जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम कोरबा (छ0ग0)
प्रकरण क्रमांकः- CC/14/90
प्रस्तुति दिनांकः-02/12/2014
समक्षः- छबिलाल पटेल, अध्यक्ष
श्रीमती अंजू गबेल, सदस्य
श्री राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय, सदस्य
दिलहरण खूंटे, उम्र-46 वर्ष,
पिता पनिका राम, निवासी-राखड़ डेम के पास,
रिंग रोड नया रिस्दा, बालको नगर
तहसील व जिला-कोरबा (छ0ग0).................................................................आवेदक/परिवादी
विरूद्ध
दि ओरिएण्टल इंश्योरंस कंपनी लिमिटेड,
द्वारा-मंडल प्रबंधक, दि ओरिएण्टल इंश्योरंस
कंपनी लिमिटेड, मंडल कार्यालय, गीतांजली भवन,
पुराना बस स्टैण्ड के पास कोरबा
तहसील व जिला-कोरबा (छ0ग0)......................................अनावेदक/विरोधीपक्षकार
आवेदक द्वारा श्री चन्द्रभूषण प्रताप सिंह अधिवक्ता।
अनावेदक द्वारा श्रीमती रमा चैरसिया अधिवक्ता।
आदेश
(आज दिनांक 28/02/2015 को पारित)
01. परिवादी/आवेेदक दिलहरण खूंटे के द्वारा अपने स्वामित्व के मोटर सायकिल टीव्हीएस सुजूकी सीजी 12ए1274 के संबंध में बीमा पालिसी प्राप्त किये जाने पर व्यक्तिगत दुर्घटना हितलाभ की राशि 1,00,000/-रू0, का भुगतान अनावेदक के द्वारा नहीं कर सेवा में कमी किये जाने के आधार पर उक्त राशि शारीरिक एवं मानसिक क्षतिपूर्ति की राशि 50,000/-रू0 उस पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज तथा वाद व्यय दिलाये जाने हेतु, यह परिवाद-पत्र धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत प्रस्तुत किया गया है।
02. यह स्वीकृत तथ्य है कि आवेदक की स्वामित्व की वाहन क्रमांक सीजी 12ए1274 का बीमा अनावेदक के द्वारा दिनांक 10/09/2008 से दिनांक 10/09/2009 तक के लिए किया गया था। शेष बाते विवादित है।
03. परिवादी/आवेदक का परिवाद-पत्र संक्षेप में इस प्रकार है कि आवेदक के द्वारा अपने स्वामित्व की मोटर सायकिल पंजीयन क्रमांक सीजी 12 ए 1274 टीव्हीएस सुजूकी में सवार होकर दिनांक 11/05/2009 को करीब 19 बजे ग्राम सेमरा से राछा गांव जा रहा था, तब राछाभांठा चैक से एक किलोमीटर पहले ही एक अज्ञात ट्रेक्टर चालक के द्वारा तेजी एवं लापरवाहीपूर्वक वाहन चलाकर आवेदक को भीषण रूप से ठोकर मार दिया गया। उपरोक्त वाहन दुर्घटना के कारण आवेदक का दाहिने पैर की हड्डी टूट गयी उसे गंभीर चोटे आयी, जिसका जिला चिकित्सालय में तथा डॉ0 सूरजीत सिंह के चिकित्सालय में भर्ती रहकर इलाज कराना पड़ा और बाद में दिनांक 27/05/2009 से दिनांक 05/06/2009 तक डॉं. सुनील कालड़ा रायपुर के यहां भर्ती रहकर इलाज कराया था। उपरोक्त वाहन दुर्घटना से आवेदक को 70 प्रतिशत विकलांगता होने के कारण वह अपने दैनिक कार्य कर पाने में असमर्थ हो गया है। आवेदक की उपरेाक्त वाहन मोटर सायकल का बीमा अनावेदक के द्वारा दिनांक 11/09/2008 से दिनांक 10/09/2009 तक के लिए किया गया था, जिसके संबंध में बीमा पालिसी क्रमांक 152404/31/2009/1999 जारी किया गया था। उक्त बीमा पालिसी के संबंध में वाहन मालिक व चालक को दुर्घटना हितलाभ राशि 1,00,000/-रू0 हेतु अतिरिक्त प्रीमियम के रूप में 50/-रू0 अनावेदक के द्वारा लिया गया था। अनावेदक के समक्ष दिनांक 05/10/2010 को दुर्घटना हितलाभ राशि प्राप्त करने हेतु दस्तावेजों सहित दावा पत्र प्रस्तुत किया गया था। किंतु अनावेदक के द्वारा उसे दुर्घटना हितलाभ की बीमाधन राशि का भुगतान नहीं किया गया। अनावेदक की ओर से आवेदक को दस्तावेज पेश करने के नाम पर 6-7 माह तक परेशान किया गया, जिसके संबंध में