-मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य ।
उपस्थिति :
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित- श्रीमती संध्या दुबे।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित- श्री रवीकांत चतुर्वेदी।
दिनांक : 28-02-2023
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित निर्णय
परिवाद संख्या-201/2001 श्री तुंगनाथ चतुर्वेदी बनाम भारत संघ द्वारा जनरल मैनेजर नार्थ ईस्ट रेलवे गोरखपुर व एक अन्य में जिला उपभोक्ता आयोग, मथुरा द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 05-08-2022 के विरूद्ध यह अपील उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत इस न्यायालय के सम्मुख प्रस्तुत की गयी है।
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‘’आक्षेपित निर्णय के द्वारा जिला आयोग ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है :-
1-परिवादी से मथुरा से वाया हाथरस मुरादाबाद की यात्रा के लिए ली गयी अधिक किराये की धनराशि मु0 20/-रू0 परिवाद संस्थित किये जाने के दिनांक से निर्णय की तिथि तक 12 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज की दर से विपक्षी द्वारा परिवादी को अदा किया जायेगा।
- , आर्थिक, वाद व्यय, आवागमन व्यय आदि समस्त क्षतियों के लिए विपक्षीगण मु0 15,000/-रू0 की धनराशि परिवादी को अदा करेंगे।
3-निर्णय की तिथि से 30 दिन के अंदर विपक्षी परिवादी को समस्त धनराशि का भुगतान करेगा अन्यथा समस्त देय धनराशि पर 15 प्रतिशत ब्याज देय होगा।
4-आदेश की प्रति उभयपक्षों को नियमानुसार नि:शुल्क प्रदान की जावे। ‘’
जिला आयोग के आक्षेपित निर्णय व आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षीगण की ओर से यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी पेशे से एक अधिवक्ता है और वह अपने मित्र गजेन्द्र प्रसाद अग्रवाल के साथ मथुरा कैन्ट की टिकट विण्डों पर पहुँचा और विपक्षी संख्या-2 टिकट क्लर्क से टिकट मांगा तो टिकट विण्डों पर बैठे क्लर्क द्वारा नियम का हवाला देते हुए बताया गया कि जिस स्थान का टिकट, टिकट विण्डों पर उपलब्ध न हो तो उस स्थान का
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टिकट अतिरिक्त किराया लेकर बनाया जावेगा और परिवादी को मुरादाबाद तक रेल यात्रा के लिए टिकट संख्या-02100 व 02101 व अतिरिक्त टिकट संख्या-900669 मु0 10/- 10/- व मु0 20/-रू0 प्राप्त कराया गया। परिवादी द्वारा टिकट का अधिक मूल्य लिये जाने का विरोध किया गया, किन्तु टिकट क्लर्क नहीं माना। परिवादी द्वारा यात्रा से वापस लौटने पर पुन: क्लर्क से आगह किया कि नियम विरूद्ध अधिक ली गयी धनराशि उसे वापस की जावे परन्तु अधिक ली गयी धनराशि विपक्षी द्वारा वापस नहीं की गयी । परिवादी ने विपक्षीगण को विधिक नोटिस भेजा जिसका कोई जवाब नहीं दिया गया, अत: विवश होकर परिवादी ने परिवाद जिला आयोग के समक्ष योजित किया है।
विपक्षी की ओर से प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत करते हुए परिवाद में याचित अनुतोषों से इंकार करते हुए, यात्रा के लिए टिकट लेने के तथ्य से इंकार नहीं किया है तथा प्रस्तर-5 में विशेष रूप से उल्लेख है कि ‘’यह कि प्रतिवाद पत्र के पैरा-5 में लिपिकीय गलती से दो दस-दस रूपये के टिकट जारी करना व उक्त गलती के कारण 20/-रू0 का अधिक टिकट बन जाने से इंकार नहीं किया है। अतिरिक्त कथन में यह कथन किया गया कि परिवाद जिला आयोग के समक्ष पोषणीय नहीं है, साथ ही यह भी कथन किया गया कि लिपिकीय त्रुटि अर्थात मानवीय त्रुटि के कारण प्रश्नगत टिकटों का मूल्य निर्धारित मूल्य से 20/-रू0 अधिक लिया गया। परिवादी उक्त अधिक ली गयी धनराशि वापस प्राप्त कर सकता है, साथ ही यह भी कथन किया कि यदि परिवादी द्वारा उच्चाधिकारियों से बातचीत की गयी होती तो उक्त त्रुटि तत्काल ठीक हो सकती थी। परिवादी द्वारा
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स्टेशन मास्टर या गाड़ी के पास उपलब्ध शिकायत पुस्तिका में शिकायत दर्ज नहीं की गयी है।
विद्धान जिला आयोग ने पक्षकारों को सुनने तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का परिशीलन करने के उपरान्त अपने निष्कर्ष में यह मत अंकित करते हुए कथन किया है कि विपक्षी द्वारा परिवादी से 20/-रू0 की धनराशि अधिक ली गयी है जो कि विपक्षी की सेवा में कमी है और विद्धान जिला आयोग द्वारा उक्त अधिक ली गयी धनराशि को मय ब्याज परिवादी को दिलाया जाना तर्क संगत एवं न्यायसंगत पाते हुए प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश पारित करते हुए परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की विद्धान अधिवक्ता श्रीमती संध्या दुबे उपस्थित। प्रत्यर्थी की ओर से उनके पुत्र श्री रवीकांत चतुर्वेदी उपस्थित।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश साक्ष्य एवं विधि के विरूद्ध है अत: अपील स्वीकार करते हुए जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश निरस्त किया जावे।
पीठ द्वारा उभयपक्ष को विस्तारपूर्वक सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों एवं जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का सम्यक अवलोकन किया गया।
उभयपक्ष को विस्तारपूर्वक सुनने तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों एवं जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का भली-भॉंति परिशीलन एवं परीक्षण करने के उपरान्त हम इस मत के हैं कि विद्धान जिला आयोग द्वारा समस्त तथ्यों पर गहनतापूर्वक विचार करने के उपरान्त विधि अनुसार निर्णय
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पारित किया गया है किन्तु विद्धान जिला आयोग द्वारा जो मानसिक, आर्थिक, वाद व्यय, आवागमन व्यय आदि के मद में जो 15,000/-रू0 परिवादी को अदा करने का आदेश पारित किया है वह वाद के तथ्यों और परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए अधिक प्रतीत होता है जिसे संशोधित करते हुए 15,000/-रू0 के स्थान पर 10,000/-रू0 किया जाना न्यायाचित प्रतीत होता है। तदनुसान अपील आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। विद्धान जिला आयोग द्वारा मानसिक, आर्थिक, वाद व्यय, आवागमन व्यय आदि के मद में पारित आदेश को संशोधित करते हुए रू0 15,000/- के स्थान पर रू0 10,000/- किया जाता है। निर्णय का शेष भाग यथावत कायम रहेगा।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (विकास सक्सेना)
अध्यक्ष सदस्य
प्रदीप मिश्रा , आशु0 कोर्ट नं0-1