Smt. Shahjahan filed a consumer case on 07 Aug 2018 against The Oriaental Insurance in the Muradabad-II Consumer Court. The case no is CC/11/2018 and the judgment uploaded on 31 Aug 2018.
Uttar Pradesh
Muradabad-II
CC/11/2018
Smt. Shahjahan - Complainant(s)
Versus
The Oriaental Insurance - Opp.Party(s)
07 Aug 2018
ORDER
न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-द्वितीय, मुरादाबाद
परिवाद संख्या-11/2018
श्रीमती शाहजहां आयु 62 वर्ष पत्नी स्व. श्री खलील अहमद उर्फ छुट्टु निवासी ग्राम बेरखेड़ा चक थाना भगतपुर जिला मुरादाबाद। …..... परिवादनी
बनाम
दि ओरियंटल इंश्योरेंस कंपनी लि. द्वारा मण्डलीय प्रबन्धक सिविल लाइन्स मुरादाबाद। …....विपक्षी
वाद दायरा तिथि: 23-02-2018 निर्णय तिथि: 07.08.2018
उपस्थिति
श्री पवन कुमार जैन, अध्यक्ष
श्री सत्यवीर सिंह, सदस्य
(श्री पवन कुमार जैन, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित)
निर्णय
इस परिवाद के माध्यम से परिवादनी ने यह अनुतोष मांगा है कि किसान दुर्घटना बीमा के अधीन विपक्षी से उसे 5 लाख रूपये बीमा के दिलाये जायें। परिवाद व्यय और मानसिक पीड़ा की मद में 15 हजार रूपये परिवादनी ने अतिरिक्त मांगे हैं।
संक्षेप में परिवाद कथन इस प्रकार हैं कि दिनांक 05-8-2017 को परिवादनी के पुत्र शरीफ अहमद की मृत्यु मौअज्जमपुर नारायण रेलवे स्टेशन पर थाना जीआरपी नजीबाबाद जिला बिजनौर के क्षेत्रान्तर्गत हो गई थी। शरीफ अहमद का पंचनामा जीआरपी नजीबाबाद की पुलिस ने किया। परिवादनी ने अपने पुत्र शरीफ अहमद का पोस्टमार्टम नहीं कराया क्योंकि परिवादनी जिला मुरादाबाद की रहने वाली है और पोस्टमार्टम जिला बिजनौर में अगले दिन होता। अधिक समय लगने की वजह से केवल पंचायतनामा कराया गया। परिवादनी का पुत्र शरीफ अहमद किसान था, उसके नाम खेती की जमीन है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किसानों का विपक्षी से बीमा कराया गया है, जिसके अधीन यदि किसी किसान की मृत्यु दुर्घटना में हो जाती है तो मृतक के आश्रित को 5 लाख रूपये दुघर्टना बीमा के रूप में दिये जायेंगे। परिवादनी ने समस्त औपचारिकतायें पूरी करके बीमा दावा प्रपत्र विपक्षी के कार्यालय में जमा किया किन्तु विपक्षी ने परिवादनी का दावा देनदारी से बचने के उद्देश्य से इस आधार पर खारिज कर दिया कि मृतक का पोस्टमार्टम नहीं हुआ था और वह परिवार का रोटी अर्जक/मुखिया नहीं था। परिवादनी ने अग्रेत्तर कथन किया कि मृतक शरीफ अहमद अविवाहित था और वह परिवादनी के साथ ही रहता था और वह उसका सहारा व रोटी अर्जक था, परिवादनी का भरण-पोषण और देखभाल वही करता था। परिवादनी ने यह कहते हुए कि उसका बीमा दावा खारिज करके विपक्षी ने सेवा में कमी की है, परिवाद में अनुरोधित अनुरोधित अनुतोष दिलाये जाने की प्रार्थना की।
परिवाद के साथ परिवादनी ने सूची कागज सं.-3/4 के माध्यम से रेपुडिएशन लेटर दिनांकित 24-11-2017, परिवादनी द्वारा विपक्षी के समक्ष प्रेषित बीमा दावा, अपनी बैंक पासबुक, आधार कार्ड, मृतक शरीफ अहमद का मृत्यु प्रमाण पत्र, थाना जीआरपी नजीबाबाद की दिनांक 05-8-2017 की जीडी, मृतक का पंचायतनामा तथा थाना जीआरपी नजीबाबाद के प्रभारी को शव का पोस्टमार्टम न कराने संबंधी दिये गये पत्र की छायाप्रतियों को दाखिल किया गया, ये प्रपत्र पत्रावली के कागज सं.-3/5 लगायत 3/17 हैं। परिवादी की ओर से अतिरिक्त सूची कागज सं.-5/2 के द्वारा मृतक की खेती की जमीन की खतौनी की नकल भी दाखिल की गई।
