छत्तीसगढ़ राज्य
उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग, पण्डरी, रायपुर
अपील क्रमांकः FA/13/155
संस्थित दिनांकः 26.02.13
रमाशंकर यादव, उम्र लगभग 40 वर्ष,
आ. महावीर प्रसाद यादव, पेशा व्यापार,
निवासीः ग्राम दोरना, थाना व तह.धौरपुर,
जिला सरगुजा (छ.ग.) .............अपीलार्थी
विरूद्ध
1. टाटा मोटर्स फायनेंस प्रा. लि.,
सायबर टेक हाउस, प्रथम तल,
प्लाट नं. बी-63-65, रोड नं.21-34,
जे.बी.सावंत मार्ग, वागले स्टेट,
थाणे - 400 604
2. शिवम मोटर्स प्रा. लि.,
अंबिका पेट्रोल पंप के पास, अंबिकापुर,
पो. अंबिकापुर, थाना व तह. अंबिकापुर,
जिला सरगुजा (छ.ग.)
3. एस.एस. विष्ट,
द्वाराः शिवम मोटर्स प्रा. लि.,
इण्डस्ट्रिीयल एरिया, सिरगिटी,
बिलासपुर (छ.ग.)
4. वैभव मिश्रा,
मिशन अस्पताल चैक, अंबिकापुर,
जिला सरगुजा (छ.ग.) .............उत्तरवादीगण
समक्षः
माननीय न्यायमूर्ति श्री आर. एस. शर्मा, अध्यक्ष
माननीय सुश्री हीना ठक्कर, सदस्या
पक्षकारों के अधिवक्ता
अपीलार्थी की ओर से श्री आर.के. भावनानी, अधिवक्ता।
उत्तरवादी क्र.1. अनुपस्थित।
उत्तरवादी क्र.2, 3 एवं 4 एकपक्षीय।
आदेश
दिनांकः10/02/2015
द्वाराः माननीय सुश्री हीना ठक्कर, सदस्या
अपीलार्थी द्वारा यह अपील जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सरगुजा-अम्बिकापुर (छ.ग.) (जिसे आगे संक्षिप्त में ’’जिला फोरम’’ संबोधित किया जाएगा) द्वारा प्रकरण क्रमांक 80/2010 ’’रमाशंकर यादव विरूद्ध टाटा मोटर्स फायनेंस प्रा. लि. एवं अन्य’’ में पारित आदेश दिनांक 29.01.2013 से क्षुब्ध होकर प्रस्तुत की गई है। जिला फोरम द्वारा परिवादी की परिवाद को आंशिक रूप से स्वीकार कर अनुतोष प्रदान किए व अनावेदकगण को संयुक्ततः व पृथकतः आदेश दिनांक से एक माह के भीतर रू 1,26,737/- मय ब्याज 6% वार्षिक की दर से (संस्थित दिनांक 23.06.2010 से भुगतान दिनांक तक), मानसिक कष्ट व असुविधा हेतु रू 5,000/- क्षतिपूर्ति, परिवाद व्यय रू 2,000/- परिवादी को भुगतान करने हेतु दायित्वधीन माना।
2. जिला फोरम द्वारा पारित आलोच्य आदेश के विरूद्ध टाटा मोटर्स फाइनेंस प्रा. लि. द्वारा अपील प्रस्तुत की गई थी। इस आयोग द्वारा अपील क्र. FA/13/374 . उत्तरवादी कंपनी टाटा मोटर्स फाइनेंस प्रा. लि. द्वारा 95 दिवस विलंब से प्रस्तुत अपील विलंब प्रस्तुति के आधार पर आदेश दिनांक 07.01.2014 को निरस्त की गई।
3. अपीलार्थी की परिवाद के निर्विवादित तथ्य यह है कि वि.प.क्र.2 वि.प. क्र.1 अंबिकापुर की स्थानीय शाखा है एवं वि.प.क्र.4 वि.प.क्र.1 की स्थानीय शाखा अंबिकापुर में कार्यरत् कर्मचारी है। वि.प.क्र.3 एवं वि.प.क्र.4 वि.प.क्र.1 एवं वि.प.क्र.2 के कर्मचारी है। परिवादी ने वि.प.क्र.1 से वित्तीय सहायता प्राप्त कर वि.प.क्र.2 से ट्रक क्र. CG-15A6457 क्रय किया। उक्त ऋण की राशि ब्याज सहित परिवादी द्वारा वि.प.क्र.1 को भुगतान किया जाना था। प्रकरण में यह भी स्वीकृत तथ्य है कि वि.प.क्र.1 ने उक्त वाहन को अपने कब्जे में लेकर उसका विक्रय कर दिया।
