Uttar Pradesh

Barabanki

CC/123/2018

Savitri Devi & Others - Complainant(s)

Versus

The New India Ins. Co. Ltd. & Others - Opp.Party(s)

Rinku Verma & Others

27 Jun 2023

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, बाराबंकी।

परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि       05.09.2018

अंतिम सुनवाई की तिथि            22.06.2023

निर्णय उद्घोषित किये जाने के तिथि  27.06.2023

परिवाद संख्याः 123/2018

1. श्रीमती सावित्री देवी उर्फ सीमा देवी उम्र लगभग 30 वर्ष पत्नी स्व0 सत्यनाम

2. जैकी उम्र लगभग 11 वर्ष पुत्र स्व0 सत्यनाम

3. महिमा उम्र लगभग 08 वर्ष पुत्री स्व0 सत्यनाम

4. मानवी उम्र लगभग 03 वर्ष पुत्री स्व0 सत्यनाम

   याची सं0-2 से 4 नाबालिग प्राकृतिक संरक्षिका याचिनी सं0-01 श्रीमती सावित्री देवी उर्फ सीमा देवी माता सगी,  

   याचीगण निवासी ग्राम-सलारपुर पोस्ट- देवां तहसील नवाबगंज जिला-बाराबंकी, उत्तर प्रदेश।

द्वारा-श्री रिन्कू वर्मा, अधिवक्ता

 

बनाम

1. दि न्यू इंडिया इंश्योरेन्स कम्पनी लि0 द्वारा मण्डल प्रबन्धक मण्डल कार्यालय द्वितीय जीवन भवन छठवां तल नवल  

    किशोर रोड हजरतगंज, लखनऊ 226005

2. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा महानिदेशक संस्थागित वित्त बीमा एवं वाह्य सहायतित परियोजना महानिदेशालय उ0 प्र0  

   लखनऊ।

3. श्रीमान जिलाधिकारी, जनपद बाराबंकी।

द्वारा-श्री जी0 सी0 निगम, अधिवक्ता

श्री एस0 के0 मौर्या, ए डी जी सी

समक्षः-

माननीय श्री संजय खरे, अध्यक्ष

माननीय श्रीमती मीना सिंह, सदस्य

माननीय श्री एस0 के0 त्रिपाठी, सदस्य

उपस्थितः परिवादी की ओर से -श्री रिन्कू वर्मा, अधिवक्ता

             विपक्षी सं0-01 की ओर से-श्री जी0 सी0 निगम, अधिवक्ता

            विपक्षी संख्या-02 की ओर से-कोई नहीं

            विपक्षी संख्या- 03 की ओर से-श्री एस0के0 मौर्या, ए.डी.जी.सी.

द्वारा -संजय खरे, सदस्य

निर्णय

            परिवादिनी ने यह परिवाद, विपक्षी के विरूद्व अंतगर्त धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 प्रस्तुत कर विपक्षी सं0-01 को उ0 प्र0 शासन द्वारा जारी शासनादेश के तहत वांछित सम्पूर्ण बीमा धनराशि रू0 5,00,000/-मय अर्थदण्ड तथा क्षतिपूर्ति व वाद व्यय दिलाये जाने का अनुतोष चाहा है।

