Uttar Pradesh

Faizabad

CC/53/2006

Manish Kumar - Complainant(s)

Versus

Tata Motor Finance - Opp.Party(s)

11 Jan 2016

ORDER

DISTRICT CONSUMER DISPUTES REDRESSAL FORUM
Judgement of Faizabad
 
Complaint Case No. CC/53/2006
 
1. Manish Kumar
Civilline Faizabad
...........Complainant(s)
Versus
1. Tata Motor Finance
mumbai
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL PRESIDENT
 HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA MEMBER
 HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद । 
        
    
    

़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़                    ़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़उपस्थितिः-(1) श्री चन्द्र पाल अध्यक्ष

                            (2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
                            (3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य


               परिवाद सं0-53/2006    

1-    मनीष कुमार सिंह पुत्र श्री विजय कुमार सिंह
2-    विजय कुमार सिंह पुत्र स्व0 श्री बंशराज सिंह
    निवासीगण ग्राम अटवाॅं पोस्ट हर्रैया जिला बस्ती वर्तमान निवास सिविल लाइन शहर व जिला फैजाबाद                            .................... परिवादीगण

                  बनाम

1-    टाटा मोटर्स लिमिटेड मुम्बई पूणे।
2-    सरदार मोटर्स, दराबगंज लखनऊ रोड फैजाबाद सेलिंग डीलर टाटा मोटर लि0 (डीलर कोड नं0-00940)
3-    टाटा फाइनेन्स लिमिटेड मुख्यालय वेजोला काम्पलेक्स वियनपुरी मार्ग चेम्बूर, मुम्बई, महाराष्ट्र द्वारा अधिकृत एजेन्ट के0आफ सरदार मोटर्स दराबगंज लखनऊ रोड फैजाबाद                                ................ विपक्षीगण

    निर्णय दि0 11.01.2016
                                                             

                  निर्णय

उद्घोषित द्वाराः-श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष

    परिवादी ने यह परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध वाहन को बदल कर दूसरा वाहन देने  तथा इस बीच वे परिवादीगण से ऋण के किश्तों की वसूली स्थगित रखने एवं क्षतिपूर्ति दिलाये जाने हेतु योजित किया है।

                    (  2  )
    
संक्षेप में परिवादीगण का परिवाद इस प्रकार है कि परिवादी सं0-1 वर्ष 2004 से ठेकेदारी व कुछ अन्य व्यवसाय शुरू किया। परिवादी सं0-1 ने टाटा सूमो विक्टा लेने का मन बनाया। उक्त वाहन का मूल्य उस समय मु0 4,93,947=00 था परन्तु परिवादी के पास एक मुश्त पूरी रकम नहीं थी इस कारण उसने विपक्षी सं0-1 के अधिकृत डीलर से इस सम्बन्ध में बात किया तो उन्होंने बताया कि विपक्षी सं0-3 द्वारा वाहन क्रय के लिए ऋण सुविधा वे दिला सकते हैं तथा उन्होंने परिवादी सं0-1 को विपक्षी सं0-1 से मिलाया और वह मु0 3,95,200=00 की सुविधा देने के लिए तत्काल तैयार हो गया जिसके कारण परिवादी सं0-1 ने शेष भुगतान मु0 98,747=00 का करके विपक्षी सं0-2 से दि0 29.11.04 को टाटा सूमो विक्टा वाहन चेसिस नं0-446251 केवीजेड 9399692 पंजीयन सं0यू0पी042एच/6252 खरीदा है। चूॅंकि परिवादी सं0-1 के पास कोई अचल सम्पत्ति नहीं थी इस कारण अपने धन की सुरक्षा हेतु विपक्षी सं0-3 ने परिवादी सं0-1 पर दबाव डाला था कि वह परिवादी सं0-2 को भी सह कर्जदार के रूप में रखे क्योंकि उनके पास काफी अचल सम्पत्ति है जिससे उनसे आसानी से वसूली हो सके। हालांकि परिवादी सं0-2 से उक्त सौदे से मतलब नहीं था तथा सारी बातचीत व धन भुगतान परिवादी सं0-1 ने ही किया था फिर भी विपक्षी सं0-3 की सन्तुष्टि हेतु परिवादी सं0-1 ने सहस्वामी के रूप में परिवादी सं0-2 का नाम कागजात में डलवा दिया था। विपक्षी सं0-1 द्वारा तयशुदा शर्तो के अनुसार वाहन के किसी समान अथवा कारीगरी में 18 माह अथवा वाहन को 50,000 कि0मी0 चलने के पूर्व कोई खराबी नहीं आयी थी तथा कोई खराबी आने की दशा में उसके मरम्मत अथवा सामान बदलने की जिम्मेदारी विपक्षी सं0-1 की थी। वाहन खरीद लेने के मुश्किल से दो माह बाद ही वाहन में मैनुफैक्चरिंग डिफेक्ट पता चला तथा उसके इंजन में खराबी रहने लगी और गियर बाक्स में काफी शोर रहता था तथा गियर फंसती थी जिससे उपरोक्त वर्णित वाहन ठीक से चल नहीं पा रहा था। कई बार रास्ते में ही वाहन बिगड़ जाने के कारण परिवादी सं0-1 समय पर अपने गाॅंव व कार्यक्षेत्र पर नहीं पहुॅंच पाया जिसके कारण कई बार उसका काफी आर्थिक नुकसान हो गया। इसके अतिरिक्त बनारस आते समय स्टेयरिंग पम्प फेल हो गया था। परिवादी सं0-1 बराबर उक्त कमियों के बारे में विपक्षी सं0-2 को अवगत कराता रहा तथा समय-समय पर सर्विसिंग कराता रहा तथा विपक्षी सं0-2 द्वारा तमाम बार वाहन की तमाम त्रुटियों को सुधारने की कोशिश की गयी परन्तु परिवादी का वाहन कभी भी सही दशा में नहीं आ सका। अन्तिम बार दि0 03.01.2006 को वाहन के गियर बाक्स को ओवरहालिंग  भी  हुई  परन्तु  उसके बावजूद भी वाहन ठीक नहीं हो सका। परिवादी 

