जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, कोरबा (छ0ग0)
प्रकरण क्रमांक:- CC/14/37
प्रस्तुति दिनांक:- 15/05/2014
समक्ष:- छबिलाल पटेल, अध्यक्ष,
श्रीमती अंजू गबेल, सदस्य,
श्री राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय, सदस्य
सुबोध कुमार पंडित, उम्र-30 वर्ष,
पिता श्री सरजू प्रसाद, ज्ञानोदय स्कूल के पास,
जंगल साईड बांकी मोगरा कोरबा
तहसील- कटघोरा व जिला-कोरबा (छ.ग.)................................................आवेदक/परिवादी
विरूद्ध
दी ओरियंटल इंश्योरेंश कंपनी लिमिटेड,
द्वारा मंडल कार्यालय कोरबा
तहसील व जिला-कोरबा(छ.ग.) ...................................................अनावेदक/विरोधीपक्षकार
आवेदक द्वारा श्री दिलीप यादव अधिवक्ता।
अनावेदक द्वारा श्री ए.एन. मैठाणी अधिवक्ता।
आदेश
(आज दिनांक 19/03/2015 को पारित)
01. आवेदक/परिवादी सुबोध कुमार पंडित ने उसके स्वामित्व की मोटर सायकल होण्डा युनिकार्न क्रमांक सीजी-12के-8577 की बीमा अवधि में चोरी हो जाने के बाद अनावेदक के द्वारा बीमाधन वापस न कर सेवा में कमी किये जाने के आधार पर उक्त वाहन की कीमत के रूप में 32,400/-रू0 तथा मानसिक क्षतिपूर्ति की राशि 15,000/-रू0 इस पर प्रकार कुल 47,400/-रू0 वाद व्यय एवं ब्याज की राशि सहित दिलाये जाने हेतु, यह परिवाद-पत्र धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत प्रस्तुत किया है।
02. यह स्वीकृत तथ्य है कि आवेदक के द्वारा अपने स्वामित्व की मोटर सायकल होण्डा युनिकार्न क्रमांक सीजी-12के-8577 का बीमा अनावेदक के पास दिनांक 11/07/2013 से दिनांक 10/07/2014 तक के लिए कराया गया था। जिसके संबंध में बीमा पॉलिसी क्रमांक 192404/31/2014/3382 जारी किया गया था। शेष सभी बातें विवादित है।
03. परिवादी/आवेदक का परिवाद-पत्र संक्षेप में इस प्रकार है कि उसके स्वामित्व की मोटर सायकल होण्डा युनिकार्न क्रमांक सीजी-12के-8577 को दिनांक 23/08/2013 को सीएसईबी सिनियर क्लब कोरबा के सामने से किसी अज्ञात व्यक्ति के द्वारा शाम के समय 7.30 बजे से 8.00 बजे के दौरान चोरी कर लिया गया। आवेदक की उपरोक्त वाहन 32,400/-रू0 की थी। तथा उसका बीमा अनावेदक ओरिएंटल के पास बीमा पॉलिसी क्रमांक 192404/31/2014/3382 के द्वारा दिनांक 11/07/2013 से दिनांक 10/07/2014 तक के लिए गया था। आवेदक के उपरोक्त मोटर सायकल के चोरी हो जाने के संबंध में सीएसईबी पुलिस चौकी कोरबा में दिनांक 08/09/2013 को किये जाने पर अपराध क्रमांक 502/2013 धारा 379 भादवि संहिता का दर्ज किया गया था। आवेदक के द्वारा उक्त वाहन की चोरी होने की सूचना अनावेदक को भी दी गयी थी। तब उक्त वाहन के संबंध में कार्यवाही करने का भरोसा दिया गया था। अनावेदक के द्वारा उक्त वाहन के संबंध में किसी प्रकार सर्वे नहीं कराया गया था। अनावेदक की ओर से आवेदक को कहा गया कि घटना का विवरण लिखित में प्रस्तुत करें। तब तत्तकाल दिनांक 26/09/2013 को लिखित रूप से सूचना देते हुए क्षतिपूर्ति की राशि देने का निवेदन किया गया था। अनावेदक के द्वारा दिनांक 10/12/2013को यह कहते हुए निरस्त कर दिया गया कि आवेदक के द्वारा