न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, चन्दौली।
परिवाद संख्या 11 सन् 2015ई0
आशा देवी पत्नी स्व0 शिवकुमार रस्तोगी ग्राम व पो0 कमालपुर तहसील सकलडीहा जिला चन्दौली।
...........परिवादिनी बनाम
1-दि ओरियेण्टल इश्योरेंस कम्पनी लि0 मुख्य कार्यालय ओरियेण्टल हाउस 25/27आसफ अली रोड नई दिल्ली जरिये प्रबंध निदेशक।
2-दि ओरियेण्टल इश्योरेंस कम्पनी मण्डलीय कार्यालय 4 लायन्स रेन्ज चौथी मंजिल कोलकत्ता जरिये मण्डलीय प्रबन्धक।
3-ब्रांच कार्यालय दि ओरियेण्टल इश्योरेंस कम्पनी लि0 मुगलसराय जनपद चन्दौली जरिये ब्रांच मैनेजर।
.............................विपक्षीगण
उपस्थितिः-
रामजीत सिंह यादव, अध्यक्ष
लक्ष्मण स्वरूप,सदस्य
निर्णय
द्वारा श्री रामजीत सिंह यादव,अध्यक्ष
1- परिवादिनी ने यह परिवाद विपक्षीगण से बीमा की धनराशि रू0 100000/-मय व्याज एवं परिवादिनी को पहुंची शारीरिक,मानसिक उत्पीडन व बीमार होने से हुई क्षति हेतु रू0 50000/- तथा वाद व्यय हेतु रू0 5000/- दिलाये जाने हेतु प्रस्तुत किया है।
2- परिवादिनी की ओर से परिवाद प्रस्तुत करके संक्षेप में कथन किया गया है कि परिवादिनी के पति स्व0 शिवकुमार रस्तोगी ने एक दो पहिया वाहन टी0वीएस0 मोपेड खरीदा था जिसका नम्बर यू0पी0 67 जे 0533 था। उक्त गाडी विपक्षीगण की बीमा कम्पनी से एक निश्चित धनराशि जमाकर बीमित थी जिसकी पालिसी संख्या 311200 बीमाधन रू0 1,00000/-,बीमा की अवधि दिनांक 17-5-2012 से दिनांक 16-5-2013 की मध्य रात्रि तक थी। उसी अवधि के दौरान परिवादिनी के पति स्व0 शिवकुमार रस्तोगी अपने मोटरसाइकिल को लेकर धीना जा रहे थे कि कस्बा कमालपुर के पास वाहन संख्या यू0पी0 5961 जीप का चालक तेज गति से लापरवाही पूर्वक वाहन चलाते हुए परिवादिनी के पति के उक्त मोटरसाइकिल में टक्कर मार दिया जिससे उनकी मृत्यु हो गयी। घटना की प्रथम सूचना रिर्पोट अंगद कुमार रस्तोगी ने दिनांक 1-5-2012 को दिया। जिस पर अपराध संख्या 48/12 धारा 279,304आई.पी.सी.दर्ज हुआ। तदोपरान्त शिवकुमार रस्तोगी का पोस्टमार्टम हुआ। परिवादिनी ने अपने पति के मृत्यु के बाद बीमा धनराशि प्राप्त करने हेतु विपक्षी से कई बार पत्र व्यवहार किया किन्तु बीमा कम्पनी ने बीमा धन परिवादिनी को नहीं दिया। तब बाध्य होकर परिवादिनी ने दिनांक 3-6-2014 को अधिवक्ता के माध्यम से कानूनी नोटिस दिया किन्तु बीमा कम्पनी ने नोटिस का जबाब नहीं दिया। तत्पश्चात परिवादिनी ने यह परिवाद प्रस्तुत किया है।
3- विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया गया है जिसमे विपक्षी ने परिवाद के समस्त अभिकथनों से इन्कार करते हुए यह कहा है कि
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परिवादिनी ने परिवाद महज विपक्षी को परेशान करने की गरज से दाखिल किया गया है जिसमे कोई सच्चाई नहीं है और परिवादिनी का परिवाद सव्यय निरस्त किये जाने योग्य है। परिवादिनी के पति की मृत्यु हो जाने के बाद उसके द्वारा अपने बीमा के दावे के बारे में कोई भी दावा आवेदन पत्र बीमा कम्पनी को नहीं दिया गया है। बीमाधारक की मृत्यु हो जाने के उपरान्त परिवादिनी को अपना क्लेम फार्म भरकर समस्त साक्ष्यों के साथ बीमा कम्पनी को प्रस्तुत कर देना था ताकि बीमा कम्पनी उसकी जांच कराकर भुगतान कर दे किन्तु परिवादिनी द्वारा ऐसा नहीं किया गया है और बगैर दावा किये बीमा कम्पनी द्वारा क्लेम का भुगतान किया जाना सम्भव नहीं है। परिवादिनी का परिवाद कालबाधित है और निरस्त किये जाने योग्य है। परिवादिनी द्वारा मात्र क्षतिपूर्ति प्राप्त करने की गरज से अपने पति की मृत्यु के दो वर्ष बाद कथित विधिक नोटिस भेजकर परिवाद प्रस्तुत किया गया है जो निरस्त किये जाने योग्य है। उपरोक्त आधारों पर परिवादिनी के परिवाद को खारिज किये जाने की प्रार्थना की गयी है।