आवेदक के द्वारा दिनांक 17/05/2011 को उच्च अधिकारियांे एवं छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जाति आयोग रायपुर के समक्ष शिकायत किया गया। छ0ग0 राज्य अनुसूचित जाति आयोग के द्वारा दिनांक 09/07/2012 को आदेश पारित करते हुए व्यक्तिगत दुर्घटना हितलाभ की राशि 1,00,000/-रू0 पाने का अधिकारी होना दर्षाते हुए 01 माह के अंदर अदा करने के लिए अनावेदक को निर्देशित किया गया था। अनावेदक के द्वारा उक्त आयोग के आदेश से असंतुष्ट होकर माननीय छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के समक्ष अपील प्रस्तुत किया गया था। उक्त अपील को माननीय उच्च न्यायालय के द्वारा दिनांक 25/09/2014 को आदेश पारित कर निरस्त कर दिया गया। आवेदक के पक्ष में अनुसूचित जाति आयोग के द्वारा आदेश देने के बाद भी अनावेदक के द्वारा राशि भुगतान नहीं किया गया, इसलिए आवेदक के पक्ष में वाद कारण उत्पन्न हुआ जो निरंतर जारी है। इस प्रकार आवेदक को हुए आर्थिक एवं मानसिक परेशानी के लिए क्षतिपूर्ति तथा बीमाधन राशि प्राप्त करने के लिए यह परिवाद-पत्र प्रस्तुत किया गया है।
04. अनावेदक के द्वारा प्रस्तुत जवाबदावा स्वीकृत तथ्य के अलावा संक्षेप में इस प्रकार है कि आवेदक की वाहन की बीमा शर्तो के अनुसार बीमा शर्त के उल्लंघन की स्थिति में आवेदक बीमा क्षतिपूर्ति की राशि प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। आवेदक के द्वारा दिनांक 10/05/2009 की वाहन दुर्घटना की सूचना विधिवत अनावेदक को नहीं दी गयी, किंतु उक्त दुर्घटना के संबंध में इस जिला उपभोक्ता फोरम कोरबा के द्वारा निराकृत परिवाद-पत्र क्रमांक सीसी/2010/16 दिलहरण खूंटे बनाम डॉ0 सूरजीत सिंह एवं ओरिऐटल इंश्योरेंस कंपनी से प्राप्त हुई। आवेदक के द्वारा किया गया कथन अनावेदक की ओर से परेशान किये जाने के संबंध में बिल्कुल गलत है। आवेदक के द्वारा उच्च अधिकारियों एवं छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जाति आयोग रायपुर में की गयी शिकायत तथा माननीय उच्च न्यायालय छ0ग0 में की गयी अपील की बात स्वीकार है। आवेदक के द्वारा छ0ग0 राज्य अनुसूचित आयोग के द्वारा पारित आदेश दिनांक 09/07/2012 को क्षेत्राधिकार विहीन होने के कारण उक्त आदेश के संबंध में इस जिला उपभोक्ता फोरम के सामने कोई विधिक आधार नहीं है तथा उक्त आदेश की निष्पादन की कोई डिग्री या आवार्ड नहीं होने के कारण शून्य एवं निष्प्रभावी होने से परिवाद-पत्र संधारणीय नहीं है। आवेदक को वाहन दुर्घटना के संबंध में मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण कोरबा में अनुतोश हेतु आवेदन दिये जाने पर उसमें आदेश पारित कि विरूद्ध कोई अपील नहीं होने से वह आदेश अंतिम हो गया है तथा अब उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत यह परिवाद-पत्र विधि द्वारा वर्जित है। अतः इस परिवाद-पत्र को सव्यय निरस्त किया जावे।
05. परिवादी/आवेदक की ओर से अपने परिवाद-पत्र के समर्थन में सूची अनुसार दस्तोवज तथा स्वयं का दो शपथ-पत्र दिनांक 19/11/2014 एवं दिनांक 11/02/2015 का पेश किया गया है। अनावेदक के द्वारा जवाबदावा के समर्थन में सूची अनुसार दस्तावेजो के साथ मंडल प्रबंधक, आर.सी. परतेती का शपथ-पत्र दिनांक 28/01/2015 का पेश किया गया है। उभय पक्षों के द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों का अवलोकन किया गया।
06. मुख्य विचारणीय प्रश्न है कि:-
क्या परिवादी/आवेदक द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद-पत्र स्वीकार किये जाने योग्य है ?
