जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 03/2014
प्रेमरतन पुत्र श्री ताराचन्द, जाति-ब्राह्मण, निवासी-रोहिणी, हाल निवासी-मरूधर नगर, नागौर, तहसील व जिला-नागौर (राज.)। -परिवादी
बनाम
1. दी न्यू इंडिया इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड, जरिये षाखा प्रबन्धक, षाखा कार्यालय, दिल्ली दरवाजा के बाहर, डीडवाना रोड, नागौर (राज.)।
2. यूनियन बैक षाखा कार्यालय-सांखला सदन, विजय बल्लभ चैक, नागौर जरिये षाखा प्रबन्धक।
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री विक्रम जोषी, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री कालूराम सांखला एवं श्री पवन श्रीमाली, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थीगण।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
निर्णय दिनांक 31.05.2016
1. यह परिवाद अन्तर्गत धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 2 से वाहन महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा स्काॅर्पियो (चैसिस नम्बर सी.2ई.48567, इंजन नम्बर एम.एच.सी.4ई.41416) जून, 2012 में खरीदा। जिसका अप्रार्थी संख्या 1 को 30,266/- रूपये प्रीमियम देकर दिनांक 06.06.2012 से दिनांक 05.06.2012 तक की अवधि के लिए बीमा करवाया गया। जिसके तहत बीमा कम्पनी ने वाहन में 10,22,756/- रूपये तक की क्षति की पूर्ति के लिए उतरदायित्व लिया गया। बीमा पाॅलिसी की वैधता अवधि में दिनांक 14.06.2012 को परिवादी का वाहन दुर्घटनाग्रस्त होकर पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त हो गया। जिसके सम्बन्ध में तत्काल अप्रार्थीगण को सूचना उपलब्ध करवा दी गई, जिस पर अप्रार्थीगण द्वारा स्पाॅट सर्वे किया गया तथा अप्रार्थीगण के निर्देषानुसार ही परिवादी वाहन को महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा के अधिकृत सर्विस सेंटर पर रिपेयर हेतु ले गया। जहां पर परिवादी के उक्त वाहन की रिपेयरिंग व पूर्णतया ठीक होने में कुल 14,57,762/- रूपये खर्च होना बताया। इस पर परिवादी ने वाहन एवं दुर्घटना से सम्बन्धित आवष्यक दस्तावेज दुर्घटना दावा प्रपत्र आदि अप्रार्थी बीमा कम्पनी को पेष कर उक्त वाहन के पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त होने से सम्पूर्ण बीमाधन राषि उपलब्ध कराने का आग्रह करते हुए कहा कि उसका वाहन अप्रार्थी संख्या 2 के यहां से फाईनेंस है, इसलिए बीमा धन की राषि अप्रार्थी संख्या 2 को अदा करें। लेकिन वाहन पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त होने के बावजूद अप्रार्थी संख्या 1 ने अप्रार्थी संख्या 2 को या परिवादी को बीमाधन अदा नहीं किया। अप्रार्थी संख्या 2 ने भी समय-समय पर अप्रार्थी संख्या 1 से सम्पूर्ण स्थिति स्पश्ट करने का निवेदन किया लेकिन अप्रार्थी संख्या 1 ने इस सम्बन्ध में आवष्यक कार्रवाई नहीं की। अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने अपने सर्वेयर सुनील माथुर से उक्त वाहन के सम्बन्ध में रिपोर्ट प्राप्त की, जिसमें उसने 6,07,910/- रूपये का लोष होना अंकित किया, जो मनमाने ढग से अंकित किया गया जबकि अधिकृत सर्विस सेंटर वालों ने 14,57,762/- रूपये वाहन मरम्मत में व्यय होना बताया, जिसे बीमा कम्पनी ने किसी भी प्रकार से नहीं माना। इस तरह बीमा कम्पनी ने अपने दायित्व से बचने के आषय से गलत रिपोर्ट सर्वेयर से तैयार करवाई है तथा दिनांक 31.03.2013 के पत्र के द्वारा नाॅ क्लेम करते हुए उसकी पत्रावली बंद कर दी। बीमा कम्पनी का उक्त कृत्य अनफेयर ट्रेड प्रेक्टिस एवं सेवा दोश की तारीफ में आता हैै। अतः परिवादी को वाहन के पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त हो जाने से सम्पूर्ण बीमा राषि 10,22,756/- रूपये मय ब्याज अप्रार्थीगण से दिलाये जावे। साथ ही परिवाद में अंकितानुसार अन्य सभी अनुतोश परिवादी को दिलाये जावे।
