राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
(मौखिक)
परिवाद संख्या-12/2020
कर्नल अशोक कुमार पुत्र स्व0 गिरधारी लाल
बनाम
दि हाउसिंग कमिश्नर, उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
परिवादी की ओर से उपस्थित : श्री विनय पाण्डेय,
विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षी की ओर से उपस्थित : सुश्री निन्नी श्रीवास्तव,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 20.02.2024
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत परिवाद परिवादी कर्नल अशोक कुमार द्वारा विपक्षी दि हाउसिंग कमिश्नर, उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद के विरूद्ध इस न्यायालय के सम्मुख निम्न अनुतोष प्रदान किये जाने हेतु योजित किया गया है:-
“(i) Refund the money deposited by the complainant against the illegal demand of Rs. 4,76,000/- made vide opposite party letter dated 20.12.2017/- along with the interest @18% from the date of.
(ii) The opposite party may be directed to pay the interest to the complainant @ 18% on the amount paid for the period of delayed possession i.e 31.08.2015 to till the date of actual possession i.e. 16.04.2018.
(iii) The opposite party be directed not to charge for open car parking.
(iii) Compensation of 10,00,000/- ( Ten lakh) for the mental agony and financial loss suffered by the complainant.
(iv) To direct the opposite party to pay Rs. 3,00,000/- because complaints has paid rent due to delay in possession.
-2-
(v) The opposite party may be also directed to pay 2,00,000/- (Two Lacs) to the complainant on account of damages due to deficiency in services of the opposite party and also awards the cost of litigation Rs- 1,00,000/-.
(vi) The opposite party may also be directed to complete the pending works of the society immediately and provide basic amenities which are necessary to live in safe and secure manner.
Further prayed to this Hon'ble Commission any other order may be passed in accordance with law and same shall be in the interest of justice.”
परिवादी भारतीय सेना में अधिकारी के रूप में कार्यरत था, जिसके द्वारा विपक्षी द्वारा प्रस्तावित योजना वृन्दावन योजना, लखनऊ के अन्तर्गत नीलगिरि एन्क्लेव, जो कि उपरोक्त योजना के सेक्टर-17, रायबरेली रोड, लखनऊ में प्रस्तावित थी, हेतु एक प्रार्थना पत्र माह अक्टूबर 2012 में वास्ते 2 बी0एच0के0 (जी+3) फ्लैट हेतु प्रस्तुत किया। परिवादी द्वारा प्रार्थना पत्र के साथ अपेक्षित धनराशि 2,00,000/-रू0 जमा करते हुए पंजीकरण कराया गया। विपक्षी द्वारा परिवादी को 2 बी0एच0के0 फ्लैट आवंटन पत्र संख्या-7878/S.Pr Vrindavan/Nilgiri Enclave (2BHK)/Mang Patra दिनांक 31.08.2013 द्वारा आवंटित किया गया, जिस आवंटन पत्र के माध्यम से विभिन्न किश्तों में कुल धनराशि 20,88,000/-रू0 जमा किये जाने हेतु आदेश किया। परिवादी द्वारा प्रथम किश्त में 2,08,000/-रू0 दिनांक 29.09.2013 को जमा किया गया। तदोपरान्त अगली किश्त 2,40,000/-रू0 दिनांक 30.06.2015 को जमा की गयी। चूँकि अंतिम किश्त जमा किये जाने में कुछ दिवस का विलम्ब हुआ, अतएव विपक्षी द्वारा प्रस्तावित/अपेक्षित ब्याज की गणना करते हुए कुल देय धनराशि 20,88,000/-रू0 के विरूद्ध कुल धनराशि 20,93,500/-रू0 (ब्याज 5,500/-रू0) परिवादी द्वारा जमा की गयी। विपक्षी द्वारा प्रस्तावित उपरोक्त योजना के संबंध में जो बुकलेट जारी की गयी थी, उसके अनुसार 24 माह की अवधि
