जिला फोरम उपभोक्ता विवाद प्रतितोष, झुन्झुनू (राजस्थान)
परिवाद संख्या - 46/14
समक्ष:- 1. श्री सुखपाल बुन्देल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती शबाना फारूकी, सदस्या।
3. श्री अजय कुमार मिश्रा, सदस्य।
धर्मपाल पुत्र हनुमान प्रसाद जाति गूर्जर निवासी ढ़ाणी बड़ाबन्द तन पपुरना तहसील खेतड़ी जिला झुन्झुनू (राज.) - परिवादी
बनाम0
1. दि न्यू इण्डिया इन्ष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड, जालान भवन, कलेक्ट्रेट के सामने,
सीकर जिला सीकर (राज.)
2. गहलोत मोटर्स प्राईवेट लिमिटेड, खेतड़ी रोड़, नीम का थाना जिला सीकर
(राज.) - विपक्षीगण।
परिवाद पत्र अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम 1986
उपस्थित:-
1. श्री संजय सैनी, अधिवक्ता, परिवादी की ओर से।
2. श्री लाल बहादुर जैऩ, अधिवक्ता - विपक्षीगण की ओर से।
- निर्णय - दिनांकः 04.03.2016
परिवादी ने यह परिवाद पत्र मंच के समक्ष पेष किया, जिसे दिनांक 17.01.2014 को संस्थित किया गया।
विद्धान अधिवक्ता परिवादी ने परिवाद पत्र मे अंकित तथ्यों को उजागर करते हुए बहस के दौरान यह कथन किया है कि परिवादी धर्मपाल ने दिनांक 25.02.2013 को विपक्षी संख्या 2 से वाहन महेन्द्रा कैम्पर बोलेरो खरीदा तथा विपक्षी संख्या 2 ने अपनी कम्पनी विपक्षी संख्या 1 के माफर््त उक्त वाहन का बीमा करवा दिया। जिसका पालिसी नम्बर 33120331120100011297 है। उक्त वाहन विपक्षी संख्या 1 बीमा कम्पनी के यहां दिनांक 25.02.2013 से 24.02.2014 तक की अवधि के लिए बीमित था। इस प्रकार परिवादी, विपक्षीगण का उपभोक्ता है।
विद्धान अधिवक्ता परिवादी का बहस के दौरान यह भी कथन रहा है कि परिवादी का वाहन दिनांक 09.04.2013 को दुर्घटनाग्रस्त हो गया। जिसकी सूचना परिवादी द्वारा विपक्षीगण को दी गई । उक्त सूचना के क्रम में विपक्षी संख्या 2 ने कहा कि आप गाड़ी ले आवो, बीमा कम्पनी को सूचना कर वाहन का मरम्मत कार्य करवा दिया जावेगा। परिवादी ने अपना वाहन के्रन के द्वारा लाकर विपक्षी संख्या 2 के यहां खड़ा कर दिया तथा सर्वेयर हेतु विपक्षी नं0 1 को सूचित कर दिया। विपक्षी संख्या 1 ने कहा सर्विस सेण्टर से गाड़ी ठीक करवालो तथा सर्वेयर कम्पनी में पहुंचकर गाडी का सर्वे कर लेगा। परिवादी ने विपक्षीगण के आष्वासन पर वाहन का मरम्मत कार्य विपक्षी संख्या 2 से करवा लिया। विपक्षी संख्या 2 ने परिवादी को 1,43,048/-रूपये रिपेयर का बिल दिया। परिवादी ने बिल का भुगतान करने हेतु विपक्षी संख्या 1 व 2 से बात की तो कहा आप भुगतान करदो बाद में आपको बीमा कम्पनी भुगतान कर देगी। विपक्षीगण ने परिवादी से दिनांक 26.09.2013 को वाहन के कागजात रजिस्ट्रेषन, लाइसेंस, फिटेनस प्रमाण पत्र आदि की मांग की, तो परिवादी ने विपक्षी संख्या 1 के पास कागजात जमा करवा दिये। दिनांक 09.10.2013 को विपक्षी संख्या 1 ने पुनः उपरोक्त कागजात की मांग की तथा दुर्घटना के समय वाहन के रजिस्ट्रेषन व फिटनेस प्रभावी नहीं