जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 33/2014
नेमीचन्द पुत्र श्री जेठानाथ, जाति-सिद्ध, निवासी ग्राम-चाउ, तहसील व जिला-नागौर (राज.)।
-परिवादी
बनाम
1. दी न्यू इंडिया इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड जरिये अध्यक्ष/प्रबन्ध निदेषक, पंजीकृत एवं प्रधान कार्यालय, न्यू इण्डिया इंष्योरेंस बिल्डिंग, 87, एम.जी. रोड, मुम्बई-400001 (महाराश्ट्र)।
2. षाखा प्रबन्धक, दी न्यू इंडिया इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड, षाखा कार्यालय-दिल्ली गेट के बाहर, डीडवाना रोड, नागौर (राज.)।
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री दिनेष हेडा, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री कालूराम सांखला, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थीगण।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
निर्णय दिनांक 20.07.2016
1. यह परिवाद अन्तर्गत धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 2 से अपने वाहन सं. त्श्र 21 ळ। 7494 का बीमा दिनांक 30.03.2012 से 29.03.2013 की मध्य रात्रि अवधि तक करवा रखा था। जिसके पाॅलिसी नम्बर 33140231110100008679 है। बीमा पाॅलिसी की वैधता अवधि में दिनांक 09.12.2012 को परिवादी का उक्त वाहन डूंगरगढ-सरदारषहर रोड पर डूंगरगढ से 21 किमी दूर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। दुर्घटना होने के बाद परिवादी ने दुर्घटना की सूचना अप्रार्थी बीमा कम्पनी को दे दी तथा क्लेम फार्म भरकर समस्त वांछित दस्तावेजात व जानकारियां उपलब्ध करवा दी गई। उक्त वाहन को रिपेयर कराने में परिवादी को 1,55,232/- रूपये व्यय करने पडे तथा क्लेम दिलाने के लिए निवेदन किया। बाद में भी कई बार व्यक्तिगत उपस्थित होकर क्लेम का निवेदन किया गया। उक्त दावा प्रस्तुत होने के काफी समय बाद अप्रार्थी संख्या 2 ने दिनांक 06.11.2013 को अपने पत्र के द्वारा परिवादी को सूचित किया कि बीमित वाहन में चालक के अलावा पांच अन्य व्यक्ति भी बैठे थे, जो कि वाहन की बैठक क्षमता से अधिक है। इस प्रकार उसका दावा निरस्त कर दिया। अप्रार्थीगण की ओर से इस तरह उसके दावे को गलत व अनुचित प्रकार से निरस्त किया गया है। कारण कि दुर्घटना के वक्त वाहन में केवल चालक भंवरसिंह ही था, जो वाहन चला रहा था। इसके अलावा वाहन में अन्य कोई व्यक्ति सवार नहीं था फिर भी बीमा कम्पनी ने गलत तथ्य एवं अखबार में छपी गलत खबर के आधार पर दावा खारिज कर दिया, जो गलत एवं अवैधानिक है। इसके अलावा परिवादी का वाहन सामने जानवर आने से दुर्घटनाग्रस्त हुआ है जिसमें सवारियां होने या नहीं होने का कोई औचित्य नहीं है। वाहन के दुर्घटनाग्रस्त होने का एक मात्र कारण सामने से जानवर आने से वाहन अनियंत्रित होकर पल्टी खा जाना है। इसके अलावा सवारियां व दुर्घटना का कोई सम्बन्ध नहीं था। इस तरह बीमा कम्पनी गलत आधार पर परिवादी का बीमा क्लेम खारिज किया है। जो अप्रार्थीगण की सेवा में कमी एवं अनुचित व्यापार प्रथा की परिधि में आता है। अतः परिवादी को वाहन को रिपेयर करवाने एवं पुनः दुरूस्त करवाने में व्यय हुए 1,55,232/- रूपये मय ब्याज के अप्रार्थीगण से दिलाये जावे। साथ ही परिवाद में अंकितानुसार अन्य सभी अनुतोश परिवादी को दिलाये जावे।
2. अप्रार्थीगण की ओर से परिवादी का वाहन बीमा कम्पनी में बीमित होना स्वीकार करते हुए बताया गया है कि परिवादी ने क्लेम फार्म में समस्त जानकारियां उपलब्ध नहीं करवाई तथा वस्तुस्थिति को छिपाकर क्लेम पेष किया गया। यह बताया गया है कि सर्वे रिपोर्ट में पता चला कि दुर्घटना के समय वाहन में ड्राइवर के अलावा पांच अन्य व्यक्ति भी सवार थे जबकि रजिस्ट्रेषन प्रमाण-पत्र के अनुसार बीमित वाहन में ड्राइवर के अलावा एक व्यक्ति के बैठने की क्षमता है लेकिन घटना के समय वाहन में ड्राइवर के अलावा पांच व्यक्ति और सवार थे तथा क्षमता से अधिक व्यक्ति सवार होने के कारण ही दुर्घटना कारित हुई। यह बताया गया है कि परिवादी ने बीमा षर्तों का उल्लंघन किया है, ऐसी स्थिति में क्लेम सही रूप में खारिज किया गया है। अतः परिवाद भी मय खर्चा खारिज किया जावे।