2. अप्रार्थी संख्या 1 ने परिवाद की मद संख्या 1 से 3 में अंकित अभिकथनों को स्वीकार करते हुए परिवादी के वाहन स्काॅर्पियो का अप्रार्थी के वहां बीमित होना तथा दिनांक 14.06.2012 को इस वाहन का दुर्घटनाग्रस्त होना स्वीकार करते हुए यह बताया है कि वाहन दुर्घटनाग्रस्त होने से सम्पूर्ण नश्ट नहीं हुआ बल्कि रिपेयर होने लायक है तथा परिवादी द्वारा सूचना देने पर अप्रार्थी ने स्वतंत्र सर्वेयर से सर्वे करवाया, जिसने अपनी रिपोर्ट पेष की तब अप्रार्थी ने कई बार परिवादी को जरिये पत्र सूचित किया कि वाहन रिपेयर करवाकर बिल पेष करें लेकिन परिवादी ने वाहन ठीक नहीं करवाया तथा सम्पूर्ण बीमा राषि का भुगतान प्राप्त करने पर आमादा है, जो संभव नहीं है। यह भी बताया गया है कि सर्वेयर द्वारा परिवादी व महिन्द्रा एजेंसी के कर्मचारियों की मौजूदगी में क्षतिग्रस्त वाहन का सर्वे कर वाहन में हुई क्षति का आकलन कर रिपोर्ट तैयार की थी तथा बाद में सर्वेयर द्वारा बार-बार आग्रह करने पर भी वाहन के इंजन को नहीं खुलवाया, यदि वाहन रिपेयरिंग के लिए सर्वेयर की मौजूदगी में खुलता तो वाहन में हुई अन्य हानि का भी योग किया जा सकता था लेकिन परिवादी ने सर्वेयर की मौजूदगी में वाहन खुलवाने हेतु कोई प्रयास नहीं किया। ऐसी स्थिति में अप्रार्थी कम्पनी का कोई सेवा दोश नहीं है। यह भी बताया गया है कि यदि इंजन में कोई क्षति होती तो सर्वे के समय परिवादी एवं महिन्द्रा कम्पनी के कर्मचारी आपति कर सकते थे। अप्रार्थी ने यह भी बताया है कि वाहन सम्पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त नहीं हुआ था बल्कि रिपेयर के काबिल था एवं स्वयं परिवादी द्वारा दिनांक 01.10.2013 को लिखे पत्र में भी यही बताया है कि वाहन रिपेयर करवाने में 8,00,000/- रूपये की लागत आ रही है जिससे भी स्पश्ट है कि वाहन रिपेयर के काबिल रहा है। लेकिन बार-बार आग्रह करने के बावजूद परिवादी ने वाहन रिपेयर करवाकर कोई बिल पेष नहीं किये, ऐसी स्थिति में क्लेम बंद करने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं था। अप्रार्थी ने बताया है कि परिवादी ने गलत आधार पर परिवाद पेष किया है जो खारिज किया जावे।
3. अप्रार्थी संख्या 2 ने वाहन स्काॅर्पियो हेतु परिवादी को 9,00,000/- रूपये का ऋण स्वीकार करने के साथ ही दिनांक 14.06.2012 को इस वाहन के दुर्घटनाग्रस्त होने के तथ्य को स्वीकार करते हुए बताया है कि वाहन की क्षतिपूर्ति हेतु अप्रार्थी संख्या 2 का कोई दायित्व नहीं है। ऐसी स्थिति में परिवादी अप्रार्थी संख्या 2 के विरूद्ध कोई अनुतोश पाने का अधिकारी नहीं है।
4. बहस सुनी जाकर पत्रावली का अवलोकन किया गया। परिवादी ने अपने परिवाद के समर्थन में स्वयं का षपथ-पत्र प्रस्तुत करने के साथ ही वाहन के पंजीयन का अस्थाई प्रमाण-पत्र प्रदर्ष 1, बीमा कवर नोट प्रदर्ष 2, वाहन क्रय बिल प्रदर्ष 3, परिवादी द्वारा लिखा पत्र प्रदर्ष 4, नागौर आॅटोमोबाइल प्रा.लि. का पत्र प्रदर्ष 5, अप्रार्थी संख्या 1 को दिये गये नोटिस की प्रति प्रदर्ष 6, अप्रार्थी बीमा कम्पनी का पत्र प्रदर्ष 7, बैंक द्वारा बीमा कम्पनी को लिखा पत्र प्रदर्ष 8 एवं सर्वे रिपोर्ट प्रदर्ष 9 की फोटो प्रतियां पेष की गई। