View 3889 Cases Against Tata Motors
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VANSH LAL filed a consumer case on 18 Jun 2014 against TATA MOTORS in the Kanpur Nagar Consumer Court. The case no is CC/589/2012 and the judgment uploaded on 12 May 2017.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश फोरम, कानपुर नगर।
अध्यासीनः डा0 आर0एन0 सिंह........................................अध्यक्ष
पुरूशोत्तम सिंह...............................................सदस्य
उपभोक्ता वाद संख्या-589/2012
वंषलाल पुत्र स्व0 प्रीतम निवासी मकान नं0-4 आराजी इसेपुर पोस्ट बछना नियर अलियापुर बिल्हौर, कानपुर नगर।
................परिवादी
बनाम
प्रबन्धक, टाटा मोटर्स फाइनेंस लि0 षाखा टी0एम0एफ0एल0 कानपुर षाखा 84/105ए, जुगल भवन अफीम कोठी कैलाष मोटर्स भवन कानपुर नगर।
...........विपक्षी
परिवाद दाखिला तिथिः 03.10.2012
निर्णय तिथिः 06.04.2017
डा0 आर0एन0 सिंह अध्यक्ष द्वारा उद्घोशितः-
ःःःनिर्णयःःः
1. परिवादी की ओर से प्रस्तुत परिवाद इस आषय से योजित किया गया है कि विपक्षी को आदेषित किया जाये कि विपक्षी, परिवादी को वाहन सं0-यू0पी0-77 एन-4064 सही कंडीषन में उपलब्ध कराये, आर्थिक क्षति के लिए 21 माह का रू0 3,15,000.00, मानसिक व षारीरिक क्षतिपूर्ति के लिये रू0 1,00,000.00 तथा परिवाद व्यय दिलाया जाये।
2. परिवाद पत्र के अनुसार संक्षेप में परिवादी का कथन यह है कि परिवादी कैलाष मोटर्स की एजेंसी कैलाष मोटर्स भवन 84/105 जी0टी0 रोड कानपुर नगर से वाहन टाटा मैजिक दिनांक 18.05.09 को क्रय किया था। क्रय करने के दौरान विपक्षी को आंषिक रूप से भुगतान रू0 45,990.परिवादी द्वारा अदा किया गया था। षेश धनराषि 40 किष्तों में मय ब्याज के प्रतिमाह की किष्त रू0 9160.00 के आधार पर और अदा करना था। विपक्षी द्वारा समय से किष्ते अदा करते हुए कुल किष्त की धनराषि रू0 1,63,914.00 विपक्षी को अदा की जा चुकी है। आंषिक भुगतान सहित कुल रू0 2,09,404.00 अदा किया जा चुका है। आखिरी किष्त दिनांक 17.01.11 को रू0 9200.00 अदा की गयी थी। आखिरी किष्त अदायगी के पांचवे
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दिन दिनांक 22.01.11 को परिवादी का प्रष्नगत वाहन रोड पर चलते हुए वाहन के ड्राईवर गुड्डू कुमार से खींच लिया गया तथा वाहन में रखा सामान व रू0 22500.00 नगद ले लिये गये तथा वाहन की कंडीषन को लड़ा-भिड़ा व परदे न होने की रसीद परिवादी के ड्राईवर को दे दी गयी और वाहन कब्जे में ले लिया। परिवादी द्वारा विपक्षी के कार्यालय में षिकायत करने पर विपक्षी के अधिकारियों द्वारा परिवादी को यह कहा गया कि षेश पूर्ण धनराषि का भुगतान कर दे, तो परिवादी प्रष्नगत वाहन जिस स्थिति में है, उस स्थिति में ले सकता है। परिवादी ने षेश ऋण धनराषि एकमुष्त न अदा कर पाने की असमर्थता जतायी, तब परिवादी से यह कहा गया कि आपको 3 माह का ब्याज दिया जाता है। आप 3 माह के अंदर पैसा जमा कर दें। इस पर परिवादी ने कहा कि वाहन मुझे सौंप दिया जाये। क्योंकि परिवादी की रोजी-रोटी इसी से चलती है। परिवादी प्रष्नगत वाहन से कमा कर ही प्रष्नगत ऋण का भुगतान करेगा। परिवादी, विपक्षी के कार्यालय के चक्कर लगाता रहा, किन्तु विपक्षी द्वारा न ही तो परिवादी को षेश ऋण का बिल बनाकर दिया गया और न ही परिवादी का वाहन वापस किया गया। विपक्षी द्वारा परिवादी से यह कहा गया कि परिवादी का प्रष्नगत वाहन विक्रय कर दिया गया है और विक्रय धनराषि परिवादी के ऋण में समायोजित की जा चुकी है। परिवादी को बिना पूर्व सूचना के परिवादी का वाहन विधि विरूद्ध तरीके से विक्रय कर दिया गया है। विपक्षी ने परिवादी का वाहन बेंचकर उसकी रोजी-रोटी विधि विरूद्ध तरीके से छीन ली गयी, जिसकी भरपाई हो पाना संभव नहीं है। बावजूद विधिक नोटिस विपक्षी द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी। फलस्वरूप परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद योजित किया गया।