07. आवेदक की ओर से अपने पक्ष के समर्थन में दस्तावेज क्रमांक ए-13 वाहन पंजीयन प्रमाण-पत्र की फोटोप्रति वाहन क्रमांक सीजी 12 ए 1274 का प्रस्तुत किया है। जिसके अनुसार उक्त वाहन पूर्व के वाहन स्वामी के द्वारा अंतरित किये जाने पर आवेदक उक्त वाहन का स्वामी हुआ। आवेदक के पास ड्रायविंग लायसेंस होना बताते हुए उसके फोटोप्रति दस्तावेज क्रमांक ए-12 के रूप मेंप्रस्तुत किया गया है। जो दिनांक 10/07/2011 तक के लिए एल एम व्ही तथा भारी परिवहन यान चलाने के लिए वैध होना दर्शित है। उक्त वाहन के संबंध में बीमा प्रमाण-पत्र की फोटोप्रति दस्तावेज क्रमांक ए-14 ए का प्रस्तुत किया गया है। जिसमें बीमा अवधि दिनांक 11/09/2008 से दिनांक 10/09/2009 तक होना दर्शित है। दस्तावेज क्रमांक ए-14 बी उक्त वाहन के बीमा प्रीमियम अदा किये जाने से संबंधित विवरणी है तथा दस्तावेज क्रमांक ए-14सी उसकी रसीद है।
08. आवेदक ने दिनांक 11/05/2009 को अपने वाहन से दुर्घटनाग्रस्त होने के संबंध में अपने द्वारा थाना नवागढ़ जांजगीर चाम्पा में किये गये रिपोर्ट की फोटोप्रति दस्तावेज क्रमांक ए-15 का पेश किया है। उक्त वाहन की जप्ती पत्र दस्तावेज क्रमांक ए-16 है। आवेदक को थाना नवागढ़ की ओर से दिनांक 10/08/2009 को अस्पताल में भेजकर मुलाहिजा रिपोर्ट दिये जाने हेतु प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र नवागढ़ भेजा था। उक्त आवेदन-पत्र /मुलाहिजा रिपोर्ट की फोटोप्रति दस्तावेज क्रमांक ए-17 है। आवेदक ने डिस्ट्रीक मेडिकल बोर्ड कोरबा के द्वारा जारी विकलांगता प्रमाण-पत्र की फोटोप्रति दस्तावेज क्रमांक ए-18 का प्रस्तुत किया है जिसमें 70 प्रतिश त् विकलांगता आवेदक के बाये पैर के कट जाने के कारण होना बताया गया है। उपरोक्त दस्तावेजों के आधार आवेदक ने अनावेदक बीमा कंपनी के विरूद्ध वर्तमान प्रकरण आवेदक के द्वारा सेवा में कमी किये जाने के आधार पर क्षतिपूर्ति राशि प्राप्त करने हेतु पेश किया है।
09. आवेदक के द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज क्रमांक ए-1ए का पेश किया गया है, जो माननीय छ0ग0 उच्च न्यायालय बिलासपुर के द्वारा डब्ल्यु पी(सी)1734/2012 दि ओरिऐटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड एवं एक अन्य विरूद्ध छ0ग0 राज्य अनुसूचित जाति आयोग व एक अन्य में दिनांक 25/09/2014 में पारित आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि है। यही दस्तावेज अनावेदक की ओर से भी दस्तावेज क्रमांक डी-1 के रूप मे पेश किया गया है। उक्त आदेश की कंडिका 13 का उल्लेख करना उचित होगा जो निम्नानुसार है-
13. Considering the fact that provision for payment of compensation under Motor Vehicle Act is an benevolent legislation. It is observed that since the claimant/ respondent No.2 who suffered accident had filed a claim petition before the Claims Tribunal which was dismissed in default, the claimant shall be at liberty to take proper recourse in respect of the petition, which was dismissed in default. Considering the benevolent object of the motor vehicles act, it is observed that in such case, if proper application is filed for restoration, the learned court below shall decide the same in proper objective and adjudicate the same on merits.