            परिवादिनी ने परिवाद में यह अभिकथन किया है कि परिवादिनी सं0-01 मृतक सत्यनाम की पत्नी, विधिक उत्तराधिकारी, गरीब, देहाती, पूर्णतया घरेलू महिला है। मृतक सत्यनाम उम्र लगभग 33 वर्ष (मृत्यु के समय) पुत्र श्री मेड़ीलाल उपरोक्त उ0 प्र0 का खातेदार किसान, निवासी अपने परिवार का मुखिया/रोटी अर्जक एवं उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्राविधानों के अनुसार विपक्षीगण के उपभोक्ता है। दिनांक 10.01.2018 को धोखे से शराब के नाम पर स्प्रिट पिलाने के कारण सत्यनाम उम्र लगभग 33 वर्ष (मृत्यु के समय) पुत्र श्री मेड़ीलाल की आकस्मिक मृत्यु हो गई थी। मृतक सत्यनाम उत्तर प्रदेश का खातेदार किसान, अपने परिवार का मुखिया तथा रोटी अर्जक था, अतएव उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा विपक्षी संख्या-01 के माध्यम से संचालित मुख्यमंत्री किसान एवं सर्वहित दुर्घटना बीमा योजनान्तर्गत विपक्षी सं0-01 से बीमित था। उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा उ0 प्र0 के समस्त किसानों (असीमित आय सीमा), भूमिहीन कृषक, कृषि से संबंधित क्रियाकलाप करने वाले, (मत्स्य पालक, दुग्ध उत्पादक, सुअर पालक, बकरी पालक, मधुमक्खी पालक, इत्यादि) घुमन्तू परिवार, व्यापारी (जो किसी शासन योजना से आच्छादित नहीं है) वन श्रमिक, दुकानदार, फुटकर कार्य करने वाले, रिक्शा चालक, कुली एवं अन्य कार्य करने वाले, ग्रामीण क्षेत्रों अथवा शहरी क्षेत्रों के निवासी जिनकी पारिवारिक आय मु0 75,000/-प्रतिवर्ष से कम हो एवं जिनकी आयु 18 वर्ष से 70 वर्ष के मध्य है, के हित में विपक्षी संख्या-02 ने विपक्षी संख्या-01 से एक सामूहिक दुर्घटना बीमा योजना का अनुबन्ध किया था। अनुबन्ध के अनुसार मु0 5,00,000/-का दुर्घटना बीमा किया गया था। यह पालिसी दिनांक 14.09.2016 से प्रदेश में लागू है। परिवादिनी द्वारा अपने मृतक पति स्व0 सत्यनाम की आकस्मिक मृत्यु के उपरान्त निर्धारित समयावधि के भीतर समस्त आवश्यक प्रपत्र संलग्न करते हुए विपक्षी संख्या-03 के माध्यम से विपक्षी सं0-01 को नियमानुसार बीमा दावा प्रेषित करने के बाद विपक्षीगणों के कार्यालय का बराबर चक्कर लगाती रही किन्तु काफी समय बाद भी बीमा दावा के सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं दी गई। कुछ अधिकारियों द्वारा परिजनों को लाभ का लालच देकर एवं मामले को दबाने के लिये मृत्यु का कारण झूठ बोलने के लिये कहा किन्तु पोस्टमार्टम में बिसरा सुरक्षित किया गया था क्योंकि मृतक के मृत्यु का कारण स्पष्ट नही था। स्व0 सत्यनाम उत्तर प्रदेश का खातेदार किसान था एवं अपने परिवार का मुखिया तथा रोटी अर्जक था, मृतक की मृत्यु धोखे से शराब के नाम पर स्प्रिट पिलाने के कारण हुई थी। पोस्टमार्टम में बिसरा भी सुरक्षित रखा गया था। अनुबन्ध के अनुसार बिसरा सुरक्षित रखने की दशा में विपक्षी संख्या-01 बीमा दावे को लम्बित या निरस्त नहीं कर सकते, बीमा दावा का भुगतान करने के लिये बाध्य है। उ0 प्र0 के समस्त किसान इस योजना के अंतर्गत कवर होते है। विपक्षी संख्या-01 द्वारा अवैधानिक आपत्ति लगाकर खारिज करना सेवा में कमी व घोर लापरवाही के कारण परिवादिनी को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अतः परिवादिनी ने उक्त अनुतोष हेतु प्रस्तुत परिवाद योजित किया है। परिवाद के समर्थन में शपथपत्र दाखिल किया गया है।

            परिवादिनी ने सूची से बीमा पालिसी, इन्तखाब खतौनी, पोस्टमार्टम रिपोर्ट, मृत्यु प्रमाण पत्र, राशन कार्ड, परिवार रजिस्टर तथा न्यूज पेपर की कटिंग की छाया प्रति दाखिल किया है।

