राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(सुरक्षित)
अपील संख्या:-1548/2017
(जिला फोरम, सीतापुर द्धारा परिवाद सं0-32/2013 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 14.6.2017 के विरूद्ध)
Om Prakash, S/o Sri Sridhar Mishra, R/o Bhuripur Patiya, Post Sarsanda, P.S. Manpur, District Sitapur.
.......... Appellant/ Complainant
Versus
Tata Motors Finance Company Ltd., I-Think Techno Campus Building A, 2nd Floor, OffPokhran Road No.2, Thane (West), 400601 also having their Branch Office at 506,506 A, 506 B & 506 C, Fifth Floor, 20 A, Vidhan Sabha Marg, Lucknow-226001.
…….. Respondent/ Opp. Party
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष
अपीलार्थी के अधिवक्ता : श्री रोमित सेठ
प्रत्यर्थी के अधिवक्ता : श्री राजेश चडढा
दिनांक :-03/12/2019
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-32/2013 ओम प्रकाश बनाम टाटा मोटर्स फाइनेंस कम्पनी लिमिटेड में जिला फोरम, सीतापुर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 14.6.2017 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
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आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद निरस्त कर दिया है, जिससे क्षुब्ध होकर परिवादी ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री रोमित सेठ और प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चडढा उपस्थित आये हैं।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्ता के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रत्यर्थी/विपक्षी के विरूद्ध इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसने एक पिकप-207 यू0पी0 34 टी/3150 विपक्षी से फाइनेंस कराकर दिसम्बर, 2011 में क्रय किया था। उसने विपक्षी से 4,84,000.00 रू0 का फाइनेंस कराया था और विपक्षी को किश्तें अदा करता रहा है। जुलाई, 2012 में मात्र दो किश्तें बांकी रह गई थी, फिर भी दिनांक 31.7.2012 को प्रत्यर्थी/विपक्षी ने उसकी गाड़ी गुण्डों के द्वारा जबरदस्ती छिनवा ली और उससे बन्दूक के दबाव में कागजात पर लिखा-पढ़ी करा ली। परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि उसने काफी भाग दौड़ की
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परन्तु उसको गाड़ी प्रत्यर्थी/विपक्षी ने वापस नहीं दिया और गाड़ी कही बिकवा दिया है। अत: क्षुब्ध होकर उसने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है।
प्रत्यर्थी विपक्षी की ओर से जिला फोरम के समक्ष लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है और कहा गया है कि टाटा मोटार्स फाइनेंस कम्पनी लिमिटेड को पक्षकार बनाया गया है, जो विधिक व्यक्ति नहीं है। अत: परिवाद ग्राह्य नहीं है। लिखित कथन में प्रत्यर्थी/विपक्षी की ओर से यह भी कहा गया है कि अपीलार्थी/परिवादी द्वारा कामर्शियल पिकअप वाहन सं0-यू0पी0 34 टी-3150 क्रय करने हेतु लोन कम हाईपोथिकेशन कम गारण्टी एग्रीमेंट दिनांक 26.10.2011 को निष्पादित करते हुए 4,88,000.00 रू0 का ऋण अपीलार्थी/परिवादी ने ब्याज पर लिया था, जिसे चार वर्ष में 47 मासिक किश्तों में अदा करना था, परन्तु अपीलार्थी/परिवादी ने मासिक किश्तें नियमित रूप से अदा नहीं की। दिनांक 22.3.2012 को उसके जिम्मा 5,18,668.00 रू0 था जिसकी अदायगी हेतु उससे लिखित एवं मौखिक रूप से आग्रह किया गया और ऋण अनुबन्ध की शर्त 18 के अनुसार प्रत्यर्थी/विपक्षी द्वारा दृष्टिबन्धक वाहन को कब्जे में लिया गया है। अपीलार्थी/परिवादी को परिवाद प्रस्तुत करने का अधिकार नहीं है। लिखित कथन में प्रत्यर्थी/विपक्षी की ओर से यह भी कहा गया