विपक्षी की ओर से प्रतिवाद पत्र कागज सं.-10/1 लगायत 10/3 दाखिल हुआ, जिसमें परिवाद कथनों से इंकार करते हुए विशेष कथनों में कहा गया कि परिवादनी को परिवाद योजित करने का कोई कारण उत्पन्न नहीं हुआ और परिवाद अशुद्ध एवं असत्य कथनों पर आधारित है। विपक्षी की ओर से अग्रेत्तर कथन किया गया कि परिवादनी द्वारा प्रश्नगत बीमा दावा प्राप्त होते ही उत्तरदाता बीमा कंपनी ने श्री सुनील कुमार शर्मा, इंवेस्टीगेटर से दावे की जांच करायी। जांच में यह पाया गया कि मृतक शरीफ अहमद कृषि कार्य नहीं करता था, वह गांव पौण्डरी कला में ईमामत का कार्य करता था और वह परिवार का मुखिया/रोटी अर्जक नहीं था। परिवादनी शाहजहां के दो पुत्र और भी हैं, जिनके नाम क्रमश: जलीश अहमद एवं जरीफ अहमद हैं, जलीश अहमद गांव में खेती करता है तथा जरीफ अहमद इण्टर कालेज में लैक्चरर है। परिवादनी संयुक्त परिवार में अपने इन दोनों पुत्रों के साथ ग्राम बेरखेड़ा चक में रहती है। बीमा पालिसी की शर्तों के अन्तर्गत बीमा दावा भुगतान योग्य नहीं पाया गया। यह भी कहा गया कि मृतक का पोस्टमार्टम भी नहीं हुआ था। उत्तरदाता बीमा कंपनी ने सद्भावनापूर्वक कारण स्पष्ट करते हुए बीमा दावा खारिज किया है और ऐसा करके उन्होंने कोई त्रुटि नहीं की और न सेवा में कमी की। उक्त कथनों के आधार पर बीमा कंपनी ने परिवाद को सव्यय खारिज किये जाने की प्रार्थना की।
परिवादनी ने अपना साक्ष्य शपथपत्र कागज सं.-11/1 लगायत 11/2 दाखिल किया।
विपक्षी-बीमा कंपनी की ओर से बीमा कंपनी के मण्डलीय प्रबन्धक श्री रमेश चन्द्र आर्य ने अपना साक्ष्य शपथपत्र दाखिल किया, जिसके साथ इंवेस्टीगेटर श्री सुनील कुमार शर्मा की इंवेस्टीगेशन रिपोर्ट, बीमा पालिसी, किसान बीमा योजना की बुकलेट तथा दावा अस्वीकृत करने विषयक रेपुडिएशन लेटर की नकलों को बतौर संलग्नक दाखिल किया, ये प्रपत्र पत्रावली के कागज सं.-14/1 लगायत 14/16 हैं। विपक्षी की ओर से उनके इंवेस्टीगेटर श्री सुनील कुमार शर्मा ने विपक्षी के समर्थन में अपना साक्ष्य शपथपत्र कागज सं.-13/1 लगायत 13/2 दाखिल किया, जिसमें उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि विपक्षी बीमा कंपनी के निर्देश पर प्रश्नगत मामले में उन्होंने जांच करके अपनी जांच रिपोर्ट बीमा कंपनी में प्रस्तुत की थी।
किसी भी पक्ष ने लिखित बहस दाखिल नहीं की।
हमने पक्षकारों के विद्वान अधिवक्तागण के तर्कों को सुना और पत्रावली का अवलोकन किया।
