//जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम बिलासपुर (छ0ग0)//
प्रकरण क्रमांक:- सी.सी./2009/199
प्रस्तुति दिनांक:- 01/08/2009
श्रीमती गोपिका बाई जायसवाल,
पति स्व.श्री आर.ए.जायसवाल,
उम्र 65 वर्ष,
निवासिनी बंगालीपारा सरकण्डा
थाना सरकंडा
तह0 व जिला बिलासपुर छ0ग0 ............आवेदिका/परिवादी
(विरूद्ध)
दि न्यू इंडिया इश्योरेंस कंपनी लिमिटेड,
द्वारा श्रीमान् प्रबंधक महोदय,
दि न्यू इंडिया इश्योरेंस कंपनी लिमिटेड
राजीव प्लाजा के सामने,
बिलासपुर ..........अनावेदक/विरोधी पक्षकार
///आदेश///
(आज दिनांक 04/02/2015 को पारित)
1. आवेदिका श्रीमती गोपिका बाई जायसवाल ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 12 के अंतर्गत यह परिवाद अनावेदक बीमा कंपनी के विरूद्ध कदाचरण का व्यवसाय कर सेवा में कमी के लिए पेश किया है और अनावेदक बीमा कंपनी से वाहन मरम्मत राशि 36,600/.रु0 को ब्याज एवं क्षतिपूर्ति के साथ दिलाए जाने का निवेदन किया है।
2. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि आवेदिका का वाहन क्रमांक सी0जी0 10 ए.6856 दिनांक 25.07.2007 को मुंगेली से बिलासपुर आते समय ग्राम बिनौरी के पास एक जीप चालक के अनियंत्रित चाल के कारण टकराकर बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया, उक्त घटने की रिपोर्ट थाना तखतपुर में दर्ज कराई गई । आगे परिवाद में यह अभिकथित किया गया है कि घटना दिनांक उक्त वाहन अनावेदक बीमा कंपनी के यहां बीमित होने के कारण आवेदिका द्वारा घटने की सूचना तत्काल अनावेदक बीमा कंपनी को दी गई और अनावेदक बीमा कंपनी क निर्देश पर वाहन को दुरूस्त करवाई और उसका मरम्मत बिल 36,600/.रु0 अनावेदक बीमा कंपनी के समक्ष प्रस्तुत की, जिसका कोई भुगतान अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा नहीं किया गया । अतः उसने अपने अधिवक्ता के जरिये दिनांक 04.02.2009 को नोटिस प्रेषित करते हुए अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा उसका कोई जवाब नहीं दिये जाने पर यह परिवाद प्रस्तुत करना बताई है अनावेदक बीमा कंपनी से वांछित अनुतोष दिलाए जाने की मांग की है।
3. अनावेदक बीमा कंपनी जवाबदावा पेश कर आवेदिका के परिवाद का विरोध इस आधार पर किया कि आवेदिका द्वारा न तो उन्हें दुर्घटना की कोई जानकारी दी गई और न कोई दावा प्रपत्र भरा गया उन्होंने इस बात से इंकार किया कि उन्होंने आवेदिका को वाहन दुरूस्त कराने पर भुगतान करने का आश्वासन दिया था, उनका कथन है कि यदि आवेदिका द्वारा दुर्घटना की सूचना तत्काल दी जाती तो उनके द्वारा सर्वेयर नियुक्त किया जाता और उसकी रिपोर्ट के आधार पर बीमा दावे का निराकरण किया जाता, किंतु इस मामले में ऐसा कुछ नहीं हुआ। उक्त आधार पर उन्होंने आवेदिका को कोई वादकारण प्राप्त नहीं होना अभिकथित किया। साथ ही प्रकट किया कि उनके द्वारा सेवा में किसी तरह की कोई कमी नहीं की गई, फलस्वरूप परिवाद निरस्त किए जाने का निवेदन किया है।
4. उभयपक्ष अधिवक्ता का तर्क सुना गया । प्रकरण का अवलोकन किया गया।
5. देखना यह है कि क्या आवेदिका अनावेदक बीमा कंपनी से वांछित अनुतोष प्राप्त करने की अधिकारिणी है ?