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है कि ऋण करार के अनुबन्ध के अनुसार विवादित ऋण व ब्याज का विवाद पंचाट को संदर्भित किया गया है और आर्बिट्रेशन अवार्ड गुणदोष के आधार पर पारित किया जा चुका है, जिसके अनुसार दिनांक 22.3.2012 को 5,18,668.00 रू0 की धनराशि अपीलार्थी/परिवादी द्वारा देय थी। जिस पर 18 प्रतिशत वार्षिक की दर से आर्बिट्रशन अवार्ड के अनुसार ब्याज भी देय है। अवार्ड में प्रश्नगत वाहन बेंच कर वसूली करने का भी आदेश है। लिखित कथन में प्रत्यर्थी/विपक्षी की ओर से कहा गया है कि उपरोक्त आर्बिट्रेशन अवार्ड दिनांक 10.7.2012 उभय पक्ष के बीच अंतिम और बाध्यकारी है। परिवाद जिला फोरम में चलने योग्य नहीं है। लिखित कथन में प्रत्यर्थी/विपक्षी की ओर से यह भी कहा गया है कि प्रत्यर्थी/विपक्षी की सेवा में कोई कमी नहीं है और परिवाद जिला फोरम सीतापुर के स्थानीय अधिकारिता से परे भी है। अत: परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन और उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत यह माना है कि प्रत्यर्थी/विपक्षी द्वारा अपीलार्थी/परिवादी को वाहन क्रय करने हेतु ऋण प्रदान किया गया है जो मय ब्याज अदा किया जाना शेष है और पंजीयन प्रमाण पत्र के आधार पर वाहन का हाइपोथिकेशन प्रत्यर्थी/विपक्षी के पक्ष में
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है, इसके साथ ही जिला फोरम ने यह माना है कि परिवाद जिला फोरम, सीतापुर के क्षेत्राधिकार से पेरे है।
उपरोक्त निष्कर्षों के आधार पर ही जिला फोरम ने परिवाद आक्षेपित आदेश के द्वारा निरस्त कर दिया है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम ने परिवाद निरस्त कर गलती की है। अपीलार्थी/परिवादी ने वाहन की अधिकांश किश्तों का भुगतान कर दिया है। प्रत्यर्थी/विपक्षी ने जबरदस्ती विधि विरूद्ध ढंग से वाहन अभिरक्षा में लिया है, जो प्रत्यर्थी/विपक्षी की सेवा में कमी है।
प्रत्यर्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय सही है और विधि के अनुसार है। परिवाद जिला फोरम, सीतापुर के अधिकार क्षेत्र से परे है और प्रत्यर्थी/विपक्षी की सेवा में कोई कमी नहीं है। अपीलार्थी/परिवादी का वाहन प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी से हाइपोथिकेटेड था और ऋण करार पत्र के अनुसार ऋण धनराशि का भुगतान न होने पर प्रत्यर्थी/विपक्षी ने उसे विधिक ढंग से अभिरक्षा में लिया है। प्रत्यर्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि ऋण की अवशेष धनराशि और ब्याज के सम्बन्ध में विवाद ऋण करार के अनुबन्ध के अनुसार आर्बिट्रेटर को रिफर किया गया है और आर्बिट्रेटर द्वारा आर्बिट्रेशन अवार्ड दिनांक 10.7.2012 को पारित
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किया जा चुका है। अत: यह परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत ग्राह्य नहीं है। आर्बिट्रेशन अवार्ड के विरूद्ध यदि कोई शिकायत परिवादी को है तो वह विधि के अनुसार जिला जज के न्यायालय में आपत्ति प्रस्तुत कर सकता है। जिला फोरम के समक्ष आर्बिट्रेशन अवार्ड की वैधता पर विचार नहीं किया जा सकता है।
मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
प्रश्नगत ऋण की अवशेष धनराशि के सम्बन्ध में विवाद आर्बिट्रेटर को संदर्भित किया गया है और आर्बिट्रेटर ने अपना एवार्ड दिनांक 10.7.2012 को दिया है। ऐसी स्थिति में प्रश्नगत ऋण की अवशेष धनराशि के सम्बन्ध में वर्तमान परिवाद में विचार नहीं किया जा सकता है और न कोई निर्णय दिया जा सकता है। आर्बिट्रेशन अवार्ड के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी के जिम्मा ऋण की धनराशि अवशेष है और वाहन अपीलार्थी/परिवादी को हाइपोथिकेटेड है। अत: अपीलार्थी/परिवादी द्वारा ऋण करार के अनुसार वाहन कब्जे में लिया जाना अवैधानिक नहीं कहा जा सकता है।
सम्पूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के उपरांत मैं इस मत का हॅू कि अपीलार्थी/परिवादी प्रत्यर्थी/विपक्षी की सेवा में कमी साबित नहीं कर सका है और जिला फोरम ने परिवाद निरस्त
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कर कोई गलती नहीं की है। अपील बलरहित है। अत: निरस्त की जाती है।
अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं बहन करेंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
हरीश आशु.,
कोर्ट सं0-1