(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या- 2546/2001
(जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर देहात द्वारा परिवाद संख्या- 209/2000 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 06-09-2001 के विरूद्ध)
मेसर्स वी के लेदर इण्डस्ट्रीज, द्वारा इट्स पार्टनर श्री वी०के० कपूर, रजिस्टर्ड आफिस 95/(3) चुन्नीगंज, कानपुर नगर।
अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
1- ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन आफ इण्डिया, महत्मा गांधी रोड, पोस्ट बाक्स नं० 20, सिकन्दराबाद- 500 003, हैदराबाद।
2- सीनियर डिवीजनल मैनेजर, ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन आफ इण्डिया, 133/240 ट्रांसपोर्ट नगर, कानपुर नगर।
प्रत्यर्थी/विपक्षीगण
समक्ष:-
माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री वी०पी० शर्मा
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री ए०के० राय
दिनांक. 08-04-2022
माननीय सदस्य श्री राजेन्द्र सिंह, द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, परिवाद संख्या- 209 सन 2000 मे0 वी०के० लेदर इण्डस्ट्रीज द्वारा पार्टनर श्री वी०के० कपूर बनाम ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन आफ इण्डिया, में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, कानपुर देहात द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 06-09-2001 के विरूद्ध धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
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संक्षेप में अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि प्रश्नगत निर्णय और आदेश मात्र अनुमान और कल्पना पर आधारित है। अपीलार्थी ने अपने परिवाद पत्र में स्पष्ट रूप से कहा है कि प्रत्यर्थी/विपक्षी द्वारा सेवा में कमी की गयी है, जो माल उसे दिया गया है वह दोषयुक्त था। प्रश्नगत माल दिनांक 03-08-96 को बुक हुआ था जिसे अपीलार्थी/परिवादी के दरवाजे पर दिया जाना था। प्रत्यर्थी/विपक्षी ऐसा करने में असफल रहे और माल को अपने गोदाम कानपुर में रोककर रखा। उसने जोर दिया कि परिवादी फ्रेट का भुगतान कर उसके यहॉं से माल उठा लेगा। इसके पश्चात दिनांक 22-08-96 को सीलबन्द माल उसे दिया गया और उससे इस सम्बन्ध में फ्रेट शुल्क लिया गया। माल को खोलने पर मालूम हुआ कि 40 से 50 प्रतिशत माल खराब हो चुका है। लाइसेंसी सर्वेयर ने इसका निरीक्षण किया। विद्वान जिला आयोग ने प्रत्यर्थी/विपक्षी के लिखित कथन पर विश्वास व्यक्त किया जबकि इस सम्बन्ध में कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया गया। विद्वान जिला आयोग साक्ष्यों का उचित मूल्यांकन नहीं कर सका। यह माल अपीलार्थी/परिवादी के दरवाजे पर देना था जो कि प्रत्यर्थी/विपक्षी द्वारा नहीं दिया गया। अपीलार्थी/परिवादी के दरवाजे पर माल पहुंचाने के सम्बन्ध में 400/-रू० शुल्क भी लिया गया था। समय से माल न देने के कारण जब बाद में माल दिया गया तब वह काफी हद तक खराब निकला। विद्वान जिला आयोग ने कहा कि कोई क्षति संबंधी प्रमाण पत्र नहीं प्रस्तुत किया गया है जो गलत है। वस्तुओं का कुल मूल्य 8,74,061/-रू० था। विद्वान जिला आयोग ने यह नहीं देखा कि रसीद में सामान के क्षतिग्रस्त होने की बात लिखी है। अत: ऐसी स्थिति में निवेदन है कि वर्तमान अपील स्वीकार करते हुए प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश अपास्त किया जाए।
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हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री वी०पी० शर्मा एवं प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री ए०के० राय को सुना और पत्रावली का सम्यक रूप से परिशीलन किया।