4- परिवादिनी की ओर से प्रतिआपत्ति (रेप्लीकेशन)भी दाखिल किया गया है जिसमे विपक्षी के जबाबदावा में किये गये अभिकथनों से इन्कार करते हुए मुख्य रूप से वही अभिकथन किये गये है जो परिवादिनी द्वारा अपने परिवाद में किया गया है तथा यह कहा गया है कि विपक्षी द्वारा दिये गये बीमा पालिसी में समय-सीमा दिनांक 17-5-2012 से 16-5-2013 अंकित है किन्तु विपक्षी द्वारा दिये गये बीमा पालिसी के रसीद से स्पष्ट है कि बीमा पालिसी दिनांक 29-3-2012 से 28-3-2013 तक वैध है । परिवादिनी द्वारा यह भी कहा गया है कि बीमार हो जाने के कारण उसने विलम्ब से इश्योरेंस कम्पनी को दावा प्रस्तुत किया था और ग्रामीण एवं कम पढी-लिखी महिला होने के कारण उसे कानून की जानकारी नहीं है। परिवाद दाखिल करने में कोई विलम्ब नहीं किया गया है और जो विलम्ब था उसे इस फोरम द्वारा माफ करते हुए मुकदमा दर्ज किया गया है।
5- परिवादिनी की ओर से साक्ष्य के रूप में परिवादिनी आशा देवी का शपथ पत्र दाखिल किया गया है तथा दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में परिवादिनी द्वारा विपक्षी को प्रेषित कानूनी नोटिस की छायाप्रति एवं रजिस्ट्री की रसीद,परिवादिनी के पति शिवकुमार रस्तोगी की मृत्यु प्रमाण पत्र एवं डी0एल0 की छायाप्रतियॉं,पोस्टमार्टम रिर्पोट,प्रथम सूचना रिर्पोट,सम्बन्धित वाहन के पंजीयन प्रमाण पत्र एवं बीमा प्रमाण पत्रों की छायाप्रतियॉं दाखिल की गयी है तथा ओरियेण्टल इश्योरेंस कम्पनी लि0 का पत्र दिनांकित 30-12-2013 दाखिल किया गया है। विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से शिव कुमार शुक्ला मण्डल प्रबन्धक एवं अधिकृत प्रतिनिधि दी ओरियेण्टल इश्योरेंस कम्पनी लि0,मण्डल कार्यालय हथुआ मार्केट वाराणसी का शपथ पत्र दाखिल किया गया है।
6- उभय पक्ष द्वारा लिखित बहस दाखिल की गयी है तथा पक्षकारों के अधिवक्तागण की बहस भी सुनी गयी है। पत्रावली का पूर्ण रूपेण सम्यक अवलोकन किया गया।
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7- परिवादिनी की ओर से मुख्य रूप से यह तर्क दिया गया है कि परिवादिनी के पति ने अपने जीवनकाल में विपक्षी बीमा कम्पनी से अपनी टी0वी0एस0 मोटरसाइकिल संख्या यू0पी067जे. 0533 का बीमा कराया था जिसकी पालिसी संख्या 311200थी। बीमा करते समय विपक्षी द्वारा एक सर्टिफिकेट दी गयी थी जिसमे बीमा की अवधि दिनांक 29-3-2012 से 28-3-2013 था। इसी दौरान परिवादिनी के पति जब अपनी मोटरसाइकिल से धीना की तरफ जा रहे थे तो कस्बा कमालपुर के पास जीप वाहन संख्या यू.