(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
पुनरीक्षण सं0- 01/2023
प्रमोद कुमार सिंह उम्र लगभग 56 साल पुत्र स्व0 उधों सिंह ग्राम- रानीपुर रज्मों, पोस्ट बिन्द्रा बाजार, थाना गंभीरपुर जिला आजमगढ़, (उ0प्र0) 276205.
..........पुनरीक्षणकर्ता
बनाम
ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट गवर्नमेंट आफ उ0प्र0, आजमगढ़ जरिये आर0टी0ओ0 आजमगढ़ (उ0प्र0)
.......विपक्षी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
पुनरीक्षणकर्ता की ओर से उपस्थित : श्री पारसनाथ तिवारी,
विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक:- 03.02.2023
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
प्रस्तुत पुनरीक्षण याचिका, परिवाद सं0- 181/2022 प्रमोद कुमार बनाम ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट में जिला उपभोक्ता आयोग, आजमगढ़ द्वारा पारित आदेश दि0 09.01.2023 के विरुद्ध योजित की गई है, जिसके माध्यम से पुनरीक्षणकर्ता/परिवादी की अंतरिम राहत प्रार्थना पत्र व्यावसायिक वाहन का टैक्स वसूल न किए जाने का प्रार्थना पत्र जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा इस आधार पर निरस्त किया गया कि प्रत्यर्थी/विपक्षी द्वारा अभी तक वादोत्तर प्रस्तुत नहीं किया गया है। ऐसी स्थिति में बिना प्रत्यर्थी/विपक्षी के पक्ष को जाने कोई आदेश करना उचित नहीं है।
पुनरीक्षणकर्ता/परिवादी के अनुसार पुनरीक्षणकर्ता/परिवादी वाहन सं0- यू0पी050ए0टी05415 का स्वामी है। कोरोना काल में गाड़ी की आमदनी न होने तथा सरकार द्वारा टैक्स में राहत की घोषणा के कारण टैक्स जमा नहीं हो पाया था। पुनरीक्षणकर्ता/परिवादी को पता लगा कि अधिरोपित टैक्स में पेनाल्टी भी लगायी जा रही है, किन्तु प्रत्यर्थी/विपक्षी द्वारा इस पेनाल्टी के सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं दी जा रही है। इस आधार पर परिवाद प्रस्तुत किया गया एवं वाद के दौरान पुनरीक्षणकर्ता/परिवादी से किसी प्रकार की वसूली न किए जाने हेतु प्रार्थना पत्र दिया गया जिसको उपरोक्त आधार पर निरस्त किया गया।
हमने पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्ता श्री पारसनाथ तिवारी को अंगीकरण के बिन्दु पर सुना। प्रश्नगत आदेश तथा पत्रावली का सम्यक परिशीलन किया।
जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा प्रार्थना पत्र अंतरिम राहत को इस आधार निरस्त किया गया है कि प्रार्थना पत्र प्री-मेच्योर है। पुनरीक्षणकर्ता/परिवादी के प्रार्थना पत्र एवं परिवाद में मांगे गए अनुतोषों से स्पष्ट होता है कि पुनरीक्षणकर्ता/परिवादी द्वारा परिवहन विभाग (उ0प्र0) के विरुद्ध टैक्स से राहत दिए जाने के सम्बन्ध में परिवाद प्रस्तुत किया गया है।
पुनरीक्षण याचिका के स्तर पर पीठ के समक्ष प्रश्न यह है कि क्या पुनरीक्षणकर्ता/परिवादी द्वारा मांगा गया अनुतोष उपभोक्ता मामले के रूप में पोषणीय है अथवा नहीं। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 2(7) उपभोक्ता वह व्यक्ति है जो प्रतिफल के बदले कोई माल का क्रय करता है अथवा किसी स्थगित संदाय की पद्धति के अधीन सेवाओं को भाड़े पर लेता है या उनका उपभोग करता है। प्रस्तुत मामले में सरकार द्वारा टैक्स के रूप में जो धनराशि ली जा रही है उसके बदले में न तो कोई माल दिया जा रहा है और न ही कोई सेवा प्रदान की जा रही है।
इस सम्बन्ध में मा0 सर्वोच्च न्यायालय उड़ीसा द्वारा रीजनल ट्रांसपोर्ट आफीसर बनाम अरुण कुमार बहेरा व अन्य, डब्ल्यू.पी.नं0 15884/2015 में पारित निर्णय दि0 05.02.2020 उल्लेखनीय है। इस निर्णय में वर्तमान उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 2(7) के अनुरूप पुराने अधिनियम उपभोक्ता संरक्षण, 1986 की धारा 2(1)(d)(i) में उपभोक्ता की परिभाषा की व्याख्या करते हुए यह दिया गया है कि मोटर वाहन अधिनियम के अंतर्गत परमिट देने वाला प्राधिकारी सेवाप्रदाता की श्रेणी में नहीं आता है। टैक्स की वापसी उड़ीसा मोटर वाहन टैक्स सेशन अधिनियम, 1975 के अंतर्गत टैक्स का लिया जाना सरकार का विधिक कृत्य है और इसे सेवाप्रदाता के रूप में नहीं माना जा सकता है और न ही टैक्स देने वाला व्यक्ति उपभोक्ता की श्रेणी में माना जा सकता है। मा0 सर्वोच्च न्यायालय उड़ीसा के उपरोक्त निर्णय से दिशा-निर्देश लेते हुए यह पीठ इस मत की है कि इस मामले मे पुनरीक्षणकर्ता/परिवादी ने राज्य सरकार के विभाग द्वारा लिए जाने वाले टैक्स के सम्बन्ध में राहत के अनुतोष की प्रार्थना की है जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के दायरे में नहीं आता है।
जिला उपभोक्ता आयोग ने उचित प्रकार से अंतरिम राहत न दिए जाने का निष्कर्ष दिया है जो यद्यपि भिन्न तर्क के आधार पर दिया है, किन्तु यह राहत न दिया जाना उसके क्षेत्राधिकार का उचित प्रयोग है, क्योंकि इस मामले में राहत दिया जाना जिला उपभोक्ता आयोग के क्षेत्रोधिकार की सीमा का उल्लंघन होता। अत: जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा दिए गए निष्कर्ष व आदेश में कोई त्रुटि नहीं प्रतीत होती है। तदनुसार प्रश्नगत आदेश पुष्ट होने योग्य एवं पुनरीक्षण याचिका निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
पुनरीक्षण याचिका निरस्त की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत आदेश की पुष्टि की जाती है तथा जिला उपभोक्ता आयोग को इस निर्णय व आदेश प्रति इस निर्देश के साथ प्रेषित की जाती है कि परिवाद में विधिनुसार अग्रिम कार्यवाही सुनिश्चित करें।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (विकास सक्सेना)
अध्यक्ष सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 1