                    (  3  )
सं0-1 विपक्षी सं0-3 द्वारा तयशुदा किश्तों का भुगतान बराबर करता रहा है परन्तु इधर कुछ दिनों से गाड़ी सही ढंग से न चल पाने के कारण परिवादी का इधर काफी आर्थिक नुकसान हो गया तथा काम धन्धे के लिए उसे दूसरा वाहन किराये पर लेना पडता था। इधन दो तीन किश्तों का भुगतान प्रार्थी नहीं कर सका। परिवादी सं0-1 ने बराबर इस सम्बन्ध में विपक्षी सं0-2 व 3 से कहा कि वे उसकी गाड़ी सही करा दें तथा उसके बाद एक दो माह के अन्दर परिवादी सारी किश्तों का भुगतान उचित रूप से कर देगा। परन्तु उनके द्वारा इस पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है बल्कि विपक्षी सं0-3 द्वारा बार-बार परिवादी सं0-1 को धमकी दी जा रही है कि वे उसका वाहन खिंचवा लेंगे। विपक्षी सं0-3 के कुछ कारिन्दों ने सड़क पर परिवादी सं0-1 को रोक कर उसका उपरोक्त वाहन छीनने का प्रयास भी किया परन्तु उसके विरोध करने पर एवं कुछ अन्य लोगों के हस्तक्षेप करने के कारण उन असामायिक तत्वों को मजबूरन भागना पड़ा। विपक्षी सं0-3 से ऋण लेकर वाहन को बन्धक जरूर किया है परन्तु इससे विपक्षी सं0-3 को यह अधिकार कदापि नहीं है कि वह जबरदस्ती गुण्डों के बल पर परिवादी का वाहन छीन सके। विपक्षी सं0-3 यदि परिवादी से बिना वाहन ठीक हुए बकाया रूपया वसूलने को अधिकृत भी पाया जाय तो भी उसे कानूनी प्रक्रिया का सहारा लेना चाहिए तथा सभ्य समाज में इस तरह जबरदस्ती असामाजिक तत्वों की मदद से वसूली अथवा वाहन छीनने की छूट उसे नहीं दी जा सकती है। प्रस्तुत परिवाद हेतु कार्य कारण माह जनवरी 2005 जब से वाहन में खराबी आयी तो दि0 11.03.2006 जब विपक्षी सं0-3 के गुण्डों ने परिवादी की गाड़ी छीनने का प्रयास किया से बराबर माननीय फोरम के क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत उत्पन्न है। 
विपक्षी सं0-1 ने अपने जवाब में परिवाद में उसके विरूद्ध लगाये गये समस्त आरोपों को अस्वीकार करते हुए यह कहा है कि माननीय फोरम का क्षेत्राधिकार इन्वोक करने के लिए परिवादी का उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा-2 (1) ;कद्ध ;पद्ध के अधीन उपभोक्ता की परिभाषा में आना आवश्यक है। यह प्रावधान ऐसे व्यक्ति पर लागू होता है जो किसी वस्तु अथवा सेवाओं को पुनः विक्रय या किसी वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए नहीं खरीदता हो। इसी प्रावधान के स्पष्टीकरण में वाणिज्यिक प्रयोजन में स्वरोजगार के लिए क्रय की गई वस्तु सम्मिलित नहीं है। परिवादी ने बिना किसी आधार के वाहन में निर्माण सम्बन्धी कमियों के विपक्षीगण पर आरोप लगाये हैं जिन्हें विपक्षी अस्वीकार करता है। निर्माण सम्बन्धी त्रुटि वाहन में पाई जाने वाली साधारण कमियों से भिन्न होती है तथा वाहन में निर्माण सम्बन्धी त्रुटि को सिद्ध करने का भार परिवादी पर हैै।  

