आदेश
1. आवेदक श्याम सुंदर शर्मा ने इस आशय का परिवाद पत्र इस फोरम के समक्ष दाखिल किया कि उसके छोटे भाई कृष्ण मुरारी शर्मा ने भारतीय जीवन बीमा निगम से दिनांक 14.08.1993 को एक पॉलिसी लिया था जो एक लाख रूपये की थी। उस पॉलिसी का नंबर 530630939 था। पॉलिसी की परिपक्वता तिथि अगस्त 2013 थी।
2. आवेदक का कथन है कि दिनांक 21.07.2001 तक उसके भाई ने प्रीमियम की धनराशि नियमित रूप से भारतीय जीवन बीमा निगम को किया। पॉलिसी होल्डर कृष्ण मुरारी शर्मा आवेदक का बड़ा भाई था। उक्त पॉलिसी में नॉमिनी पॉलिसी होल्डर द्वारा आवेदक को बनाया गया था।
3. आवेदक का यह भी कथन है कि दिनांक 11.10.2001 को पॉलिसी होल्डर कृष्ण मुरारी शर्मा अचानक गायब हो गया जिसकी सूचनाआवेदक ने टाउन थाना में दिया जिसके बाद टाउन थाना कांड सं० 117 दिनांक 04.02.2002 निबंधित किया गया।
4. आवेदक का यह भी कथन है कि पुलिस द्वारा प्रथम सूचना एवं पुलिस को दी गयी सूचना एनेक्सचर-1 के रूप में अभिलेख पर है। परिवादी द्वारा भारतीय जीवन बीमा निगम के वरिष्ठ डिविज़नल मैनेजर को लिखे गए पत्र दिनांक 17.03.2009 की छायाप्रति एवं मुख्यमंत्री बिहार सरकार को लिखे गए पत्र दिनांक 29.01.2003 की छायाप्रति अभिलेख पर है।
5. आवेदक का यह भी कथन है कि उसने दिनांक 05.02.2009 को शाखा प्रबंधक भारतीय जीवन बीमा निगम की शाखा दरभंगा को सूचित किया था।
6. परिवादी का यह भी कथन है कि उसने दिनांक 05.02.2009 को सभी वांछित दस्तावेज की छायाप्रति तथा डाक से भेजे गए निबंधित डाक की रसीद शाखा प्रबंधक भारतीय जीवन बीमा निगम दरभंगा शाखा को भेजा जो अभिलेख पर है।
7. आवेदक का यह भी कथन है कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 107 के अनुसार किसी व्यक्ति के विषय में यदि 7 साल से यह नहीं सुना गया कि वह जिंदा है तो वैसी स्थिति में कानून की यह अवधारणा है कि वह मर गया।
8 आवेदक का यह भी कथन है कि उसने यह मामला 8 साल बाद लाया है जबकि कृष्ण मुरारी शर्मा 7 साल से लापता है कानून के मुताबिक उनके सिविल डेथ की अवधारणा हो जाती है।
9 आवेदक का यह भी कथन है कि उपरोक्त तथ्यों एवं परिस्थितियों से स्पष्ट है कि कृष्ण मुरारी शर्मा का सिविल डेथ हो गया है, आवेदक उनका भाई है। आवेदक से बीमा कंपनी ने जो भी दस्तावेज की मांग किया उसे बीमा कंपनी को उपलब्ध करा दिया इस सबके बाद भी परिवादी को जो कि मृतक द्वारा ली गयी पॉलिसी का नॉमिनी था, देय धनराशि का भुगतान बीमा कंपनी द्वारा नहीं किया जा रहा है, बीमा कंपनी द्वारा सेवा में त्रुटि एवं सेवा शर्तों का उल्लंघन किया जा रहा है। अतः अनुरोध है कि बीमा कंपनी को यह आदेश देने की कृपा करें कि वह आवेदक को बीमा की धनराशि 100000 रु० को दिनांक 22.03.2000 से 12% वार्षिक ब्याज की दर से भुगतान कर दें। इसके आलावा बीमा पॉलिसी के बोनस एवं मानसिक पीड़ा की क्षतिपूर्ति के रूप में 50000 रु० तथा वाद खर्चा 5000 रु० का भुगतान भी विपक्षीगण परिवादी को करें।
10 बीमा कंपनी की तरफ से भारतीय जीवन बीमा निगम की दरभंगा शाखा जो कि विपक्षी-4 है ने अपना वयान तहरीर दाखिल किया विपक्षी-4 का कथन है कि आवेदक ने जैसा मुकदमा लाया है वह विधि एवं तथ्य के अनुसार चलने योग्य नहीं है। इस तरह के मामले का क्षेत्राधिकार इस कोर्ट को प्राप्त नहीं है। यह मामला सिविल कोर्ट द्वारा विचारणीय है।