3. विपक्षी की ओर से जवाब दावा प्रस्तुत करके,यह कहा गया है कि विपक्षी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी है। परिवादी, प्रष्नगत वाहन को ड्राईवरों के माध्यम से संचालित करता है, जो कि स्वयं परिवादी द्वारा परिवाद पत्र की धारा-14 में स्वीकार किया गया है। जिससे स्पश्ट है कि परिवादी का
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वाहन कामर्षियल वाहन हैं परिवादी वाहन से लाभ प्राप्त करता है। परिवादी वाहन के खर्चे को व्यापार में दिखाता है तथा आयकर में उसका लाभ लेता है। इस कारण परिवाद कानूनन पोशणीय नहीं है। परिवादी तथा विपक्षी के मध्य निश्पादित अनुबन्ध की षर्त सं0-24 के अनुसार किसी विवाद का निपटारा मुम्बई में ही करने का प्राविधान है। उभयपक्षों के मध्य निश्पादित अनुबन्ध की षर्त सं0-23 के अनुसार मामले का विचारण आर्बीट्रेषन के अंतर्गत किया जायेगा। मध्यस्तम एवं सुलह अधिनियम 1986 की धारा-8 के अनुसार यदि पक्षकारों के मध्य कोई विवाद होता है और यदि मध्यस्तम के जरिये तय करने की षर्त हो तो तो न्यायालय के समक्ष कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती है। प्रस्तुत मामले में निश्पादित ऋण अनुबन्ध की षर्तों के अनुसार प्रष्नगत वाहन को अधिपत्य में लिये जाने एवं बेंचे जाने के पष्चात भी परिवादी के जिम्मे रू0 1,25,378.00 की राषि बकाया थी। जिसकी नोटिस तथा आर्बीट्रेषन को मामला संदर्भित करने से सम्बन्धित नोटिस दिनांक 16.05.12 को परिवादी को दी गयी थी। किन्तु परिवादी द्वारा उक्त नोटिस के बावजूद बकाया राषि की अदायगी नहीं की गयी। परिवादी द्वारा बकाया राषि की अदायगी न करके विवाद कर दिया गया। अतः विवाद को तय करने के लिए निश्पादित ऋण अनुबन्धों की षर्तों के अनुसार पंचाट महोदय के रूप में श्री कामेष्वर आर0 तिवारी की नियुक्ति कर विवाद श्री कामेष्वर आर0 तिवारी को रिफर कर दिया गया। पंचाट द्वारा दिनांक 22.11.12 को अंतिम रूप से पंचाट पारित कर दिया गया। इसलिए भी परिवादी का प्रस्तुत परिवाद अब कानूनन चलने योग्य नहीं है। परिवादी द्वारा अदा की गयी समस्त धनराषि की रसीदें परिवादी को दी गयी हैं। अनुबन्ध की षर्तों के अनुसार परिवादी द्वारा जमा की गयी समस्त धनराषि विपक्षी ने परिवादी के खाते में समायोजित किया है। फोरम को मात्र समरी प्रकृति के परिवाद को सुनने का क्षेत्राधिकार प्राप्त है। जबकि प्रस्तुत परिवाद मुख्य विवाद हिसाब फहमी पर आधारित है। जिसके सम्बन्ध में एकाउन्ट स्टेटमेंट और विस्तृत जांच की आवष्यकता होती है, जो कि सिविल न्यायालय/आर्बीट्रेषन द्वारा ही तय किया जा
