// जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, बिलासपुर छ.ग.//
प्रकरण क्रमांक CC/194/2011
प्रस्तुति दिनांक 18/11/2011
रघुनाथ प्रसाद लहरे,
पिता गंगाराम लहरे,
उम्र 45 वर्ष,
ग्राम रिसदा पो0 रिसदा
तहसील मस्तूरी
जिला बिलासपुर छ0ग0 ....आवेदक/परिवादी
विरूद्ध
दि ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड,
द्वारा मंडल प्रबंधक, मंडल कार्यालय,
रामा ट्रेड सेंटर
बसस्टेंड बिलासपुर छ0ग0 ......अनावेदक/विरोधीपक्षकार
आदेश
(आज दिनांक 06/05/2015 को पारित)
१. आवेदक रघुनाथ प्रसाद लहरे ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 12 के अंतर्गत यह परिवाद अनावेदक बीमा कंपनी के विरूद्ध बीमा दावा का सही ढंग से भुगतान न कर सेवा में कमी के आधार पर पेश किया है और अनावेदक बीमा कंपनी से बीमा दावा की राशि 1,15,730/. रूपये को ब्याज सहित दिलाए जाने का निवेदन किया है।
2. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि आवेदक अपने मालवाहन क्रमांक सी0जी010 ए0 – 6890 का बीमा अनावेदक बीमा कंपनी के पास दिनांक 27/11/2009 से दिनांक 26/11/2010 तक अवधि के लिए कराया था, जिसके संबंध में अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा कव्हर नोट क्रमांक 186707 जारी किया गया था। यह कहा गया है कि उक्त वाहन बीमा अवधि में दिनांक 30/04/2010 को दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसकी सूचना अनावेदक बीमा कंपनी को दी गई, जिसके आधार पर अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा क्षति के मूल्याकंन हेतु सर्वेयर नियुक्त किया गया, जिसने पॉलिसी शर्तो के अनुसार अपना मूल्याकंन रिपोर्ट अनावेदक बीमा कंपनी को दिया, फिर भी अनावेदक बीमा कंपनी बगैर आवेदक की सहमति रिपेयरिंग गैरेज से सांठगांठ कर उसे केवल 45,000/.रूपये का भुगतान किया और इस प्रकार उसके सर्वेयर के क्षति मूल्याकंन के अनुसार, 1,15,730/. रूपये भुगतान न कर सेवा में कमी की गई । अत: यह परिवाद पेश करना बताया गया है।
3. अनावेदक बीमा कंपनी की ओर से जवाब पेश कर आवेदक के वाहन को सुसंगत समय अपने यहां बीमित होना तो स्वीकार किया, साथ ही यह भी स्वीकार किया कि आवेदक की सूचना पर उनके द्वारा क्षति के मूल्याकंन हेतु सर्वेयर अजीत कुमार देवांगन को नियुक्त किया गया जिसने अपना स्पॉट सर्वे रिपोर्ट दिनांक 14/05/2010 को पेश किया, किंतु विरोध इस आधार पर किया गया कि आवेदक द्वारा क्लेम फॉर्म भरने पर उससे दुर्घटना एवं वाहन से संबंधित दस्तावेज मांग किया गया, जो आवेदक द्वारा लंबे समय तक पेश नहीं करने के कारण उसका दावा बंद कर दिया गया । आगे कथन है कि आवेदक के निवेदन दिनांक 18/01/2011 को दावा पुन:खोला गया और आवेदक के निवेदन पर ही 45,000/. रूपये का भुगतान पूर्ण संतुष्टि पर शिवम मोटर्स को किया गया और इस प्रकार उनके द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गई, उक्त आधार पर अनावेदक बीमा कंपनी आवेदक के परिवाद को निरस्त किये जाने का निवेदन किया है ।
5. उभयपक्ष अधिवक्ता का तर्क सुन लिया गया है । प्रकरण का अवलोकन किया गया ।
6. देखना यह है कि क्या आवेदक, अनावेदक बीमा कंपनी से वांछित अनुतोष प्राप्त करने के अधिकारी है
सकारण निष्कर्ष
7. आवेदक का प्रश्नाधीन वाहन अनावेदक बीमा कंपनी के पास दिनांक 27/11/2009 से दिनांक 26/11/2010 तक अवधि के लिए बीमित होने का तथ्य मामले में विवादित नहीं है, साथ ही इस तथ्य की पुष्टि आवेदक द्वारा पेश बीमा कव्हर नोट से भी होती है ।
8. आवेदक का अपने परिवाद में कथन है कि उसका वाहन बीमित अवधि में दिनांक 30/04/2009 (संशोधित दिनांक 30/04/2010) को दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसका बीमा दावा अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा उसे सर्वेयर रिपोर्ट के अनुसार प्रदान नहीं किया गया । फलस्वरूप उसने यह परिवाद पेश करना बताया है, किंतु आवेदक सर्वप्रथम अपने प्रश्नाधीन वाहन के दुर्घटना के तथ्य को स्थापित करने के लिए न तो अपने परिवाद में स्पष्ट कथन किया है और न ही कोई साक्ष्य प्रस्तुत किया है, इस संबंध में उसके द्वारा पुलिस रिपोर्ट की कॉपी अथवा वाहन मुलाहिजा रिपोर्ट भी प्रस्तुत नहीं किया गया है । इस प्रकार आवेदक द्वारा घटना दिनांक के संबंध में अपने परिवाद में संशोधन तथा समर्थन में कोई साक्ष्य पेश न करने के आधार पर मामला घटने के संबंध में शुरूआत से ही संदिग्ध प्रतीत होता है।
9. प्रश्नगत मामले में यद्यपि अनावेदक बीमा कंपनी घटने के तथ्य को इंकार नहीं किया है, किंतु उसके द्वारा भी घटने के समर्थन में सर्वेयर रिपोर्ट के अलावा अन्य कोई साक्ष्य पेश नहीं किया गया है, ऐसी स्थिति में जहां कि अनावेदक बीमा कंपनी का व्यवसाय शासन का है तथा उसकी स्थिति अन्य व्यापारिक संस्थान के समान नहीं, मात्र अनावेदक बीमा कंपनी के घटने से इंकार नहीं करने के आधार पर बगैर समुचित सक्ष्य आवेदक को केवल सर्वेयर रिपोर्ट के आधार पर कोई अनुतोष दिलाया जाना न्यायसंगत प्रतीत नहीं होता । बीमाकंपनी के अधिकारियों से न केवल यह अपेक्षा रहती है कि वे सही दावे का निराकरण यथाशीघ्र करेंगे, बल्कि इस संबंध में उनसे निष्ठापूर्वक कार्य करने की भी अपेक्षा की जाती है कि वे दावे के समर्थन में दस्तावेज आवश्यक रूप से प्राप्त करें और दावे के निराकरण में मस्तिष्क का पूर्ण एवं ध्यानपूर्वक प्रयोग करेंगे ।
10. यह मान्य सिद्धांत है कि आवेदक को अपना मामला स्वयं प्रमाणित करना होता है, जिसमें आवेदक असफल रहा है अत: उसे अनावेदक बीमा कंपनी की स्वीकारोक्ति के आधार पर भी बगैर साक्ष्य कोई अनुतोष दिलाया जाना संभव नहीं । फलस्वरूप हमारे मतानुसार आवेदक अनावेदक बीमा कंपनी से कोई अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी नहीं, अत: परिवाद निरस्त किया जाता है ।
11. उभयपक्ष अपना अपना वादव्यय स्वयं वहन करेंगे ।
(अशोक कुमार पाठक) (प्रमोद वर्मा)
अध्यक्ष सदस्य