Uttar Pradesh

Muradabad-II

CC/136/2015

Shri Rajesh Kumar - Complainant(s)

Versus

The New India Insurance Company Pvt. Ltd. - Opp.Party(s)

12 Apr 2018

ORDER

न्यायालय जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम-द्वितीय, मुरादाबाद

परिवाद संख्‍या- 136/2015  

राजेश कुमार पुत्र श्री भोपाल सिंह निवासी मौहल्‍ला प्रीतम नगर लाइनपार मुरादाबाद थाना मझोला मुरादाबाद।                                      …....परिवादी

बनाम

1-मण्‍डलीय प्रबनधक दि न्‍यू इंडिया इंश्‍योरेंस कंपनी लि. मण्‍डलीय कार्यालय सिविल लाइन्‍स, मुरादाबाद।

2-महाप्रबन्‍धक दि न्‍यू इंडिया इंश्‍योरेंस कंपनी लि. मुख्‍य कार्यालय 37 एम जी रोड फोर्ड मुम्‍बई-400001                                      ….............विपक्षीगण

वाद दायरा तिथि: 30-10-2015                                  निर्णय तिथि: 12.04.2018         

उपस्थिति

श्री पवन कुमार जैन, अध्‍यक्ष

श्री सत्‍यवीर सिंह, सदस्‍य

 (श्री पवन कुमार जैन, अध्‍यक्ष द्वारा उद्घोषित)

