जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, चूरू
अध्यक्ष- षिव शंकर
सदस्य- सुभाष चन्द्र
सदस्या- नसीम बानो
परिवाद संख्या- 565/2011
बलवीर सिंह पुत्र श्री झाबरमल जाति जाट निवासी 30, उेनसर खुर्द विद्यालय के पास, देलसर कलां, तहसील नवलगढ जिला झुझुनू राजस्थान
......परिवादी
बनाम
1. क्षेत्रीय प्रबंधक दी ओरयण्टल इन्ष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड सर्विस सेन्टर द्वितीय मंजिल, आनन्द भवन, ससांर चन्द्र रोड़, जयपुर।
......अप्रार्थी
दिनांक- 26.02.2015
निर्णय
द्वारा अध्यक्ष- षिव शंकर
1. श्री पंकज सिंह एडवोकेट - परिवादी की ओर से
2. श्री पवन शर्मा एडवोकेट - अप्रार्थी की ओर से
1. परिवादी ने अपना परिवाद पेश कर बताया कि परिवादी ने एक वाहन क्रुजर संख्या आर. जे. 18 टी. ए. 0349 अपने स्वरोजगार के लिए ले रखा है जिसका बीमा उतरवादी बीमा कम्पनी से 24.09.2009 से 25.09.2010 अवधि तक के लिए करवाया गया था। उतरवादी बीमा कम्पनी द्वारा परिवादी के उक्त वाहन की बीमा की। बीमा पाॅलिसी नम्बंर 243308/31/2010/6308 जारी किये गये व बीमा कवरनोट संख्या 240000804139 जारी किया गया। उक्त बीमा संविदा के अनुसार बीमा अवधि में परिवादी के वाहन को किसी भी प्रकार से कोई क्षति कारित होने की सूरत में उसकी क्षतिपूर्ति करने का दायित्व बीमा कम्पनी का था। परिवादी का वाहन दिनांक 27.05.2010 को दुर्घटनाग्रस्त हो गया जिस पर प्रथम सूचना संख्या 45/10 पुलिस थाना भानीपुरा चूरू में दर्ज किया जाकर प्रकरण की जाॅच की गयी। परिवादी का उक्त वाहन वरवक्त दुर्घटना सुरेन्द्र सिंह चला रहा था जिसकी इसी दुर्घटना में आयी चोटो के परिणाम स्वरूप मृत्यु हो गयी। परिवादी ने उक्त दुर्घटना के परिणाम स्वरूप अपने वाहन क्रुजर संख्या आर. जे. 18 टी. ए. 0349 को हुई क्षति की क्षतिपूर्ति हेतु उतरवादी बीमा कम्पनी के समक्ष बीमा दावा प्रस्तुत किया। परिवादी की सूचना पर उतरवादी बीमा कम्पनी द्वारा उक्त वाहन का स्पोट सर्वे भी करवाया गया। उतरवादी बीमा कम्पनी ने परिवादी का बीमा दावा 240011/31/ 031042 नम्बंर पर दर्ज करके जाॅच की गई। परिवादी ने उतरवादी बीमा कम्पनी द्वारा मांगे गये समस्त दस्तावेज उतरवादी बीमा कम्पनी को प्रेषित कर दिये गये परन्तु उतरवादी बीमा कम्पनी ने अपने क्षतिपूर्ति के दायित्व से बचने के लिए बिना किसी औचित्य व आधार के दिनांक 12.01.2011 को परिवादी का बीमा दावा निरस्त कर दिया गया इस प्रकार से उतरवादी बीमा कम्पनी का कृत्य सेवादोष की तारिफ में आता है।