होने के संबंध में स्पष्टीकरण चाहा। परिवादी ने विपक्षी के उक्त पत्र का जवाब दिनांक 14.10.2013 को दे दिया तथा स्पष्ट कर दिया कि परिवादी के पास दुर्घटना के समय वाहन का रजिस्ट्रेषन और फिटनेस नहीं थे। क्योंकि गाड़ी नयी खरीदी थी तथा परिवादी किसी कारणवष पंजीयन नहीं करवा सका। बाद में पंजीयन व फिटनेस करवाकर विपक्षी संख्या 2 को दे दिया। परिवादी सभी कागजात लेकर नवम्बर,2013 में विपक्षीगण के पास गया तो उन्होने क्लेम देने से स्पष्ट रूप से इन्कार कर दिया कि वाहन का पंजीयन व फिटेनस दुर्घटना के समय प्रभावी नहीं थे, इसलिये क्लेम खारिज किया है। परिवादी ने पैनेल्टी जमा करवाकर रजिस्ट्रेषन भी प्राप्त कर लिया । परिवादी ने 25,714/-रूपये बीमा प्रीमियम अदा कर वाहन बीमित करवाया है। वक्त दुर्घटना परिवादी का वाहन विपक्षी बीमा कम्पनी के यहां बीमित था। इसलिये विपक्षीगण द्वारा क्लेम देने में रजिस्ट्रेषन, फिटनेस की आपति लिये जाने का कोई औचित्य नहीं है। इस प्रकार विपक्षीगण का उक्त कृत्य सेवा-दोष की श्रेणी में आता है।
अन्त में विद्धान अधिवक्ता परिवादी ने परिवाद पत्र मय खर्चा स्वीकार कर विपक्षीगण से उक्त दुर्घटनाग्रस्त वाहन की क्लेम राषि 1,43,048/-रूपये मय ब्याज भुगतान दिलाये जाने का निवेदन किया है।
विद्धान् अधिवक्ता विपक्षीगण ने अपने जवाब के अनुसार बहस के दौरान कथन किया है कि वर वक्त दुर्घटना वाहन संख्या आर.जे. 18 जीए 7038 का परमिट फिटनेष, रजिस्ट्रेषन नहीं था। उक्त तथ्य को परिवादी स्वंय स्वीकार करता है। विपक्षी द्वारा वाहन इंजिन नम्बर 55511, चैसिस नम्बर 26983 की बीमा पालिसी संख्या 33120331120100011297 दिनांक 25.02.2013 से 24.02.2014 तक की अवधि के लिये जारी की गई है, परन्तु तथाकथित दुर्घटना की कोई सूचना विपक्षी संख्या 1 को परिवादी द्वारा नहीं दी गई है। विपक्षी संख्या 1 द्वारा परिवादी को दिनांक 26.09.2013 को सही स्थिति से अवगत कराने बाबत पत्र दिया परन्तु परिवादी द्वारा उसका कोई जवाब नहीं दिया गया । वाहन के अस्थाई पंजीयन के एक माह बाद स्थाई पंजीयन करवाना आवष्यक होता है। परिवादी द्वारा वाहन दिनांक 25.02.2013 को खरीदना बताया है तथा पंजीयन दिनांक 26.07.2013 को करवाया गया है, जो वाहन खरीदने के चार माह बाद दर्ज कराया गया है तथा फिटनेष दिनांक 25.07.2013 को बना है। इससे यह स्पष्ट है कि दुर्घटना के समय परिवादी के वाहन के रजिस्ट्रेषन एवं फिटनेस प्रभावी नहीं थे। इस प्रकार पालिसी की शर्तो का उल्लंघन होने के कारण बीमा कम्पनी द्वारा परिवादी का क्लेम निरस्त कर परिवादी को सूचित कर दिया गया। इसलिये तथाकथित दुर्घटना के संबंध में विपक्षी बीमा कम्पनी का क्षतिपूर्ति राषि अदायगी के संबंध में कोई दायित्व आयद नहीं होता।
विद्धान् अधिवक्ता विपक्षीगण ने बहस के दौरान यह भी कथन किया है कि वाहन बोलेरो चेसिस नम्बर 26983 इंजिन नम्बर 55511 कवरनोट के अनुसार वाहन का पंजीयन गुडस व्हीकल के रूप में करवाया है, जो वणिज्यक की श्रेणी में आता है। इस प्रकार यह परिवाद पत्र जिला मंच को सुनने का क्षेत्राधिकार नहीं है।
