(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील सं0 :-575/2017
(जिला उपभोक्ता आयोग, इटावा द्वारा परिवाद सं0-117/2015 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 28/02/2017 के विरूद्ध)
Executive Engineer, Dachinanchal Vidyut Vitran Nigam Ltd, EDD II 33/11 KV Sub Station, Friends Colony, ETAWAH.
- Appellant
Versus
Tilak Singh S/O Ram Bahadur, R/O Mohalla, Khera pati, Thana, Ekdil, District ETAWAH
समक्ष
- मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य
- मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य
उपस्थिति:
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- श्री इसार हुसैन
प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता:-श्री उमेश कुमार शर्मा
दिनांक:-29.11.2022
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
- जिला उपभोक्ता आयोग, इटावा द्वारा परिवाद सं0 117/2015 तिलक सिंह बनाम अधिशाषी अभियंता में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 28.02.2017 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गयी है। जिला उपभोक्ता मंच ने दिनांक 31.07.2011 को प्रत्यर्थी/परिवादी का भैंसा विद्युत कनेक्शन के लिए प्रयुक्त होने वाले बिजली के खम्भे में विद्युत प्रवाहित होने के कारण चपेट मे आने से मृत्यु कारित होने पर भैंसे की कीमत अंकन 25,000/- रू0, क्षति के मद में 10,000/- वाद व्यय के रूप में 5,500/- रू0 कुल 40,500/- रू0 अदा करने का आदेश दिया है।
- इस निर्णय एवं आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गयी है कि वह भैस की मृत्यु दिनांक 31.07.2011 को होने पर यह परिवाद वर्ष 2015 में प्रस्तुत किया गया है।
- दोनों पक्षकारों के विद्धान अधिवक्ता को सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का यह तर्क है कि 31.07.2011 मे भैंसे की मृत्यु होने पर वर्ष 09.12.2015 में परिवाद प्रस्तुत करने का कोई आधार नहीं है।
- प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि लिखित कथन में समयावधि से बाधित होने के तथ्य का वर्णन नहीं किया गया है। पत्रावली के अवलोकन से ज्ञात होता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा भैंसा मरने की सूचना कभी भी विद्युत विभाग को भैंसा मरने के पश्चात नहीं दी गयी है। जबकि प्रत्यर्थी/परिवादी का यह दायित्व था कि यदि विद्युत विभाग द्वारा गाढ़े गये खम्भे के सम्पर्क में आने के पश्चात प्रत्यर्थी/परिवादी के भैंसे की मृत्यु हुई है तब इस तथ्य की सूचना तुरंत विद्युत विभाग को दी जाती और क्लेम प्रस्तुत किया जाता। यह सूचना प्राप्त होने पर विभाग द्वारा समुचित जांच की जा सकती थी और जांच के पश्चात अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जा सकती थी तथा प्रतिकर अदा करने के बिन्दु पर विचार किया जा सकता था, परंतु चूंकि इस आशय का कोई साक्ष्य पत्रावली पर मौजूद नहीं है इसलिए अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता के इस तर्क को ग्राह्य करना उचित है कि यह परिवाद एक सुनियोजित योजना के तहत वर्ष 09.12.2015 में प्रस्तुत कर दिया गया, जबकि भैंस के करंट से मरने का कोई सबूत पत्रावली पर मौजूद नहीं है एवं पोस्टमार्टम से संबंधित अभिलेख भी पत्रावली पर मौजूद नहीं है प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का यह तर्क है कि उपनिदेशक विद्युत सुरक्षा उत्तरप्रदेश शासन के कानपुर परिक्षेत्र द्वारा भैंसे की मृत्यु के संबंध में जांच की गयी है और जांच रिपोर्ट के आधार पर कार्यवाही करने के लिए प्रबंध निदेशक दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, आगरा को पत्र लिखा गया। इस रिपोर्ट के संबंध में अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का यह तर्क है कि कार्यालय अधिशाषी अभियंता इटावा द्वारा उप निदेशक विद्युत सुरक्षा को इस रिपोर्ट पर आपत्ति करते हुए पत्र दिनांक 16.03.2017 को लिखा गया, जिसमें उल्लेख किया गया है वर्ष 2011 की घटना की जांच वर्ष 2016 में किस आधार पर की गयी है, जबकि एफ.आई.आर., डॉक्टर की पोस्टमार्टम की रिपोर्ट उपलब्ध नहीं करायी गयी है, चूंकि प्रस्तुत केस में भैंसा के मरने के पश्चात दुर्घटना की सूचना पोस्टमार्टम रिपोर्ट समय पर अधिशाषी अभियंता के समक्ष प्रस्तुत किये गये क्लेम आदि का कोई सबूत मौजूद नहीं है इसलिए वर्ष 2016 में एक संस्थान द्वारा तैयार की गयी जांच रिपोर्ट के आधार पर प्रस्तुत केस में क्लेम देने का कोई आधार नहीं बनता था। जिला उपभोक्ता मंच ने साक्ष्य के विपरीत जाकर क्लेम देने का आदेश पारित किया तथा इस बिन्दु पर विचार नहीं किया कि वर्ष 2011 की घटना के पश्चात वर्ष 2015 में यानि 04 वर्ष वाद परिवाद प्रस्तुत किया गया जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 24 (क) से बाधित था।
- इस अवसर पर यह स्पष्ट करना उचित होगा कि धारा 24 (क) के प्रावधान जिला उपभोक्ता मंच/आयोग या राज्य उपभोक्ता आयोग के लिए निर्देशित होना यह आवश्यक नहीं है कि विपक्षी द्वारा समयावधि के संबंध में आपत्ति की जाये। धारा 24 (क) के अवलोकन करने से स्पष्ट होता है कि धारा 24 (क) किसी भी उपभोक्ता मंच को निर्देशित किया गया है कि समयावधि से बाधित किसी भी परिवाद पर विचार नहीं किया जायेगा/सुनवाई के लिए ग्रहण नहीं किया जायेगा, परंतु जिला उपभोक्ता मंच ने इस विधिक स्थिति पर कोई विचार नहीं किया। अत: उपरोक्त वर्णित कारणों के आधार पर अपील स्वीकृत होकर परिवाद खारिज किया जाना चाहिए।
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अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय व आदेश अपास्त किया जाता है। परिवाद उपरोक्त वर्णित कारणों के आधार पर खारिज किया जाता है।
धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को नियमानुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाये।
उभय पक्ष अपीलीय वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना)(सुशील कुमार)
संदीप आशु0कोर्ट नं0 2