2. आगे बताया कि उतरवादी बीमा कम्पनी द्वारा परिवादी पर आरोप लगाया गया कि स्पोर्ट सर्वे के समय ड्राईवर का नाम मुकेश कुमार मीणा बताया गया जबकि क्लेम फार्म मे ड्राईवर का नाम सुरेन्द्र सिंह लिखा गया है जो आरोप पूर्ण रूप से निराधार है। परिवादी के वाहन का ड्राईवर सुरेन्द्र सिंह ही था जिसकी मृत्यु दुर्घटना में आई चोटो के कारण हो गई। जिसका पोस्ट मार्टम भी करवाया गया। पुलिस द्वारा अपनी सम्पूर्ण तफतीश मे सुरेन्द्र सिंह को ही वाहन कु्रजर संख्या आर जे 18 टी ए 0349 का ड्राईवर माना है। ऐसी सूरत में यदि घबराहट में किसी ने स्पोट सर्वे के समय ड्राईवर का नाम मुकेश मीणा बता भी दिया गया तो उसे किसी भी सुरत मे ड्राईवर नहीं माना जा सकता है क्योकि उक्त वाहन के चालक की दुर्घटना में आई चोटों से मृत्यु हो गई व पुलिस द्वारा ही उसका पोस्टमार्टम करवाया गया व पुलिस तफतीश मे भी ड्राईवर सुरेन्द्र सिंह ही होना माना गया है ऐसी सुरत मे बीमा कम्पनी द्वारा लगाया गया आरोप पूर्ण रूप से निराधार है। वाहन के चालक के पास लाईट मोटर व्हीकल की श्रेणी का डी.एल. था। फिर भी अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने क्षतिपूर्ति के दायित्व से बचने के लिए गलत आधार पर बीमा दावा खारिज कर सेवादोष कारित किया है इसलिए परिवादी ने क्षतिपूर्ति राशि 3,05,781 रूपये मय ब्याज, मानसिक प्रतिकर व परिवाद व्यय की मांग की है।
3. अप्रार्थी ने परिवादी के परिवाद का विरोध कर जवाब पेश कर बताया कि परिवादी के वाहन आर. जे. 18 टी.ए. 0349 का उत्तरदाता बीमा कम्पनी से दिनांक 26.09.09 से 25.09.10 तक की अवधि के लिए पाॅलिसी संख्या 243308/31/2010/6308 के द्वारा श्री बलदेव सिंह पुत्र श्री झाबर सिंह के नाम से परिवहन हेतु यात्री वाहन के रूप में चलाये जाने के लिए बीमित किया गया था जिस बीमा पाॅलिसी में यह स्पष्ट शर्त अंकित है कि दुर्घटना के समय वाहन चालक के पास इस प्रकार के वाहनों के चलाने हेतु सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी किया हुआ वैद्य व प्रभावी ड्राईविंग लाईसेन्स होना आवश्यक है अन्यथा बीमा कम्पनी किसी भी प्रकार की क्षति के लिए उत्तरदायी नहीं होगी। चूंकि प्रश्नगत वाहन वाणिज्यिक उपयोग का वाहन है जिसका उपयोग किराए पर टैक्सी के रूप में सवारियां ढोना है और वाहन के उपयोग की प्रकृति परिवहनयान की है ऐसी स्थिति में वाहन चालक के पास परिवहनयान चलाने की अनुज्ञप्ति होना आवश्यक है मगर तथाकथित वाहन चालक श्री सुरेन्द्र सिंह के पास परिवहनयान चलाने की कोई चालक अनुज्ञप्ति नहीं थी और वह केवल निजी प्रयोग के हल्के मोटर वाहन को चलाने हेतु ही अधिकृत था। परिवाद में वर्णित किए अनुसार वाहन आर. जे. 18 टी.ए. 0349 पर दुर्घटना के समय नियोजित चालक श्री सुरेन्द्र सिंह परिवहनयान चलाने हेतु अधिकृत नहीं था जिस तथ्य बाबत जानकारी होते हुए भी वाहन स्वामी ने जानबूझकर बीमा संविदा की शर्तों का उल्लंघन करते हुए वाणिज्यिक प्रयोजन के परिवहनयान पर बिना सक्षम चालक अनुज्ञप्तिधारी व्यक्ति को वाहन पर चालक नियुक्ति कर वाहन चलाने हेतु अनुज्ञात किया है जो बीमा संविदा का जानबूझकर स्वैच्छिक रूप से किया गया उल्लंघन है ऐसी स्थिति में बीमा कम्पनी विधिक रूप से किसी भी प्रकार की जिम्मेवारी के लिये उतरदायी नहीं ठहराई जा सकती और यह परिवाद सव्यय खारिज किये जाने योग्य है।