अन्त में विद्धान् अधिवक्ता विपक्षीगण ने परिवादी का परिवाद पत्र मय खर्चा खारिज किये जाने का निवेदन किया।
उभयपक्ष के तर्को पर विचार किया गया। पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया।
प्रस्तुत प्रकरण के विवरण से यह स्पष्ट है कि परिवादी वाहन आर.जे. 18 जी.ए 7038 का रजिस्टर्ड मालिक है। परिवादी का उक्त वाहन दिनांक 25.02.2013 से 24.02.2014 की अवधि तक विपक्षीगण बीमा कम्पनी के यहां बीमित था। उक्त वाहन दिनांक 09.04.2013 को दुर्घटनाग्रस्त हुआ है।
हस्तगत प्रकरण में विद्वान् अधिवक्ता विपक्षीगण का मुख्य तर्क यह रहा है कि पालिसी की शर्तो के अनुसार वक्त दुर्घटना वाहन मालिक के पास वैध एवं प्रभावी रजिस्ट्रेषन एवं परमिट नहीं था। इसलिये तथाकथित दुर्घटना के संबंध में क्षतिपूर्ति अदायगी हेतु विपक्षीगण बीमा कम्पनी का कोई दायित्व आयद नहीं होता। विद्वान् अधिवक्ता विपक्षीगण बीमा कम्पनी ने अपने तर्को का समर्थन में निम्न न्यायदृष्टांत पेष किये-
I (2015) CPJ- 760 (NC) UNITED INDIA INSURANCE CO. LTD. VS KISHORE SHARMA
2014 (2) CCR- 910 (SC) – Narinder Singh Vs. New India Assurance Co. Ltd.
I (2014) CPJ- 597 (NC)- New India Assurance Co. Ltd.. VS Birbal Singh Jhakhar.
पेष किये।
उपरोक्त न्यायदृष्टान्तों मे माननीय सर्वोच्च न्यायालय एवं माननीय राष्ट्रीय आयोग द्धारा जो सिद्धान्त प्रतिपादित किये गये हैं, उनसे हम पूर्ण रुप से सहमत हैं। उक्त न्यायदृष्टान्त हस्तगत प्रकरण पर पूर्णतया चस्पा होते हैं।
प्रकरण में प्रस्तुत विवरण से यह स्पष्ट होता है कि वाहन के अस्थाई पंजीयन के एक माह बाद स्थाई पंजीयन करवाना आवष्यक होता है। परिवादी द्वारा वाहन दिनांक 25.02.2013 को खरीदना बताया गया है तथा पंजीयन दिनांक 26.07.2013 को करवाया गया है, जो वाहन खरीदने के लगभग चार माह बाद कराया गया है । फिटनेष दिनांक 25.07.2013 को बना है। दुर्घटना दिनांक 09.04.2013 को घटित हुई है। इस तथ्य को स्वंय परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में स्वीकार किया है कि वक्त घटना परिवादी के पास वाहन की आर.सी. व फिटनेस नहीं था। इस प्रकार यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि वाहन मालिक के पास जो रजिस्ट्रेषन सर्टिफिकेट एवं फिटनेस था, वह वक्त दुर्घटना वैध एवं प्रभावी नहीं था। बीमा पालिसी की शर्तो का उल्लंघन होने से उपरोक्त न्यायदृष्टांतों की रोषनी में विपक्षीगण बीमा कम्पनी का क्षतिपूर्ति राषि अदायगी के लिये किसी भी तरह से उत्तरदायित्व आयद नहीं होता है।
अतः उपरोक्त विवेचन के फलस्वरूप परिवादी की ओर से प्रस्तुत यह परिवाद पत्र खारिज किए जाने योग्य है, जो एतद्द्वारा खारिज किया जाता है।
पक्षकारान खर्चा मुकदमा अपना-अपना वहन करेगें।
निर्णय आज दिनांक 04.03.2016 को लिखाया जाकर मंच द्धारा सुनाया गया।