11 विपक्षी का यह भी कथन है कि बीमाकर्ता के कथित मृत्यु के 7 साल बाद उसने बीमा कंपनी को सूचित किया। बीमाकर्ता द्वारा प्रीमियम जमा नहीं करने के कारण उसका पॉलिसी लेप्स कर गया जिसकी सूचना दिनांक 06.01.2005 को बीमा कंपनी ने बीमाकर्ता को दिया कि बिना मेडिकल सर्टिफिकेट के उसकी बीमा पॉलिसी के पुनः जीवित नहीं किया जा सकता।
12 विपक्षी का यह कथन है कि आवेदक के दावा निष्तारण के लिए जिन आवश्यक कागजातों की आवश्यकता थी उसे आवेदनकर्ता द्वारा विपक्षी को उपलब्ध नहीं कराया गया भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 107 जो किसी व्यक्ति के सात साल से लापता रहने पर उसके मृत्यु की उपधारणा से सम्बंधित है, वह इस पर लागु नहीं होता है। यह न्यायिक प्रक्रिया नहीं है। बीमाकर्ता के गायब होने की सूचना आवेदक द्वारा विपक्षी बीमा कंपनी को समय से नहीं दिया गया एवं 7 साल तक बीमा पॉलिसी का प्रीमियम जमा नहीं किया गया जिससे वह लेप्स कर गयी। विपक्षी आवेदक को किसी प्रकार के क्षतिपूर्ति देने के लिए वाध्य नहीं है, वह आवेदक को किसी प्रकार के बोनस धनराशि को भी देने के लिए जबावदेह नहीं है।
13 विपक्षी का यह कथन है कि यह मामला चलने योग्य नहीं है अतः इसे खर्चा सहित ख़ारिज करने की कृपा करे।
उभयपक्षों के तर्कों को सुना तथा अभिलेख का अवलोकन किया परिवादी ने अपने केस के समर्थन में बीमा पॉलिसी के स्टेटस रिपोर्ट की छायाप्रति, थानाध्यक्ष नगर थाना दरभंगा को बीमाकर्ता के गुमशुदगी आवेदन की छायाप्रति, सीनियर डिविज़नल मैनेजर भारतीय जीवन बीमा निगम मुजफ्फरपुर को लिखे गए पत्र की छायाप्रति एवंआवेदक द्वारा मुख्यमंत्री बिहार सरकार को लिखे पत्र की छायाप्रति एवं कुछ निबंधित रसीद की छायाप्रति दाखिल किया लेकिन मौखिक साक्षी के रूप में किसी साक्षी का परिक्षण नहीं कराया। विपक्षी द्वारा ना तो कोई मौखिक साक्ष्य दिया गया और ना तो कोई दस्तावेजी साक्ष्य दाखिल किया। विपक्षी-1,2 एवं 3 अनुपस्थित चल रहे है। उनके विरुद्ध एकपक्षीय सुनवाई चल रही है।
उभयपक्षों के तर्कों को सुनने एवं दाखिल दस्तावेजों के अवलोकन से यह बात स्पष्ट हो जाता है कि कृष्णा मुरारी शर्मा ने भारतीय जीवन बीमा निगम से दिनांक 14.08.1993 को एक बीमा पॉलिसी लिया था जिसका नंबर 53063039 था जिसमें प्रीमियम की धनराशि 2354 रु० था, जो कि वार्षिक था। उभयपक्षों द्वारा कहे गए कथनों से यह भी बात स्पष्ट हो जाता है कि उक्त बीमा पॉलिसी के प्रीमियम की धनराशि जमा नहीं करने के कारण वह लेप्स हो गया था। विवादित विषय यह है कि क्या बीमाकर्ता कृष्णा मुरारी शर्मा दिनांक 11.10.2001 से लापता हो गया था। बीमाकर्ता कृष्ण मुरारी शर्मा के विषय में सात वर्षों से नहीं सुना गया कि वह जीवित है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 107 के अनुसार किसी व्यक्ति के सिविल डेथ के लिए यह आवश्यक है कि उसके विषय में सात वर्षों से नहीं सुना गया कि वह जीवित है। इस बिंदु पर जो भी साक्ष्य परिवादी ने लाया वह विश्वसनीय नहीं