            विपक्षी संख्या-01 ने जवाबदावा में कहा है कि यह कहना गलत है कि परिवादिनी संख्या-01 के मृतक पति सत्यनाम का मुख्यमंत्री किसान एवं सर्वहित बीमा योजना के अंतर्गत बीमा था। मृतक उक्त बीमा योजना के अन्तर्गत बीमित होने की Eligibilities पूरी नहीं करता था। कथित दुर्घटना के समय परिवादिनी के परिवार की वार्षिक आय रू0 75,000/-से काफी अधिक थी इस कारण परिवादिनी बीमा योजना का लाभ पाने हेतु पात्र नहीं है। परिवादिनी ने अनुचित लाभ पाने व बदनियती वश सही तथ्यों को छुपाते हुये परिवाद दायर किया है जो अस्वीकार होने योग्य है। बीमा दावा प्राप्त होने पर विपक्षी ने अपने अप्रूव्ड Investigator SAFEX SOLUTIONS LUCKNOW द्वारा मामले की निष्पक्ष जांच कराई जिसने अपनी आख्या दिनांक 17.02.2018 को विपक्षी संख्या-01 के समक्ष प्रस्तुत किया। प्रश्नगत मामले में जांचकर्ता द्वारा विधिवत जांच करने से यह तथ्य प्रकाश में आया कि परिवादी सं0-01 के मृतक पति सत्यनाम की मृत्यु बीमार हो जाने के कारण हुई थी। यह भी तथ्य प्रकाश में आया कि सत्यनाम का पोस्टमार्टम होने के बावजूद मृत्यु का कारण न पता चलने पर सम्बन्धित डाक्टर द्वारा Viscera preserve किया गया। परिवादिनी अपने मृतक पति की विसरा जांच रिपोर्ट मृत्यु के दो वर्ष बाद भी बीमा कम्पनी को नहीं उपलब्ध करा सकी। याचिनी द्वारा बीमा दावा के साथ उपलब्ध कराये गये अभिलेख एवं जांच रिपोर्ट का परिशीलन करने पर विपक्षी ने यह निष्कर्ष निकाला कि परिवादिनी के मृतक पति सत्यनाम की मृत्यु एक दुर्घटना नहीं थी और न ही उसकी मृत्यु का कारण ही किसी ठोस प्रमाण से establish होता है। परिवादिनीगण का दावा क्लेम विपक्षी ने दिनांक 17.07.2018 को नो क्लेम कर दिया। परिवार रजिस्टर के अनुसार परिवादीगण के परिवार का मुखिया मेड़ीलाल पुत्र भगवानदीन है और मृतक सत्यनाम के तीन बड़े भाई है और मृतक का एक संयुक्त परिवार था ऐसे में मृतक सत्यनाम अपने परिवार का न तो मुख्य रोटी अर्जक और न ही मुखिया था बल्कि अपने परिवार का सह रोटी अर्जक था। परिवादिनी ने विसरा जांच रिपोर्ट उपलब्ध कराने के बजाय वाद प्रस्तुत किया है जो सव्यय निरस्त होने योग्य है। जवाबदावा के समर्थन में विपक्षी संख्या-01 द्वारा शपथपत्र योजित किया गया है। विपक्षी द्वारा अनुबन्ध सहित 47 वर्क कागजात दाखिल किया है। नो क्लेम प्रपत्र की प्रति भी प्रस्तुत की है।

           विपक्षी सं0-03 द्वारा जवाबदावे में कहा गया है कि परिवादिनी को जो भी कथित स्कीम के अंतर्गत लाभ प्राप्त होना है उसका सम्बन्ध विपक्षी संख्या-01 से है। विपक्षी संख्या-01 द्वारा तय मानको यदि परिवादिनी पूर्ण करती है तो स्कीम का लाभ प्रदान किये जाने पर विपक्षी संख्या-03 को कोई आपत्ति नहीं है। विपक्षी को अनावश्यक पक्षकार बनाया गया है। विपक्षी संख्या-03 के विरूद्व परिवाद खारिज किये जाने की याचना की गई है।

              परिवादिनी ने साक्ष्य शपथपत्र दाखिल किया है।

              विपक्षी संख्या-01 ने अपना साक्ष्य शपथपत्र दाखिल किया है।

              परिवादिनी ने अपनी लिखित बहस दाखिल की है।

              विपक्षी संख्या-01 ने अपनी लिखित बहस तथा सर्वे रिपोर्ट दाखिल की है।

              उभय पक्षों की बहस सुनी गई। पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य का अवलोकन किया गया।

            वर्तमान परिवाद में परिवादिनी का कथन है कि उसके पति सत्यनाम कुमार उम्र 33 वर्ष को धोखे से शराब के नाम पर स्प्रिट पिलाने के कारण दिनांक 10.01.2018 को सत्यनाम की आकस्मिक मृत्यु हो गई। वह परिवार का रोटी अर्जक था। परिवार की वार्षिक आय रू0 75,000/-से कम है। सत्यनाम उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा विपक्षी संख्या-01 न्यू इंडिया इंश्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड के माध्यम से संचालित मुख्यमंत्री किसान एवं सर्वहित दुर्घटना बीमा योजना के अंतर्गत बीमित था। यह बीमा पालिसी विपक्षी संख्या-01 व 03 के मध्य हुये करार के आधार पर दिनांक 14.09.2016 से 13.09.2019 तक प्रदेश में लागू थी। परिवादिनी के पति की आकस्मिक मृत्यु पर बीमा क्लेम समस्त प्रपत्रों सहित समय सीमा के अंदर विपक्षी संख्या-01 बीमा कम्पनी के समक्ष प्रस्तुत किया। विपक्षी बीमा कम्पनी ने काफी समय व्यतीत हो जाने के बाद भी बीमा धनराशि का भुगतान नहीं किया और न ही कोई जानकारी उपलब्ध कराई गई। विपक्षी द्वारा उपभोक्ता सेवाओं में कमी व घोर लापरवाही की गई। परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत बीमा क्लेम में समस्त अर्हतायें पूरी की गई है। अतः विपक्षी संख्या-01 बीमा धनराशि भुगतान करने के लिये बाध्य है। परिवादिनी के बीमा क्लेम को तकनीकी आधारों पर लम्बित नहीं रख सकते या निरस्त भी नही कर सकते। परिवादिनी ने विपक्षी संख्या-03 के शासनादेश के अनुसार परिवादिनी के पति सत्यनाम की आकस्मिक दुर्घटना में मृत्यु होने पर बीमा धनराशि रू0 5,00,000/-दिलाये जाने की याचना की है।