पी.05961 के चालक ने तेजी व लापरवाही से वाहन चलाकर परिवादिनी के पति के मोटरसाइकिल में टक्कर मार दिया जिससे परिवादिनी के पति की मृत्यु हो गयी जिसके सम्बन्ध में प्रथम सूचना रिर्पोट दर्ज करायी गयी। परिवादिनी के मृतक पति के शव का पोस्टमार्टम कराया गया। घटना के समय परिवादिनी के पति के पास वैध ड्राइविंग लाइसेंस था। विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा इश्योरेंस पैकेज पालिसी के अनुसार परिवादिनी के पति का रू0 100000/- का बीमा किया गया था और यह बीमा परिवादिनी के पति द्वारा एक निश्चित धनराशि देकर कराया गया था और पालिसी के वैध समय-सीमा के अर्न्तगत ही दिनांक 1-5-2012 को परिवादिनी के पति की मृत्यु दुर्घटना में हुई है। पति के मृत्यु के सदमे के कारण परिवादिनी बीमार हो गयी और ठीक होने पर बीमा कम्पनी तथा उनके एजेण्ट से कई बार बीमाधन देने हेतु अनुरोध किया गया लेकिन वे टाल-मटोल करते रहे,और कभी सही सूचना नहीं दिये तब बाध्य होकर परिवादिनी ने विपक्षी को अधिवक्ता के माध्यम से कानूनी नोटिस दिया इसके बावजूद विपक्षी द्वारा न तो नोटिस का जबाब दिया गया और न ही बीमा धनराशि का भुगतान किया गया। तब परिवादिनी ने यह परिवाद दाखिल किया। परिवादिनी ने अपने शपथ पत्र के अलावा बीमा पालिसी के कागजात प्रथम सूचना रिर्पोट,पोस्टमार्टम रिर्पोट,अपने पति का डी0एल0व वाहन के पंजीयन प्रमाण पत्र की छायाप्रतियॉ दाखिल की है और उसके द्वारा दिये गये साक्ष्य से उनके परिवाद के कथन पूर्ण रूप से सिद्ध होते है। अतः उसका परिवाद स्वीकार करते हुए परिवादिनी को बीमा धनराशि रू0 100000/- तथा शारीरिक एवं मानसिक उत्पीडन की क्षतिपूर्ति हेतु रू0 50000/- तथा वाद व्यय के रूप में रू0 5000/- दिलाया जाना न्यायोचित है।
8- इसके विपरीत विपक्षी की ओर से मुख्य रूप से यह तर्क दिया गया है कि प्रस्तुत मामले में परिवादिनी ने बीमा कम्पनी में कभी कोई क्लेम दाखिल नहीं किया और बिना क्लेम दाखिल किये ही सीधे तौर पर यह परिवाद दाखिल कर दिया है जो पोषणीय न होने के कारण निरस्त किये जाने योग्य है।
9- विपक्षी के उपरोक्त तर्को में बल पाया जाता है क्योंकि अपने परिवाद में भी परिवादिनी ने स्पष्ट रूप से यह अभिकथन नहीं किया है कि उसने बीमा कम्पनी में नियम के अनुसार कोई क्लेम दाखिल किया है उसने परिवाद में केवल यही कहा है कि बीमा पालिसी की धनराशि प्राप्त करने के लिये उसने विपक्षी बीमा कम्पनी से कई बार पत्र व्यवहार किया लेकिन जब बीमा कम्पनी द्वारा पैसा नहीं दिया गया तब
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बाध्य होकर उसने विपक्षी को कानूनी नोटिस भेजा लेकिन विपक्षी ने नोटिस का जबाब भी नहीं दिया तब उसने परिवाद दाखिल किया है। परिवादिनी के उपरोक्त कथन से यह स्पष्ट है कि उसने विधिवत कोई क्लेम बीमा कम्पनी में दाखिल नहीं किया है,उसने परिवाद में यह कहा है कि उसने बीमा कम्पनी के साथ कई बार पत्र व्यवहार किया लेकिन परिवादिनी की ओर से बीमा कम्पनी को प्रेषित किसी भी पत्र की कोई कापी या रजिस्ट्री की कोई रसीद दाखिल नहीं की गयी है,न ही परिवादिनी द्वारा स्पष्ट रूप से यह बताया गया है कि कब और किस आशय का प्रार्थना पत्र परिवादिनी ने बीमा कम्पनी को दिया था इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि वास्तव में परिवादिनी ने बीमा कम्पनी में न तो कोई क्लेम दाखिल किया है और न कभी कोई पत्र व्यवहार किया है जबकि विधिक रूप से परिवादिनी को पहले बीमा कमपनी में क्लेम दाखिल करना चाहिए और यदि बीमा कम्पनी द्वारा गलत तौर पर क्लेम खारिज कर दिया जाता है तब इस फोरम में परिवाद दाखिल किया जा सकता है। अतः फोरम की राय में परिवादिनी का प्रस्तुत परिवाद पोषणीय नहीं पाया जाता है।