                (  4  )
विपक्षी सं0-2 ने अपने जवाब में कहा कि उपरोक्त वाहन परिवादी सं0-1 मनीष कुमार सिंह द्वारा दि0 29.11.04 को क्रय किया गया है। उक्त वाहन दि0 29.11.04 को वित्तीय सहायता विपक्षी सं0-3 से प्राप्त करके क्रय की गयी थी और सम्भवतः मुख्य विवाद ऋण अदायगी से ही सम्बन्धित प्रतीत होता है जो परिवादीगण एवं विपक्षी सं0-3 के बीच है। उपरोक्त वाहन की वारंटी-वारंटी कार्ड में दी गयी शर्तो नियमों तहत ही देय है उनका उल्लंघन करने की दशा में उपभोक्ता उनसे स्वतः वंचित हो जाता है। परिवादी/ क्रेता द्वारा वारंटी के अनुसार शर्तो व नियमों का पालन नहीं किया और न ही नियमानुसार समय-समय पर उसकी सर्विसिंग ही कराई न ही वाहन सुचारू रूप से चलाया। परिवादी/क्रेता द्वारा जब-जब उक्त वाहन की सर्विसिंग कराई गई है सर्विस की गयी है और उसे सर्विस उपरान्त उक्त वाहन परिवादी/क्रेता को उत्तम व सही व संतोषजनक स्थिति में वापस किया है जिसे उसने सदैव स्वीकार किया है। परिवादी का वाहन व्यवसायिक उपयोग में लाने के कारण भी माननीय न्यायालय के क्षेत्राधिकार के बाहर है। 
विपक्षी सं0-3 ने अपने जवाब में कहा कि परिवादी ने टाटा मोटर्स लि0 से दि0 29.11.2004 को ऋण खाता संख्या-20783851 से मु0 3,95,200=00 की वित्तीय सहायता लेकर टाटा सूमो विक्टा क्रय किया जिसका भुगतान परिवादी को चार वर्ष में 48 मासिक किश्तों में करना था जिसकी पहली किश्त मु0 11,726=00 शेष 47 किश्तें मु0 11,350=00 की दर से अदा करना था। ऋणयुक्त वाहन का पंजीकरण संख्या यू0पी042एच/6252 है। प्रत्येक मासिक किश्तों के नियमित अदायगी की शर्त ऋण अनुबन्ध पत्र का सार है। परिवादी ने कभी भी निष्पादित ऋण अनुबन्ध पत्र के शर्तो के अनुसार मासिक किश्तों की अदायगी नियमित रूप से नहीं किया जो भी किश्तों की अदायगी किया वह भी प्रत्येक मासिक किश्तों की निर्धारित धनराशि की अदायगी नहीं किया। किश्तों पर डिफाल्ट होने की दशा में पेनाल्टी चार्जेज लगता रहा। जिसकी सूचना उत्तरदाता मुजीव द्वारा परिवादी को समय-समय पर हमेश दिया जाता रहा। विपक्षी को विवश होकर किश्तों की अदायगी में परिवादी द्वारा चूक करने पर वाहन को अपने अधिकार में लेना पड़ा क्योंकि वित्तीय सुविधा प्रदान करने वाली कम्पनी जब तक वित्तीय सुविधा की समस्त धनराशि प्राप्त नहीं कर लेती तब तक प्रश्नगत वाहन का वास्तविक स्वामी है। 
मैं पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्य तथा लिखित बहस का अवलोकन किया। इस परिवाद में परिवादीगण को अपना केस स्वयं साबित करना चाहिए। परिवादीगण ने विपक्षी सं0-3 से टाटा सूमो विक्टा लेने हेतु मु0 3,95,200=00 को लिया जिसका नं0-यू0पी042एच/6252 है। परिवादी ने जो ऋण विपक्षी सं0-3 से लिया है उसके अदायगी की जिम्मेदारी परिवादीगण की है। परिवादी ने अपने परिवाद की धारा-7 में कहा है कि कुछ दिनों से गाड़ी सही ढंग से न चल पाने के कारण प्रार्थी का इधर काफी आर्थिक नुकसान हो गया तथा काम धन्धे के लिए उसे दूसरा वाहन किराये पर लेना पड़ता था। इधर दो तीन किश्तों का भुगतान प्रार्थी नहीं कर सका। परिवादी ने टाटा सूमो विक्टा में मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट को भी अपने परिवाद के धारा-5 में कहा है। परिवादी ने सूची 1/13 से जो कागजात प्रेषित किये हैं वह सर्विस से सम्बन्धित है। किसी आॅथराइज्ड डीलर की सर्विस सेन्टर से परिवादी द्वारा कोई भी कागजात अपने वाहन का प्रेषित नहीं किया है जिससे यह स्पष्ट हो कि विपक्षी सं0-2 ने जो वाहन परिवादीगण को बेचा है उसमें मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट है। इस प्रकार परिवादी का यह कथन कि वाहन में मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट है यह बात साबित नहीं होती है।
विपक्षीगण की ओर से परिवादी द्वारा किश्तों के भुगतान के सम्बन्ध में टाटा मोटर्स लिमिटेड कारडेक्स (कान्ट्रैक्ट डिटेल्स) कागज सं0-9ख/1 लगायत 9ख/6 प्रेषित किये गये हैं। परिवादीगण ने प्रथम किश्त दि0 29.11.2004 को मु0 11,726=00 देय  थी जिसकी अदायगी  किया  और  अन्तिम  किश्त  दि0 14.04.2006  को  मु0  