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सकता है। क्योंकि परिवादी द्वारा प्रष्नगत वाहन के सम्बन्ध में वित्तीय सुविधा जरिये अनुबन्ध ली गयी थी, जो आपसी संव्यवहार पर आधारित है। अनुबन्ध पर आधारित अनुबन्ध/दायित्वों का निर्वाह्न सिविल न्यायालय/आर्बीट्रेषन द्वारा ही तय किया जा सकता है। फाइनेन्स राषि अनुबन्ध के अंतर्गत सभी दायित्वों के सहित अदा करने के पष्चात परिवादी उक्त वाहन प्राप्त करने का अधिकारी होगा। पक्षकारों के मध्य निश्पादित ऋण की अनुबन्ध षर्त सं0- 3/1 में यह स्पश्ट रूप से अंकित है कि ऋण किष्तों को किसी भी कारण से रोका नहीं जायेगा और परिवादी समय से किष्तों की अदायगी करेगा। अनुबन्ध की षर्तों के अनुसार किष्तों की अदायगी नियमित रूप में चूक होने पर परिवादी के सभी अनुबन्ध समाप्त हो जायेगे तथा विपक्षी को प्रष्नगत वाहन को अपने अधिपत्य में लेकर बेंचने का अधिकार प्राप्त होगा। परिवादी किष्तों की अदायगी में आदतन डिफाल्टर है। विपक्षी द्वारा प्रष्नगत किष्तों को परिवादी के डिफाल्टर हो जाने पर षांतिपूर्वक ढंग से प्रष्नगत वाहन के ड्राईवर से ऋण अनुबन्ध की षर्तों के अनुसार अपने कब्जे में ले लिया गया और अधिकतम कुटेषन के आधार पर दिनांक 29.04.11 को रू0 1,05,000.00 में विक्रय कर विक्रीत राषि परिवादी के खाते में समायोजित कर दी गयी। प्रष्नगत वाहन का अधिकृत वैल्यूवर द्वारा कराई गई वैल्यूषन रिपोर्ट मय संलग्नक-6 व संलग्नक-7 पत्रावली पर संलग्न है। प्रष्नगत वाहन को विक्रय करने के पष्चात भी परिवादी के खाते में षेश राषि की परिवादी द्वारा अदायगी न करने के कारण विपक्षी ने दिनांक 22.11.12 को बकाया राषि अदा करने अथवा वाद को आर्बीट्रेषन को रिफर करने का निर्णय किया गया। परिवादी द्वारा सहयोग न करने पर परिवाद आर्बीट्रेषन को रिफर कर दिया गया। आर्बीट्रेषन द्वारा दिनांक 22.11.12 को परिवाद निर्णीत कर दिया गया। आर्बीट्रेषन के निर्णयानुसार विपक्षी कंपनी परिवादी से रू0 1,25,378.00 तथा उक्त राषि पर दिनांक 16.05.12 से तायूम अदायगी तक 12 प्रतिषत वार्शिक ब्याज भी प्राप्त करने का अधिकारी है। मोटर वाहन अधिनियम 30 के अनुसार निश्पादित ऋण षर्तों के अनुसार वाहन को
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अधिपत्य में लिये जाने पर वाहन का स्वामित्व फाइनेन्सर में निहित होती है। अतः फाइनेन्सर को वाहन बेंचने का पूर्ण विधिक अधिकार प्राप्त हो जाता है। मा0 राश्ट्रीय आयोग एवं मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा भी अपने विभिन्न निर्णयों में यह कहा गया है कि किष्तों की अदायगी में चूक होने पर फाइनेन्सर को वाहन अधिपत्य में लेकर बेंचने का पूर्ण अधिकार होता है। परिवादी द्वारा किष्तों की अदायगी में जानबूझकर चूक करके अनुबन्ध की षर्तों की उल्लंघन किया गया है तथा बावजूद तलब तकाजा परिवादी द्वारा खाते में बकाया राषि अदा नहीं की गयी है। परिवाद झूठे एवं बनावटी तथ्यों पर प्रस्तुत किया गया है। अतः उपरोक्त कारणों से परिवाद रू0 10000.00 के विषेश हर्जे सहित खारिज किया जाये और हर्जे की धनराषि विपक्षी को दिलायी जाये।
परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
4. परिवादी ने अपने कथन के समर्थन में स्वयं का षपथपत्र दिनांकित 11.10.12 एवं 06.12.13 तथा अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में कागज सं0-1/1 लगायत् 1/19 तथा लिखित बहस दाखिल किया है।
विपक्षी की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
5. विपक्षी ने अपने कथन के समर्थन में महिपाल सिंह, अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता का षपथपत्र दिनांकित 25.05.13 एवं 02.05.14 तथा अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में एनेक्जर कागज सं0-आर/1 लगायत् आर/8 दाखिल किया है।
निष्कर्श
6. फोरम द्वारा उभयपक्षों के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी गयी तथा पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्यों एवं परिवादी द्वारा प्रस्तुत लिखित बहस का सम्यक परिषीलन किया गया।