            विपक्षी संख्या-01 बीमा कम्पनी का जवाबदावें में परिवाद पत्र के तथ्यों से इंकार करते हुये कथन है कि मृतक सत्यनाम बीमा योजना के अंतर्गत बीमित होने की अर्हतायें पूर्ण नहीं करता था। परिवादिनी के परिवार की वार्षिक आय रू0 75,000/-से ज्यादा थी। परिवादिनी ने सही तथ्यों को छिपाया है। परिवादिनी का बीमा क्लेम प्राप्त होने पर अपने मान्यता प्राप्त अन्वेषक (सर्वेयर) से जांच करवाई। सर्वेयर ने अपनी आख्या दिनांकित 17.02.2018 प्रस्तुत की। मृतक सत्यनाम का पोस्टमार्टम होने के बावजूद पोस्टमार्टम में मृत्यु का कारण ज्ञात न हो सकना अंकित है। विसरा संरक्षित किया गया। परिवादिनी ने विसरा जांच रिपोर्ट बीमा कम्पनी को उपलब्ध नहीं कराई। अन्वेषक रिपोर्ट तथा तथ्य के अध्ययन पश्चात बीमा कम्पनी इस निष्कर्ष की है कि सत्यनाम की मृत्यु दुर्घटना नहीं थी और परिवादिनी का क्लेम दावा विपक्षी बीमा कम्पनी ने दिनांक 17.07.2018 को नो क्लेम कर दिया। मृतक सत्यनाम न तो अपने परिवार का मुख्य रोटी अर्जक था और न ही मुखिया था। मात्र सह रोटी अर्जक था। विपक्षी बीमा कम्पनी का कथन है कि परिवादिनी द्वारा विसरा जांच रिपोर्ट उपलब्ध कराये बिना परिवाद दायर किया गया। परिवाद निरस्त किये जाने की याचना की गई है। परिवादिनी का यह भी कथन है कि बीमा पालिसी की शर्तो के अनुसार यदि उक्त योजना के पात्र की मृत्यु शराब के प्रभाव में हो जाती है तो ऐसी मृत्यु उक्त योजना में कवर नहीं होगी।

            विपक्षी संख्या-03 जिलाधिकारी, बाराबंकी की ओर से प्रस्तुत जवाबदावें में परिवाद पत्र के तथ्यों से इंकार किया गया है। विपक्षी संख्या-03 का कथन है कि यदि परिवादीगण विपक्षी संख्या-01 बीमा कम्पनी द्वारा तय मानकों को पूर्ण करते है या न्यायालय द्वारा विपक्षी संख्या-01 बीमा कम्पनी को योजना का लाभ प्रदान किये जाने का आदेश दिया जाता है तो विपक्षी संख्या-03 को कोई आपत्ति नहीं है। विपक्षी संख्या-03 का कथन है कि उनको अनावश्यक पक्षकार बनाया गया है। विपक्षी संख्या-03 से कोई अनुतोष प्राप्त करने के लिये परिवादीगण अधिकारी नहीं है।