वाहन चोरी के संबंध में सूचना अनावेदक को विलंब से दिया गया इसलिए आवेदक बीमाधन राशि प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। आवेदक को इस प्रकार बीमाधन राशि प्रदान न कर अनावेदक के द्वारा सेवा में कमी की गयी है इसलिए दिनांक15/05/2014 को यह परिवाद-पत्र प्रस्तुत किया गया है जिसके अनुसार चोरी गये मोटर सायकल की कीमत 32,400/-रू0 तथा मानसिक क्षतिपूर्ति राशि 15,000/-रू0 इस प्रकार कुल 47,400/-रू0 उस पर प्रचलित दर से ब्याज एवं वाद व्यय भी दिलायी जावे।
04. अनावेदक के द्वारा प्रस्तुत जवाबदावा स्वीकृत तथ्य के अलावा संक्षेप में इस प्रकार है कि बीमा पॉलिसी के शर्तो के अनुसार उपरोक्त वाहन के चोरी होने पर उसकी सूचना घटना के 48 घंटे के भीतर बीमा कंपनी को दिया जाना अनिवार्य है। आवेदक के द्वारा उसकी वाहन दिनांक 23/08/2013 को चोरी होना बताया गया है। आवेदक ने अनावेदक को उपरोक्त वाहन की चोरी होने की सूचना दिनांक 26/09/2013 को प्रदान की है। आवेदक के द्वारा वाहन चोरी होने की रिपोर्ट थाने में कॉफी विलंब से दिनांक 08/09/2013 को दर्ज करायी गयी है। इस प्रकार आवेदक के द्वारा वाहन चोरी हो जाने के उपरांत बीमा शर्तो का उल्लंघन करने हुए कॉफी विलंब से सूचना दी गयी इसलिए आवेदक कोई भी क्षतिपूर्ति की राशि अदा करने के लिए उत्तरदायी नहीं है। आवेदक के दावा को अनावेदक के द्वारा निरस्त किये जाने की विधिवत सूचना दिनांक 10/12/2013 को पत्र के माध्यम से दिया जा चुका है। इस प्रकार अनावेदक के द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है। आवेदक कोई भी क्षतिपूर्ति की राशि प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। इसलिए आवेदक के परिवाद-पत्र को सारहीन होने से सव्यय निरस्त किया जावे।
05. परिवादी/आवेदक की ओर से अपने परिवाद-पत्र के समर्थन में सूची अनुसार दस्तावेज तथा स्वयं का शपथ-पत्र दिनांक 15/05/2014 का पेश किया गया है। अनावेदक के द्वारा जवाबदावा के समर्थन में सूची अनुसार दस्तावेज तथा आर.सी. परतेती, मंडल प्रबंधक, ओरिएण्टल इंश्योरेंस कं. लि. कोरबा का शपथ-पत्र दिनांक 27/09/2014 का पेश किया गया है। उभय पक्षों द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों का अवलोकन किया गया।
06. मुख्य विचारणीय प्रश्न है कि:-
क्या परिवादी/आवेदक द्वारा प्रस्तुत परिवाद-पत्र स्वीकार किये जाने योग्य हैॽ
07. आवेदक के दस्तावेज क्रमांक ए-3 विवादित वाहन मोटर सायकल के पंजीयन प्रमाण-पत्र की फोटोप्रति तथा दस्तावेज क्रमांक ए-4 उक्त वाहन के बीमा प्रमाण-पत्र की फोटोप्रतियॉ है, जिसके अनुसार आवेदक के स्वामित्व के मोटर सायकल पंजीयन क्रमांक सीजी12 के 8577 का बीमा अनावेदक के पास दिनांक 11/07/2013 से दिनांक 10/07/2014 तक के लिए 32,400/-रू0 हेतु किया गया था। इसी वाहन के बीमा से संबंधित प्रमाण पत्र अनावेदक की ओर से भी दस्तावेज क्रमांक डी-6 के रूप में प्रस्तुत किया गया है। आवेदक ने ड्रायविंग लायसेंस की फोटोप्रति भी प्रस्तुत किया है, जो दस्तावेज क्रमांक ए-5 है। इस प्रकार आवेदक एक उपभोक्ता होना प्रमाणित होता है।