परिवाद के शेष तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी ने अपने व अपने परिवार के जीवन यापन के लिए वि.प.क्र.1 की स्थानीय शाखा वि.प.क्र.2 से एक दस चक्का ट्रक क्रय करने हेतु लोन फाइनेंस करवाया था और रू 1,20,000/- डाउन पेमेंट के रूप में भुगतान किया था। इस प्रकार वित्त पोषित ट्रक कं CG-15A6457 जीवन यापन का एक मात्र साधन था। परिवादी का इसके अतिरिक्त और कोई व्यवसाय नहीं है। वि.प.क्र.2 द्वारा दिया गया ऋण ब्याज सहित रू 13,00,000/- देय था। जो कि प्रतिमाह निर्धारित किश्त रू 39,300/- वि.प.क्र.2 के कार्यालय में नियमित रूप से जमा करता रहा। परन्तु, परिवादी के व्यवसाय में नुकसान होने के साथ-साथ पत्नि व बच्चों की गंभीर बीमारी के कारण उसकी आर्थिक स्थिति खराब हो गई, जिसके परिणामस्वरूप परिवादी कथित वाहन की चार किश्तों का भुगतान नहीं कर सका। परिवादी द्वारा वि.प.क्र.2 से संपर्क कर अपने आर्थिक कष्टों का जिक्र किया तब वि.प.क्र.2 द्वारा आश्वासन दिया गया कि परिवादी यदि मात्र जुलाई, अगस्त 2009 तक कुछ किश्तों का भुगतान कर दे तो उसके विरूद्ध कथित वाहन ट्रक को आधिपत्य में लेने संबंधी या अन्य किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं की जावेगी। इस प्रकार आश्वासन के बाद भी परिवादी के उक्त वाहन को दिनांक 01.08.2009 को चालक व्यवसायिक कार्य से अंबिकापुर लेकर आया था व ट्रक खरसिया चैक अंबिकापुर में खड़ी थी। वि.प.क्र.2 के निर्देश पर वि.प.क्र.4 ने चालक को सीट से नीचे उतार कर उससे चाबी लेकर जबरन वाहन आधिपत्य में लेकर चला गया, जिसकी पूर्व जानकारी परिवादी को नहीं दी गई तत्पश्चात् वाहन के चालक द्वारा परिवादी को सूचना दी गई तब परिवादी ने वि.प.क्र.2 से संपर्क किया जहां उसे जानकारी दी गई कि उसके कथित ट्रक को वि.प.गण ने आधिपत्य में ले लिया है एवं जब तक संपूर्ण किश्तों का भुगतान नहीं किया जाता है तब तक परिवादी को ट्रक प्रदान नहीं किया जावेगा। वि.प.क्र.2 द्वारा ट्रक को आधिपत्य में लेने के समय कोई दस्तावेज परिवादी को नहीं दिया व परिवादी को चार किश्तों की राशि रू 1,37,200/- भुगतान करने का निर्देश दिया गया तब परिवादी ने बकाया किश्त की राशि में से दिनांक 08.09.2009 को रू 1,00,000/- का डी.डी. बनवाकर वि.प.क्र.2 को प्रदान कर कथित वाहन ट्रक वापस प्राप्त करने हेतु संपर्क किया परन्तु वि.प.