            परिवादिनी ने सत्यनाम की मृत्यु धोखें से स्प्रिट पिलाये जाने के कारण होना कहा है। किसने धोखे से स्प्रिट पिलाई, इसका कोई स्पष्टीकरण साक्ष्य में नहीं है। वाद पत्र के कथन तथा परिवादिनी के द्वारा मौखिक साक्ष्य में प्रस्तुत तथ्य के कथनानुसार उसके पति सत्यनाम की मृत्यु स्प्रिट पीने से हुई। सर्वेयर की रिपोर्ट में घटना के विवरण में सत्यनाम कि दिनांक 09.01.2018 को घर आने के बाद तबीयत खराब हो गई थी उन्होंने शराब पी रखी थी। तबियत ज्यादा खराब होने पर हम लोग जिला अस्पताल बाराबंकी ले गये  जहाँ थोड़ी देर बाद मृत्यु हो गई। सर्वेयर ने अपने सर्वे रिपोर्ट के निष्कर्ष में अंकित किया है कि जांच पड़ताल में यह प्रकाश में आया कि सत्यनाम की मृत्यु स्प्रिट पीने से हुई। मृत्यु का स्पष्ट कारण न होने से विसरा सुरक्षित कर जांच हेतु भेजा गया। सर्वेयर की रिपोर्ट के साथ बयान सावित्री देवी संलग्न है जिसमे अंकित है कि सत्यनाम दोपहर में कही गये थे। रात में घर आने के बाद उनकी तबीयत खराब हो रही थी, शराब पी रखी थी। सुबह उनकी तबीयत ज्यादा खराब होने पर हम लोग जिला अस्पताल बाराबंकी ले गये जहाँ थोड़ी देर बार उनकी मृत्यु हो गई। सर्वेयर की आख्या के साथ संलग्न बयान पर परिवादिनी का हस्ताक्षर है। उपरोक्त साक्ष्य से स्पष्ट है कि परिवादिनी के कथनानुसार सत्यनाम की मृत्यु जहरीली शराब के रूप में स्प्रिट पीने से हुई। किसी के द्वारा धोखे से स्प्रिट पिलाने का कोई साक्ष्य नहीं है।

            मृतक सत्यनाम के पंचायतनामे तथा पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतक सत्यनाम के शरीर पर कोई जाहिरा चोट नहीं पाई गई है। पोस्टमार्टम के पश्चात भी पोस्टमार्टम में मृत्यु का कारण निश्चित न हो पाना अंकित किया गया है और रासायनिक परीक्षण के लिये विसरा संरक्षित किया गया है। मृतक सत्यनाम के विसरा के रासायनिक परीक्षण की कोई आख्या संलग्न नहीं है। पोस्टमार्टम से मृतक सत्यनाम की मृत्यु शराब/स्प्रिट पीने से होने की पुष्टि नहीं होती है। विसरा के रासायनिक परीक्षण रिपोर्ट से ही स्प्रिट/ शराब के उपयोग की स्थिति स्पष्ट हो सकती थी।

            किसान एवं सर्वहित बीमा योजना के करार तथा शर्तो की प्रति संलग्न है जिसमे अंकित है कि ‘‘व्यक्तिगत दुर्घटना में परिवार का मुखिया/रोटी अर्जक की रेल/रोड/वायुयान से दुर्घटना, किसी भी टकराव, गिरने के कारण चोट, गैस रिसाव, सर्प काटने, बिच्छू, नेवला, छिपकली काटने से मरना, सिलेण्डर फटने के कारण विकलांगता या मृत्यु, विस्फोट, कुत्ता काटने, जंगली जानवर के काटने से मरना, जलना, डूबना, बाढ़ में बह जाने, किसी प्रकार से हाथ पैर कट जाना एवं विषाक्ता आदि दुर्घटना में शामिल है।‘‘ बीमा की उपरोक्त शर्त से स्पष्ट है कि उपरोक्त प्रकार से मृत्यु होने और अन्य शर्तो के पूरा होने पर बीमा क्लेम स्वीकार होगा। शर्तो में यह भी अंकित है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट उन मामलों में आवश्यक नहीं होगी जिनमे डूबने व बाढ़ से बह जाने के कारण मृतक शरीर बरामद नहीं हो सके। सांप के काटने से मृत्यु की दशा में पोस्टमार्टम रिपोर्ट/ स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के चिकित्सक का प्रमाण पत्र मान्य होगा और ऐसे मामलों में इस आधार पर दावा निरस्त नहीं किया जायेगा कि विसरा रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई है। परिवादिनी का इस शर्त के आधार पर कथन है कि मृतक अवनीश कुमार के वर्तमान मामले में भी विसरा रिपोर्ट की आवश्यकता नहीं है। बीमा की उपरोक्त शर्त से स्पष्ट है कि शराब या स्प्रिट पीने से मृत्यु होने का मामला पोस्टमार्टम रिपोर्ट की आवश्यकता न होने या विसरा रिपोर्ट न होने की उपरोक्त शर्त में नहीं आती है। बीमा योजना की शर्तो के साथ इस बीमा योजना की शर्तो में किये गये संशोधन को भी अंकित किया गया है जिसमे अप्राकृतिक मृत्यु के स्थान पर दुर्घटना से मृत्यु शब्द का प्रयोग किया जाना है। संशोधित प्राविधान के अनुसार शराब के प्रभाव, आत्महत्या तथा आपराधिक कार्य के दौरान दुर्घटना, योजना में कवर नहीं होगें, जोड़ दिया गया है। बीमा कम्पनी ने अपने तर्क में इस संशोधित प्राविधान का उल्लेख किया है। परिवादिनी सरस्वती देवी ने सर्वेयर को दिये गये बयान में अवनीश कुमार द्वारा घटना के दिन शराब पीकर घर आना अंकित किया है।

            विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से सर्वेयर रिपोर्ट के सम्बन्ध में निम्न लिखित निर्णयों में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रतिपादित विधि सिद्वान्तों का सन्दर्भ लिया गया हैः-

              1. खटीमा फाइबर्स लिमिटेड बनाम न्यू इंडिया एशोरेन्स कम्पनी लि0 2021 एन सी जे 855 (सुप्रीम कोर्ट)

              2. यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेन्स कम्पनी लि0 बनाम रोशन लाल आयल मिल्स लिमिटेड 2000 (10) एस सी सी 19

              3. सिक्का सेवायें लिमिटेड बनाम नेशनल इंश्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड एवं अन्य 2009 (7) एस सी सी 777

              4. न्यू इंडिया एश्योरेन्स कम्पनी लि0 बनाम लक्सरा इन्टरप्राइजेज प्रा0 लिमिटेड 2019(6) एस सी सी 36

            उपरोक्त मामलों में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह विधि सिद्वान्त प्रतिपादित किया गया है कि बीमा क्लेम निस्तारित करने के मामले में बीमा कम्पनी के सर्वेयर की रिपोर्ट महत्वपूर्ण अभिलेख है। सर्वेयर की रिपोर्ट में अंकित तथ्य से भिन्न मत उचित आधारों पर ही दिया जा सकता है। यदि सर्वेयर की रिपोर्ट उत्तम प्रकृति तथा सर्वेयर के समस्त कर्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों को दृष्टिगत रखते हुये तैयार की गई है, तो ऐसी सर्वेयर रिपोर्ट पर विश्वास किया जाना चाहिये। बीमा कम्पनी या न्यायालय सर्वेयर रिपोर्ट को उचित आधार दर्शित करते हुये पूर्णतः या आंशिक रूप से अमान्य कर सकते है।

               बेनहूर ज्वेल्स प्रा0 लिमिटेड बनाम न्यू इंडिया एश्योरेन्स कं0 लि0 2019 एन सी जे 60 (एन सी) एन. सी. डी. आर. सी. नई दिल्ली तथा न्यू इंडिया एश्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड बनाम मेसर्स यादव बिल्डर्स 2021 एन सी जे 176 (एन सी) एन. सी. डी. आर. सी. नई दिल्ली के मामलों में माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता प्रतितोष आयोग द्वारा यह विधि सिद्वान्त प्रतिपादित किया गया है कि बीमा क्लेम निस्तारित करने में सर्वेयर रिपोर्ट की प्रमुख भूमिका होती है। सर्वेयर की रिपोर्ट को तभी अमान्य किया जा सकता है जब उसे गलत सिद्व किया जाय।

              उपरोक्त विधि सिद्वान्त वर्तमान प्रकरण में प्रस्तुत सर्वेयर रिपोर्ट के संबंध में लागू करने से स्पष्ट है कि सर्वेयर रिपोर्ट के विपरीत उपधारणा करने का कोई विश्वसनीय साक्ष्य पत्रावली पर नहीं है।

              परिवादिनी पक्ष की ओर से साक्ष्य में घटना के समय के समाचार पत्रों में प्रकाशित घटना की कटिंग की प्रति प्रस्तुत की गई है। समाचार पत्रों की कटिंग में शराब/स्प्रिट पीने से मृत्यु होना प्रकाशित है। इन समाचार पत्रों में छपे तथ्यों को परिवादिनी ने साक्ष्य में ग्रहण किये जाने और उक्त आधार पर परिवादिनी का बीमा क्लेम निस्तारित करने का तर्क लिया है।

           स्टार इंडिया प्रा0 लिमिटेड बनाम सोसाइटी आफ कैटलिस्ट एवं अन्य 2020 एन सी जे 465 (एस सी) के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह विधि सिद्वान्त प्रतिपादित किया गया है कि समाचार पत्रों की रिपोर्ट पर बिना संपुष्टि कारक साक्ष्य के विश्वास नहीं किया जा सकता। ठोस प्रमाण के अभाव में किसी क्लेम को केवल परिकल्पनाओं/संभावनाओं के आधार पर निस्तारित नहीं किया जा सकता।

              नर्वदा देवी बनाम न्यू इंडिया एश्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड सिविल अपील सं0-6379/2010 निर्णय दिनांकित 22.03.2021 के मामले में यह विधि सिद्वान्त प्रतिपादित किया गया है कि अत्यधिक शराब पीने से होने वाली मृत्यु दुर्घटना में नहीं आती है।