पत्रावली में अवस्थित अभिलेखों के अवलोकन से प्रकट है कि परिवादनी के पुत्र शरीफ अहमद की मृत्यु दिनांक 05-8-2017 को रेलवे स्टेशन मोअज्जमपुर नारायण पर ट्रेन से कटकर हो गई थी। मृतक के शव का पंचायतनामा पत्रावली का कागज सं.-3/12 लगायत 3/14 है। इस दुर्घटना की थाना जीआरपी नजीबाबाद की जीडी में दिनांक 05-8-2017 को ही प्रविष्टि हुई थी, जैसा कि नकल जीडी कागज सं.-3/11 के अवलोकन से प्रकट है। परिवादनी की ओर से दाखिल नकल खतौनी कागज सं.-5/3 लगायत 5/4 के अनुसार मृतक शरीफ के नाम ग्राम बेरखेड़ा चक जिला मुरादाबाद में खेती की जमीन है। परिवादनी के विद्वान अधिवक्ता के अनुसार मृतक परिवार का मुखिया/रोटी अर्जक था और वह प्रदेश सरकार द्वारा किसानों के हित में संचालित ‘’समाजवादी किसान एवं सर्वहित बीमा योजना’’ से आच्छादित था और इस योजना के अधीन बीमित था। परिवादनी के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि शरीफ अहमद की चूंकि अप्राकृतिक मृत्यु हुई थी और वह परिवार का मुखिया/रोटी अर्जक था, अतएव योजना के अनुसार परिवादनी को पाँच लाख रूपये बीमा राशि विपक्षी द्वारा अदा की जानी चाहिए थी किन्तु क्लेम प्रस्तुत करने के बावजूद विपक्षी ने रेपुडिएशन लेटर दिनांकित 24-11-2017 के माध्यम से परिवादनी का क्लेम अस्वीकृत कर दिया। आधार यह लिया गया कि मृतक शरीफ अहमद का पोस्टमार्टम नहीं कराया गया तथा वह अविवाहित था और परिवार का मुखिया/रोटी अर्जक नहीं था। परिवादनी के विद्वान अधिवक्ता ने यह कहते हुए कि परिवादनी का क्लेम गलत आधार पर अस्वीकृत किया गया, परिवाद में अनुरोधित अनुतोष दिलाये जाने की प्रार्थना की।
बीमा कंपनी के विद्वान अधिवक्ता ने रेपुडिएशन लेटर को सही बताते हुए हमारा ध्यान बीमा कंपनी के इनवेस्टीगेटर श्री सुनील कुमार शर्मा की जांच रिपोर्ट कागज सं.- 14/4 लगायत 14/16 की ओर आकर्षित किया और कथन किया कि मृतक परिवार का न तो मुखिया था और न ही रोटी अर्जक था। इस संदर्भ में उन्होंने जांचकर्ता के समक्ष अभिकथित रूप से मृतक के बड़े भाई जरीफ अहमद द्वारा दिये गये बयानों की ओर भी हमारा ध्यान आकर्षित किया। जरीफ अहमद के ये बयान जांच रिपोर्ट के संलग्नक के रूप में पत्रावली के कागज सं.-14/7 पर दृश्टव्य हैं। विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने उक्त तर्कों के आधार पर परिवाद को सव्यय खारिज किये जाने की प्रार्थना की।
यह सही है कि परिवादनी के पुत्र शरीफ अहमद के शव का पोस्टमार्टम नहीं हुआ था। शव का पोस्टमार्टम नहीं हो पाना अपने आप में ऐसा कारक नहीं है, जिसकी वजह से परिवादनी द्वारा प्रस्तुत क्लेम को इस मामले में अस्वीकृत किया जाता। III (2016) सीपीजे पृष्ठ-269 (एनसी), ओरियंटल इंश्योरेंस कंपनी लि. बनाम ममता सिंह के मामले में माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग, नई दिल्ली द्वारा यह व्यवस्था दी गई है कि यदि यह बात अन्यथा प्रमाणित हो जाये कि मृतक की मृत्यु दुर्घटनावश हुई थी तो ऐसे मामलों में पोस्टमार्टम रिपोर्ट का होना आवश्यक नहीं है। यह रूलिंग वर्तमान मामले के तथ्यों पर पूरी तरह लागू होती है। पत्रावली में अवस्थित मृतक के पंचनामे में यह स्पष्ट उल्लेख है कि पंचों की राय में मृतक शरीफ अहमद की मृत्यु ट्रेन से कटकर आयी चोटों के कारण हुई है और मृत्यु का असली कारण जानने के लिए किसी अन्य कार्यवाही की आवश्यकता नहीं है। थाना जीआरपी नजीबाबाद की जीडी की नकल भी इस दुर्घटना की पुष्टि करती है। पत्रावली में अवस्थित प्रार्थना पत्र कागज सं.-3/17 के अवलोकन से प्रकट है कि मृतक के भाई और अन्य रिश्तेदारों ने मृतक के शव का पोस्टमार्टम न कराये जाने का अनुरोध थाना प्रभारी से किया था, जिस कारण मृतक का पोस्टमार्टम नहीं हुआ था। उपरोक्त स्थिति में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा ममता सिंह की उपरोक्त रूलिंग के दृष्टिगत मृतक का पोस्टमार्टम न होने की वजह से परिवादनी का क्लेम अस्वीकृत किये जाने को सही नहीं ठहराया जा सकता।