निर्णय

  1. इस परिवाद के माध्‍यम से परिवादी ने यह अनुतोष मांगा है कि विपक्षीगण से उसे चोरी गये वाहन की कीमत और आर्थिक क्षति के रूप में अंकन-8,00,000/-रूपये 18 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज सहित दिलाये जायें। परिवाद व्‍यय परिवादी ने अतिरिक्‍त मांगा है।    
  2. संक्षेप में परिवाद कथन इस प्रकार हैं कि परिवादी महिन्‍द्रा मैक्‍स पिकअप गाड़ी सं.-यूपी-21एएन-6112 का पंजीकृत स्‍वामी है। उक्‍त वाहन विपक्षीगण से दिनांक   24-5-2012 से 23-5-2013 की अवधि हेतु बीमित था। बीमा अवधि में दिनांक   05-5-2013 को उक्‍त वाहन रात्रि लगभग 11.30 बजे परिवादी के घर के सामने से चोरी हो गया। तलाश करने पर वाहन नहीं मिला। अगले दिन थाना मझोला में परिवादी ने चोरी की रिपार्ट दर्ज करायी। विवेचना में वाहन व अभियुक्‍त का कोई पता नहीं चला, विवेचक ने अंतिम रिपोर्ट लगा दी, जो न्‍यायालय द्वारा स्‍वीकार की जा चुकी है। परिवादी के अनुसार उसके चोरी गये वाहन की कीमत 7,50,000/-रूपये थी। परिवादी ने क्‍लेम प्राप्‍त करने हेतु विपक्षीगण के अनेक चक्‍कर लगाये किन्‍तु उसे क्‍लेम का भुगतान नहीं किया गया। परिवादी ने नोटिस भी दिया किन्‍तु विपक्षीगण ने कोई सुनवाई नहीं की। परिवादी ने यह कहते हुए कि विपक्षीगण के कृत्‍य सेवा में कमी हैं, परिवाद में अनुरोधित अनुतोष दिलाये जाने की प्रार्थना की।
  3. परिवादी ने परिवाद के साथ बीमा सर्टिफिकेट, चोरी गये वाहन की आर.सी., प्रदूषण जांच प्रमाण पत्र, अपना ड्राईविंग लाइसेंस, रोड टैक्‍स जमा करने की रसीद, पुलिस द्वारा प्रेषित फाईनल रिपोर्ट, फाईनल रिपोर्ट स्‍वीकार किये जाने संबंधी न्‍यायालय के आदेश, थाना मझोला पर दर्ज करायी गई एफ.आई.आर., फाईनेंसर द्वारा योजित आर्बीट्रेशन वाद में पारित अवार्ड, विपक्षीगण को भेजे गये नोटिस और अपने आधार कार्ड की नकलों को दाखिल किया। इसके अतिरिक्‍त नोटिस भेजने की असल रसीदों को भी परिवादी ने दाखिल किया। ये प्रपत्र पत्रावली के कागज सं.-3/9 लगायत 3/31 हैं।
  4. विपक्षीगण की ओर से प्रतिवाद पत्र कागज सं.-9/1 लगायत 9/5 दाखिल हुआ, जिसमें परिवाद कथनों को असत्‍य एवं आधारहीन बताते हुए कहा गया है कि परिवादी को कोई वाद कारण उत्‍पन्‍न नहीं हुआ। विशेष कथनों में कहा गया कि परिवादी द्वारा दर्ज करायी गई एफआईआर के अवलोकन से स्‍वत: प्रकट है कि परिवादी ने अपना वाहन घर से लगभग 200 गज दूर खड़ा किया था, जो पार्किंग स्‍थान नहीं है। परिवादी चोरी गये वाहन की देखभाल एवं उसको सुरक्षित रखने में लापरवाह रहा, उसने बीमा कंपनी को भी चोरी की सूचना नहीं दी। एफआईआर भी चोरी के लगभग 12 घण्‍टे बाद दर्ज करायी। इस प्रकार परिवादी ने बीमा पालिसी की शर्तों का उल्‍लंघन किया। विपक्षीगण ने परिवाद को खारिज किये जाने की प्रार्थना की।
  5. परिवादी ने अपना साक्ष्‍य शपथपत्र कागज सं.-15/1 लगायत 15/2 दाखिल किया।
  6. विपक्षीगण की ओर से बीमा कंपनी के वरिष्‍ठ मण्‍डलीय प्रबन्‍धक श्री पंकज अग्रवाल का साक्ष्‍य शपथपत्र कागज सं.-20/1 लगायत 20/5 दाखिल हुआ, जिसके साथ बतौर संलग्‍नक बीमा कंपनी के इनवेस्‍टीगेटर की जांच रिपोर्ट दाखिल की गई, जो पत्रावली का कागज सं.-20/6 लगायत 20/12 हैं।
  7. दोनों पक्षों की ओर से लिखित बहस दाखिल हुई।
  8. हमने पक्षकारों के विद्वान अधिवक्‍तागण के तर्कों को सुना और पत्रावली का अवलोकन किया।
  9. परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि विपक्षीगण ने परिवादी का बीमा क्‍लेम निस्‍तारित न करके सेवा में कमी की है, परिवादी विपक्षीगण के कार्यालय के चक्‍कर काट-काटकर थक चुका है। उनका यह भी तर्क है कि विपक्षीगण के सर्वेयर ने परिवादी से जिन कागजात की मांग की थी, वे कागजात परिवादी ने यथासंभव उनको उपलब्‍ध करा दिये थे, इसके बावजूद पत्र दिनांकित 05-4-2016 (पत्रावली का कागज सं.-29/6) द्वारा उक्‍त पत्र में उलिलखित प्रपत्र परिवादी से मांगे जाने का कोई औचित्‍य नहीं था। परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता ने यह भी कहा कि गाड़ी चोरी होने के तत्‍काल बाद परिवादी ने थाना मझोला पर घटना की रिपोर्ट दर्ज करा दी थी और बिना किसी अनावश्‍यक देरी के बीमा कंपनी को भी सूचना दे दी थी। इसके बावजूद परोक्ष उद्देश्‍य की पूर्ति हेतु विपक्षीगण ने परिवादी के दावे का निस्‍तारण नहीं किया। उन्‍होंने यह भी कहा कि चोरी के समय परिवादी ने प्रश्‍नगत वाहन लापरवाही से खड़ा कर रखा था, विपक्षीगण का ऐसा कथन नितान्‍त असत्‍य एवं आधारहीन है। परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता ने परिवाद में अनुरोधित अनुतोष स्‍वीकार किये जाने की प्रार्थना की।