क्र.2 द्वारा परिवादी से रू 1,00,000/- लेकर परिवादी को ट्रक देने से मना कर दिया व परिवादी का ट्रक रू 8,00,000/- में विक्रय कर दिया गया। इस प्रकार वि.प.गण ने परिवादी के साथ सेवा में निम्नता व व्यवसायिक कदाचरण किया है। परिवादी ने जिला फोरम से कथित वाहन ट्रक क्र. CG-15A6457 वि.प.गण से वापस दिलाए जाने एवं अपने द्वारा भुगतान की गई डाउन पेमेंट की राशि रू 1,20,000/- वापस दिलाए जाने, आर्थिक नुकसान के संबंध में रू 2,000/- प्रतिदिन की दर से क्षतिपूर्ति, शारीरिक मानसिक क्षति एवं असुविधा हेतु रू 20,000/- वैधानिक सूचना व्यय रू 1,000/- वि.प.गण से दिलाए जाने की प्रार्थना की।
4. वि.प.क्र.1 द्वारा जिला फोरम के समक्ष उत्तर प्रस्तुत कर परिवाद का विरोध किया व अभिकथन किया कि वि.प.क्र.1 फाइनेंस कंपनी है। वि.प.क्र.2 टाटा मोटर्स निर्मित व्यवसायिक वाहन का एकमात्र डीलर है। वि.प.क्र.3 वि.प.क्र.2 का एक्ज़ीक्यूटिव वॉइस प्रेसिडेंट है एवं वि.प.क्र.4 वि.प.क्र.2 का कर्मचारी था। परिवादी ने वि.प.क्र.1 से वित्तीय सहायता प्राप्त कर वि.प.क्र.2 डीलर से टाटा ट्रक मॉडल एल.टी.पी. 2515 क्रय किया था। परिवादी व वि.प.गण के मध्य एक अनुबंध क्रमांक 51402 दिनांक 28.04.2007 निष्पादित किया गया जिसके अनुसार, कथित वाहन की कीमत रू 10,95,859/- थी। परिवादी द्वारा केवल रू 45,059/- ही जमा किया गया था। शेष राशि रू 10,50,000/- का फाइनेंस किया गया था। जिस पर फाइनेंस चार्जेस रू 2,66,175/-, तीन वर्ष का बीमा रकम रू 60,000/- था इस प्रकार कुल अनुबंध की राशि रू 13,76,175/- था प्रथम किश्त रू 38,261/- की थी व शेष 34 किश्तें
रू 39,300/- की थी। परिवादी द्वारा नगद रू 1,26,737/- जमा किया गया था, जिसमें रू 45,859/- मार्जिन मनी व रू 39,975/- प्रथम किश्त रू 34,240/- प्रथम वर्ष की बीमा राशि एवं रू 6,663/- स्टाम्प ड्यूटी एवं डॉक्यूमेंट चार्जेस इत्यादि था। यह भी अभिकथन किया गया कि वास्तव में परिवादी द्वारा नगद रू 1,26,737/- ही जमा किया गया था व परिवादी किराया क्रय अनुबंध के अनुसार दिनांक 28.05.2007 से प्रत्येक माह रू 39,300/- बिना चूक के 34 माह लगातार भुगतान करना था, जिसमें परिवादी द्वारा हमेशा चूक की गई। अनुबंध की शर्तों के अनुसार किश्त भुगतान में चूक किए जाने के कारण इसके वाहन को आधिपत्य में लेने का विधिक अधिकार वि.प. को है। वि.प.क्र.2 मात्र डीलर है, उसे व्यवसाय में किश्त अदायगी में छूट देने का अधिकार नहीं है। परिवाद में उन तिथियों व जमा राशि का भी उल्लेख नहीं है जो परिवादी द्वारा जमा की गई न ही कोई दस्तावेज प्रस्तुत किया गया है। परिवादी के वाहन को उसकी सहमति के आधार पर आधिपत्य में लिया गया एवं परिवादी द्वारा बकाया किश्त एवं ओ.डी.सी. राशि का भुगतान नहीं किए जाने के कारण वाहन का विक्रय कर बकाया राशि में उसका समायोजन किया गया। अतः वि.