08. आवेदक ने उपरोक्त विवादित वाहन की चोरी होने के संबंध में थाना कोतवाली कोरबा के पुलिस चौकी सीएसईबी कोरबा में रिपोर्ट किया जाना बताया है, जिसके संबंध में दस्तावेज क्रमांक ए-6 उक्त वाहन के दिनांक 23/08/2013 को चोरी होने के संबंध में प्रथम सूचना रिपोर्ट की फोटोप्रति है। उपरोक्त दिनांक 08/09/2013 को किये गये रिपोर्ट पर अपराध क्रमांक 502/2013 पंजीबद्ध किया जाना स्पष्ट होता है। उक्त वाहन के चोरी के संबंध में विवेचना किये जाने पर उसके प्राप्त न होने के कारण अंतिम जांच निष्कर्ष प्रतिवेदन थाना कोतवाली से जारी किया गया था, जो दस्तावेज क्रमांक ए-7 है। जिसके अनुसार खात्मा क्रमांक 42/13 दिनांक 30/09/2013 को तैयार किया गया था। आवेदक ने उक्त चोरी की सूचना पुलिस चौकी सीएसईबी, कोरबा में शीघ्रता से किया जाना बताया है किंतु उसके द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज से स्पष्ट है कि थाना कोतवाली कोरबा में वाहन चोरी की रिपोर्ट दिनांक 08/09/2013 को दर्ज कराया गया था।
09. आवेदक ने अनावेदक को वाहन चोरी के संबंध में सूचना शीघ्रता से दिया जाना बताया है किंतु आवेदक का दस्तावेज क्रमांक ए-2 वाहन दुर्घटना की सूचना अनावेदक बीमा कंपनी के पास दिये जाने के संबंध में है, जो दिनांक 26/09/2013 को अनावेदक के कार्यालय कोरबा में प्रस्तुत किया गया था। जिसकी पावती सील बीमा कंपनी की ओर से उसमें लगाई गयी है। आवेदक ने उक्त वाहन के चोरी की सूचना दिनांक 26/09/2013 के पूर्व बीमा कंपनी को दे दिया था, ऐसा कोई प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं किया गया है। आवेदक के द्वारा प्रस्तुत बीमा प्रमाण पत्र दस्तोवज क्रमांक ए-4 के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि जहां पर दावा वाहन चोरी के संबंध में है, तो उक्त चोरी की घटना के संबंध में सूचना अनावेदक बीमा कंपनी को 48 घंटे के अंदर शीघ्रता से दिया जाना चाहिए। इस मामले में आवेदक के द्वारा थाना कोतावाली को वाहन के चोरी की घटना दिनांक 23/08/2013 से करीब 15 दिनों के बाद सूचना विलंब से दिया जाना स्पष्ट होता है। इसी तरह उक्त चोरी की घटना के करीब 01 माह 03 दिन बाद बीमा कंपनी को दस्तावेज क्रमांक ए-2 के अनुसार आवेदक के द्वारा सूचित किया जाना भी स्पष्ट होता है। आवेदक ने इस प्रकार बीमा शर्तो का पालन नहीं करते हुए काफी विलंब से बीमा कंपनी को घटना के बारे में सूचित किया है, यह तथ्य आवेदक के दस्तावेजों से स्पष्ट हो जाता है।
10. अनावेदक के द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज क्रमांक डी-7 आवेदक की ओर से प्रस्तुत मोटर दावा प्रपत्र की फोटोप्रति है, जो अनावेदक के पास वाहन चोरी के संबंध में बीमाधन राशि प्राप्त करने हेतु दिनांक 26/09/2013 को प्रस्तुत किया गया था। इसी आवेदक के द्वारा लिखे पत्र दस्तावेज क्रमांक डी-5 के अनुसार उसके द्वारा दावा प्रपत्र प्रस्तुत करने में विलंब का कारण दर्शाया गया है। अनावेदक की ओर से दस्तावेज क्रमांक डी-3 का प्रस्तुत किया गया है, जो आवेदक की वाहन के संबंध में मोटर बीमा दावे के छानबीन का प्रपत्र की फोटोप्रति है। जिसमें भी आवेदक के द्वारा घटना की रिपोर्ट 15 