उभयपक्षों को सुनने तथा पत्रावली के सम्यक परिषीलन से विदित होता है कि उभयपक्षों की ओर से उपरोक्त प्रस्तर-5 व 6 में वर्णित षपथपत्रीय व अभिलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत किये गये हैं। आगे निर्णय में सम्बन्धित साक्ष्यों का ही उल्लेख किया जायेगा।
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उभयपक्षों के विद्वान अधिवक्ता को सुनने तथा पत्रावली के सम्यक परिषीलन से विदित होता है कि परिवादी द्वारा प्रष्नगत वाहन विपक्षी फाइनेन्स कंपनी से ऋण प्राप्त करके लिया गया है। परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र में यह स्वीकार किया गया है कि परिवादी द्वारा ऋण किष्तों की अदायगी समय से नहीं की जा सकी। प्रष्नगत वाहन टाटा मैजिक दिनांक 18.05.09 को आंषिक भुगतान रू0 45,990.00 अदा करके, क्रय किया जाना बताया गया है। परिवादी द्वारा आंषिक भुगतान रू0 2,09,404.00 अदा किया जाना बतया गया है। किन्तु परिवादी द्वारा अभिकथित इकरारनामा प्रस्तुत नहीं किया गया है। जिससे स्पश्ट होता है कि परिवादी द्वारा यह सिद्ध नहीं किया जा सका कि उसके द्वारा कुल धनराषि इकरारनामे के अनुसार अदा की जा चुकी है या नहीं। परिवादी का यह कथन है कि विपक्षी फाइनेन्स कपंनी के द्वारा उसका प्रष्नगत वाहन रोड पर चलते हुए वाहन चालक गुड्डू कुमार से खींच लिया गया। आगे परिवादी का ही यह कहना है कि परिवादी द्वारा विपक्षी के कार्यालय में षिकायत करने पर विपक्षी के अधिकारियों द्वारा परिवादी को यह कहा गया कि षेश पूर्ण धनराषि का भुगतान कर दे, तो परिवादी प्रष्नगत वाहन जिस स्थिति में है, उस स्थिति में ले सकता है। परिवादी ने षेश ऋण धनराषि एकमुष्त न अदा कर पाने की असमर्थता जताई। आगे पुनः परिवादी ने यह कथन किया है कि परिवादी द्वारा विपक्षी से यह कहा गया कि प्रष्नगत वाहन परिवादी की रोजी-रोटी का जरिया है, वाहन उसे सौंप दिया जाये, तब परिवादी प्रष्नगत वाहन से कमाकर ही प्रष्नगत ऋण का भुगतान करेगा। जिससे स्वयं परिवादी का कथन विरोधाभाशी सिद्ध होता है। क्योंकि परिवादी द्वारा पूर्व में परिवाद पत्र में संपूर्ण धनराषि रू0 2,09,404.00 अदा किया जाना बताया गया है और आगे यह बताया गया कि यदि प्रष्नगत वाहन विपक्षी उसे सौंप दे, तो वह उससे कमाई करके, षेश ऋण अदा कर सकता है। परिवादी द्वारा उपरोक्तानुसार किये गये विरोधाभाशी बयान से परिवादी का कथन स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। परिवादी की ओर से अपने कथन के समर्थन में विधि निर्णय टाटा मोटर्स फाइनेन्स लि0 बनाम हेमराज 2014 ;4द्ध ब्च्त् 6 ;भ्च्द्ध में प्रतिपादित
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विधिक सिद्धांत की ओर फोरम का ध्यान आकृश्ट किया गया है। मा0 राज्य आयोग हिमाचल प्रदेष का संपूर्ण सम्मान रखते हुए स्पश्ट करना है कि तथ्यों की भिन्नता के कारण उपरोक्त विधि निर्णय में प्रतिपादित विधिक सिद्धांत का लाभ परिवादी को प्राप्त नहीं होता है। क्योंकि उक्त विधि निर्णय के तथ्य यह है कि विपक्षी द्वारा बलपूर्वक प्रष्नगत वाहन अधिग्रहीत किया जाना बताया गया है। जबकि प्रस्तुत मामले में विपक्षी द्वारा परिवादी को किष्तों के जमा करने में डिफाल्टर बताते हुए अनुबन्ध की षर्तों के अनुसार प्रष्नगत वाहन को अपने अधिपत्य में लेकर बेंचने का अधिकार बताया गया है और इसी आधार पर प्रष्नगत वाहन को अपने अधिपत्य में लिया जाना बताया गया है। विपक्षी द्वारा प्रष्नगत वाहन को ऋण अनुबन्ध की षर्तों