प. द्वारा परिवादी के प्रति सेवा में कमी या व्यवसायिक कदाचरण नहीं किया गया है। वि.प. द्वारा यह भी अभिकथन किया गया कि परिवादी द्वारा जो ट्रक क्रय किया गया था, उसका व्यवसायिक उपयोग भी किया जा रहा था। परिवादी के पास ट्रक के अलावा अन्य वाहन और व्यवसाय भी हैं। इस प्रकार परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है एवं कोई भी अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। परिवादी का परिवाद सव्यय निरस्त किए जाने का निवेदन किया गया।
5. वि.प.क्र.2 व वि.प.क्र.3 द्वारा संयुक्त रूप से उत्तर प्रस्तुत कर स्वीकृत तथ्यों के अतिरिक्त परिवादी के दावे का विरोध किया गया है व विशिष्ट रूप से इस तथ्य से इंकार किया गया है कि परिवादी द्वारा नियमित रूप से किश्त का भुगतान किया जा रहा था एवं वाहन को विधिविरूद्ध तरीके से आधिपत्य में लेकर सेवा में निम्नता व व्यवसायिक कदाचरण किया गया। यह भी अभिकथन किया गया कि वि.प.क्र.1 फाइनेंस कंपनी है व वि.प.क्र.2 टाटा मोटर्स द्वारा निर्मित व्यवसायिक वाहन का मात्र डीलर है। वि.प.क्र.3 वि.प.क्र.2 का एक्जीक्यूटिव वॉइस प्रेसिडेंट हैं। वि.प.क्र.4 वि.प.क्र.2 का कर्मचारी था। वि.प.गण ने यह भी अभिकथन किया कि परिवादी द्वारा क्रय की गई वाहन की कीमत रू 10,95,859/- थी परिवादी द्वारा केवल रू 45,059/- जमा किया गया था। शेष राशि रू 10,50,000/- का फाइनेंस किया गया था। जिस पर फाइनेंस चार्जेस रू 2,66,175/-, तीन वर्ष का बीमा रकम रू 60,000/- था इस प्रकार कुल अनुबंध की राशि रू 13,76,175/- था प्रथम किश्त रू 38,261/- की थी व शेष 34 किश्तें रू 39,300/- की थी। परिवादी द्वारा नगद रू 1,26,737/- जमा किया गया था, जिसमें रू 45,859/- मार्जिन मनी व रू 39,975/- प्रथम किश्त रू 34,240/- प्रथम वर्ष की बीमा राशि एवं रू 6,663/- स्टाम्प ड्यूटी एवं डॉक्यूमेंट चार्जेस इत्यादि था। यह भी अभिकथन किया गया कि वास्तव में परिवादी द्वारा नगद रू 1,26,737/- ही जमा किया गया था व परिवादी किराया क्रय अनुबंध के अनुसार दिनांक 28.05.2007 से प्रत्येक माह रू 39,300/- बिना चूक के 34 माह लगातार भुगतान करना था, जिसमें परिवादी द्वारा हमेशा चूक की गई। अनुबंध की शर्तों के अनुसार किश्त भुगतान में चूक किए जाने के कारण इसके वाहन को आधिपत्य में लेने का विधिक अधिकार वि.प. को है। परिवादी की सहमति से वाहन को आधिपत्य में लिया गया था व परिवादी द्वारा बकाया राशि का भुगतान न किए जाने पर वाहन का विक्रय किया गया था एवं विक्रय राशि का समायोजन बकाया राशि में किया गया। इस प्रकार वि.प. द्वारा परिवादी के प्रति सेवा में निम्नता व व्यवसायिक कदाचरण नहीं किया गया है। परिवादी ने उक्त वाहन को लाभ क लिए क्रय किया था एवं उसके आजीविका के अन्य साधन व व्यवसाय है। ऐसी स्थिति में किसी प्रकार का कोई अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। परिवाद सव्यय निरस्त किए जाने का निवेदन किया गया।