-3-
में प्रस्तावित योजना के अन्तर्गत निर्मित फ्लैट का कब्जा आवंटियों को प्रदान किये जाने हेतु स्पष्ट अंकन पाया गया। उपरोक्त बुकलेट की प्रति संलग्नक-1 के रूप में संलग्न की गयी, जिसके अनुसार समस्त औपचारिकतायें परिवादी द्वारा सुनिश्चित की गयी, परन्तु उल्लिखित अवधि में आवंटित फ्लैट का न तो निर्माण किया जा सका, न ही प्रस्ताव वास्ते कब्जा हेतु ही विपक्षी द्वारा दिया गया। परिवादी जो कि वरिष्ठ नागरिक है, जिसकी उम्र लगभग 84 वर्ष थी एवं जिसके द्वारा भारतीय सेना में देश की सेवा की गयी थी एवं दौरान सेवा परिवादी को लगभग 100 प्रतिशत विकलांगता हुई थी, को उपरोक्त आवंटित फ्लैट का कब्जा समय से न दिये जाने के कारण न सिर्फ मानसिक, शारीरिक वरन् विशेष रूप से आर्थिक हानि हुई।
निर्विवादित रूप से उपरोक्त फ्लैट का कब्जा दिनांक 16.04.2018 को अर्थात् कब्जा प्राप्त कराये जाने की निश्चित अवधि से लगभग 30 माह की अवधि के पश्चात् प्राप्त कराया गया। परिवादी द्वारा विपक्षी द्वारा प्रस्तावित अवैधानिक वसूली से व्यथित होकर विपक्षी के सम्मुख विपक्षी द्वारा जारी पत्र दिनांक 20.12.2017 का उत्तर प्रस्तुत करते हुए कथन किया गया कि विपक्षी द्वारा न सिर्फ परिवादी को आर्थिक, शारीरिक व मानसिक रूप से परेशान किया गया अथवा प्रताडि़त किया गया वरन् विपक्षी द्वारा अनैतिक रूप से बेवजह बिना किसी विवरण के 4,76,000/-रू0 जमा करने हेतु आदेश पारित किये। खेद का विषय है कि ऊपर उल्लिखित तथ्यों को विस्मृत करते हुए विपक्षी द्वारा न सिर्फ परिवादी को समयावधि में आवंटित फ्लैट का कब्जा नहीं दिया गया वरन् अवैधानिक रूप से परिवादी से 4,76,000/-रू0 अतिरिक्त धनराशि भी जमा करायी गयी, जो कि अन्तर्गत फ्लैट चेंज चार्ज 22,514/-रू0, एडिशनल कास्ट 1,69,812/-रू0, अन्य चार्ज 25,678/-रू0, सर्विस टैक्स 94,313/-रू0, जी0एस0टी0 20,377/-रू0, वेलफेयर एण्ड मेन्टीनेंस 75,943/-रू0 प्राप्त किया
-4-
गया।
परिवादी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता द्वारा कथन किया गया कि उपरोक्त सभी अतिरिक्त जमा करायी गयी धनराशि अवैधानिक रूप से बिना किसी सेवा एवं परिवादी को बिना निर्माण पूर्ण हुए फ्लैट का कब्जा प्राप्त कराये जाने से पूर्व लिया गया। 75,000/-रू0 अतिरिक्त चार्ज वास्ते गाड़ी/वाहन पार्किंग का ओपेन एरिया में वाहन पार्किंग बताते हुए चार्ज किया गया।
समस्त तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए मेरे द्वारा परिवादी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री विनय पाण्डेय एवं विपक्षी परिषद की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता सुश्री निन्नी श्रीवास्तव को सविस्तार सुना गया, परिवाद पत्र में उल्लिखित एवं वर्णित अनुतोष जो कि इस निर्णय के पूर्व भाग में मेरे द्वारा उल्लिखित किये गये हैं, का सम्यक परीक्षण एवं परिशीलन किया गया। तदनुसार निम्न आदेश पारित किया जाता है:-
आदेश