4. आगे जवाब दिया कि वाहन स्वामी ने जानबूझकर बीमा पाॅलिसी में दर्ज ‘‘उपयोग की सीमा‘‘ शीर्षक में वर्णित शर्त का उल्लंघन किया है दुर्घटना के समय प्रश्नगत वाहन का उपयोग व उपभोग मोटर वाहन कानून की धारा 3, 5, 10, 56, 66 तथा नियम 3 एवं अन्य तत्सम्बन्धी नियमों के उल्लंघन में किया जा रहा था। बीमा संविदा मोटर वाहन कानून तथा बीमा कानून के प्रावधानों से शासित होती है। अतएव दोनों कानूनों के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन बीमा संविदा का उल्लघंन होता है। ऐसी स्थिति में भी बीमा कम्पनी प्रतिकर अदायगी हेतु किसी भी प्रकार से जिम्मेवार नहीं बनाई जा सकती है। परिवादी ने अपने परिवाद की धारा 5 में गलत तथ्यों का सहारा लिया है। परिवादी ने प्रश्नगत वाहन को लाईट मोटर व्हीकल की श्रेणी में होना मानते हुए तथाकथित चालक सुरेन्द्र सिंह के पास लाईट मोटर व्हीकल चलाने का लाईसेन्स होने के तथ्य का गलत विवेचन किया है। प्रश्नगत वाहन वजन के लिहाज से हल्का मोटरयान होते हुए भी उपयोग की प्रकृति वाणिज्यिक व परिवहनयान ट्रान्सपोर्ट व्हीकल है ऐसी स्थिति में बीमा कम्पनी कानूनन प्रतिकर अदायगी हेतु जिम्मेवार नहीं बनाई जा सकती है। यूं तो आॅटो रिक्शा भी वजन के हिसाब से हल्का मोटरयान है। मगर उसके उपयोग व उपभोग की प्रकृति परिवहनयान की होती है इसी प्रकार से प्रश्नगत वाहन के उपयोग व उपभोग की प्रकृति परिवहनयान की है इस वाहन का पंजीयन भी परिवहनयान के रूप में करवाया गया है और बीमा भी परिवहनयान के रूप में ही करवाया गया है। अतएव प्रश्नगत वाहन हल्का मोटरयान होते हुए भी वाणिज्यिक व परिवहनयान है ऐसी स्थिति में वाहन की इसी प्रकृति को ध्यान में रखते हुए ही प्रकरण का निस्तारण हो सकता है अन्य किसी प्रकार से नहीं। बीमा कम्पनी ने मोटरवाहन कानून, बीमा कानून तथा बीमा संविदा के तहत प्रकरण का गुणावगुण पर जांच करके बीमा दावा खारिज किया है। उक्त आधार पर परिवाद खारिज करने की मांग की।
5. परिवादी की ओर से परिवाद के समर्थन में स्वंय का शपथ-पत्र, खण्डन शपथ-पत्र, पत्र दिनांक 12.01.2011, 18.06.2010, परिवहन अधिकारी का पत्र, बीमा कवरनोट, बीमा पोलिसी, बिल क्षतिग्रस्त वाहन की फोटो, अनुमानित पत्र, वाहन के नुकसान के सम्बंध में रिपेयर बिल, प्रथम सूचना रिपोर्ट, अन्तिम प्रतिवेदन, पंचनामा, नोटिस 133, पोस्टमार्टम रिपोर्ट, सत्यप्रति राजीनामा लोकअदालत, निर्णय दिनांक 17.05.2013, सर्कुलर राजस्थान सरकार दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किये है।