अब प्रश्न यह रह जाता है कि मृतक परिवार का मुखिया/रोटी अर्जक था या नहीं। पत्रावली में जो अभिलेख हैं, उनसे यह स्पष्ट है कि मृतक तीन भाई थे, सबसे बड़े जलीस अहमद, उनसे छोटे जरीफ अहमद तथा तीसरे नम्बर पर मृतक शरीफ अहमद थे। बीमा कंपनी के जांचकर्ता की रिपोर्ट के अनुसार जलीस अहमद और जरीफ अहमद दोनों विवाहित हैं, जलीस अहमद के पाँच बच्चे हैं, मृतक शरीफ अहमद अविवाहित थे, परिवादनी विधवा है, उनके पति अर्थात इन तीनों भाइयों के पिता की मृत्यु वर्ष 2005 में हो गई थी, ये सारी बाते मृतक के बड़े भाई जरीफ अहमद द्वारा बीमा कंपनी के जांचकर्ता को दिये गये लिखित बयानों में भी उल्लिखित हैं।
यह विनिश्चित करने के लिए मृतक शरीफ अहमद परिवार का मुखिया था अथवा नहीं माननीय झारखण्ड उच्च न्यायालय द्वारा दिनांक 19-5-2010 को निर्णीत प्रथम अपील सं.-107/2000, मुख्तार अहमद आदि बनाम महमूदी खातून आदि की रूलिंग के पैरा-15 को उद्धरित करना हम समीचीन समझते हैं, जो निम्नवत है:-
“Let us first consider the Muslim law as given by Tahir Mahmood in Chapter 12 (Law of Inheritance) Para II: II. Muslim Law-Concepts Known and Unknown:
1. ………………………………………………………
2. ………………………………………………………
3. ………………………………………………………
4. The Indian legal concepts of 'joint' or 'undivided' family, 'coparcenary', karta, 'survivorship', and 'partition', etc., have no place in the law of Islam. A father and his son living together do not constitute a 'joint family'; the father is the master of his property; the son (even if a minor) of his, if he has any. The same is the position of brothers or others living together.
5. ………………………………………………………
6. ………………………………………………………”
14.माननीय झारखण्ड उच्च न्यायालय की उपरोक्त निर्णयज विधि के अनुसार इस्लामिक विधि में परिवार के ‘’संयुक्त’’ अथवा ‘’अविभाजित’’ होने की कोई अवधारणा नहीं है। यदि सगे भाई भी साथ-साथ रह रहे हों, तब भी ऐसे परिवार के संयुक्त अथवा अविभाजित होने की अवधारणा इस्लामिक विधि में नहीं है, ऐसा उक्त निर्णय में उल्लेख है।
15.माननीय झारखण्ड उच्च न्यायालय द्वारा मुख्तार अहमद की उपरोक्त निर्णयज विधि में जो संवीक्षण किया गया है, उसके अनुसार यदि तर्क के तौर पर यह मान भी लिया जाये कि मृतक के भाई जलीस अहमद, जरीफ अहमद अपने-अपने परिवारों सहित परिवादनी के साथ ग्राम बेरखेड़ा चक में संयुक्त रूप से रह रहे हैं, तब भी माननीय झारखण्ड उच्च न्यायालय द्वारा मुख्तार अहमद की उपरोक्त रूलिंग में किये गये संवीक्षण के अनुसार वह ‘’संयुक्त’’ अथवा ‘’अविभाजित’’ परिवार नहीं माना जा सकता। जलीस अहमद और जरीफ अहमद के अपने-अपने परिवार हैं, वे शादीशुदा हैं अतएव विधिक दृष्टिकोण से उनका अलग अस्तित्व है। ‘’समाजवादी किसान एवं सर्वहित बीमा योजना’’ का परिचय पत्रावली में कागज सं.