लगता है। अभिलेख पर बीमाकर्ता कृष्ण मुरारी शर्मा के भाई श्याम सुंदर शर्मा जो कि इस मामले के परिवादी है द्वारा दिनांक 03.02.2002 को थानाप्रभारी नगर दरभंगा को दी गयी सूचना है जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया है कि उसका भाई दिनांक 11.10.2001 से ग़ायब है इसके आलावा अभिलेख पर अन्य कोई साक्ष्य आवेदक द्वारा नहीं लाया गया। आवेदक का यह भी कथन है कि उसके द्वारा दी गयी सूचना के आलोक में नगर थाना दरभंगा कांड सं० 117 दिनांक 04.02.2002 दर्ज किया गया लेकिन ऐसा कोई प्रथम सूचना रिपोर्ट पुलिस का अंतिम प्रतिवेदन तथा सक्षम न्यायालय द्वारा अंतिम प्रतिवेदन की स्वीकृति आदि कुछ भी परिवादी द्वारा अभिलेख पर नहीं लाया गया। परिवादी ने अभिलेख पर थानाप्रभारी को लिखे पत्र, मुख्यमंत्री को लिखे पत्र एवं कुछ समाचार पत्रों में छपी खबर का हवाला देकर यह साबित करने का प्रयास किया कि बीमाकर्ता कृष्ण मुरारी शर्मा जो उसका भाई था, 7 साल से अधिक समय से लापता था। इस कारण उसके मृत्यु की उपधारणा समझा जाए। आवेदक द्वारा उपलब्ध कराए गए इन दस्तावेजी साक्ष्यों के आधार पर यह उपधारणा करना न्याय सांगत प्रतीत नहीं होता है कि बीमाकर्ता 7 साल से लापता है इस कारण उसका सिविल डेथ समझा जाए। सिविल डेथ की उपधारणा साबित करने की जबावदेही परिवादी की होती है और इसके अंतिम आदेश देने का अधिकार व्यवहार न्यायालय को होता है। फोरम को सिविल डेथ की उपधारणा सुनिश्चित करने का अधिकार प्राप्त नहीं है। आवेदक द्वारा बीमा कंपनी को दिनांक 17.03.2009,15.03.2009 एवं 05.02.2009 को निबंधित डाक से पत्र लिखा गया जिसमें यह कहा गया कि उसका भाई कृष्ण मुरारी शर्मा जो कि भारतीय जीवन बीमा का पॉलिसी होल्डर है दिनांक 11.10.2001 से लापता है इसप्रकार से परिवादी द्वारा बीमाकर्ता के मृत्यु के लगभग 7 साल बाद बीमा कंपनी को सूचित किया गया तथा नॉमिनी होने के कारण उक्त बीमा कंपनी में बीमाकर्ता द्वारा जमा की गयी धनराशि बोनस आदि प्राप्त करने का अनुरोध किया गया।
उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट है कि बीमाकर्ता कृष्ण मुरारी शर्मा कब से गायब है, कब से उसके जीवित होने के विषय में नहीं सुना गया है। ऐसा कोई साक्ष्य अभिलेख पर परिवादी द्वारा नहीं लाया गया। परिवादी द्वारा अनुसंधानकर्ता द्वारा किए गए अनुसन्धान तथा अनुसंधानकर्ता द्वारा दाखिल किए गए अंतिम प्रपत्र एवं अंतिम प्रपत्र के स्वीकृत आदेश को भी अभिलेख पर नहीं लाया गया। बीमाकर्ता कृष्ण मुरारी शर्मा 7 वर्ष से लापता था। उसके सिविल डेथ की अवधारणा सक्षम न्यायालय द्वारा किया जा सकता है। यह फोरम है इसप्रकार की अवधारणा का क्षेत्राधिकार फोरम को प्राप्त नहीं है। जो भी साक्ष्य अभिलेख पर लाया गया है उससे स्पष्ट है कि बीमा कंपनी ने सेवा शर्तों का कोई उल्लंघन नहीं किया है वह भुगतान देने को बराबर तैयार है। ऐसी स्थिति में यह फोरम इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि परिवादी द्वारा लाया गया यह परिवाद पत्र चलने योग्य नहीं है अतः इसे सविरोध बिना खर्चा के ख़ारिज किया जाता है। अभिलेख को अभिलेखागार में जमा करने का आदेश दिया जाता है।