6. पक्षकारान की बहस सुनी गई, पत्रावली का ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया, मंच का निष्कर्ष इस परिवाद में निम्न प्रकार से है।
7. परिवादी अधिवक्ता ने परिवाद के तथ्यों को दौहराते हुए तर्क दिया कि परिवादी का वाहन क्रुजर संख्या आर. जे. 18 टी.ए. 0349 अप्रार्थी से बीमित था। बीमित अवधि में ही दिनांक 27.05.2010 को दुर्घटनाग्रस्त हो गया जिसकी प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 45/2010 पुलिस थाना भानीपुरा में दर्ज करवायी गयी। परिवादी अधिवक्ता ने तर्क दिया कि दुर्घटना के समय प्रश्नगत वाहन सुरेन्द्र सिंह चला रहा था जिसकी दुर्घटना में मृत्यु हो गयी। परिवादी ने वाहन के दुर्घटनाग्रस्त होने पर क्षतिपूर्ति हेतु बीमा दावा अप्रार्थी बीमा कम्पनी के यहां प्रस्तुत किया। जिस पर अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने बीमा दावा दर्ज करते हुए अपने दायित्व से बचते हुए दिनांक 12.01.2011 को दुर्घटना के समय चालक के पास प्रभावी व वैद्य लाईसेन्स नहीं होने के आधार पर क्लेम दावा अस्वीकार कर दिया। जबकि परिवादी के पास दुर्घटना के समय लाईट मोटर व्हीकल डी.एल. था। परिवादी का प्रश्नगत वाहन भी लाईट मोटर व्हीकल की श्रेणी में आता है फिर भी अप्रार्थी ने केवल क्षतिपूर्ति से बचने हेतु परिवादी का क्लेम अस्वीकार कर दिया। परिवादी अधिवक्ता ने यह भी तर्क दिया कि अप्रार्थी ने एम.ए.सी.टी. अधिकरण भादरा में प्रश्नगत वाहन के दुर्घटना के सम्बंध में दायर याचिका में समझौता कर अवार्ड की राशि अदा की है। इसलिए अब अप्रार्थी पर विबंधन का सिद्धान्त लागू होता है। इसलिए अप्रार्थी द्वारा परिवादी के क्लेम को अस्वीकार करना सेवादोष की श्रेणी में आता है। परिवादी अधिवक्ता ने परिवाद स्वीकार करने का तर्क दिया। अप्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में परिवादी अधिवक्ता के तर्कों का विरोध करते हुए मुख्य तर्क यही दिया कि परिवादी का प्रश्नगत वाहन अप्रार्थी के यहां यात्री वाहन के रूप में चलाये जाने के लिए बीमित था। इसलिए परिवादी के प्रश्नगत वाहन को चलाने हेतु ट्रांसपोर्ट डी.एल. होना आवश्क था जबकि दुर्घटना के समय वाहन के चालक सुरेन्द्र कुमार के पास केवल एल.एम.वी. डी.एल. था जो कि स्पष्ट रूप से मोटरवाहन अधिनियम व पोलिसी की शर्तों का उल्लंघन है। अप्रार्थी अधिवक्ता ने यह भी तर्क दिया कि अप्रार्थी द्वारा एम.ए.सी.टी. अधिकरण के तहत लोक अदालत की भावना से तृतीय पक्षकार की मृत्यु पर अवार्ड राशि दी गयी थी। इसलिए एम.ए.सी.टी. न्यायालय के निर्णय से यह नहीं समझा जायेगा कि अप्रार्थी ने अपने उत्तरदायित्व को स्वीकार किया है। यह भी तर्क दिया कि उपभोक्ता मंच में साक्ष्य अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होते। उक्त आधार पर परिवाद खारिज करने का तर्क दिया।