10- प्रस्तुत मामले में परिवादिनी ने अपने परिवाद में यह अभिकथन किया है कि उसके पति शिवकुमार रस्तोगी की मोटर वाहन दुर्घटना के फलस्वरूप मृत्यु दिनांक 1-5-2012 को हुई है। प्रथम सूचना रिर्पोट तथा परिवादिनी द्वारा दाखिल उसके पति के मृत्यु प्रमाण पत्र की नकल के अवलोकन से भी यही स्पष्ट होता है कि परिवादिनी के पति शिव कुमार रस्तोगी की मृत्यु दिनांक 1-5-2012 को हुई है। परिवादिनी की ओर से बीमा के 2 कागजों की नकल दाखिल की गयी है। कागज संख्या 4/8जो बीमा प्रमाण पत्र की छायाप्रति है उसके अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि परिवादिनी के पति शिव कुमार रस्तोगी ने अपने वाहन का बीमा दिनांक 28-3-2012 को करवाया था यह बीमा केवल वाहन का है जो दिनांक 29-3-2012 से 28-3-2013तक वैध रहा है किन्तु इस बीमा के अर्न्तगत वाहन स्वामी या वाहन चालक का कोई बीमा नहीं किया गया है। परिवादिनी की ओर से बीमा का दूसरा कागज,कागज संख्या 4/9 ता 4/11 के रूप में दाखिल किया गया है यह बीमा दिनांक 17-5-2012 को होना कहा जाता है इस बीमा में वाहन के साथ उसके स्वामी,ड्राइवर का भी बीमा किया जाना प्रदर्शित है किन्तु परिवादिनी ने बीमा का जो यह अभिलेख प्रस्तुत किया है इसमे बीमा कम्पनी की ओर से न तो किसी अधिकृत व्यक्ति का हस्ताक्षर किया गया है और न ही कोई मुहर लगी है इसके अतिरिक्त इस बीमा में बीमा की वैधता की तिथि दिनांक 17-5-2012 से दिनांक 16-5-2013 की मध्य रात्रि तक होना प्रदर्शित है जबकि यह स्वीकृत तथ्य है कि परिवादिनी के पति की मृत्यु दिनांक 1-5-2012 को ही हो चुकी है। अतः इस आधार पर भी इस बीमा का कोई लाभ परिवादिनी को प्राप्त नहीं हो सकता है क्योंकि यह बीमा परिवादिनी के पति के मृत्यु के बाद कराया गया है जिस पर किसी का हस्ताक्षर भी नहीं है। इस प्रकार परिवादिनी की ओर से जो बीमा का कागज दाखिल किया गया है उसमे कागज संख्या 4/8 के अनुसार केवल वाहन
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का बीमा हुआ है अतः परिवादिनी के पति का कोई बीमा न होने के कारण बीमा कम्पनी से परिवादिनी को रू0 100000/- दिलाये जाने का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता है। दूसरा बीमा कागज संख्या 4/9 ता 4/11 के रूप में दाखिल है वह परिवादिनी के पति के मृत्यु के बाद का है जिस पर किसी का हस्ताक्षर नहीं है और न ही मुहर है। अतः इस बीमा के आधार पर परिवादिनी को बीमा कम्पनी से कोई धन प्राप्त कराये जाने का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता है। परिवादिनी ने बीमा कम्पनी में कोई क्लेम भी दाखिल नहीं किया है और सीधे परिवाद दाखिल किया है इस आधार पर उसका परिवाद फोरम की राय में पोषणीय भी नहीं पाया जाता है।
अतएव उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचन के आधार पर फोरम की राय में परिवादिनी का परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादिनी का परिवाद निरस्त किया जाता है। मुकदमें के तथ्यों एवं परिस्थितियों को देखते हुए पक्षकार अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेगें।
(लक्ष्मण स्वरूप) (रामजीत सिंह यादव)
सदस्य अध्यक्ष
दिनांक-23-8-2017