  10. विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्‍ता ने प्रतिउत्‍तर में कहा कि परिवादी द्वारा दर्ज करायी गई एफआईआर के अवलोकन से स्‍वत: स्‍पष्‍ट है कि अभिकथित चोरी के समय परिवादी की गाड़ी उसके घर से लगभग 200 गज दूर खड़ी थी। विपक्षीगण का तर्क है कि परिवादी ने गाड़ी को खड़ा करने में लापरवाही बरती और उसने चोरी की सूचना बीमा कंपनी को लगभग 15 दिन बाद दी। उनका यह भी तर्क है कि बार-बार अनुरोध के बावजूद परिवादी ने इनवेस्‍टीगेटर को उनके द्वारा मांगे गये प्रपत्र उपलब्‍ध नहीं कराये। अपने इस तर्क के समर्थन में विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा इनवेस्‍टीगेटर की जांच रिपोर्ट के साथ दाखिल प्रपत्र कागज सं.-20/10 लगायत 20/12 और पत्र कागज सं.-29/6 दिनांकित 05-4-2016 की ओर हमारा ध्‍यान आकर्षित किया।
  11. हमने दोनों पक्षों की ओर से प्रस्‍तुत तर्कों के प्रकाश में पत्रावली पर उपलब्‍ध साक्ष्‍य सामग्री का तथ्‍यात्‍मक विश्‍लेषण तथा विधिक मूल्‍यांकन किया।
  12. पत्रावली में अवस्थित प्रपत्रों से प्रकट है कि परिवादी ने दिनांक 06-5-2013 को थाना मझोला जिला मुरादाबाद पर अपनी पिकअप गाड़ी सं.-यूपी-21एएन-6112 चोरी हो जाने की रिपोर्ट दर्ज करायी थी। प्रथम सूचना रिपोर्ट में उल्‍लेख है कि परिवादी की यह गाड़ी दिनांक 05-5-2013 को रात्रि लगभग 11.30 बजे उस समय चोरी हुई, जब वह परिवादी के घर से लगभग 200 गज दूर सड़क के सामने खड़ी हुई थी, प्रकट है कि चोरी की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने में परिवादी ने कोई विलम्‍ब नहीं किया। पत्रावली में जो प्रपत्र दाखिल हैं, उनसे प्रकट है कि चोरी के इस मामले में विवेचना के बाद पुलिस के विवेचक ने फाईनल रिपोर्ट प्रेषित की और यह निष्‍कर्षित किया कि परिवादी की चोरी गई गाड़ी का काफी प्रयास के बावजूद पता नहीं चल सका। विवेचक की यह फाईनल रिपोर्ट न्‍यायालय द्वारा स्‍वीकार हो चुकी है। इस प्रकार दिनांक 05-5-2013 की रात्रि लगभग 11.30 बजे परिवादी की गाड़ी उसके घर के सामने से चोरी होना प्रमाणित है।
  13. विपक्षीगण के इनवेस्‍टीगेटर, श्री आशीष सिंघल की जांच रिपोर्ट पत्रावली का कागज सं.-20/6 लगायत 20/12 है। इनवेस्‍टीगेटर ने इस जांच रिपोर्ट के प्रारम्‍भ में ही यह उल्‍लेख किया है कि उन्‍होंने परिवादी की गाड़ी चोरी होने के संदर्भ में अपनी जांच दिनांक 21-5-2013 को प्रारम्‍भ की थी। प्रथम सूचना रिपोर्ट के अनुसार चोरी दिनांक 05-5-2013 की मध्‍य रात्रि में हुई थी। इस प्रकार गाड़ी चोरी होने के 16वें दिन इनवेस्‍टीगेटर ने मामले की जांच शुरू कर दी थी। प्रकट है कि बीमा कंपनी को चोरी की सूचना दिनांक 21-5-2013 को अथवा उससे पूर्व प्राप्‍त हो गई थी। प्रतिवादीगण द्वारा अपने प्रतिवाद पत्र के पैरा-15 में यह उल्‍लेख करना कि चोरी की कोई सूचना परिवादी ने उत्‍तरदाता बीमा कंपनी को नहीं दी थी, नितान्‍त असत्‍य दिखायी देता है। कदाचित विपक्षीगण को जब यह अहसास हुआ होगा कि उन्‍होंने प्रतिवाद पत्र में गाड़ी चोरी की सूचना प्राप्‍त नहीं होने की बात असत्‍य लिखवायी है तो विपक्षीगण की और से उनके वरिष्‍ठ मण्‍डलीय प्रबन्‍धक श्री आरके अग्रवाल को अपने साक्ष्‍य शपथपत्र के पैरा-6 में यह स्‍वीकार करने के लिए बाध्‍य होना पड़ा कि बीमा कंपनी को चोरी की सूचना दिनांक 21-5-2013 को प्राप्‍त हुई थी।
  14. अब देखना यह है कि जब पत्रावली पर उपलब्‍ध प्रपत्रों और साक्ष्‍य सामग्री से परिवादी की गाड़ी दिनांक 05-5-2013 की मध्‍य रात्रि में अज्ञात चोर द्वारा चोरी कर लिया जाना प्रमाणित हो गया है और चोरी होने के इस तथ्‍य की पुष्टि विपक्षीगण के सर्वेयर ने अपनी जांच रिपोर्ट में भी कर दी है तब इस चोरी की सूचना बीमा कंपनी को विलम्‍ब से दिये जाने का क्‍या विधिक प्रभाव है।
  15. IV(2017) सीपीजे पृष्‍ठ-10(एससी), ओम प्रकाश बनाम रिलायन्‍स जनरल इंश्‍योरेंस कंपनी की निर्णयज विधि में माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा यह व्‍यवस्‍था दी गई है कि यदि वाहन चोरी होना प्रमाणित है तो मात्र इस आधार पर कि चोरी की सूचना बीमा कंपनी को विलम्‍ब से दी गई है, परिवादी का क्‍लेम अस्‍वीकृत नहीं किया जाना चाहिए। माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने निर्णय के पैरा-11 में यह भी संवीक्षण किया है कि वाहन चोरी के मामले में वाहन स्‍वामी से यह अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए कि वह अपने चोरी गये वाहन को तलाश करने के बजाय पहले सीधा जाकर बीमा कंपनी को सूचना दे, स्‍वाभाविक रूप से पहले वह अपने वाहन को तलाश करेगा।  ओम प्रकाश की उक्‍त रूलिंग में माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा निम्‍न व्‍यवस्‍था दी गई है-