हमने पत्रावली पर उपलब्ध समस्त साक्ष्यों एवं विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश का अवलोकन किया।
इस मामले में परिवादी द्वारा दो बण्डल माल जिसका वजन क्रमश: 971 किलोग्राम तथा 5335 किलोग्राम था और जिसकी कुल कीमत 8,74,061/-रू० थी मद्रास से कानपुर के लिए विपक्षी के ट्रांसपोर्ट द्वारा दिनांक- 3-08-96 को एल आर नं० 44153 द्वारा बुक किया गया। उपरोक्त बण्डलों में चमड़े के सामान थे तथा भेजने वाला एवं पाने वाला परिवादी स्वयं था। माल भेजते समय परिवादी और विपक्षी के बीच यह निर्धारित हुआ था कि वह माल की डिलीवरी परिवादी के दरवाजे पर करेगा। परिवादी का कथन है कि दिनांक 03-08-96 को बुक किया हुआ उपरोक्त माल दिनांक 15-08-96 को कानपुर पहॅुचा लेकिन विपक्षी द्वारा इसकी सूचना परिवादी को तुरन्त नहीं दी गयी बल्कि विपक्षी ने परिवादी को दिनांक 22-08-96 को उपरोक्त माल के बारे में परिवादी को सूचित किया। फलस्वरूप परिवादी ने रू० 11,870/-रू० भाड़ा का भुगतान दिनांक 22-08-96 को विपक्षी को किया और तत्पश्चात विपक्षी ने दिनांक 23-08-96 को उपरोक्त माल परिवादी के दरवाजे पर ले जाकर दिया। इस प्रकार विपक्षी ने अपने यहॉं उपरोक्त माल को बिना किसी कारण के एक सप्ताह की अवधि तक रोके रखा जबकि उपरोक्त माल को पहॅुचने पर तत्काल परिवादी के दरवाजे पर देना था। परिवादी का कथन है कि जब उसने उपरोक्त बण्डलों को अपने यहां खोला तो उसमें रखे गये चमड़े के सामान नमी के कारण खराब हो गये थे। चमड़ो में फंगस लग गया था। इस प्रकार विपक्षी की
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त्रुटिपूर्ण सेवा में लापरवाही के फलस्वरूप उपरोक्त माल क्षतिग्रस्त हो गया। परिवादी ने अपने उपरोक्त माल की क्षति का आकलन करने के लिए श्री एस०सी० गौतम को सर्वेयर नियुक्त किया जिन्होंने उपरोक्त माल का निरीक्षण दिनांक 28-08-96 को परिवादी के परिसर में किया। सर्वेयर की रिपोर्ट के अनुसार उपरोक्त माल 40 से 50 प्रतिशत क्षतिग्रस्त हो चुका था। इस प्रकार क्षति का आकलन सर्वेयर ने 2,86,246.50 किया है। सर्वेयर की रिपोर्ट के पश्चात परिवादी के अनुरोध पर विपक्षी के प्रतिनिधि श्री डी०पी० राव, डिपो इंचार्ज कानपुर नगर परिवादी के उपरोक्त माल को देखने परिवादी के गोदाम पर दिनांक 29-08-96 को आये जिन्होंने क्षतिग्रस्त माल को देखकर कहा कि परिवादी का माल 40 से 50 प्रतिशत तक क्षतिग्रस्त हो गया। विपक्षी के शाखा प्रबन्धक श्री शुक्ला एवं श्री बाला जी डिपो प्रबन्धक भी परिवादी के गोदाम पर आये और निरीक्षण कर अपनी सहमति प्रदान किया कि 40 से 50 प्रतिशत सामान खराब हो गया है। परिवादी ने क्षतिपूर्ति हेतु दावा प्रत्यर्थी/विपक्षी के यहॉं प्रस्तुत किया परन्तु परिवादी के दावे का निस्तारण आज तक नहीं किया गया और न ही क्षतिपूर्ति का भुगतान किया गया।
विद्वान जिला आयोग के समक्ष प्रत्यर्थी/विपक्षी ने अपना लिखित प्रस्तुत किया है जिसमें कहा है कि परिवादी के भागीदार द्वारा प्रश्नगत माल बुक नहीं किया गया था बल्कि करीमा लेदर प्रोडक्ट्स मद्रास द्वारा मद्रास से कानपुर के लिए दिनांक 03-08-96 को बुक किया गया था। परिवादी और विपक्षी के बीच प्रश्नगत माल के सम्बन्ध में किसी प्रकार का कोई अनुबन्ध नहीं हुआ था। प्रश्नगत माल दिनांक 19-08-96 को विपक्षी के यहॉं पहॅुचा और विपक्षी द्वारा तुरन्त इसकी सूचना परिवादी को दी गयी। परिवादी ने दिनांक 22-08-96 को चेक द्वारा माल के भाड़े का भुगतान किया। भुगतान मिलते