सकारण निष्कर्ष
6. आवेदिका का दुर्घटनाग्रस्त वाहन क्रमांक सी.जी. 10 ए 6856 घटना दिनांक को अनावेदक बीमा कंपनी के यहाॅं बीमित होने का तथ्य मामले में विवादित नहीं है ।
7. आवेदिका के अनुसार उसने दुर्घटना की सूचना तत्काल अनावेदक बीमा कंपनी को देते हुए बीमा दावे की मांग की थी, किंतु अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा उसे वाहन मरम्मत उपरांत बिल पेश करने पर भुगतान दिए जाने का आश्वासन दिया गया। अतः उसने अपने वाहन का मरम्मत करवाकर 36,600/-रू. का बिल अनावेदक बीमा कंपनी के समक्ष प्रस्तुत किया, किंतु बीमा कंपनी द्वारा उसका भुगतान न कर कदाचरण करते हुए सेवा में कमी की गई।
8. इसके विपरीत अनावेदक बीमा कंपनी का कथन है कि आवेदिका द्वारा न तो उन्हें दुर्घटना की कोई जानकारी दी गई और न कोई दावा प्रपत्र भरा गया। यदि आवेदिका द्वारा दुर्घटना की सूचना तत्काल दी जाती तो उनके द्वारा सर्वेयर नियुक्त किया जाता, जो स्पाॅट पर जाकर वाहन का सर्वे करता और इस्टीमेट तैयार करता तथा जिसके आधार पर पाॅलिसी शर्तो के अनुसार दावे का निराकरण किया जाता, जबकि इस मामले में ऐसा कुछ नहीं हुआ, जिसके कारण आवेदिका का दावा निराकरण किए जाने का कोई प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता। उक्त आधार पर बीमा कंपनी आवेदिका को वादकारण उत्पन्न होना तथा अपने द्वारा सेवा में कमी किए जाने से इंकार किया है।
9. आवेदिका यद्यपि अपने परिवाद में यह अभिकथन की है कि उसके द्वारा अनावेदक बीमा कंपनी को तत्काल सूचना दी गई थी, किंतु इस संबंध में उसके द्वारा कोई साक्ष्य पेश नहीं किया गया है, बल्कि उसके द्वारा दिनांक 15.10.2008 को प्रेषित पत्र के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि आवेदिका द्वारा घटने की सूचना अनावेदक बीमा कंपनी को लगभग तीन माह बाद दी गई थी। आवेदिका के अनुसार दुर्घटना में उसका वाहन बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुआ था, जिसकी मरम्मत में उसे 36,600/-रू. व्यय आया था, जबकि आवेदिका की ओर से ही संलग्न प्रथम सूचना रिपोर्ट के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि दुर्घटना में आवेदिका का वाहन मामूली रूप से क्षतिग्रस्त हुआ था। प्रकरण में क्षति के आंकलन के संबंध में कोई सर्वे रिपोर्ट संलग्न नहीं है।
10. इस संबंध में विवाद नहीं किया जा सकता कि बीमा पाॅलिसी एक संविदा होता है, जिसके तहत दोनों पक्षों की जिम्मेदारी होती है, जहाॅं बीमाकर्ता पाॅलिसी से रिस्क कव्हर करता है, वही दूसरे पक्ष को भी उसकी शर्तों के बाहर क्लेम करने का कोई अधिकार नहीं बनता, उसे भी पाॅलिसी की स्पष्ट बताई गई निबंधनो का पालन करना होता है तथा पाॅलिसी की शर्त भंग करने की दशा में बीमा कंपनी को यह अधिकार होता है कि वह बीमा पाॅलिसी को भंग कर दे।
11. प्रश्नगत मामले में जैसा कि यह पाया गया है आवेदिका द्वारा घटना की तत्काल सूचना अनावेदक बीमा कंपनी को नहीं दी गई, बल्कि लगभग तीन माह बाद सूचना दी गई, जिसके कारण अनावेदक बीमा कंपनी दुर्घटना उपरांत क्षतिग्रस्त वाहन का सर्वे कराने के महत्वपूर्ण अधिकार से वंचित हो गया। फलस्वरूप प्रकरण में प्रश्नाधीन वाहन को वास्तविक क्षति पहुॅचने का तथ्य सामने नहीं आ पाया और यह सब आवेदिका के पाॅलिसी शर्तों के उल्लंघन में तत्काल बीमा कंपनी को सूचना नहीं दिए जाने के कारण हुआ।
12. उपरोक्त कारणों से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि इस मामले में आवेदिका द्वारा पालिसी शर्तों का उल्लंघन करते हुए बीमा कंपनी को घटने की तत्काल सूचना नहीं दी गई, जिसके कारण अनावेदक बीमा कंपनी वाहन की क्षति के संबंध में वाहन का सर्वे कराने के महत्वपूर्ण अधिकार से वंचित हो गया। ऐसी स्थिति में अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा आवेदिका का बीमा दावा इंकार करने को सेवा में कमी नहीं ठहराया जा सकता, अतः आवेदिका का परिवाद निरस्त किया जाता है ।
13. उभयपक्ष अपना अपना वादव्यय स्वयं वहन करेंगे ।
आदेश पारित
(अशोक कुमार पाठक) (प्रमोद वर्मा)
अध्यक्ष सदस्य