         “The condition regarding the delay shall not be a shelter to repudiate the insurance claims which have been otherwise proved to be genuine. It needs no emphasis that the Consumer Protection Act aims at providing better protection of the interest of consumers. It is a beneficial legislation that deserves liberal construction. This laudable object should not be forgotten while considering the claims made under the Act”.

  1. ओम प्रकाश की उपरोक्‍त रूलिंग वर्तमान मामले के तथ्‍यों पर पूर्णतया लागू होती है।
  2. विपक्षीगण की ओर से परिवादी को भेजे गये पत्र दिनांकित 05-4-2016 (पत्रावली का कागज सं.-29/6) में परिवादी से जिन प्रपत्रों की मांग की गई, उसके संदर्भ में भी पत्रावली पर उपलब्‍ध अभिलेखों को देखा जाना आवश्‍यक है। इस पत्र में विपक्षीगण ने परिवादी को सूचित किया है कि वह पत्र प्राप्ति के 15 दिन के भीतर चोरी गयी गाड़ी की रजिस्‍ट्रेशन बुक/ड्राईवर का डीएल/रूट परमिट/लोकल चालान/टैक्‍स टोकन, पुलिस की फाईनल रिपोर्ट, चोरी गई गाड़ी की ओरिजनल चाबियां, फार्म सं.-29, 30 एवं फार्म सं.-35, ड्राईविंग लाइसेंस का एक्‍सट्रक्‍ट तथा गाड़ी की पर्चेज इंवायस उपलब्‍ध कराये अन्‍यथा उसकी क्‍लेम पत्रावली क्‍लोज की जा सकती है।  
  3. बीमा कंपनी के इनवेस्‍टीगेटर की जांच रिपोर्ट में यह लिखा है कि जांच के दौरान इनवेस्‍टीगेटर को परिवादी द्वारा गाड़ी की आर.सी. की प्रति उपलब्‍ध करायी गई थी, जिसे उन्‍होंने मिलान करने पर सही पाया था। इनवेस्‍टीगेटर की जांच रिपोर्ट में यह भी उल्‍लेख है कि गाड़ी की मूल आर.सी. गाड़ी के साथ चोरी हो गई है। स्‍पष्‍ट है कि मूल आरसी उपलब्‍ध कराने का परिवादी के पास अब कोई अवसर नहीं है। आरसी की नकल उसने परिवाद के साथ फोरम के समक्ष भी दाखिल की है। परिवादी ने अपने ड्राईविंग लाइसेंस की नकल परिवाद के साथ दाखिल कर रखी है। चूंकि गाड़ी जब चोरी हुई तब वह खड़ी हुई थी, ऐसी दशा में ड्राईविंग लाइसेंस अथवा रूट परमिट परिवादी से मांगे जाने का कोई औचित्‍य हमें दिखायी नहीं देता। दिनांक 31-5-2013 तक का रोड टैक्‍स परिवादी ने जमा कर रखा है, यह तथ्‍य परिवाद के साथ परिवादी द्वारा दाखिल टैक्‍स की रसीद की नकल कागज सं.-3/13 से प्रकट है। पुलिस द्वारा चोरी के इस मामले में जो फाईनल रिपोर्ट लगायी गई थी, उसकी प्रमाणित प्रति और न्‍यायालय द्वारा फाईनल रिपोर्ट स्‍वीकार किये जाने संबंधी आदेश की प्रमाणित प्रति परिवाद के साथ परिवादी ने फोरम के समक्ष दाखिल की थीं, जो पत्रावली पर उपलब्‍ध हैं। जहां तक चोरी गई गाड़ी की चाबियों का प्रश्‍न है, बीमा कंपनी के इनवेस्‍टीगेटर ने अपनी जांच रिपोर्ट में यह लिखा है कि जांच के दौरान परिवादी ने उनके समक्ष गाड़ी की दोनों चाबियां प्रस्‍तुत की थीं। जहां तक फार्म सं.-29, 30 एवं फार्म सं.-35 का प्रश्‍न है, ये कौन से फार्म हैं और बीमा दावे के निस्‍तारण के समय ये फार्म उपलब्‍ध कराया जाना क्‍यों आवश्‍यक था, यह बीमा कंपनी की ओर से कहीं स्‍पष्‍ट नहीं किया गया है। ड्राईविंग लाइसेंस का एक्‍सट्रक्‍ट ड्राईविंग लाइसेंस की नकल जो पत्रावली पर पूर्व से दाखिल है, में उपलब्‍ध है। चोरी गई गाड़ी आरटीओ कार्यालय मुरादाबाद में पंजीकरण सं.