3. बहस सुनी गई। परिवादी की ओर से अपने परिवाद के समर्थन में स्वयं का षपथ-पत्र प्रस्तुत करने के साथ ही वाहन का पंजीयन प्रमाण पत्र प्रदर्ष 1, बीमा पाॅलिसी प्रदर्ष 2, फिटनस प्रमाण-पत्र प्रदर्ष 3, वाहन रिपेयरिंग बिल प्रदर्ष 5 व प्रदर्ष 6 तथा अप्रार्थी बीमा कम्पनी से प्राप्त पत्र प्रदर्ष 7 की फोटो प्रतियां पेष की गई है। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि वास्तव में दुर्घटना के समय वाहन में ड्राइवर के अलावा मात्र एक व्यक्ति और बैठा था लेकिन बीमा कम्पनी ने मनगढत सर्वे रिपोर्ट के आधार पर परिवादी का क्लेम खारिज किया है जो विधिक रूप से सही नहीं है। उनका तर्क रहा है कि यदि अप्रार्थी पक्ष के कथनानुसार दुर्घटना के समय वाहन में पांच व्यक्ति भी सवार थे तो भी परिवादी का क्लेम खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि वाहन दुर्घटनाग्रस्त होने में चालक की कोई गलती नहीं थी तथा न ही वाहन में पांच सवारियां होने के कारण ही दुर्घटना कारित हुई थी। उन्होंने अपने तर्क के समर्थन में 1996 (2) सीपीजे 28 (सुप्रीम कोर्ट) बी.वी. नागाराजू बनाम ओरियंटल इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड का न्याय निर्णय भी पेष किया है।
4. अप्रार्थी पक्ष की ओर से भी जवाब के समर्थन में षपथ-पत्र प्रस्तुत करने के साथ ही सर्वेयर रिपोर्ट प्रदर्ष ए 1, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, डूंगरगढ की रिपोर्ट प्रदर्ष ए 2, दैनिक भास्कर अखबार की कतरन प्रदर्ष ए 3 तथा परिवादी नेमीचन्द द्वारा दिनांक 25.07.2013 को निश्पादित एक षपथ-पत्र प्रदर्ष ए 4 की फोटो प्रतियां पेष की गई है। अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि बीमित वाहन में ड्राइवर के अलावा एक व्यक्ति और बैठने की क्षमता थी लेकिन दुर्घटना के समय वाहन में चालक के अलावा पांच अन्य व्यक्ति भी सवार थे, ऐसी स्थिति में बीमा पाॅलिसी की षर्तों का उल्लंघन होने के कारण ही क्लेम खारिज किया गया। उनका तर्क रहा है कि बीमा पाॅलिसी की षर्तों का उल्लंघन होने से अप्रार्थीगण का कोई दायित्व नहीं रहता है। अतः परिवाद मय खर्चा खारिज किया जावे।
5. पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा दिये तर्कों पर मनन कर पत्रावली पर उपलब्ध समस्त सामग्री का सावधानीपूर्वक अवलोकन किया गया। पक्षकारान में यह स्वीकृत स्थिति है कि परिवादी का वाहन बोलेरो नम्बर त्श्र 21 ळ। 7494 दिनांक 31.03.2012 से 29.03.2013 तक की अवधि हेतु अप्रार्थी बीमा कम्पनी के वहां बीमित था तथा बीमित अवधि के दौरान ही दिनांक 09.12.2012 को दुर्घटनाग्रस्त होने से क्षतिग्रस्त हो गया। अप्रार्थी पक्ष द्वारा यह भी स्वीकार किया गया है कि परिवादी ने वाहन क्षतिग्रस्त होने के बाद क्लेम आवेदन भी पेष किया था लेकिन अप्रार्थी पक्ष द्वारा यह बताया गया है कि परिवादी ने बीमा पाॅलिसी की षर्तों का उल्लंघन करते हुए घटना के वक्त बीमित वाहन में क्षमता से अधिक चालक के अलावा पांच व्यक्ति बिठा रखे थे, ऐसी स्थिति में बीमा कम्पनी का कोई दायित्व नहीं रहता है। परिवादी द्वारा प्रस्तुत प्रलेख प्रदर्ष 7 अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा दिनांक 16.11.2013 को परिवादी नेमीचन्द को लिखा पत्र है, जिसमें यही बताया गया है कि सर्वेयर की रिपोर्ट एवं अन्वेशण में पाया गया कि दुर्घटना के समय वाहन में चालक सहित छह व्यक्ति बैठे थे जो क्षमता से अधिक थे जबकि क्लेम आवेदन में तथ्यों को छिपाया गया है। ऐसी स्थिति में क्लेम देय नहीं है। अप्रार्थी पक्ष द्वारा इस सम्बन्ध में सर्वे रिपोर्ट प्रदर्ष ए 1, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र की रिपोर्ट प्रदर्ष ए 2, अखबार की कतरन प्रदर्ष ए 3 एवं नेमीचन्द का षपथ-पत्र प्रदर्ष ए 4 प्रलेख पेष किये हैं। अप्रार्थी पक्ष द्वारा प्रस्तुत