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि दुर्घटना के कारण वाहन पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त होकर रिपेयर के लायक नहीं रहा लेकिन उसके बावजूद अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने पाॅलिसी अनुसार बीमाधन की अदायगी नहीं कर क्लेम की पत्रावली बंद कर दी जो कि अप्रार्थी का अनुचित व्यवहार एवं सेवा दोश है। यह भी बताया गया है कि अप्रार्थी बीमा कम्पनी का दायित्व था कि तीन माह में क्लेम आवेदन का निस्तारण किया जाता, लेकिन अप्रार्थी द्वारा ऐसा नहीं कर सेवा दोश किया गया है। ऐसी स्थिति में परिवाद स्वीकार कर सम्पूर्ण बीमा राषि मय ब्याज व हर्जा के दिलायी जावे। उन्होंने अपने तर्कों के समर्थन निम्नलिखित न्याय निर्णय भी पेष कियेः-
(1.) 2006 सी.टी.जे. 118 (सी.पी) (एन.सी.डी.आर.सी.) नेषनल इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड बनाम रामलोक
(2.) 2012 डी.एन.जे. (सी.सी.) 38 नेषनल इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड बनाम मोहम्मद ईषाक व अन्य
5. अप्रार्थी पक्ष द्वारा भी जवाब के समर्थन में षपथ-पत्र प्रस्तुत किया गया है। अप्रार्थी संख्या 1 की ओर से सर्वेयर सुनील माथुर का पत्र प्रदर्ष ए 1 तथा स्वयं परिवादी द्वारा लिखा पत्र दिनांक 01.10.2012 प्रदर्ष ए 2 की फोटो प्रतियां पेष की गई है। अप्रार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि सर्वे रिपोर्ट एवं स्वयं परिवादी के पत्र से स्पश्ट है कि परिवादी का वाहन सम्पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त न होकर रिपेयर के लायक था लेकिन बार-बार आग्रह करने के बावजूद परिवादी ने वाहन को रिपेयर करवाकर बिल पेष नहीं किये बल्कि गलत तथ्यों के आधार पर परिवाद पेष किया है जो मय खर्चा खारिज किया जावे।
6. पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा दिये तर्कों पर मनन कर परिवादी के विद्वान अधिवक्ता की ओर से प्रस्तुत उपर्युक्त वर्णित न्याय निर्णयों में माननीय राश्ट्रीय आयोग द्वारा अभिनिर्धारित मत के परिप्रेक्ष्य में पत्रावली पर उपलब्ध समस्त सामग्री का अवलोकन किया गया। पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री से स्पश्ट है कि अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने आवष्यक प्रीमियम प्राप्त कर परिवादी के वाहन स्काॅर्पियो का बीमा किया था तथा बीमित अवधि में ही वाहन दुर्घटना होने के कारण क्षतिग्रस्त हुआ है, ऐसी स्थिति में स्पश्ट है कि परिवादी का मामला उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में आता है। परिवादी का मुख्य कथन यही है कि दुर्घटना के कारण वाहन सम्पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त होकर रिपेयर के लायक नहीं था जबकि बीमा कम्पनी की आपति है कि वाहन सम्पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त न होकर रिपेयर के लायक था लेकिन बार-बार आग्रह करने के बावजूद परिवादी ने वाहन को रिपेयर करवाकर कोई बिल पेष नहीं किये। इस सम्बन्ध में सर्वेयर रिपोर्ट के साथ-साथ स्वयं परिवादी द्वारा दिनांक 01.10.2012 को बीमा कम्पनी को लिखे पत्र का अवलोकन करें तो स्पश्ट है कि वाहन मरम्मत के लायक था। स्वयं परिवादी ने दिनांक 01.10.2012 को लिखे पत्र में स्वीकार किया है कि वाहन की मरम्मत कराने में लगभग 8,00,000/- रूपये की लागत आ रही है। ऐसी स्थिति में स्पश्ट है कि स्वयं परिवादी ने परोक्ष रूप से स्वीकार किया है कि वाहन मरम्मत योग्य था। सर्वे रिपोर्ट प्रदर्ष 9 के अनुसार दुर्घटना के कारण वाहन में हुई क्षति को पूर्ण रूप से ठीक कराने हेतु अनुमानित लागत 6,07,910.82 रूपये आना बताया गया है। यद्यपि यह सत्य है कि इस सर्वे रिपोर्ट के समर्थन में सर्वेयर का कोई षपथ-पत्र प्रस्तुत नहीं हुआ है लेकिन यह भी सत्य है परिवादी द्वारा भी वाहन को रिपेयर करवाने में आने वाली वास्तविक लागत बाबत् कोई बिल या स्पश्ट प्रलेखीय साक्ष्य पेष नहीं की गई है। ऐसी स्थिति में सर्वेयर की रिपोर्ट को पूर्ण रूप से नकारा नहीं जा सकता।