-14/11 लगायत 14/15 के रूप में उपलब्ध है। इस योजना के पृष्ठ-14/12 पर ‘’परिवार निर्धारण’’ के अन्तर्गत यह उल्लेख है कि इस योजना के अधीन अविवाहित पुरूष के आश्रित माता-पिता बीमा का लाभ प्राप्त करने हेतु आवृत्त होंगे। उपरोक्त प्रावधानों का समेकित अवलोकन करने पर विधिक स्थिति यह बनती है कि मृतक शरीफ अहमद का अपनी विधवा मां (परिवादनी) सहित एक ‘’परिवार’’ था, जिसका मुखिया मृतक शरीफ अहमद था। जहां तक इस बात का प्रश्न है कि मृतक ग्राम पौण्ड्रीकला जिला बिजनौर में एक मस्जिद में इमाम था और वहीं रहता था, इस तथ्य को भी सही मान लिया जाये तो उसके आधार पर यह नहीं माना जा सकता है कि वह परिवार का रोटी अर्जक नहीं था। किसी व्यक्ति के पास यदि खेती की जमीन है तो क्या उसी के द्वारा उस जमीन पर खेती करना आवश्यक होगा। क्या जिस व्यक्ति के पास खेती है, वह जीविकोपार्जन के लिए कोई अन्य काम नहीं कर सकता और क्या घर का रोटी अर्जक होने के लिए व्यक्ति का उसी घर में निवास करना आवश्यक है, जो उसका मूल निवास है। इन प्रश्नों का कोई उत्तर कदाचित बीमा कंपनी के पास नहीं है। मृतक शरीफ के नाम इतनी खेती नहीं थी कि उस खेती की आय से उसका व उसकी मां का गुजारा हो पाता। यदि दूसरे शहर में जाकर वह इमामत का कार्य कर रहा था तो उस आधार पर उसे यह कहना कि वह घर का रोटी अर्जक नहीं था, कदाचित सही नहीं कहा जा सकता।
16.पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य सामग्री, तथ्यों एवं परिस्थितियों के तथ्यात्मक विश्लेषण और विधिक मूल्यांकन से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि मृतक शरीफ अहमद घर का रोटी अर्जक/मुखिया था और उसकी अप्राकृतिक मृत्यु होने के कारण परिवादनी को ‘’समाजवादी किसान एवं सर्वहित बीमा योजना’’ के अधीन पाँच लाख रूपये का क्लेम दिया जाना चाहिए था। विपक्षी बीमा कंपनी ने रेपुडिएशन लेटर दिनांकित 24-11-2017 के माध्यम से परिवादनी का क्लेम अस्वीकृत करके त्रुटि की है।
17.यह उचित होगा कि परिवादनी को क्लेम की राशि पाँच लाख रूपये दिलायी जाये। परिवादनी को परिवाद व्यय की मद में अंकन-2500/-रूपये दिलाया जाना भी न्यायोचित दिखायी देता है। परिवाद तद्नुसार स्वीकार होने योग्य है।
विपक्षी से पाँच लाख रूपये क्लेम राशि प्राप्त करने हेतु यह परिवाद परिवादनी के पक्ष में स्वीकृत किया जाता है। यदि इस आदेशानुसार धनराशि का भुगतान आज की तिथि से एक माह के भीतर नहीं किया गया तो परिवाद योजित किये जाने की तिथि से वास्तविक वसूली की तिथि तक की अवधि हेतु परिवादनी उक्त धनराशि पर विपक्षी से 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भी पाने की अधिकारिणी होगी। इसके अतिरिक्त परिवादनी परिवाद व्यय की मद में विपक्षी से अंकन-2500/-रूपये अतिरिक्त भी पायेगी।
(सत्यवीर सिंह) (पवन कुमार जैन)
सदस्य अध्यक्ष
आज यह निर्णय एवं आदेश हमारे द्वारा हस्ताक्षरित तथा दिनांकित होकर खुले न्यायालय में उद्घोषित किया गया।
(सत्यवीर सिंह) (पवन कुमार जैन)
सदस्य अध्यक्ष
दिनांक: 07-8-2018
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