दिनों के विलंब से थाने में किया जाना एवं बीमा कंपनी को 01 माह 03 दिन बाद उसकी सूचना दिया जाना बताते हुए बीमादावा को अस्वीकार कर दिया गया है। अनावेदक ने आवेदक को जिस पत्र दस्तावेज क्रमांक डी-4 का दिनांक 10/12/2013 को प्रेषित कर बीमादावा को इंकार किया उसका अवलोकन करने से स्पष्ट है, कि आवेदक का दावा बीमा शर्तो के उल्लंघन के कारण निरस्त किया गया है। आवेदक ने भी उक्त दस्तावेज की फोटोप्रति दस्तावेज क्रमांक ए-1ए का पेश किया है। अनावेदक ने दस्तावेज क्रमांक डी-2 का पत्र दिनांक 17/01/2014 की फोटोप्रति भी पेश किया है। यही दस्तावेज आवेदक की ओर से दस्तावेज क्रमांक ए-1बी के रूप में प्रस्तुत है। जिसमें भी बीमादावा को दिनांक 10/12/2013 के पत्र के द्वारा अस्वीकार कर दिये जाने की सूचना दी गयी थी, उसके बारे में आवेदक को पुन: पत्र के द्वारा सूचित किया गया है।
11. अनावेदक के द्वारा दस्तावेज क्रमांक डी-1 का पेश किया गया जिसमें आवेदक ने अपने दस्तावेजों की मांग अनावेदक बीमा कंपनी से किया था और उसके निवेदन पर अनावेदक के द्वारा दस्तावेजों को प्रदान कर दिया गया है।
12. अनावेदक की ओर से तर्क किया गया है कि आवेदक के द्वारा अपने वाहन की चोरी हो जाने की सूचना थाना में विलंब से दिये जाने तथा बीमा कंपनी को करीब 01 माह 03 दिन बाद विलंब से सूचना दिये जाने के कारण बीमा शर्तो का उल्लंघन हुआ है, ऐसी स्थिति में आवेदक कोई क्षतिपूर्ति की राशि प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। इसलिए परिवाद पत्र को निरस्त किया जावे।
13. अनावेदक की ओर से उपरोक्त तर्क के समर्थन में माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग नई दिल्ली के द्वारा रमेश चन्द्रा विरूद्ध आईसीआईसी आई लाम्बार्ड जनरल इश्योरेंस कंपनी लिमिटेड 2014(1)सीपीआर 427 (एनसी) तथा माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग नई दिल्ली के द्वारा ही एक अन्य न्याय दृष्टांत सागर कुमार विरूद्ध यूनाईटेड इंडिया इश्योरेंस कंपनी लिमिटेड 2014(1)सीपीआर 663 (एनसी) का न्याय दृष्टांत प्रस्तुत किया गया है, जिसमें यह सिद्धांत प्रति पादित किया गया है कि वाहन चोरी के मामले में थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने में एवं बीमा कंपनी को सूचना देने, विलंब किये जाने पर बीमा शर्तो के उल्लंघन के आधार पर क्षतिपूर्ति हेतु दावा प्रपत्र को अस्वीकार करने के संबंध में बीमा कंपनी के द्वारा लिये गये निर्णय को सेवा में कमी के रूप में नहीं माना जा सकता है।
14. अनावेदक के द्वारा ही अपने तर्क के समर्थन में माननीय राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग पंडरी रायपुर के द्वारा दी ओरियेंटल इश्योरेंस कंपनी लिमिटेड विरूद्ध विकास कुमार अग्रवाल अपील नंबर एफए/12/296 में पारित आदेश दिनांक 03/11/2012 तथा माननीय राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग पंडरी रायपुर के द्वारा ही बलजिंदर सिंह विरूद्ध ओरियेंटल इश्योरेंस कंपनी लिमिटेड अपील नंबर एफए/14/162 में पारित आदेश दिनांक 06/08/2014 का न्याय दृष्टांत प्रस्तुत किया गया उनमें भी वाहन के बीमा