6. वि.प.क्र.4 द्वारा प्रकरण में उत्तर प्रस्तुत नहीं किया गया।
7. विद्वान जिला फोरम द्वारा निष्कर्ष दिया गया कि वि.प.गण द्वारा परिवादी के वाहन को अनुचित रूप से कब्जे में लेकर अन्य व्यक्ति को विक्रय कर दिया जो कि सेवा में निम्नता की श्रेणी में आता है। परिवादी का परिवाद आंशिक रूप् से स्वीकार कर अनुतोष प्रदान किया गया कि परिवादी द्वारा जमा की गई राशि रू 1,26,737/- मय ब्याज 6% वार्षिक की दर से, मानसिक संताप हेतु रू 5,000/- वाद व्यय रू 2,000/- का भुगतान वि.प.गण संयुक्ततः करेंगे।
8. आयोग के समक्ष अपीलार्थी की ओर से श्री आर.के.भावनानी, अधिवक्ता द्वारा तर्क प्रस्तुत किए गए। उत्तरवादी क्र.1 अनुपस्थित रहा, शेष उत्तरवादीगण पूर्व से एकपक्षीय रहे। उत्तरवादी क्र.1 द्वारा लिखित तर्क प्रस्तुत किया गया। हमारे द्वारा मूल अभिलेख का सूक्ष्म अध्ययन किया गया।
9. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री आर.के.भावनानी द्वारा मुख्यतः यह तर्क प्रस्तुत किए गए कि जिला फोरम द्वारा इस तथ्य के स्पष्ट प्रमाण होने के बावजूद कि वि.प. द्वारा परिवादी से अवैधानिक तरीके से वाहन जब्त किया गया था, जिसकी वजह से परिवादी को बहुत नुकसान हुआ था, किन्तु जिला फोरम द्वारा उचित क्षतिपूर्ति की राशि प्रदान नहीं की गई। वि.प. द्वारा सेवा में निम्नता के तथ्य को मानते हुए कि परिवादी को परिवाद में उल्लेखित समस्त अनुतोष प्रदान नहीं किए, अतः जिला फोरम द्वारा पारित आदेश संशोधित किए जाने योग्य है।
10. उत्तरवादी क्र.1 द्वारा लिखित तर्क प्रस्तुत कर मुख्यतः यह आपत्ति की गई कि जिला फोरम द्वारा इस तथ्य पर विचार नहीं किया गया कि परिवादी/अपीलार्थी द्वारा अनुबंध की शर्तों का उल्लंघन किया व नियमित रूप से किश्तों को भुगतान नहीं किया गया। अतः अनुबंध की शर्तों के अनुसार वि.प./उत्तरवादी द्वारा विधिक कार्यवाही की गई। वाहन आधिपत्य में लेने के पश्चात् परिवादी/अपीलार्थी को नोटिस प्रेषित किया गया था, परन्तु परिवादी/अपीलार्थी द्वारा संपर्क नहीं किया गया। अतः अनुबंध की शर्तों के अनुसार वाहन को बेच दिया गया। उत्तरवादी द्वारा निवेदन किया गया कि जिला फोरम द्वारा पारित आदेश अपास्त किया जावे।
11. अपील के न्यायोचित निराकरण हेतु हमें इस प्रश्न पर विचार करना है कि क्या जिला फोरम द्वारा प्रदत्त अनुतोष राशि से अधिक एवं अतिरिक्त राशि परिवादी/अपीलार्थी प्राप्त करने का अधिकारी है हमारे द्वारा अभिलेख में संलग्न उभयपक्षकारों द्वारा प्रस्तुत कॉन्ट्रैक्ट डीटेल का परिशीलन किया गया, जिसके अनुसार, टाटा मोटर्स द्वारा परिवादी/अपीलार्थी को उसके द्वारा क्रय किए गए वाहन C.G.15A 6457 हेतु वित्त सुविधा दी गई थी, जिसके महत्वपूर्ण अंश निम्नानुसार है