               वर्तमान प्रकरण में उपरोक्त योजना में भी शराब पीने से होने वाली मृत्यु कवर नहीं होती है।

            उपरोक्त समस्त साक्ष्य व बीमा शर्तो के विवेचन से स्पष्ट है कि शराब/स्प्रिट पीने से मृत्यु होने पर मुख्यमंत्री किसान एवं सर्वहित दुर्घटना बीमा योजना में ऐसी मृत्यु कवर नहीं होगी और दुर्घटना से मृत्यु होना नहीं माना जायेगा।

शराब/स्प्रिट पीने से मृत्यु होने का कोई पुष्टिकारक अभिलेखीय साक्ष्य जैसे विसरा के रासायनिक परीक्षण की रिपोर्ट भी नहीं है। अतः शराब पीने से मृत्यु होने की पुष्टि पोस्टमार्टम रिपोर्ट से नहीं होती है।

            मृतक के पंचनामा तथा पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतक के शरीर पर कोई जाहिरा चोट नही पाई गई है ऐसी स्थिति में किसी चीज से टक्कर लगने, गिरने आदि की दुर्घटना से आई चोट से मृत्यु होने की भी पुष्टि नहीं होती है।

            परिवादिनी का कथन है कि सम प्रकरणों में स्थाई लोक अदालत तथा जिला उपभोक्ता आयोग, लखनऊ द्वारा बीमा कम्पनी से क्लेम का भुगतान कराया गया है। अपने कथन के समर्थन में परिवादिनी ने वाद संख्या-333/2017 गीता देवी एवं अन्य बनाम ओरियन्टल इंश्योरेन्स कम्पनी, वाद संख्या-15/2018 शमीना खातून बनाम ओरियन्टल इंश्योरेन्स, वाद संख्या-318/2018 राम मोहन बनाम न्यू इंडिया एश्योरेन्स कम्पनी में स्थाई लोक अदालत द्वारा पारित निर्णय की प्रति प्रस्तुत की है। इस निर्णय के अवलोकन से स्पष्ट है कि सम प्रकरणों में मृत्यु मार्ग दुर्घटना में हुई थी तथा वाद संख्या-106/2018 सतिराम बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेन्स में सर्प दंश होने के आधार निस्तारित किये गये है। वर्तमान प्रकरण में मार्ग दुर्घटना, सर्प दंश या प्रत्यक्ष या ज्ञात कारण से मृत्यु होने का साक्ष्य नहीं है। अतः वर्तमान प्रकरण संदर्भित स्थाई लोक अदालत के प्रकरण के समान नहीं है।

            इसी प्रकार परिवादिनी की ओर से पुष्पा देवी बनाम न्यू इंडिया एश्योरेन्स कम्पनी वाद संख्या-43/2018 स्थाई लोक अदालत लखनऊ में बीमा कम्पनी के साथ किये गये समझौता पत्र, लोक अदालत के आदेश तथा सम्बन्धित दाखिल अन्य प्रपत्रों से यह स्पष्ट नहीं हो रहा है कि इस प्रकरण में परिवादिनी के पति की मृत्यु कैसे हुई। इन अभिलेखों से शराब/स्प्रिट पीने से या मृत्यु का कोई कारण ज्ञात न होने की स्थिति में भी किसान व सर्वहित बीमा योजना में बीमा कम्पनी द्वारा सुलह कर बीमा क्लेम देने की पुष्टि नहीं होती है।

            मिथलेश बनाम ओरियन्टल इंश्योरेन्स कम्पनी वाद संख्या-130/2019 जिला उपभोक्ता आयोग के जवाबदावे व प्रारम्भिक आपत्ति की प्रति दाखिल की है जिसमे मृतक की मृत्यु शराब/स्प्रिट पीने से होने का कोई तथ्य अंकित नहीं है।

            परिवाद संख्या-524/2018 आरती देवी बनाम ओरियंटल इंश्योरेन्स कम्पनी तथा परिवाद संख्या-206/2010 मंजू देवी बनाम न्यू इंडिया एश्योरेन्स में मार्ग दुर्घटना से आई चोटो के कारण मृत्यु होना अंकित है।

            अपील संख्या-1800/2018 न्यू इंडिया एश्योरेन्स कम्पनी बनाम श्रीमती मिथलेश कुमारी के माननीय राज्य आयोग द्वारा निर्णीत प्रकरण में सुनीता की मृत्यु दुर्घटना से आई चोटो के कारण होना अंकित है।