कराने वाले के द्वारा वाहन चोरी की सूचना थाने में विलंब से दिये जाने तथा वाहन चोरी की सूचना बीमा कंपनी को विलंब से दिये जाने पर बीमा शर्तो का उल्लंघन होने के कारण बीमा दावा को अस्वीकार किये जाने को सेवा में कमी नहीं होना माना गया है। उपरोक्त न्याय दृष्टांतों के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि बीमा कंपनी को विलंब से सूचना दिये जाने से उसके द्वारा वाहन की चोरी के संबंध में शीघ्रता से जांच नहीं करायी जा सकती और वाहन को खोज पाने में सफलता प्राप्त नहीं हो पाती है, इस प्रकार बीमा कंपनी को बीमा पॉलिसी के तहत प्राप्त अधिकार से वंचित रहना पडता है।
15. आवेदक के द्वारा यह तर्क किया गया है कि उसके द्वारा मौखिक रूप से वाहन चोरी हो जाने के घटना की सूचना पुलिस थाने में एवं बीमा कंपनी को शीघ्रता से दे दी गयी थी किंतु लिखित रिपोर्ट थाना में प्रस्तुत नहीं किया गया था जिसके कारण बाद में आवेदक के द्वारा रिपोर्ट दर्ज किया गया था और लिखित में सूचना बीमा कंपनी को देने में विलंब हो गया था, ऐसी स्थिति में आवेदक के द्वारा प्रस्तुत बीमादावा को अस्वीकार करने में अनावेदक के द्वारा गंभीर त्रुटि की गयी है, इसलिए परिवाद पत्र को स्वीकार किया जावे।
16. यह उल्लेखनीय है कि अभी हाल ही में माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग नई दिल्ली के द्वारा सरफर्जुददीन विरूद्ध न्यु इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड 2015(1)सीपीजे 748 (एनसी) वाले मामले में भी यही सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है कि वाहन चोरी के संबंध में बीमा कंपनी को 01 महिने विलंब से सूचना दिये जाने से बीमा पॉलिसी की मूलभूत शर्तो का उल्लंघन होने के कारण बीमा कंपनी के द्वारा बीमा दावा को अस्वीकार किया जाना उचित है।
17. इस प्रकार वर्तमान मामले में उभय पक्ष के द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य के आधार पर यह प्रमाणित नहीं होता है कि आवेदक ने वाहन चोरी के संबंध में शीघ्रता से थाने में रिपोर्ट दर्ज कराया अथवा बिना कोई विलंब किये बीमा कंपनी को सूचित कर दिया था। इस मामले में आवेदक के ही दस्तावेज क्रमांक ए-2 मे पत्र से स्पष्ट हो जाता है कि बीमा कंपनी को वाहन दुर्घटना की सूचना दिनांक 26/09/2013 के पत्र के द्वारा दी गयी थी। इस प्रकार चोरी की घटना दिनांक 23/08/2013 के बाद काफी विलंब से बीमा कंपनी को सूचित किया गया था। इसलिए आवेदक का परिवाद पत्र बीमा दावा के संबंध में स्वीकार किये जाने योग्य नहीं पाया जाता है।
18. अत: मुख्य विचारणीय प्रश्न का निष्कर्ष ‘’नहीं’’ में दिया जाता है।
19. तद्नुसार आवेदक सुबोध कुमार पंडित की ओर से प्रस्तुत इस परिवाद-पत्र को धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत स्वीकार किये जाने योग्य नहीं पाते हुए निरस्त किया जाता है। इस मामले की परिस्थिति को देखते हुए आदेश दिया जाता है कि उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेगे।
(छबिलाल पटेल) (श्रीमती अंजू गबेल) (राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय)
अध्यक्ष सदस्य सदस्य