-यूपी-21एएन-6112 पर दिनांक 08-6-2012 से पंजीकृत है। ऐसी दशा में परिवादी से गाड़ी की पर्चेज इंवायस मांगे जाने का क्‍या औचित्‍य था, यह कहीं स्‍पष्‍ट नहीं है। विपक्षी का प्रतिवाद पत्र पत्रावली में दिनांक 10-02-2016 को दाखिल हो गया था। परिवादी को प्रपत्र उपलब्‍ध कराये जाने हेतु जो पत्र बीमा कंपनी ने भेजा था, वह प्रतिवाद पत्र दाखिल कर दिये जाने के दो माह बाद अर्थात दिनांक 05-4-2016 का है। पत्रावली में पूर्व से उपलब्‍ध अभिलेखों तथा बीमा कंपनी के इनवेस्‍टीगेटर की जांच रिपोर्ट में उल्लिखित तथ्‍यों के दृष्टिगत परिवादी से पत्र दिनांकित 05-4-2016 (पत्रावली का कागज सं.-29/6) के माध्‍यम से प्रपत्र मांगे जाने का कदाचित कोई औचित्‍य नहीं था। पत्रावली में जो अभिलेख एवं साक्ष्‍य सामग्री उपलब्‍ध  है, उसके दृष्टिगत हमारे विनम्र अभिमत में परिवादी का बीमा दावा रोके जाने का हमे कोई औचित्‍य दिखायी नहीं देता है, उसका बीमा दावा गलत तरीके से लंबित रखा गया।
  4. विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का यह भी तर्क है कि अपने घर से लगभग 200 गज दूर गाड़ी खड़ी करके परिवादी ने लापरवाही का परिचय दिया है। इस बात को सिद्ध करने का उत्‍तरदायित्‍व बीमा कंपनी पर था कि वह फोरम को यह दिखाती कि जिस स्‍थल पर परिवादी ने गाड़ी खड़ी की थी, वह सुनसान जगह है और वहां पर वाहन खड़ा किया जाना असुरक्षित है। अपने इस उत्‍तरदायित्‍व का निर्वहन बीमा कंपनी नहीं कर पायी। फिर भी यदि तर्क के तौर पर यह मान भी लिया जाये कि परिवादी ने गाड़ी को खड़ी करने में लापरवाही बरती थी, तब भी परिवादी का बीमा दावा पूर्ण रूप से अस्‍वीकृत नहीं किया जाना चाहिए। हमारे इस मत की पुष्टि माननीय राष्‍ट्रीय उपभोक्‍ता  आयोग, नई दिल्‍ली द्वारा I(2018)सीपीजे पृष्‍ठ 80(एनसी), न्‍यू इंडिया इंश्‍योरेंस कंपनी लि् बनाम प्रवीन कृष्‍णा टाकरी के मामले में दी गई विधि व्‍यवस्‍था से होती है। प्रवीन कृष्‍णा के मामले में तथ्‍य यह थे कि चोरी के समय गाड़ी खुले स्‍थान में खड़ी हुई थी, गाड़ी के दरवाजे में लॉक तक नहीं था और गाड़ी मालिक ने गाड़ी की सुरक्षा हेतु किसी को गाड़ी पर छोड़ भी नहीं रखा था। इन परिस्थितियों में गाड़ी चोरी हो जाने पर भी माननीय राष्‍ट्रीय उपभोक्‍ता आयोग ने वाहन स्‍वामी को गाड़ी की बीमित राशि का 75 प्रतिशत बतौर क्‍लेम बीमा कंपनी से दिलाया। ऐसी दशा में मामले के तथ्‍यों और परिस्थितियों तथा प्रवीण कृष्‍णा की उपरोक्‍त निर्णयज विधि में दी गई व्‍यवस्‍था के आलोक में विपक्षीगण से परिवादी को चोरी गये वाहन की बीमित राशि का 75 प्रतिशत दिलाया जाना न्‍यायोचित दिखायी देता है। बीमा सर्टिफिकेट की नकल पत्रावली का कागज सं.-3/9 है, जिसके अनुसार चोरी गये वाहन की बीमित राशि अंकन-5,06,274/-रूपये है। बीमित राशि का 75 प्रतिशत अंकन-3,79,705.50/-रूपये होते हैं। परिवादी को विपक्षीगण से अंकन-3,79,705/-रूपये 50 पैसे की धनराशि 9 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज सहित दिलाया जाना और अंकन-2500/-रूपये परिवाद व्‍यय अतिरिक्‍त दिलाया जाना उचित दिखायी देता है। तद्नुसार परिवाद स्‍वीकार किये जाने योग्‍य है।  
  5.  