8. हमने उभय पक्षों के तर्कों पर मनन किया। वर्तमान प्रकरण में परिवादी वाहन क्रुजर संख्या आर. जे. 18 टी.ए. 0349 अप्रार्थी से बीमित होना, बीमित अवधि में ही दिनांक 27.05.2010 को उक्त वाहन दुर्घटनाग्रस्त होना जिसकी प्रथम सूचना रिपोर्ट 45/2010 दर्ज होना व अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा परिवादी का क्लेम निरस्त करना स्वीकृत तथ्य है। विवादक बिन्दु प्रथम यह है कि क्या दुर्घटना के समय प्रश्नगत दुर्घटनाग्रस्त वाहन के चालक के पास प्रभावी व वैद्य लाईसेन्स था। वर्तमान प्रकरण में यह स्वीकृत तथ्य है कि परिवादी के पास लाईट मोटर व्हीकल लाईसेन्स था। परिवादी अधिवक्ता ने अपनी बहस में तर्क दिया कि परिवाद में वर्णित प्रश्नगत वाहन भी लाईट मोटर व्हीकल लाईसेन्स की श्रेणी में आता है इस श्रेणी में परिवादी अधिवक्ता ने इस मंच का ध्यान राज्य सरकार के सर्कुलर दिनांक 29.03.2005 की ओर दिलाया जिसका ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। राज्य सरकार के उक्त सर्कुलर में जो कि दिनांक 29.03.2005 को जारी किया गया में चरण संख्या 1 में यह अंकित है कि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 2 (21) के अनुसार लाईट मोटर व्हीकल के अन्तर्गत वे ट्रांसपोर्ट व्हीकल या ओमनी, बस या कार या ट्रेक्टर या रोड़ रोलर जिनका सकल यान भार 7500 किलो से कम है सम्मिलित किये गये है। परिवादी अधिवक्ता ने उक्त सर्कुलर के आधार पर तर्क दिया कि प्रश्नगत वाहन का वहन भी 7500 किलो से कम था। इसलिए उक्त वाहन लाईट मोटर व्हीकल की श्रेणी में आता है जिसका चलाने के लिए लाईट मोटर व्हीकल लाईसेन्स धारी योग्य है। अप्रार्थी अधिवक्ता ने उक्त तर्कों का विरोध किया और तर्क दिया कि परिवादी अधिवक्ता ने उक्त सर्कुलर का विवेचन गलत आधार पर किया है और तर्क दिया कि उक्त सर्कुलर में यह जरूर अंकित है कि 7500 किलो से कम वाहन को लाईट मोटर व्हीकल की श्रेणी में रखा गया है परन्तु इसमें यह अंकित नहीं है कि ऐसे वाहन को चलाने के लिए लाईट मोटर व्हीकल लाईसेन्सधारी योग्य हो। हम अप्रार्थी अधिवक्ता के उक्त तर्कों से सहमत है क्योंकि उक्त सर्कुलर में चरण संख्या 5 में यह अंकित है कि चालक लाईसेन्स जारी करते समय लाईसेन्स में स्ज्टए भ्ज्टए भ्ळटए डच्टए डळट के स्थान पर केवल ट्रांसपोर्ट व्हीकल (परिवहन यान) श्रेणी अंकित की जावे। उक्त शर्त से स्पष्ट है कि 7500 किलो से कम वाहनों को लाईट मोटर व्हीकल वाहन की श्रेणी में रखा जायेगा परन्तु यह शर्त भी अंकित है कि यदि वाहन का पंजियन परिवहन हेतु हुआ है और वाहन ट्रांसपोर्ट व्हीकल है तो उसके लिए डी.एल. में ऐसा प्रष्ठांकन होना आवश्यक है। परन्तु वर्तमान प्रकरण में परिवादी ने ऐसी साक्ष्य पेश नहीं की जिससे यह साबित हो कि उसके पास दुर्घटना के समय ट्रांसपोर्ट व्हीकल चलाने का डी.