7. यह स्वीकृत स्थिति है कि परिवादी का वाहन दिनांक 14.06.2012 को दुर्घटनाग्रस्त हुआ तथा अप्रार्थी बीमा कम्पनी को सूचित किये जाने के बाद सर्वेयर ने मौके पर जाकर दुर्घटनाग्रस्त वाहन में हुई क्षति का सर्वे कर अपनी रिपोर्ट दिनांक 04.07.2012 को तैयार की, जिसे दिनांक 20.07.2012 को भेजा गया। इस सर्वे रिपोर्ट अनुसार दुर्घटनाग्रस्त वाहन की मरम्मत हेतु अनुमानित लागत 6,07,910/- रूपये बताई गई है। यह भी स्वीकृत स्थिति है कि परिवादी का वाहन बीमित अवधि के दौरान दुर्घटनाग्रस्त हुआ था लेकिन परिवादी का क्लेम आवेदन लम्बे समय तक लम्बित रखा जाकर अप्रार्थी बीमा कम्पनी के पत्र दिनांकित 31.03.2013 प्रदर्ष 7 अनुसार दावा पत्रावली बंद कर दी गई। जबकि अप्रार्थी बीमा कम्पनी का दायित्व था कि परिवादी के क्लेम आवेदन का स्पश्ट रूप से अंतिम निस्तारण तीन माह की अवधि में किया जाता। बीमा कम्पनी के पत्र प्रदर्ष 7 के अनुसार बार-बार आग्रह करने के बावजूद परिवादी द्वारा वाहन रिपेयर न करवाने के कारण क्लेम पत्रावली बंद की गई है। जबकि स्वयं अप्रार्थी बीमा कम्पनी के अधिकृत सर्वेयर की रिपोर्ट अनुसार भी परिवादी वाहन की रिपेयरिंग हेतु 6,07,910/- रूपये प्राप्त करने का अधिकारी था लेकिन बीमा कम्पनी द्वारा यह राषि भी परिवादी को प्रदान नहीं की गई। ऐसी स्थिति में परिवादी ने अप्रार्थी बीमा कम्पनी को जरिये अधिवक्ता एक नोटिस प्रदर्ष 6 भी भिजवाया तथा अंततः इस जिला मंच के समक्ष परिवाद पेष करना पडा। जिससे स्पश्ट है कि अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा किया गया व्यवहार सेवा दोश रहा है। परिणामतः परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार कर सर्वे रिपोर्ट अनुसार मरम्मत हेतु आकलन की गई अनुमानित लागत की राषि 6,07,910/- रूपये मय ब्याज परिवादी को दिलाये जाने के साथ ही परिवादी को हुई मानसिक परेषानी एवं परिवाद व्यय भी दिलाया जाना न्यायोचित होगा। जहां तक अप्रार्थी संख्या 2 यूनियन बैंक का प्रष्न है तो उसकी ओर से किसी प्रकार का सेवा दोश किया जाना प्रतीत नहीं होता है।
आदेश
8. परिवादी प्रेमरतन द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद अन्तर्गत धारा 12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 खिलाफ अप्रार्थीगण आंषिक रूप से स्वीकार किया जाकर आदेष दिया जाता है कि अप्रार्थी संख्या 1 बीमा कम्पनी परिवादी के दुर्घटनाग्रस्त वाहन स्काॅर्पियो की मरम्मत हेतु 6,07,910/- रूपये अदा करें तथा इस राषि पर आवेदन प्रस्तुत करने की दिनांक 06.01.2014 से 9 प्रतिषत वार्शिक साधारण ब्याज की दर से ब्याज भी अदा करें। यह भी आदेष दिया जाता है कि अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा किये गये सेवा दोश के कारण परिवादी को हुई मानसिक परेषानी स्वरूप 10,000/- रूपये की राषि प्रदान करने के साथ ही परिवाद व्यय के भी 5,000/- रूपये अप्रार्थी बीमा कम्पनी अदा करें।
9. अप्रार्थी संख्या 2 यूनियन बैंक की हद तक परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है।
10. आदेष की पालना एक माह में की जावे।
11. आदेष आज दिनांक 31.05.2016 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
नोटः- आदेष की पालना नहीं किया जाना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 27 के तहत तीन वर्श तक के कारावास या 10,000/- रूपये तक के जुर्माने अथवा दोनों से दण्डनीय अपराध है।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। सदस्य अध्यक्ष