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ही विपक्षी द्वारा दिनांक 23-08-96 को उपरोक्त माल परिवादी के परिसर में पहॅुचा दिया गया। विपक्षी का कथन है कि जिस समय माल की डिलीवरी परिवादी को दी गयी उस समय माल बिल्कुल ठीक था। इसमें किसी प्रकार की कोई त्रुटि या नमी नहीं थी। परिवादी ने लगभग एक सप्ताह के बाद दिनांक 29-08-96 को माल में सीलन आने की शिकायत की जिसके लिये विपक्षी उत्तरदायी नहीं है। विपक्षी के यहॉं श्री डी०पी राव उस समय न तो कार्यरत थे और न ही उन्हें कोई प्रमाण पत्र देने का अधिकार है। विपक्षी द्वारा सेवा में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं की गयी है। विपक्षी के यहॉ जिस दिन उपरोक्त माल मद्रास से प्राप्त हुआ उसी दिन परिवादी को सूचित कर दिया गया था। परिवादी ने दिनांक 23-08-96 को भाड़े का भुगतान किया और उसी दिन माल विपक्षी ने उसके यहॉं पहॅुचा दिया । परिवादी ने कोई प्रमाण पत्र क्षतिग्रस्त माल के सम्बन्ध में अथवा कम माल के सम्बन्ध में दाखिल नहीं किया है अत: परिवादी किसी प्रकार की कोई क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी नहीं है।
विद्वान जिला आयोग ने अपने निर्णय में इन तथ्यों पर विचार करते हुए कहा कि उपरोक्त माल का परिवादी द्वारा कोई बीमा नहीं कराया गया था और न तो विपक्षी से कोई अनुबन्ध किया गया कि उपरोक्त माल जिस स्थिति में भेजा गया था उसी स्थिति में परिवादी को प्रदान किया गया। अगर माल खराब था तो परिवादी को विपक्षी से प्रमाण पत्र प्राप्त करना चाहिए था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। उपरोक्त माल दिनांक 03-08-96 से दिनांक 22-08-96 तक विपक्षी के ट्रांसपोर्ट कम्पनी में रहा और दिनांक 23-08-96 से दिनांक 10-09-96 तक परिवादी की अभिरक्षा में रहा। परिवादी द्वारा पहली बार अन्वेषक की रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद दिनांक 10-09-96 को विपक्षी को सूचित किया कि माल में फंगस लगा हुआ है। स्पष्ट है कि माल प्राप्त करने
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के बाद लगभग 15 दिनों तक परिवादी ने अपनी अभिरक्षा में रखा और इसके बाद इसको देखा। अब प्रश्न यह उठता है कि परिवादी ने माल को तुरन्त क्यों नहीं देखा। यदि माल में सीलन या नमी थी या माल क्षतिग्रस्त था तब उसी समय इसकी सूचना विपक्षी को देना चाहिए था या इसका प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना चाहिए था तब विपक्षी उसके लिए उत्तरदायी हो सकता था। परन्तु परिवादी ने ऐसा नहीं किया। परिवादी ने माल 15 दिनों तक अपनी अभिरक्षा में रखा जिसके लिए परिवादी उत्तरदायी है। विद्वान जिला आयोग ने समस्त तथ्यों पर सम्यक रूप से विचार करते हुए अपना निर्णय घोषित किया है। साक्ष्यों के अभाव में परिवादी का यह कथन विश्वसनीय नहीं है कि माल प्रत्यर्थी/विपक्षी की अभिरक्षा में क्षतिग्रस्त हुआ है।
उपरोक्त सम्पूर्ण तथ्यों पर विचार करने के उपरान्त हम इस निष्कर्ष पर पहॅुचते हैं कि परिवादी का परिवाद उचित आधार पर खारिज किया गया है। हमने समस्त तथ्यों को देखा और यह पाया कि इस मामले में परिवादी द्वारा विलम्ब किया गया है और माल लेने के बाद तुरन्त परिवादी ने उसे खोलकर ट्रांसपोर्ट कम्पनी के सामने नहीं देखा और बाद में देखा भी तो 15 दिन के बाद देखा जो उसने अपनी अभिरक्षा में रख रखा था। इस प्रकार यह नहीं कहा जा सकता है कि माल किसकी अभिरक्षा में क्षतिग्रस्त हुआ है। अत: ऐसी स्थिति में विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश विधि सम्मत प्रतीत होता है जिसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं प्रतीत होती है। वर्तमान अपील निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील सव्यय निरस्त की जाती है।
उभय-पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
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आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
निर्णय आज दिनांक- 08-04-2022 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित/दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
कृष्णा–आशु0 कोर्ट-2