एल. था। परिवादी का प्रश्नगत वाहन ट्रांसपोर्ट व्हीकल था जिसमें कुल ड्राईवर सहित 10 सवारी पास था। वर्तमान प्रकरण में उक्तानुसार स्पष्ट है कि दुर्घटना के समय परिवादी के पास प्रभावी व वैद्य लाईसेन्स नहीं था जो कि स्पष्ट रूप से मोटरवाहन व पोलिसी शर्तों का उल्लंघन था। पोलिसी के ड्राईवर क्लाॅज इस प्रकार है-ष्।दल चमतेवद पदबसनकपदह जीम पदेनतमक चतवअपकमक जीज ं चमतेवद कतपअपदह ीवसके ंद मििमबजपअम कतपअपदह सपबमदेम ंज जीम जपउम व िंबबपकमदज ंदक पे दवज कपेुनंसपपिमक तिवउ ीवसकपदह वत वइजंपदह ेनबी ं सपबमदेमण् च्तवअपकमक ंसेव जींज जीम चमतेवद ीवसकपदह ंद मििमबजपअम समंतदमते सपबमदेम उंल ंसेव कतपअम जीम अमीपबसम ंदक जींज ेपबी ं चमतेवद ेंजपेपिमे जीम तमुनपतउमदजे व ितनसम 3 व िब्मदजतंस डवजमत टमीपबसम त्नसमे 1989ण्ष् इसी प्रकार मोटर वाहन कानून की धारा 3 के अनुसार ष् छमबमेेपजल व िकतपअपदह सपबमदेम ;1द्ध छव चमतेवद ेीमसस कतपअम ं उवजमत अमीपबसम पदंदल चनइसपब चंसबम नदसमेे ीम ीवसके ंद मििमबजपअम कतपअपदह सपबमदेम पेेनमक जव ीपउ ंनजीवतपेपदह ीपउ जव कतपअम जीम अमीपबसमय ंदक दव चमतेवद ेींसस ेव कतपअम ं जतंदेचवतज अमीपबसम वजीमत जींद ं उवजवत बंइ वत उवजवतबलबसम ीपतमक वित ीपे वूद नेम वत तमदजमक नदकमत ंदल ेबीमउम उंकम नदकमत ेनइेमबजपवद ;2द्ध व िैमबण् 75 नदसमेे ीपे कतपअपदह सपबमदेपदह ेचमबपपिबंससल मदजपजसमे ीपउ ेव जव कवण् ;2द्ध ज्ीम बवदकपजपवदे ेनइरमबज जव ूीपबी ेनइेमबजपवद ;1द्ध ेींसस दवज ंचचसल जव ं चमतेवद तमबमपअपदह पदेजतनबजपवदे पद कतपअपदह ं उवजवत अमीपबसम ेींसस इम ेनबी ंे उंल इम चतमेबतपइमक इल जीम ब्मदजतंस ळवअमतदउमदजण्श्श् अप्रार्थी अधिवक्ता ने उक्त आधार पर परिवाद खारिज करने का तर्क दिया। अप्रार्थी अधिवक्ता ने बहस के दौरान इस मंच का ध्यान 2 सी.पी.जे. 2014 पेज 5 एन.सी. सीमा गर्ग बनाम ओरियन्टल इंश्योरेन्स कम्पनी लि. की ओर ध्यान दिलाया जिसका सम्मान पूर्वक अवलोकन किया गया। उक्त न्यायिक दृष्टान्त में माननीय राष्ट्रीय आयेाग ने उच्चतम न्यायालय के न्यायिक दृष्टान्त इण्डिया इन्श्योरेन्स कम्पनी लि. बनाम प्रभूलाल सी.पी.जे. 1 सुप्रीम कोर्ट 2008 का हवाला देते हुए पैरा संख्या 5 में यह अभिनिर्धारित किया कि यदि ड्राईवर के पास दुर्घटना के समय प्रभावी एवं वैद्य लाईसेन्स नहीं है तो वह क्लेम प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। अर्थात् परिवादी जो वाहन चला रहा है ऐसे वाहन को चलाने हेतु उसके पास अनुज्ञप्ति होना आवश्यक है। माननीय राष्ट्रीय आयेाग ने अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा परिवादी के क्लेम को अस्वीकार करने के निर्णय को उचित ठहराया। उक्त नवीनतम न्यायिक दृष्टान्त की रोशनी में परिवादी अपने द्वारा प्रस्तुत पूर्वोक्त न्यायिक दृष्टान्तों से कोई लाभ प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। इसी प्रकार माननीय राष्ट्रीय आयेाग ने अपने नवीनतम न्यायिक दृष्टान्त रिलायन्स जनरल इंश्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड बनाम शिवकुमार एस. 2014 (2) सी.