अनुबंध दिनांक 28-04-2007
Invoice Amt 1,095,859.00
Initial Hire 45,859.00
Finance Amt 10,50,000.00
Finance Charges 2,66,175.00
Insurance Prov 60,000.00
Option Money 00
Contract Value 13,76,175.00
Due till Date 13,76,175.00
Recvd till Date 13,76,175.00
Overdue Inst. 00
Accrued ODC 1,76,782.50
Installment Pattern Inst.Amount
002 to 035 39,300.00
इस प्रकार परिवादी/अपीलार्थी को प्रतिमाह रू 39]300/- वि.प./ उत्तरवादी को भुगतान करनी थी। उभयपक्षकारों द्वारा किश्त भुगतान की विवरण प्रस्तुत किया गया है जिसके अनुसार, कुल रू 14,43,670/- दिनांक 08.03.2010 तक किश्त भुगतान किया गया था व उक्त विवरण के अनुसार, नियमित रूप से पूर्ण किश्त रकम का भुगतान दर्शित नहीं है। परिवादी/अपीलार्थी द्वारा कभी किश्त रकम से कम या कभी किश्त रकम से ज्यादा का भुगतान किया गया है। परन्तु परिवादी/अपीलार्थी द्वारा अभिकथित डाउन पेमेंट रू 1,20,000/- के भुगतान की रसीद अभिलेख में प्रस्तुत नहीं की गई है। परन्तु यह समस्त वि.प.गण/उत्तरवादीगण द्वारा यह अभिस्वीकृत है कि रू 1,26,737/- परिवादी/अपीलार्थी द्वारा जमा किया गया था। परिवादी/अपीलार्थी द्वारा सेन्ट्रल बैंक के दो मांगपत्र दिनांक 08.09.2009 रकम रू 50,000/- की प्रति प्रस्तुत की गई है। परिवादी/अपीलार्थी के उक्त ट्रक को दिनांक 01.08.2009 को वि.प.गण/उत्तरवादीगण द्वारा बिना सहमति व जानकारी दिए जब्त कर लिया गया था, इसके पश्चात् परिवादी/अपीलार्थी द्वारा दिनांक 08.09.2009 को रू 1,00,000/- का भुगतान वि.प.क्र.2 को किया गया। वि.प.गण/ उत्तरवादीगण द्वारा परिवादी/अपीलार्थी के वाहन का विक्रय करने के पूर्व बकाया राशि की प्राप्ति हेतु विधिक प्रावधान अनुसार, परिवादी/अपीलार्थी को विक्रय पूर्व सूचना प्रेषित नहीं की थी। विक्रय पूर्व सूचना के संबंध में न तो वि.प.गण द्वारा कोई अभिकथन किया गया है न ही अभिलेख में उसकी प्रति प्रस्तुत की गई है, जिससे स्पष्ट हो कि परिवादी/अपीलार्थी से कब कितने रकम की मांग वाहन के विक्रय पूर्व की थी व यह भी अस्पष्ट है कि परिवादी/अपीलार्थी को वाहन विक्रय किए जाने के पूर्व देय राशि भुगतान करने का पर्याप्त समय व अवसर दिया गया था। इस प्रकार प्रमाणित होता है कि वि.प.गण द्वारा विधि विपरीत तरीके से विधिसम्यक कार्यवाही का अनुपालन किए बिना परिवादी/अपीलार्थी को विक्रय पूर्व सूचना दिए बिना वाहन का विक्रय कर सेवा में निम्नता व घोर व्यवसायिक कदाचरण किया गया है।