विपक्षी द्वारा निर्विवादित रूप से परिवादी के विरूद्ध सेवा में कमी पायी जाती है। स्पष्ट रूप से अनुचित व्यापार प्रक्रिया प्रदर्शित है। अतिरिक्त चार्ज के रूप में ली गयी सम्पूर्ण धनराशि 4,76,000/-रू0 (चार लाख छिहत्तर हजार रूपये) जो कि परिवादी से दिनांक 20.12.2017 को वसूली गयी अर्थात् वास्तविक कब्जा व पंजीकरण विलेख सम्पादित किये जाने से लगभग चार माह पूर्व, अतएव उपरोक्त समस्त अतिरिक्त जमा धनराशि 4,76,000/-रू0 (चार लाख छिहत्तर हजार रूपये) विपक्षी द्वारा एक माह की अवधि में परिवादी को 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की गणना करते हुए जमा की तिथि से भुगतान की तिथि तक प्राप्त करायी जावे अन्यथा की स्थिति में ब्याज की देयता 15 प्रतिशत वार्षिक देय होगी।
विपक्षी द्वारा परिवादी को विलम्ब से आवंटित फ्लैट का
-5-
कब्जा प्राप्त कराये जाने के कारण हुए आर्थिक, मानसिक व शारीरिक कष्ट, विशेष रूप से इस तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए कि परिवादी भारतीय सेना का पूर्व अधिकारी है एवं 100 प्रतिशत विकलांगता के अन्तर्गत जीवन-यापन कर रहा है तथा 84 वर्ष की आयु में उसके साथ जो अवैधानिक कृत्य विपक्षी परिषद द्वारा किया गया है उस हेतु परिवादी द्वारा सम्पूर्ण जमा धनराशि अर्थात् 20,93,500/-रू0 (बीस लाख तिरानवे हजार पॉच सौ रूपये) पर विपक्षी द्वारा विलम्ब से कब्जा प्राप्त कराये जाने की अवधि हेतु 10 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की गणना दो वर्ष आठ माह की अवधि हेतु करते हुए एक माह की अवधि में सम्पूर्ण धनराशि प्राप्त करायी जाये अन्यथा की स्थिति में उपरोक्त धनराशि पर ब्याज की देयता 15 प्रतिशत वार्षिक देय होगी।
मानसिक परेशानी एवं आर्थिक कष्ट हेतु विपक्षी द्वारा परिवादी को 5,00,000/-रू0 (पॉंच लाख रूपये) की धनराशि दिये जाने हेतु आदेशित किया जाता है, जिसका भुगतान आज से एक माह की अवधि में सुनिश्चित किया जावे अन्यथा की स्थिति में उपरोक्त धनराशि 5,00,000/-रू0 (पॉंच लाख रूपये) पर 10 प्रतिशत वार्षिक ब्याज परिवाद प्रस्तुत किये जाने की तिथि से भुगतान की तिथि तक देय होगा।
परिवादी उपरोक्त अवधि लगभग 05 वर्ष किराये के मकान में निवासित रहा, जिस हेतु परिवादी को 5,000/-रू0 (पॉंच हजार रूपये) प्रति माह x 5 वर्ष (साठ माह) अर्थात् 3,00,000/-रू0 (तीन लाख रूपये) एक माह की अवधि में विपक्षी द्वारा प्रदान/प्राप्त कराया जाये अन्यथा की स्थिति में उपरोक्त धनराशि 3,00,000/-रू0 (तीन लाख रूपये) पर 10 प्रतिशत वार्षिक ब्याज परिवाद प्रस्तुत किये जाने की तिथि से भुगतान की तिथि तक देय होगा।
परिवाद व्यय, सेवा में कमी व अनुचित व्यापार प्रक्रिया हेतु
-6-
50,000/-रू0 (पचास हजार रूपये) की धनराशि विपक्षी परिषद द्वारा परिवादी को एक माह की अवधि में प्राप्त करायी जावे अन्यथा की स्थिति में उपरोक्त धनराशि 50,000/-रू0 (पचास हजार रूपये) पर 10 प्रतिशत वार्षिक ब्याज परिवाद प्रस्तुत किये जाने की तिथि से भुगतान की तिथि तक देय होगा।
तदनुसार प्रस्तुत परिवाद स्वीकार किया जाता है।
इस निर्णय की प्रति विपक्षी उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद के आयुक्त को विधि अधिकारी, उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद एवं परिषद की विद्वान अधिवक्ता के माध्यम से दो सप्ताह की अवधि में प्राप्त कराया जाना सुनिश्चित किया जावे। तदनुसार कार्यवाही सुनिश्चित हो।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1