पी.जे. 57 एन.सी. में मोटर व्हीकल अधिनियम 1988 की धारा 2/21, 2/35, 2/47 व 75/2 का विस्तार से विवेचन करते हुए यह निर्धारित किया कि यदि ड्राईवर के पास प्रभावी वैद्य लाईसेन्स ट्रान्सपोर्ट व्हीकल चलाने का नहीं है तो यह पोलिसी की ट्रम एण्ड कन्डीशन के मूलभूत आधारों का स्पष्ट रूप से उल्लंघन है। माननीय राष्ट्रीय आयोग ने अपने नवीनतम न्यायिक दृष्टान्त 4 सी.पी.जे. 2014 पेज 652 एन.सी. न्यू इण्डिया इन्श्योरेन्स कम्पनी लि. बनाम बिरेन्द्र मिश्रा पैरा संख्या 7 में यह निर्धारित किया कि । च्मतेवद ूीव कवमे दवज ीवसक सपबमदबम जव कतपअम जतंदेचवतज अमीपबसम बंददवज कतपअमजतंदेचवतज अमीपबसम ंदक प िीम कतपअमे जतंदेचवतज अमीपबसमए प्देनतंदबम ब्वउचंदल बंददवज इम ंिेजमदमक ूपजी ंदल सपंइपसपजलण् इसलिए बीमा कम्पनी द्वारा क्लेम खारिज करने के आधार को उचित ठहराया है।
9. परिवादी अधिवक्ता ने द्वितीय तर्क यह दिया कि अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने एम.ए.सी.टी. अधिकरण भादरा में प्रस्तुत क्लेम याचिका में अपने दायित्व स्वीकार करते हुए लोक अदालत की भावना से अवार्ड राशि दी थी। इसलिए अप्रार्थी बीमा कम्पनी पर अब विबंधन का सिद्धान्त लागू होता है। अपनी बहस के समर्थन में परिवादी अधिवक्ता ने इस मंच का ध्यान 4 सिविल कोर्ट केसिस 2011 पेज 723 सुप्रीम कोर्ट व 2008 (2) अपेक्स कोर्ट जजमेन्ट पेज 755 सुप्रीम कोर्ट की ओर ध्यान दिलाया जिसका सम्मान पूर्वक अवलोकन किया गया। उक्त दोनों न्यायिक दृष्टान्त साक्ष्य अधिनियम की धारा 115 व सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 11 से सम्बंधित है। इसलिए उक्त प्रावधान इस मंच की कार्यवाही पर लागू नहीं होते। मंच की राय में अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा परिवादी के क्लेम को पोलिसी की शर्तों व मोटरवाहन अधिनियम कानून के उल्लंघन के तहत अस्वीकार करना सेवादोष नहीं है। मंच की राय में परिवादी का परिवाद माननीय राष्ट्रीय आयेाग के नवीनत न्यायिक दृष्टान्त की रोशनी के दृष्टिगत खारिज किये जाने योग्य है।
अतः परिवादी का परिवाद अप्रार्थी के विरूद्ध अस्वीकार कर खारिज किया जाता है। पक्षकार प्रकरण का व्यय अपना-अपना वहन करेंगे।
सुभाष चन्द्र नसीम बानो षिव शंकर
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय आज दिनांक 26.02.2015 को लिखाया जाकर सुनाया गया।
सुभाष चन्द्र नसीम बानो षिव शंकर
सदस्य सदस्या अध्यक्ष