10. माननीय छ0ग0 उच्च न्यायालय के द्वारा उपरोक्त मामले में आवेदक के पक्ष में छ0ग0 राज्य अनुसूचित जाति आयेाग रायपुर के समक्ष किये गये शिकायत पर पारित आदेश दिनांक 09/07/2012 दस्तावेज क्रमांक ए-2ए से असंतुष्ट होकर उसके विरूद्ध ओरिऐटल इंश्योरेंस कंपनी के द्वारा रिट याचिका प्रस्तुत किये जाने पर उसका निराकरण करते हुए दिनांक 25/09/2014 को आदेश पारित किया गया था। माननीय उच्च न्यायालय ने छ0ग0 राज्य अनुसूचित जाति आयोग रायपुर को इस तरह क्षतिपूर्ति की राशि मोटर यान अधिनियम के प्रावधान के आधार पर पारित करने की अधिकारिता नहीं होना बताया है। उपरोक्त रिट याचिका में पारित आदेश से यह स्पष्ट है कि मोटरयान अधिनियम के तहत मोटर दावा अधिकरण को सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त है कि वह क्षतिपूर्ति हेतु निर्धारण करते हुए दावेदार को अनुतोष दिलाने हेतु आदेश कर सके।
11. आवेदक के द्वारा वाहन दुर्घटना दिनांक 11/05/2009 के संबंध में दावा प्रकरण मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण कोरबा के समक्ष प्रस्तुत किया गया था। जिसे आवेदक दावेदार की अनुपस्थिति में खारिज हो जाना बताया गया है। जो कि तर्क के दौरान आवेदक की ओर से स्वीकार भी किया गया है। इसके बारे में आवेदक के ही दस्तावेज क्रमांक ए-1ए का अवलोकन करने से उक्त तथ्य स्पष्ट हो जाता है। आवेदक के द्वारा उपरोक्त मोटर दावा अधिकरण के समक्ष आवेदन प्रस्तुत कर उसको पुनः स्थापित करने का निवेदन नहीं किया है, जबकि माननीय उच्च न्यायालय के द्वारा उसे इस संबंध में दस्तावेज क्रमांक ए-1 के अनुसार निर्देशित किया गया था। आवेदक उक्त दुर्घटना दावा अधिकरण के समक्ष इसी अनावेदक बीमा कंपनी से क्षतिपूर्ति की राशि प्राप्त करने हेतु आगे की कार्यवाही कर सकता है, जहां पर विस्तार से उभय पक्ष की साक्ष्य लिये जाने के आधार पर दावा का निराकरण किया जा सकता है। जबकि उपभोक्ता फोरम संक्षिप्त प्रक्रिया के माध्यम से प्रकरण का निराकरण करते है।
12. आवेदक ने विवादित दुर्घटना दिनांक 11/05/2009 का होना बताया गया है। उसके द्वारा मेडिकल नेग्लिजेंस के आधार पर क्षतिपूर्ति हेतु दावा डाक्टर सूरजीत सिंह एवं एक अन्य बीमा कंपनी के विरूद्ध इस जिला उपभोक्ता फोरम कोरबा में परिवाद-पत्र प्रस्तुत किया गया था। जिसके संबंध में विवरण अनावेदक की ओर से अपने जवाबदावा की कंडिका 03 में दर्शित है। जिससे स्पष्ट होता है कि आवेदक ने परिवाद-पत्र क्रमांक सीसी/2010/16 प्रस्तुत किया था। आवेदक के द्वारा उपरोक्त प्रकरण के प्रस्तुत किये जाने से स्पष्ट है कि वह वर्तमान बीमा कंपनी के विरूद्ध दिनांक 11/05/2009 को वाद कारण उत्पन्न होने के आधार पर 02 वर्ष के अंदर अनुतोष हेतु इस जिला उपभोक्ता फोरम के समक्ष उपभोक्ता परिवाद-पत्र प्रस्तुत कर सकता था किंतु उसने ऐसा नहीं किया अपितु दुर्घटना दावा अधिकरण के समक्ष दावा प्रकरण प्रस्तुत किया जो उसके अनुपस्थिति में खारिज कर दिया गया।