    (  5  )
21,905=00 अदा किया है। इसके उपरान्त् परिवादीगण ने संविदा शर्तो के अनुसार विपक्षीगण के किश्तों का भुगतान नहीं किया। परिवादीगण द्वारा चार वर्ष में प्रथम किश्त छोड़ करके 47 किश्तें अदा करनी थी जिसे परिवादीगण ने संविदा शर्तो के अनुसार किश्तों की अदायगी नहीं किया। सम्माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने के.ए. मथाई एलियस बाबू तथा अन्य बनाम कोरा बीबीकुट्टी तथा अन्य (1996) 7 एस.सी.सी. 212 में यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया है कि जहाॅं पर कोई संविदा हायर परचेज की है और संविदा के अनुसार किश्तों का भुगतान नहीं किया जाता है तो फाइनेन्सर का यह अधिकार है कि गाड़ी को अपने पजेशन में ले सकता है और पजेशन हेतु या संविदा के शर्तो के पालन के लिए आवश्यक कार्यवाही कर सकता है। परिवादीगण ने संविदा शर्तो का उल्लंघन किया है। विपक्षी सं0-3 द्वारा दी गयी ऋण का भुगतान नहीं किया है। इस प्रकार विपक्षी सं0-3 अपना दिया हुआ ऋण परिवादीगण से वसूल कर पाने का अधिकारी है। इस प्रकार मैं परिवादीगण के परिवाद में बल नहीं पाता हूॅं। परिवादीगण का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है। 
 
              आदेश

            परिवादीगण का परिवाद खारिज किया जाता है।     

          (विष्णु उपाध्याय)         (माया देवी शाक्य)             (चन्द्र पाल)              
              सदस्य                  सदस्या                    अध्यक्ष     
     
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 11.01.2016 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया  गया।

          (विष्णु उपाध्याय)         (माया देवी शाक्य)             (चन्द्र पाल)           
              सदस्य                   सदस्या                   अध्यक्ष

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA]
MEMBER
 
[HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY]
MEMBER

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.