मौखिक
पुनरीक्षण संख्या-22/2019
राजनरायन यादव बनाम टाटा मोटर्स फाइनेन्स सोल्यूशन लिमिटेड
02.05.2019
पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्ता श्री पारस नाथ तिवारी उपस्थित आये। पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्ता को सुना और परिवाद संख्या-17/2018 राजनरायन यादव बनाम टाटा मोटर्स फाइनेन्स सोल्यूशन लि0 में जिला फोरम, आजमगढ़ द्वारा पारित आक्षेपित आदेश दिनांक 06.12.2018 का अवलोकन किया।
आक्षेपित आदेश के द्वारा जिला फोरम ने पुनरीक्षणकर्ता/परिवादी द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना पत्र वास्ते अंतरिम आदेश अन्तर्गत धारा-13 (3बी) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 खारिज कर दिया है।
जिला फोरम ने अपने आक्षेपित आदेश में यह उल्लेख किया है कि पुनरीक्षणकर्ता/परिवादी द्वारा पत्रावली में इस तरह का कोई कागज प्रस्तुत नहीं किया गया है, जिसके अवलोकन से यह स्पष्ट हो कि परिवादी व विपक्षीगण के मध्य क्या अनुबन्ध था।
जिला फोरम के समक्ष पुनरीक्षणकर्ता/परिवादी ने प्रार्थना पत्र 10ग प्रस्तुत कर प्रश्नगत वाहन विपक्षी से उसे तत्काल वापस दिलाये जाने का अनुरोध किया है। परिवाद पत्र के अनुसार पुनरीक्षणकर्ता/परिवादी का कथन है कि उसने प्रश्नगत वाहन विपक्षी से आर्थिक सहायता प्राप्त कर क्रय किया है और विपक्षी फाइनेन्सर पर वाहन का बीमा कराने एवं पंजीयन कराने का दायित्व था, परन्तु विपक्षी फाइनेन्सर ने मात्र एक वर्ष का बीमा कराया, उसके बाद बीमा नहीं कराया, जिससे वाहन सड़क पर नहीं चल सका और पुनरीक्षणकर्ता/परिवादी ऋण की किस्तों का भुगतान
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नहीं कर सका।
परिवाद पत्र के अनुसार विपक्षी ने विधि विरूद्ध ढंग से वाहन को अपनी अभिरक्षा में लिया है। अत: पुनरीक्षणकर्ता/परिवादी ने वाहन विपक्षी से दिलाये जाने हेतु प्रार्थना पत्र अन्तर्गत धारा-13 (3बी) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 प्रस्तुत किया है।
परिवाद पत्र में पुनरीक्षणकर्ता/परिवादी ने 10,01,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ मांगा है। इसके साथ ही वाहन वापस दिलाये जाने का भी अनुतोष चाहा है। परिवाद पत्र के सम्पूर्ण कथन एवं याचित अनुतोष को दृष्टिगत रखते हुए इस स्तर पर पुनरीक्षणकर्ता/परिवादी को वाहन वापस दिलाये जाने हेतु उचित आधार नहीं दिखता है क्योंकि उसकी क्षतिपूर्ति हेतु धनराशि अन्तिम निर्णय के समय प्रदान की जा सकती है। अत: वाहन इस स्तर पर रिलीज न किये जाने से पुनरीक्षणकर्ता/परिवादी को कोई अपूर्णनीय क्षति नहीं हो सकती है।
उपरोक्त तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए यह स्पष्ट है कि जिला फोरम ने पुनरीक्षणकर्ता/परिवादी के प्रार्थना पत्र पर आक्षेपित आदेश के द्वारा अंतरिम आदेश पारित न कर और आवेदन पत्र निरस्त कर कोई गलती नहीं की है। अत: पुनरीक्षण याचिका निरस्त की जाती है, परन्तु जिला फोरम को यह निर्देशित किया जाता है कि जिला फोरम परिवाद का निस्तारण यथाशीघ्र तीन महीने के अन्दर सुनिश्चित करे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1