परिवाद योजित किये जाने की तिथि से वास्‍तविक वसूली की तिथि तक की अवधि हेतु 9 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज सहित अंकन-3,79,705.50(तीन लाख उन्‍नासी हजार सात सौ पाँच रूपये पचास पैसे) रूपये की वसूली हेतु यह परिवाद परिवादी के पक्ष में विपक्षीगण के विरूद्ध स्‍वीकार किया जाता है। विपक्षीगण से परिवादी अंकन-2500/-रूपये परिवाद व्‍यय अतिरिक्‍त पाने का अधिकारी होगा। इस आदेशानुसार दो माह में उपरोक्‍त धनराशि का भुगतान परिवादी को किया जाये।

 

(सत्‍यवीर सिंह)(पवन कुमार जैन)

  •       अध्‍यक्ष

आज यह निर्णय एवं आदेश हमारे द्वारा हस्‍ताक्षरित तथा दिनांकित होकर खुले न्‍यायालय में उद्घोषित किया गया।

 

(सत्‍यवीर सिंह)(पवन कुमार जैन)

  •      अध्‍यक्ष

दिनांक: 12-04-2018

 

 

 

 

 

 

 

 

 

परिवाद सं.-136/2015

  1. .04.2018

  निर्णय घोषित। आदेश हुआ कि परिवाद योजित किये जाने की तिथि से वास्‍तविक वसूली की तिथि तक की अवधि हेतु 9 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज सहित अंकन-3,79,705.50(तीन लाख उन्‍नासी हजार सात सौ पाँच रूपये पचास पैसे) रूपये की वसूली हेतु यह परिवाद परिवादी के पक्ष में विपक्षीगण के विरूद्ध स्‍वीकार किया जाता है। विपक्षीगण से परिवादी अंकन-2500/-रूपये परिवाद व्‍यय अतिरिक्‍त पाने का अधिकारी होगा। इस आदेशानुसार दो माह में उपरोक्‍त धनराशि का भुगतान परिवादी को किया जाये।

 

  • ,                                                        अध्‍यक्ष,

 

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