13 आवेदक ने अनावेदक बीमा कंपनी के पास एक नोटिस दस्तावेज क्रमांक ए-3ए का प्रेषित करना बताया है जो दिनांक 05/10/2010 का होना स्पष्ट होता है उक्त नोटिस की डाक रसीद दस्तावेज क्रमांक ए-4बी है, तथा पावती अभिस्वीकृति दस्तावेज क्रमांक ए-4ए है। जिसमें दिनांक 20/11/2010 लिखा हुआ है। आवेदक के अनुसार उक्त नोटिस का जवाब नहीं दिया गया। आवेदक ने छ0ग0 राज्य की सूचना अनुसूचित जाति आयोग रायपुर के समक्ष शिकायत करने पर अनावेदक दस्तावेज क्रमांक ए-9सी का पत्र दिनांक 22/10/2011 को प्रेषित किया गया था। उसके बाद शिकायत का निराकरण करते हुए उक्त आयोग के द्वारा दस्तावेज क्रमांक ए-2ए का ओदश दिनांक 09/07/2012 को पारित किया गया था। जिसे रीट याचिका में माननीय छ0ग0 उच्च न्यायालय में निरस्त कर दिया गया है।
14. आवेदक के द्वारा इस मामले से वाहन दुर्घटना में क्षति से संबंधित वाद कारण सन् 2009 में उत्पन्न हुआ था, किंतु उसके द्वारा दिनांक 02/12/2014 को यह परिवाद-पत्र करीब 05 वर्ष के बाद प्रस्तुत किया गया है, जो कि धारा 24ए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्रावधान के तहत 02 वर्ष के अवधि के अंदर पेश न करने से अवधि बाधित होना भी पाया जाता है।
15. इस प्रकार आवेदक की ओर से प्रस्तुत यह परिवाद-पत्र प्रथमतः अवधि बाधित होने के कारण निरस्त किये जाने योग्य हैं, क्योंकि आवेदक के द्वारा इस तरह के विलम्ब के संबंध में कोई सद्भाविक स्पष्टीकरण प्रस्तुत नहीं किया गया है। इसके अलावा माननीय छ0ग0 उच्च न्यायालय के द्वारा दस्तावेज क्रमांक ए-1 के अनुसार रिट याचिका में पारित आदेश दिनांक 25/09/2014 जिसका उल्लेख पूर्व मे किया जा चुका है, उसके आधार पर भी आवेदक को मोटर दावा अधिकरण के समक्ष मोटरयान अधिनियम के हितकारी प्रावधान के तहत क्षतिपूर्ति हेतु कार्यवाही कर सकता है। ऐसी स्थिति में इस जिला उपभोक्ता फोरम के समक्ष आवेदक के द्वारा प्रस्तुत परिवाद-पत्र को स्वीकार किये जाने योग्य नहीं होना पाया जाता है।
16. अतः मुख्य विचारणीय प्रश्न का निष्कर्ष ’’नहीं’’ में दिया जाता है।
17. तद्नुसार परिवादी/आवेदक की ओर से प्रस्तुत इस परिवाद-पत्र को धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत स्वीकार किये जाने योग्य नहीं होना पाते हुए तथा अवधि बाधित होने के आधार पर भी निरस्त किया जाता है। इस मामले की परिस्थिति को देखते हुए यह आदेश दिया जाता है कि उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(छबिलाल पटेल) (श्रीमती अंजू गबेल) (राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय)
अध्यक्ष सदस्य सदस्य