            उपरोक्त से स्पष्ट है कि सन्दर्भित प्रकरणों से किसी में भी शराब/स्प्रिट पीने से मृत्यु होने को बिना किसी पुष्टिकारक अभिलेखीय साक्ष्य के दुर्घटना मानते हुये बीमा कम्पनी को बीमा क्लेम का भुगतान करने के लिये आदेशित नहीं किया गया है। इसी प्रकार पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कोई जाहिरा चोट न होने और मृत्यु का कारण निश्चित न होने तथा विसरा की रासायनिक परीक्षण रिपोर्ट प्राप्त न होने की स्थिति में भी उपरोक्त बीमा योजना में मृत्यु को दुर्घटना से मृत्यु होना मानते हुये बीमा क्लेम भुगतान किये जाने का कोई आदेश नहीं है।

            विपक्षी बीमा कम्पनी ने अपने जवाबदावें के पैरा-18 में कहा है कि परिवादिनी अपने उपरोक्त मृतक पति की विसरा जांच रिपोर्ट मृत्यु के दो साल बाद भी बीमा कम्पनी को उपलब्ध नहीं करा सकी है। दुर्घटना से मृत्यु होने का कोई ठोस प्रमाण नहीं है। विपक्षी बीमा कम्पनी ने जवाबदावे के पैरा-21 में कहा है कि विसरा जांच रिपोर्ट उपलब्ध कराने के बजाय प्रस्तुत वाद दायर कर दिया जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि विसरा की रिपोर्ट बीमा कम्पनी को क्लेम अंतिम रूप से निस्तारित करने के लिये आवश्यक है। बिना विसरा रिपोर्ट के वर्तमान परिवाद भी प्री मेच्योर है।

          विसरा को परीक्षण के लिये सम्बन्धित पुलिस के माध्यम से विधि विज्ञान प्रयोगशाला या अन्य समकक्ष रासायनिक परीक्षण के पश्चात रिपोर्ट सम्बन्धित पुलिस या प्रशासन को प्रेषित की जाती है। ऐसी स्थिति में विपक्षी संख्या-03 द्वारा सम्बन्धित जिले की पुलिस से सम्पर्क करके विसरा के रासायनिक परीक्षण पश्चात रिपोर्ट विपक्षी संख्या-01 बीमा कम्पनी को उपलब्ध करानी चाहिये क्योंकि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा संचालित मुख्यमंत्री किसान एवं सर्वहित दुर्घटना बीमा उत्तर प्रदेश सरकार तथा विपक्षी संख्या-01 न्यू इंडिया इंश्योरेन्स कम्पनी के मध्य करार पर संचालित हो रही थी। इस लिये ऐसे प्रपत्र जो किसी राजकीय संस्थान से या ऐेसे संस्थान से प्राप्त किये जाने है, जिनको उक्त संस्थान से किसी सामान्य व्यक्ति द्वारा प्राप्त करना संभव न हो ऐसे प्रपत्र जैसे विसरा रिपोर्ट आदि जिले में शासन के प्रमुख जिलाधिकारी द्वारा ही प्राप्त कर सम्बन्धित बीमा कम्पनी को उपलब्ध कराया जाना चाहिये। ऐसी कोई कार्यवाही विपक्षी संख्या-03 द्वारा वर्तमान प्रकरण में विसरा रिपोर्ट प्राप्त करने और उसे बीमा कम्पनी को उपलब्ध कराये जाने के संबंध में नहीं की है।

            उपरोक्त समस्त विवेचन के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि परिवादिनी का परिवाद विसरा रिपोर्ट के अभाव में प्रीमेच्योर है। साथ ही परिवादिनी के साक्ष्य से उसके पति सत्यनाम की मृत्यु किसी दुर्घटना या बीमा शर्तो में उल्लिखित किसी अन्य कारण से होने की पुष्टि नहीं होती है।

            अतः परिवादिनी का परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है। विसरा रिपोर्ट प्राप्त होने पर बीमा कम्पनी बीमा क्लेम पुनःविलोकन के लिये स्वतंत्र होगी।

आदेश

            परिवाद संख्या-123/2018 निरस्त किया जाता है। विसरा रिपोर्ट प्राप्त होने पर बीमा कम्पनी बीमा क्लेम पुनःविलोकन के लिये स्वतंत्र होगी।

(डा0 एस0 के0 त्रिपाठी)       (मीना सिंह)         (संजय खरे)

       सदस्य                        सदस्य                अध्यक्ष

यह निर्णय आज दिनांक को  आयोग  के  अध्यक्ष  एंव  सदस्य द्वारा  खुले न्यायालय में उद्घोषित किया गया।

(डा0 एस0 के0 त्रिपाठी)       (मीना सिंह)         (संजय खरे)

                                                                            सदस्य                        सदस्य                अध्यक्ष

दिनांक 27.06.2023

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