उपर्युक्त प्रलेखीय साक्ष्य में प्रदर्ष ए 4 परिवादी नेमीचन्द का षपथ-पत्र है, जिसमें नेमीचन्द ने स्पश्ट किया है कि घटना के समय वाहन में पांच व्यक्ति होना गलत है वास्तव में चालक सहित दो व्यक्ति ही बैठे थे। सर्वे रिपोर्ट प्रदर्ष ए 1 तथा सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र की रिपोर्ट प्रदर्ष ए 2 में दुर्घटना के समय जिन व्यक्तियों का वाहन में बैठे होना एवं उनके चोटें कारित होना बताया गया है, उनमें से किसी भी व्यक्ति के बयान या षपथ-पत्र अप्रार्थी पक्ष द्वारा पेष नहीं किये गये हैं। जहां तक दैनिक भास्कर अखबार की कतरन प्रदर्ष ए 3 का प्रष्न है तो मात्र ऐसी फोटो प्रति के आधार पर यह निश्कर्श नहीं दिया जा सकता कि दुर्घटना के समय परिवादी के वाहन में चालक सहित कुल छह व्यक्ति बैठे हों। पत्रावली पर ऐसा भी कोई तथ्य नहीं आया है जिसके आधार पर यह माना जा सके कि वाहन में क्षमता से अधिक व्यक्ति बैठने के कारण ही वाहन दुर्घटनाग्रस्त हुआ हो। इसी प्रकार अप्रार्थी पक्ष द्वारा प्रस्तुत सर्वे रिपोर्ट या अन्य सामग्री के आधार पर यह भी प्रकट नहीं होता है कि वाहन के चालक की लापरवाही या गफलत के कारण ही दुर्घटना कारित हुई हो। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत न्याय निर्णय 1996 (2) सीपीजे 28 (सुप्रीम कोर्ट) बी.वी. नागाराजू बनाम ओरियंटल इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड वाले मामले के तथ्य भी हस्तगत मामले से मिलते जुलते रहे हैं, जिसमें भी माल वाहक वाहन में अधिकृत छह व्यक्तियों से ज्यादा कुल नौ व्यक्ति यात्रा कर रहे थे तथा बीमा कम्पनी ने इसी आधार पर अपना उतरदायित्व न मानते हुए क्लेम खारिज किया था लेकिन माननीय उच्चतम न्यायालय का मत रहा कि ऐसा कोई तथ्य नहीं है कि बीमित वाहन की दुर्घटना हेतु चालक जिम्मेदार हो, ऐसी स्थिति में बीमा कम्पनी का दायित्व है कि बीमा पाॅलिसी अनुसार क्लेम प्रदान करें। माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा उपर्युक्त न्याय निर्णय में अभिनिर्धारित मत को देखते हुए स्पश्ट है कि हस्तगत मामले में भी बीमा कम्पनी द्वारा परिवादी का क्लेम आवेदन खारिज कर सेवा दोश किया गया है। ऐसी स्थिति में परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य है।
6. परिवादी की ओर से बीमित वाहन को रिपेयर कराने में हुई खर्च राषि बाबत् बिल प्रदर्ष 5 व प्रदर्ष 6 पेष किये गये हैं तथा यही अनुतोश चाहा गया है कि बीमित वाहन रिपेयर करवाने में हुई खर्च राषि 1,55,232/- रूपये अप्रार्थीगण से दिलाये जावे। अप्रार्थी पक्ष की ओर से ऐसा कोई तथ्य प्रकट नहीं किया गया है कि जिसके आधार पर यह माना जा सके कि प्रस्तुत बिल प्रदर्ष 5 व 6 में अंकित राषि वाहन को रिपेयर कराने मंे खर्च नहीं हुई हो।
आदेश
7. परिवादी नेमीचन्द द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद अन्तर्गत धारा 12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 खिलाफ अप्रार्थीगण स्वीकार किया जाकर आदेष दिया जाता है कि अप्रार्थीगण, परिवादी को उसके बीमित वाहन को रिपेयर करवाने में खर्च हुई राषि 1,55,232/- रूपये प्रदान करे। यह भी आदेष दिया जाता है कि परिवादी उपर्युक्त राषि पर परिवाद पेष करने की दिनांक 04.02.2014 से 9 प्रतिषत वार्शिक साधारण ब्याज की दर से ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी होगा। यह भी आदेष दिया जाता है कि अप्रार्थीगण, परिवादी को मानसिक संताप हेतु 10,000/- रूपये अदा करने के साथ ही परिवाद व्यय के भी 10,000/- रूपये अदा करें। आदेष की पालना एक माह में की जावे।
8. आदेष आज दिनांक 20.07.2016 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
नोटः- आदेष की पालना नहीं किया जाना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 27 के तहत तीन वर्श तक के कारावास या 10,000/- रूपये तक के जुर्माने अथवा दोनों से दण्डनीय अपराध है।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या