के अनुसार कब्जे में लिया जाकर अधिकतम कुटेषन के आधार पर दिनांक 29.04.11 को रू0 1,05,000.00 में विक्रय कर विक्रीत धनराषि परिवादी के खाते में समायोजित किया जाना बताया गया है। विपक्षी द्वारा अपने कथन के समर्थन में सूची के साथ कागज सं0-2 अधिकृत रिपजेषन एजेंसी को जारी ऑथराईजेषन पत्र, कागज सं0-3 प्रष्नगत वाहन को अपने आधिपत्य में लिये जाने से पूर्व सम्बन्धित पुलिस थाना सचेण्डी को दी गयी सूचना की प्रति, कागज सं0-4 प्रष्नगत वाहन की वस्तुस्थिति बावत बनाई गई यार्ड इन्वेन्ट्री की प्रति, कागज सं0-5 प्रष्नगत वाहन को आधिपत्य में लिये जाने के पष्चात सम्बन्धित पुलिस थाना सचेण्डी को दी गयी सूचना की प्रति, कागज सं0-6 प्रष्नगत वाहन का अधिकृत वैल्यूवर द्वारा कराई गई वैल्यूएषन रिपोर्ट की प्रति तथा विक्रय रसीद दाखिल की गयी है। जिनसे विपक्षी के इस कथन को बल प्राप्त होता है कि विपक्षी द्वारा विधिनुसार प्रष्नगत वाहन को अनुग्रहीत किया गया है।
7. विपक्षी द्वारा यह भी कहा गया है कि पंचाट द्वारा प्रस्तुत मामले का विनिष्चयन अनुबन्ध की षर्तों के अनुसार दिनांक 22.11.12 को किया जा चुका है, इसलिए भी परिवाद चलने योग्य नहीं है। परिवादी की ओर से विपक्षी की ओर से किये उपरोक्त तर्कों का खण्डन किसी सारवान साक्ष्य अथवा सारवान तथ्य के द्वारा नहीं किया गया है। अतः विपक्षी का उपरोक्त
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तर्क स्वीकार किये जाने योग्य है। विपक्षी द्वारा अपने उपरोक्त कथन के समर्थन में विधि निर्णय एस. बलवन्त सिंह बनाम कानपुर डेवलपमेंट अथार्टी प्प्प् ;2007द्ध ब्च्श्र 425 ;छब्द्ध में प्रतिपादित विधिक सिद्धांत की ओर फोरम का ध्यान आकृश्ट किया गया है। उपरोक्त विधि निर्णय में मा0 राश्ट्रीय आयोग द्वारा यह कहा गया है कि आर्बीट्रेषन कार्यवाही प्रारम्भ होने पर उपभोक्ता मंच को परिवाद सुनने का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं होता है। उपरोक्त विधि निर्णय में प्रतिपादित विधिक सिद्धांत प्रस्तुत मामले में लागू होता है, जिसका लाभ विपक्षी को प्राप्त होता है।
8. विपक्षी की ओर से एक तर्क यह किया गया है कि प्रष्नगत वाहन कामर्षियल प्रयोग के लिए परिवादी द्वारा लिया गया है, इसलिए परिवादी उपभोक्ता की कोटि में नहीं आता है। किन्तु परिवाद पत्र के अवलोकन से विदित होता है कि परिवादी द्वारा प्रष्नगत वाहन को स्वयं की रोजी-रोटी चलाने हेतु लिया गया है। अतः विपक्षी का उपरोक्त विशय में किया गया कथन स्वीकार किया जाना न्यायसंगत नहीं है। क्योंकि परिवादी उपभोक्ता की कोटि में आता है।
9. उपरोक्त तथ्यों, परिस्थितियों एवं विष्लेशणोपरान्त उपरोक्तानुसार दिये गये निश्कर्श और विषेशतः प्रस्तर-6 व 7 में दिये गये निश्कर्श के आधार पर परिवादी का प्रस्तुत परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है।
ःःःआदेषःःः
10. परिवादी का प्रस्तुत परिवाद विपक्षी के विरूद्ध खारिज किया जाता है। उभयपक्ष अपना-अपना परिवाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
( पुरूशोत्तम सिंह ) (डा0 आर0एन0 सिंह)
वरि0सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश
फोरम कानपुर नगर फोरम कानपुर नगर।
आज यह निर्णय फोरम के खुले न्याय कक्ष में हस्ताक्षरित व दिनांकित होने के उपरान्त उद्घोशित किया गया।
( पुरूशोत्तम सिंह ) (डा0 आर0एन0 सिंह)
वरि0सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश
फोरम कानपुर नगर फोरम कानपुर नगर।
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