12. परिवादी/अपीलार्थी द्वारा परिवाद पत्र में अनुतोष मांगा है कि डाउन पेमेंट की राशि मय ब्याज प्रदान किया जावे परन्तु ब्याज दर का उल्लेख नहीं किया गया है। हमारे मतानुसार जिला फोरम द्वारा प्रदत्त ब्याज दर 6% वार्षिक की दर से उचित है। परिवादी द्वारा वैधानिक नोटिस व्यय रू 1,000/- व वादव्यय रू 10,000/- की मांग की है जिला फोरम द्वारा परिवाद व्यय रू 2,000/- का अनुतोष प्रदान किया गया है, जो कि उचित प्रतीत होता है। परिवादी द्वारा आर्थिक नुकसान हेतु प्रतिदिन के हिसाब से ट्रक को आधिपत्य में लेने की तिथि से परिवादी को भुगतान दिनांक तक की गणना कर आर्थिक क्षतिपूर्ति के रूप में रकम की मांग की है परन्तु परिवादी/अपीलार्थी ने अभिलेख में ऐसा कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया है, जिससे यह प्रमाणित हो कि ट्रक जब्त हो जाने के कारण उसे प्रतिदिन रू 2,000/- की हानि हो न ही अभिकथन में ऐसा कोई स्पष्टीकरण दिया है जिससे ज्ञात हो कि परिवादी को प्रतिदिन ट्रक से रू 2,000/- आय अर्जित होती थी। इस प्रकार जिला फोरम द्वारा आर्थिक क्षति प्रमाणित न होने पर इस शीर्ष पर क्षतिपूर्ति का अनुतोष प्रदान न कर त्रुटि नहीं की है। इसके अतिरिक्त शारीरिक व मानसिक कष्ट हेतु रू 20,000/- की क्षतिपूर्ति रकम की मांग की गई है जिसके संबंध में जिला फोरम द्वारा रू 5,000/- का अनुतोष प्रदान किया गया है। हमारे मतानुसार, मानसिक कष्ट हेतु रू 5,000/- की अनुतोष की रकम कम है। यद्यपि परिवादी/अपीलार्थी द्वारा दिनांक 28.04.2007 से कुल रू 14,43,670/- दिनांक 08.03.2010 तक किश्त भुगतान किया गया था एवं परिवादी को जानकारी दिए बिना वाहन को जब्त किया गया व विक्रयपूर्व सूचना दिए बिना वाहन विक्रय कर दिया गया, जो कि अनुचित व विधिविरूद्ध कृत्य था। अतः मानसिक संताप हेतु परिवादी/ अपीलार्थी को रू 10,000/- प्रदान किया जाना उचित होगा।
13. इस प्रकार प्रकरण के तथ्यों पर विचारविमर्श के उपरांत हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते है कि अपीलार्थी की अपील आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है। अतः अंशतः स्वीकार की जाती है एवं जिला फोरम द्वारा पारित आदेश की कंडिका 25 (2) में निम्नानुसार परिवर्तन किया जाता है
’’2/ इस आयोग द्वारा पारित आदेश दिनांक से 30 दिनों के अंदर वि.प.गण/उत्तरवादीगण संयुक्ततः व पृथक-पृथक रूप से परिवादी /अपीलार्थी को शारीरिक व मानसिक असुविधा हेतु रू 10,000/- क्षतिपूर्ति की राशि प्रदान करेंगे।’’
शेष आदेश यथावत रहेगा, जिसकी संपुष्टि की जाती है। अपील व्यय के संबंध में कोई आदेश नहीं किया जा रहा है।
(न्यायमूर्ति आर. एस. शर्मा) (सुश्री हीना ठक्कर)
अध्यक्ष सदस्या
/02/2015 /02/2015